बच्चों को शिक्षित करें – शिक्षा सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक क्षेत्रों का सशक्त उपकरण, रोजगार का अस्त्र – एड किशन भावनानी
वैश्विक रूप से हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है। वैश्विक रूप से यह देखा गया है कि अनेक कमर्शियल संस्थानों, औद्योगिक संस्थानों, दवा उद्योग, खेत खलियानों गृहउद्योग, इत्यादि अनेक व्यवसायिक क्षेत्रों में छोटे-छोटे बच्चों से श्रम करवाया जाता है, क्योंकि उन क्षेत्रों में कामों के लिए यह छोटे-छोटे बच्चे आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं और अपेक्षाकृत रोजी या मजदूरी भी इनकी कम होती है और डेली वेजेस के रूप में रखकर आसानी से अपना काम करवा लेते हैं। दूसरी तरफ हम अनेक चौराहों, बाजारों, हाट बाजारों, में हमने छोटे-छोटे बच्चों को अकेले या अपने मातापिता के साथ खिलौने खाद्य पदार्थों इत्यादि बेचने को देखते रहते हैं। अनेक बड़ी या छोटी सिटीओ में तो सिग्नल स्टेशनों, बूथों पर अक्सर यह छोटे बच्चे भीख मांगते, सामान बेचते, हमें दिखते रहते हैं। यह नज़ारा हर छोटी बड़ी सिटी के चौराहों पर आसानी से देखने को मिलता है…। संयुक्त राष्ट्र ने 2021 को बाल श्रम उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित करते हुए कि 2025 तक इस प्रथा को समाप्त करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।…बात अगर हम विश्व बाल श्रम निषेध दिवस की करें तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आई संयुक्त राष्ट्र और यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि दो दशकों में पहली बार,बाल श्रमिकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। दुनिया भर में काम पर लगाए जाने वाले बच्चों का आँकड़ा अब 16 करोड़ पहुँच गया है। पिछले चार वर्षों में इस संख्या में 84 लाख की वृद्धि हुई है। गुरुवार को जारी साझा रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 महामारी के कारण लाखों अन्य बच्चों पर जोखिम मंडरा रहा है। चाइल्ड लेबर – ग्लोबल एस्टिमेट्स 2020 ट्रेंड्स रोड फॉरवर्ड नामक रिपोर्टवअंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) द्वारा ज़ारी की गई है…। यूनीसेफ़ कीकार्यकारी निदेशक, ने कहा है कि इस रिपोर्ट में सरकारों और अन्तरराष्ट्रीय विकास बैन्कों से आग्रह किया गया है कि वे ऐसे कार्यक्रमों में निवेश को प्राथमिकता दें, जो बच्चों को कार्यबल से हटाकर स्कूल में वापस ला सकें, उन्होंने देशों से बेहतर सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों का भी आह्वान किया ताकि परिवारों को इस विकल्प को अपनाने की ज़रूरत के बारे में ही ना सोचना पड़े। 12 जून को बाल श्रम के ख़िलाफ़ विश्व दिवस’ से पहले जारी की गई इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि पिछले 20 वर्षों में पहली बार, बाल श्रम को समाप्त करने की दिशा में हुई प्रगति में व्यवधान आया है। वर्ष 2000 और 2016 के बीच,बाल मज़दूरों की संख्या में नौ करोड़ 40 लाख की कमी दर्ज की गई थी, मगर अब गिरावट का यह रूझान पलट गया है। यह 5 से 11 वर्ष की आयु के बीच काम करने वाले बच्चों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि की ओर इशारा करता है, जो कुल वैश्विक आँकड़ों का आधे से ज़्यादा है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि महामारी के परिणाम स्वरूप 2022 के अन्त तक, वैश्विक स्तर पर, 90 लाख अतिरिक्त बच्चों को बाल श्रम में धकेल दिये जाने का ख़तरा है। कोविड-19 के कारण महसूस किये गए आर्थिक झटकों और स्कूल बन्द होनेके कारण,जो बच्चे पहले से ही काम करने के लिये मजबूर थे, उन्हें या तो लम्बे घण्टों तक काम करना पड़ रहा है या वे ख़राब परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। वहीं, निर्बल परिवारों में कामकाज और आमदनी का ज़रिया ख़त्म होना, बड़ी संख्या में अन्य बच्चों को बाल श्रम के सबसे ख़राब रूपों की ओर धकेले जाने की वजह बन सकता है। उन्होंने कहा,अब, वैश्विक तालाबन्दी के दूसरे वर्ष में, स्कूल बन्द होने, आर्थिक व्यवधान और सिकुड़ते राष्ट्रीय बजट के कारण, परिवार पीड़ादायक विकल्प चुनने के लिये मजबूर होते जा रहे हैं। रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:- कृषि क्षेत्र में बाल मज़दूरी करने वाले बच्चों का आँकड़ा 70 प्रतिशत है, सेवा क्षेत्र में 20 प्रतिशत और उद्योगों में 10 प्रतिशत बच्चे हैं। 