Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

कितना उचित है धार्मिक आराध्यों का उपहास ?

भारत की व्यवस्था का संचालन भले ही संवैधानिक है लेकिन धार्मिकता का भी अपना एक अनूठा स्थान है क्योंकि भारतीय संविधान, किसी भी नागरिक को किसी भी धर्म की आस्था अथवा उनके आराध्यों के साथ खिलवाड़ अथवा उनका उपहास उड़ाने की अनुमति कतई नहीं देता है। बावजूद इसके कानपुर शहर के कुछ प्रतिष्ठानों में ऐसे नजारे प्रकाश में आये हैं जिनको देखकर आश्चर्य हुआ कि अपने प्रतिष्ठानों में गलियारों एवं सीढ़ियों को गंदगी से बचाने के लिये धार्मिक चित्रों को स्थापित करवा दिया गया है। खास पहलू यह है कि प्रतिष्ठानों के मालिकों की नजर में ऐसा कृत्य किसी भी नजरिये से अनुचित नहीं है जबकि सनातन ही नहीं अपितु हर धर्म के आस्थावान लोगों के नजरिये से ऐसा कृत्य उनकी आस्था के साथ खिलवाड़ है। उनका मानना है कि ऐसा करने वाले लोगों ने यह कृत्य अनजाने में नहीं बल्कि जानबूझ कर किया है क्यों कि बड़े-बड़े प्रतिष्ठान चलाने वाले ये लोग, अनपढ़ अथवा नासमझ नहीं बल्कि उच्च शिक्षित व विधिक जानकारी रखने वाले लोग हैं।
बिगत दिनों एक मामला कानपुर शहर के स्वरूपनगर में प्रकाश में आया, जहाँ मोतीझील मेट्रो स्टेशन के निकट स्थित नादरी कार्नर मार्केट में हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं के चित्रों को उन स्थानों पर स्थापित किया गया था, जिन स्थानों पर लोग मौका पाते ही पान-तम्बाकू की ‘पीक’ थूक देते थे। ऐसे में गन्दगी होना स्वाभाविक सी बात है लेकिन खेदजनक नजारा यह रहा कि उन स्थानों पर लोग न थूकें, इस लिये हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं के चित्रों को स्थापित करवा दिया गया था!!

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कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म का प्रतिबंध

पहुँच को प्रतिबंधित करने से माता-पिता और अभिभावकों को अपने बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों को बेहतर ढंग से निर्देशित करने और यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि वे पर्यवेक्षित तरीके से तकनीक से जुड़ें। हमें बच्चों और युवाओं को ऑनलाइन स्पेस को बेहतर तरीके से नेविगेट करने में मदद करने की भी आवश्यकता है, यह सुनिश्चित करके कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में डिजिटल साक्षरता और ऑनलाइन सुरक्षा सिखाने पर विशेष ध्यान दिया जाए। युवाओं को इस बारे में गंभीरता से सोचना सिखाया जाना चाहिए कि वे ऑनलाइन क्या देखते हैं और वे सोशल मीडिया से कैसे जुड़ते हैं। माता-पिता और शिक्षकों को उचित मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करने में मदद करने के लिए बेहतर उपकरणों और संसाधनों की भी आवश्यकता है।

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समाज में नैतिकता और अनुशासन : शिक्षा व तकनीकी संतुलन की जरूरत

