बच्चों को शिक्षित करें – शिक्षा सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक क्षेत्रों का सशक्त उपकरण, रोजगार का अस्त्र – एड किशन भावनानी
वैश्विक रूप से हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है। वैश्विक रूप से यह देखा गया है कि अनेक कमर्शियल संस्थानों, औद्योगिक संस्थानों, दवा उद्योग, खेत खलियानों गृहउद्योग, इत्यादि अनेक व्यवसायिक क्षेत्रों में छोटे-छोटे बच्चों से श्रम करवाया जाता है, क्योंकि उन क्षेत्रों में कामों के लिए यह छोटे-छोटे बच्चे आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं और अपेक्षाकृत रोजी या मजदूरी भी इनकी कम होती है और डेली वेजेस के रूप में रखकर आसानी से अपना काम करवा लेते हैं। दूसरी तरफ हम अनेक चौराहों, बाजारों, हाट बाजारों, में हमने छोटे-छोटे बच्चों को अकेले या अपने मातापिता के साथ खिलौने खाद्य पदार्थों इत्यादि बेचने को देखते रहते हैं।
लेख/विचार
पीडीएस में तकनीकी प्रगति हो मगर पात्र लाभार्थियों की उपेक्षा नहीं
(वर्तमान में दिल्ली के मुख्यम्नत्री द्वारा घर-घर राशन वितरण की बात को लेकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) फिर से चर्चा में है. जरूरतमंदों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने और किसानों को उचित पारिश्रमिक सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली एक आवश्यक तरीका है.)
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) सस्ती कीमतों पर खाद्यान्न के वितरण और प्रबंधन की एक प्रणाली के रूप में विकसित हुई। हम देखते ही कि पिछले कुछ वर्षों में, पीडीएस देश में खाद्य अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के लिए सरकार की नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। यह समाज के जरूरतमंद वर्गों को बहुत सस्ते दामों पर बुनियादी खाद्य और गैर-खाद्य वस्तुओं को वितरित करने की दिशा में काम करता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा वितरित की जाने वाली कुछ प्रमुख वस्तुएं गेहूं, चावल, दालें आदि हैं।
जनसंख्या वृद्धि संसाधनों को निगल जायेगी
जनसंख्या बढ़ती गई, यूँ ही बेतरतीब, तो मानव को अन्न-जल, होगा नहीं नसीब, जनसंख्या की वृद्धि के, निकले ये परिणाम, जीवन के हर मोड़ पर, कलह और कुहराम।
जनसंख्या ज्वलंत समस्या बन कर आज हमसे समाधान मांग रही है। धरती की भी धारण करने की अपनी सीमा होती है। इस सीमा को पार करने के नतीजे जल, जंगल और जमीन की बौखलाहट के रूप में हम भुगत रहे हैं। हमारी लगातार बढ़ती आबादी के साथ उसकी जरूरतों की आपूर्ति के लिये प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है और नतीजे में हम बार-बार प्रकृति के प्रकोप का सामना करने को अभिशप्त हो गए हैं। मानव आबादी का बढ़ना दुनिया के कई हिस्सों में चिंता का कारण बन गया है, मुख्यतः गरीब देशों में। भारत बढ़ती जनसंख्या की समस्या से जूझ रहा है।
महामारी के दौरान ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में कमी?
( देश के अधिकांश स्वास्थ्य केंद्र अकुशल या अर्ध-कुशल पैरामेडिक्स द्वारा चलाए जाते हैं और ग्रामीण सेटअप में डॉक्टर शायद ही कभी उपलब्ध होते हैं। आपात स्थिति में मरीजों को अपने जान पहचान के देखभाल अस्पताल भेजा जाता है जहां वे अधिक भ्रमित हो जाते हैं और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और बिचौलियों के एक समूह द्वारा आसानी से धोखा खा जाते हैं। )
2020 में पहली लहर की तुलना में, 2021 की दूसरी लहर में ग्रामीण हिस्सों में संक्रमण और मौतों की संख्या में तेजी से वृद्धि देखी गई है, जो देश की 1.3 बिलियन आबादी का 65% है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की अनिश्चित स्थिति को देखते हुए, राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) ने सरकार से इन क्षेत्रों में परीक्षण और टीकाकरण को प्राथमिकता देने के लिए कहा है। भारतीय ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे को तीन स्तरीय प्रणाली के रूप में विकसित किया गया है।
भारत ने बासमती चावल के पीजीआई टैग के लिए यूरोपीय यूनियन में आवेदन किया
– 27 सदस्यीय यूरोपीय संघ में पड़ोसी मुल्क द्वारा आवेदन का विरोध
भारत के बासमती चावल का वैश्विक निर्यात – यूरोपीय यूनियन पीजीआई टैग से खास उत्पाद के साथ क्वालिटी खुद ही जुड़ जाती है – एड किशन भावनानी