5 से 11 वर्ष के लगभग 28 प्रतिशत बच्चे और 12 से 14 वर्ष की आयु के 35 प्रतिशत बाल श्रमिक, स्कूल से बाहर हैं। बाल श्रमिकों के तौर पर, लड़कियों की तुलना में लड़कों की संख्या अधिक है। लेकिन, अगर प्रति सप्ताह 21 घण्टे घर में किये गए काम को ध्यान में रखा जाए, तो बाल श्रम का यह लैंगिक अन्तर भी कम हो जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में बाल श्रम 14 प्रतिशत है, जो शहरी क्षेत्रों में 5 प्रतिशत के आँकड़े से लगभग तीन गुना अधिक है…। बात अगर हम भारत की करें तो भारत में भी अनेक बाल श्रमिक हैं और बाल श्रमिकों की तेजी से संख्या भी बढ़ रही है हालांकि केंद्र और राज्य सरकारों ने इसके खिलाफ कड़े कदम उठाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। देखा जाए तो बाल श्रमिक निम्नलिखित रुप से काम करते हैं?? बाल मज़दूर – वे बच्चे जो कारखानों, कार्यशालाओं, प्रतिष्ठानों, खानों और घरेलू श्रम जैसे सेवा क्षेत्र में मज़दूरी या बिना मज़दूरी में काम कर रहे हैं। गली – मोहल्ले के बच्चे – कूड़ा बीनने वाले, अखबार और फेरी लगाने वाले और भीख मांगने वाले। बंधुआ बच्चे – वे बच्चे जिन्हें या तो उनके माता-पिता ने पैसों की ख़ातिर गिरवी रखा है या जो कर्ज़ को चुकाने के चलने मज़बूरन काम कर रहे हैं। वर्किंग चिल्ड्रन – वे बच्चे जो कृषि में और घर-गृहस्थी के काम में पारिवारिक श्रम का हिस्सा हैं। यौन शोषण के लिए इस्तेमाल किए गए बच्चे – हजारों बालिक बच्चे और नाबालिक लड़कियां यौन शोषण की जद में हैं। घरेलू गतिविधियों में लगे बच्चे – घरेलू सहायता के रूप में काम। इसमें लड़कियों का शोषण सबसे ज़्यादा है – बच्चे छोटे भाई-बहनों की देखभाल, खाना पकाने, साफ-सफाई और ऐसी अन्य घरेलू गतिविधियों में लगे हुए हैं। हालांकि इन गतिविधियों को रोकने के लिए भारत में अनेक कानून कायदे बने हैं जैसे कि,खदान अधिनियम 1952 – 18 साल से कम आयु वाले बच्चों को खदानों में काम करने पर प्रतिबन्ध लगाता है। अनैतिक तस्करी (बचाव) अधिनियम 1956 बाल श्रम (निषेध व नियमन) कानून 1986- यह कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी अवैध पेशे और 57 प्रक्रियाओं में, जिन्हें बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के लिये अहितकर माना गया है, नियोजन को निषिद्ध बनाता है। इन पेशों और प्रक्रियाओं का उल्लेख कानून की अनुसूची में है। राष्ट्रीय बाल श्रम नीति 1987, किशोर न्याय देखभाल और संरक्षण अधिनियम 2000 – बच्चों के रोज़गार को दंडनीय बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006, राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग 2007, – बाल अधिकारों के उल्लंघन के जुड़े मसले को सुलझाने का काम।निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009, लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012, किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम 2015, ठीक उसी तरह संविधान में भी बच्चों के संरक्षण के संबंध में अनुच्छेद 15 (3), 21, 23,24, 39 और 45 अनुच्छेदों में बच्चों के संबंध में सुरक्षा दी गई है में…। बात अगर हम भारत की विश्व बाल श्रम निषेध के संबंध में अंतरराष्ट्रीय संधियों की करेंतो भारत निम्नलिखित संधियों पर हस्ताक्षर कर चुका है – अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन बलात श्रम सम्मेलन (संख्या 29)अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन बलात श्रम सम्मेलन का उन्मूलन (संख्या 105)बच्चों के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (सीआरसी)अंतर्राष्ट्रीय श्रमसंगठन (आईएलओ) ने बाल श्रम को खत्म करने साथ ही आवश्यक कार्रवाई और प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए 2002 में बाल दिवस के खिलाफ विश्व दिवस का शुभारंभ किया…। अतः उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर अगर हम विश्लेषण करें तो विश्व बालश्रम निषेध दिवस बच्चों के भविष्य की नीर है बच्चों को मजदूरी नहीं किताबे दें और बच्चों को शिक्षित करें शिक्षा सामाजिक आर्थिक राजनीतिक शैक्षणिक क्षेत्रों का सशक्त उपकरण और रोजगार का अस्त्र है।
-संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र