आज का समाज नैतिक मूल्यों, अनुशासन और पारिवारिक संस्कारों के पतन की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है। विशेषकर युवाओं में हिंसा, अनुशासनहीनता और गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार की घटनाएं बढ़ रही हैं, जो चिंता का विषय है। हाल ही में हुई विद्यालय की घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि नैतिक शिक्षा, पारिवारिक मूल्यों और तकनीकी संसाधनों के अनुशासनात्मक उपयोग पर विशेष ध्यान देना अनिवार्य हो गया है। लिखा भी गया है कि
विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम्॥
अर्थात्- विद्या विनय सिखाती है, विनय से योग्यता आती है, योग्यता से धन और धन से धर्म व सुख प्राप्त होता है।
श्लोक के भावार्थ को ध्यान में रखते हुए कहें तो विद्यालय केवल शिक्षा देने का स्थान नहीं है, बल्कि यह बच्चों में नैतिकता और जिम्मेदारी की भावना विकसित करने का केंद्र भी है। शिक्षक और अभिभावक बच्चों को सही और गलत के बीच फर्क समझाने में एक प्रमुख भूमिका निभाएं। नई शिक्षा नीति (2020) में भी नैतिक शिक्षा और जीवन कौशल को प्राथमिकता दी गई है। छात्रों के नैतिक और व्यावहारिक विकास के लिए यह दिशा दिखाती है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल करियर निर्माण नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण भी होना चाहिए।

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विपक्ष संभल पर आक्रमक तो बांग्लादेश पर खामोश क्यों ?

उत्तर प्रदेश के जिला संभल में जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। इसकी आहट सुप्रीम अदालत से नेताओं के विवादित बयानों से लेकर राजनैतिक गलियारों तक में सुनाई दे रही है। बीजेपी को छोड़कर सभी राजनैतिक दलों के नेता जामा मस्जिद और पत्थरबाजों के पैरोकार बनकर खड़े हो गये हैं। हाथ में पत्थर और तमंचे लेकर पुलिस पर हमला करने वालों के पक्ष में खड़े यह नेता लगातार योगी सरकार और स्थानीय प्रशासन के खिलाफ हमलावर हैं। सभी दलों के नेताओं ने संभल को अपना पिकनिक स्पाट बना लिया है। कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी हों या फिर समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव जैसे तमाम नेता कभी संभल कूच करने का नाटक करते हैं तो कभी अफवाह फैलाकर माहौल खराब कर रहे हैं। संभल के बिगड़े हालात को संभालने के लिये स्थानीय प्रशासन ने 10 दिसंबर तक जिले में बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंद्ध लगा रखा है,लेकिन बीजेपी विरोधी नेताओं को जिले में शांति बरकरार हो इससे ज्यादा चिंता अपनी राजनीति चमकाने की है। इस समय संभल में सियासी नजरा ठीक वैसे ही नजर आ रहा है जैसा कभी अयोध्या प्रभु श्रीराम लला के मंदिर निर्माण आंदोलन, मथुरा में श्री कृष्ण भगवान की जन्म स्थली एवं वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद बनाम साक्षात विश्वनाथ मंदिर मामले में देखने को मिला था और मिल रहा है। संभल विवाद और इसको लेकर हिंसा का मामला लोकसभा तक में गंूज चुका है।
कुल मिलाकर संभल विवाद के सहारे सपा प्रमुख अखिलेश यादव, कांग्रेस नेता राहुल गांधी के अलावा ओवैसी जैसे नेता भी अपनी सियासत चमकाने में लगे हैं। मगर अफसोस की बात यह है कि संभल मामले में मोदी-योगी सरकार को घेरने में लगे दल और नेता बांग्लादेश में हिन्दुओं के साथ जारी हिंसा को लेकर अपने होंठ सिले हुए हैं,मानो यदि इन नेताओं ने बांग्लादेश के हिन्दुओं के पक्ष में कोई बयान दे दिया तो उनका मुस्लिम वोट बैंक उनसे खिसक जायेगा।

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केजरीवाल का सुरक्षा मुद्दा बीजेपी के लिए बन सकता है चुनावी संकट?