भारत एक गांव प्रधान व किसान प्रधान देश है भारत की मिट्टी ऐसी ओजस्वी है कि हीरे मोती रूपी खूबसूरत, सामर्थ, स्वास्थ्य और अपनी महक को विदेशों तक पहुंचाने वाले खाद्य पदार्थों वस्तुओं का जनन इस भारत माता की मिट्टी से होता है। न केवल इस मिट्टी से भारत में जन्मे व्यक्तित्व में निखार, संस्कार ओजस्वी तेज, आता है बल्कि इस मिट्टी के खेत खलियानों से उत्पन्न खाद्य वस्तुओं में भी गजब की महक व मिठास होती है।…बात अगर हम भारत की मिट्टी में उगे बासमती चावल की करें तो वाह!!! क्या बात है!!! भारतीय बासमती चावल का नाम सुनने से ही दूर दूर तक महक महसूस होने लगती है। भारत और पड़ोसी मुल्क के दायरे में हिमायल के कुछ खास भौगोलिक निचले क्षेत्रों में ही बासमती पैदा होती है।
कुछ बेटियों से उनकी यातना के बारे में भी पूछो
एक अजन्मी अंतिमा की पीड़ा सुनों,
मत उम्मीद रखो मुझसे की मेरी ज़िंदगी का अनुवाद तुम्हारी भावनाओं से जुड़ा हो “मैं अजन्मी अंतिमा हूँ एक छोटा सा अदम्य आक्रोशित किरदार” और तुम मुझे कभी नहीं समझ सकते। तुम्हें मुझे पढ़ने के लिए उस क्षितिज तक जाना होगा जहाँ से मेरी लिखी हर संज्ञा को महसूस कर सको। मेरे दर्द की कथोपकथन की सघनता को थामना किसी के बस में नहीं।
दर्द की आज्ञा का पालन करते मैंने शब्दों को थोड़ा सहलाया है, रेशमी एहसास के पन्नों पर मोतीयों की तरह पिरो कर लहू की स्याही से लिखी है एक दास्ताँ कहती हूँ।
स्वदेशी की परिभाषा
स्वदेशी के नाम पर आजकल बहुत हो-हल्ला हो रहा है। जिसे देखो, वही स्वदेशी की बात कर रहा है। नेताजी के भाषणों में स्वदेशी शहद की तरह टपकता है। बाबा रामदेव जी महाराज ने तो स्वदेशी के नाम पर ही अपना सारा कारोबार खड़ा किया है। वैसे भारत में और भी बाबा हैं जो स्वदेशी की दुकान लगाए बैठे हैं, परंतु उन बेचारों का सामान रामदेव की तुलना में बेहद कम ही बिच पाता है। अधिकांशतः उनके चेले-चपाटे ही खरीदते हैं। आजकल स्वदेशी वह दुधारू गाय है, जिसका दूध हर ऐरा-गैरा निकालना चाहता है और स्वदेशी की आड़ में अपनी तिजोरियां भरना चाहता है।
स्व. राजीव दीक्षित जी ने स्वदेशी की परिभाषा कुछ इस तरह से दी थी –
5जी पर प्रतिबंध की मांग कितनी उचित?
4 जून को दिल्ली हाईकोर्ट ने बॉलीवुड की जानी-मानी अभिनेत्री जूही चावला की भारत में 5जी नेटवर्क लगाने के खिलाफ दायर की गई जनहित याचिका को खारिज करते हुए उन पर यह कहते हुए 20 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया कि याचिकाकर्ताओं ने कानूनी प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल किया है। उल्लेखनीय है कि जूही चावला सहित दो अन्य याचिकाकर्ताओं वीरेश मलिक और टीना वाच्छानी ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर 5जी तकनीक की टेस्टिंग को लेकर सवाल खड़े किए थे। याचिका में 5जी से संभावित खतरों का जिक्र करते हुए 2019 में बेल्जियम की पर्यावरण मंत्री सेलीन फ्रेमां के उस बयान का उल्लेख किया गया था,
Read More »एलोपैथी बनाम आयुर्वेद व्यर्थ का विवाद
चिकित्सा विज्ञान की दो पद्धतियों का खुद को बेहतर बताने की होड़ में एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए आरोप प्रत्यारोप का यह घटनाक्रम वाकई में दुर्भाग्यपूर्ण है
एलोपैथी और आयुर्वेद को लेकर पिछले कुछ दिनों से देश में जंग छिड़ी हुई है। आईएमए और बाबा रामदेव की आपसी बयानबाजी से कोविड की वर्तमान परिस्थितियों में आम आदमी पर क्या प्रभाव पड़ रहा होगा इस विषय में सोचे बिना दोनों में विवाद जारी है। हालांकि बाबा रामदेव द्वारा अपना बयान वापस ले लिया गया है लेकिन फिर भी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बाबा पर एक हजार करोड़ रुपए की मानहानि के दावे के साथ न्यायालय पहुंच गया है।
प्रणय का तीसरा कोण
मौली आज पाँच साल बाद मुस्कुराई थी अपने पाँच साल पुराने प्यार को देखकर, माँ-पापा की इज्जत की ख़ातिर अक्षत से शादी तो कर ली, पर पति की जो छवि मौली के मन मैं थी उस फ्रेम में अक्षत का किरदार फिट नहीं बैठता था। मौली को अपना साथी चंचल, खुशमिजाज, हंसमुख खुलकर प्यार जताने वाला और मजाकिया स्वभाव का पसंद था। उसके विपरीत अक्षत कम बोलने वाला, अकड़ू बात बात पर गुस्सा करने वाला और प्यार जताने में नीरस स्वभाव का था। पर मौली जानती थी अक्षत अंदर ही अंदर मौली पर जान छिड़कता था। पर जो अपेक्षा मौली को पति के किरदार से थी उसमें अक्षत खरा नहीं उतर पा रहा था। मौली ने जो शादीशुदा जीवन की कल्पना की थी वैसा इस ज़िंदगी में कुछ नहीं था। ज़िंदगी जी नहीं रही थी बस काट रही थी।
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