दिल्ली विधानसभा चुनाव की सियासी जंग इस बार एक नए मोड़ पर पहुंच चुकी है। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल, जो अब तक मुफ्त बिजली, पानी और शिक्षा जैसे वादों के साथ दिल्ली के चुनावी मैदान में उतरते रहे थे, इस बार एक नई रणनीति के साथ चुनावी दंगल में हैं। दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने की उनकी कोशिश अब केवल मुफ्त योजनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इस बार वह दिल्ली की कानून व्यवस्था, सुरक्षा और बढ़ते अपराध को चुनावी मुद्दा बनाने में लगे हुए हैं। उनकी रणनीति साफ है बीजेपी की कमजोर नस पर हाथ रखना, और यह कमजोर नस है दिल्ली की बिगड़ती कानून व्यवस्था।

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शारीरिक संतुष्टि के लिए मौत को गले लगाते युवा

यह आम कहावत है कि लोग बुरी आदतों को शीघ्र सीख लेते हैं जबकि अच्छी आदत सीखने में उन्हें देर लगती है। एक नए अध्ययन में बताया गया है कि आजकल लोग अजीबो गरीब हरकतें करके खुशी मनाने के चक्कर में मौत के मुंह में चले जाते हैं । इनमें नदी, समुद्र या बांध के किनारे सेल्फी लेने, सड़कों पर मोटरसाइकिल पर कलाबाजियां करते समय जीवन से हाथ धो बैठते हैं। एक अध्ययन में कुछ नये खुलासे भी हुए हैं । ताजातरीन अध्ययन यह है कि आजकल पंजाब में नौजवान हस्तमैथुन करते हुए अपनी जीवन लीला समाप्त कर बैठते हैं। यद्यपि पंजाब सरकार के पास इसके सही आंकड़े मौजूद नहीं है परंतु शहरों में सेक्स विशेषज्ञों से बातचीत करने के पश्चात कई कटु सच्चाइयां सामने आई है । लुधियाना में एक 19 वर्षीय बच्चा हस्तमैथुन का इतना आदि हो गया कि उसके शरीर की शक्ति क्षीण हो गयी और उसकी मृत्यु हो गई।
ऐसा ही एक व्यक्ति और मृत पाया मिला जिसने बिजली के करंट के माध्यम से अपने शरीर में कामोत्तेजना पैदा करने के लिए लाइटों को अपने शरीर से जोड़ा हुआ था।
सेक्स विशेषज्ञ डॉक्टर सतीश गोयल का कहना है कि पंजाब में लोग नई-नई जुगाड़ लगाते रहते हैं। नशेड़ी लोग भी सेक्स का चरम सुख प्राप्त करने के लिए ऐसी अजीबोगरीब हरकतें करते रहते हैं। कामोत्तेजना की अभिलाषा से हुई इन मौतों का कारण बताते हुए फॉरेंसिक परीक्षक सुखदेव सिंह का कहना है कि ऐसे लोग शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम करके चरम कामोत्तेजना का आनंद उठाते हैं।

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पुलिस अकादमी में हुई संदिग्ध मृत्यु, किसी को सजा नहीं, कब मिलेगा आईपीएस मनुमुक्त ‘मानव’ को न्याय?’

मनुमुक्त के पिता, वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद् डॉ. रामनिवास ‘मानव’ भरे मन से बताते हैं कि अधिकारियों की आपराधिक लापरवाही और मनुमुक्त की मृत्यु के षड्यंत्र में शामिल उनके बैचमेट अफसरों की संलिप्तता के दस्तावेजी सबूतों के बावजूद, उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हुई, बल्कि तेलंगाना पुलिस और सीबीआई ने इसे सामान्य घटना बताकर मामले को रफा-दफा कर दिया। तेलंगाना पुलिस और सीबीआई का पूरा प्रयास दोषियों को बचाने का था, दोषियों को सजा दिलाने का नहीं। ‌यही नहीं, मनुमुक्त को ट्रेनी बताकर सभी सरकारों ने पल्ला झाड़ लिया, किसी ने एक रुपये की भी आर्थिक सहायता परिवार को प्रदान नहीं की।
– प्रियंका सौरभ

’नियति’ का यह कैसा दुखद विधान है कि विशिष्ट प्रतिभाओं को यहाँ अत्यल्प जीवन ही मिलता है। आदि शंकराचार्य से लेकर स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ, श्रीनिवास रामानुजन, भारतेंदु हरिश्चंद्र और रांगेय राघव तक, एक लंबी सूची है ऐसे महापुरुषों‌ की, जो अपनी चमक बिखेरकर अल्पायु में ही इस दुनिया से विदा हो गए। भारतीय पुलिस सेवा के युवा अधिकारी मनुमुक्त ‘मानव’ भी एक ऐसे ही जगमगाते प्रतिभा-पुंज थे, जिन्हें काल ने असमय ही अपना ग्रास बना लिया। 28 अगस्त, 2014 को बहुमुखी प्रतिभा के धनी, अत्यंत होनहार और प्रभावशाली पुलिस अधिकारी मनुमुक्त की मात्र 30 वर्ष, 9 माह की अल्पायु में नेशनल पुलिस अकेडमी, हैदराबाद (तेलंगाना) के स्विमिंग पूल में डूबने से, संदिग्ध परिस्थितियों में, मृत्यु हो गई थी।
स्विमिंग पूल के पास ही स्थित ऑफिसर्स क्लब में चल रही विदाई पार्टी के बाद, आधी रात को जब मनुमुक्त का शव स्विमिंग पूल में मिला, तो अकेडमी में ही नहीं, पूरे देश में हड़कंप मच गया, क्योंकि यह अकेडमी के 66 वर्ष के इतिहास में घटित होने वाली पहली इतनी बड़ी दुर्घटना थी। यहीं यह बताना भी आवश्यक है कि इतनी मर्मांतक और दुर्भाग्यपूर्ण त्रासदी के बाद भी इस मामले की न तो‌ ठीक-से जांच हुई और न ही किसी अधिकारी या कर्मचारी की जिम्मेदारी तय कर, उसके विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही की गई।

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बसपा के लिये एक बार फिर बुरा सपना तो साबित नहीं होंगे उप चुनाव

संजय सक्सेना: लखनऊ। उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनाव में भाजपा और समाजवादी पार्टी में किसको कितनी सीटें मिलेंगी, इसको लेकर तो चर्चा हो सकती है, परंतु उप चुनाव में जिस तरह का मतदान देखने को मिला उससे यही लगता है कि बहुजन समाज पार्टी एक बार फिर हासिये पर ही खड़ी नजर आई। किसी भी सीट पर बसपा फाइट करती नहीं दिखी। बसपा सुप्रीमों मायावती के लिये लगता है अब आगे की राह आसान नहीं रह गई है। इसका मुख्य कारण यह भी है कि बसपा का कोर वोटर कहलाने वाले दलितोें ने अब भाजपा-सपा के रूप में अपनी नहीं मंजिल चुन ली है। इसी वजह से कमोबेश सभी जगह बसपा मुख्य लड़ाई से गायब दिखी, जिसके चलते भाजपा और सपा सीधी लड़ाई में आ गए हैं। बसपा की तरह ही चन्द्रशेखर आजाद की आजाद पार्टी भी कोई गुल खिलाते नहीं दिखी है। कई सीटों पर दलित मतदाता मुख्य रूप से भाजपा-सपा के बीच बंटे हुए दिखाई दिए, जिसने बीजेपी-सपा के जीत के आकड़े को थोड़ा उलझा दिया है, जिसके पक्ष में दलित मतदाता ज्यादा जायेंगे, परिणाम उसी के पक्ष में रहेगा। सबसे बड़ी बात यह रही कि मुरादाबाद की मुस्लिम बाहुल्य कुंदरकी में भाजपा मुस्लिम मतों में सेंध लगाते हुए दिखी, जिसे काफी चौंकाने वाला माना जा रहा है। उधर, कानपुर की सीसामऊ में सपा और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर होने को अनुमान है। यहां के करीब 5.0 मतदान केंद्रों में से आधे से ज्यादा में बसपा प्रत्याशी का बस्ता नहीं दिखा।
समाजवादी पार्टी के गढ़ मैनपुरी के कटेहरी उपचुनाव में मतदान से पहले की स्थिति कुछ और थी। तब मुकाबला त्रिकोणीय माना जा रहा था। संभावना थी कि बसपा प्रत्याशी अमित वर्मा अपने सजातीय मतों में सेंधमारी कर सपा को तगड़ी चोट देंगे, लेकिन मतदान के दौरान ऐसा प्रतीत नहीं हुआ। अंत में भाजपा के धर्मराज निषाद और सपा की शोभावती वर्मा के बीच ही सीधा मुकाबला दिखा। हां, बसपा का प्रदर्शन कमल व साइकिल का संतुलन बिगाड़ सकता है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार बसपा ने अपने पारंपरिक वोटों के साथ ही जातिगत समीकरण को साधा तो सपा का गणित बिगड़ सकता है। यहां सीधा मुकाबला सपा प्रत्याशी तेजप्रताप यादव और भाजपा प्रत्याशी अनुजेश सिंह में रहा।
मुजफ्फरनगर की मीरापुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में कई जगह पुलिस और वोटरों के बीच नोकंझोंक होते दिखी। यहां मुकाबला बीजेपी समर्थित रालोद प्रत्याशी मिथलेश पाल और सपा प्रत्याशी सुम्बुल राना के बीच सिमटता हुआ नजर आया।

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भारत को शिक्षा के क्षेत्र में नंबर 1 बनाने के लिए UGC के नए कदम

कल, श्री एम. जगदीश कुमार, अध्यक्ष, यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC), ने UGC के नए रेगुलेशन के बारे में जानकारी दी, जिसके तहत छात्रों को अब केवल 2 वर्षों में अपनी डिग्री पूरी करने का अवसर मिलेगा। पहले, उन्हें अपनी डिग्री पूरी करने में 4 साल का समय लगता था।
यह बदलाव शिक्षा के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत है। इससे छात्रों को अपनी पढ़ाई जल्दी पूरी करने और अपने करियर में तेजी से प्रगति करने में मदद मिलेगी। साथ ही, यह भारत को शिक्षा के क्षेत्र में विश्व का नंबर 1 देश बनने की ओर अग्रसर करेगा।
जैसा कि आप सभी जानते हैं, नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 भारत द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है। यह नीति पांच मार्गदर्शक सिद्धांतों पर आधारित है:
पहुंच (Access), समानता (Equity), गुणवत्ता (Quality), किफायती शिक्षा (Affordability), और जवाबदेही (Accountability)।
नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 के मुख्य उद्देश्य:
समावेशी शिक्षा: सभी वर्गों के बच्चों को शिक्षा प्रदान करना, चाहे वे किसी भी सामाजिक, आर्थिक, या भौगोलिक पृष्ठभूमि से हों।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा: बच्चों को संज्ञानात्मक, सामाजिक, और भावनात्मक कौशल प्रदान करना ताकि वे सामाजिक और आर्थिक रूप से समृद्ध बन सकें।
तकनीकी प्रगति का उपयोग: शिक्षा में तकनीक का इस्तेमाल कर बच्चों को डिजिटल साक्षरता और 21वीं सदी के कौशल प्रदान करना।

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नन्हा पौधा

नन्हा पौधा बोल उठा,
मस्ती में आंखें खोल उठा।
हंसने दो मुझको ज़रा यहां,
करने दो वसुंधरा हरा भरा।
मैं जीवन बनकर हूं आया ,
धरती से उपजी मेरी किया।
तू जान सका ना प्रभु माया,
अंबर धरती पर क्यों छाया।
जीवन देकर जीवन पाया,
ये भेद तुम्हें सिखाने आया।

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