Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

ये जीवन-मृत्यु का गंभीर समय है, आपसी रस्साकशी का नहीं

(कोविड ने स्मार्ट गवर्नेंस की जगह पैदा कर दी है, सहकारी संघवाद के जरिये केंद्र और राज्यों को अविलंब विश्वास की कमी को दूर करना चाहिए, यह जीवन और मृत्यु का मामला है। आपसी रस्साकशी को रोकें जैसा कि दिल्ली और पश्चिम बंगाल में देखा गया है।)

21वीं सदी में कोरोना के क्रूर काल में हमें नागरिक केंद्रित शासन सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है, आज मानवता के सामने गंभीर और अभूतपूर्व समस्याएं हैं। मौजूदा सदी में सुपर साइक्लोन से लेकर उत्परिवर्तित वायरस का हमेशा के लिए खतरनाक चुनौतियों का सामना करने की संभावना है। ऐसे समय में स्मार्ट गवर्नेंस समय की जरूरत है।
महामारी के समय में नागरिक केंद्रित शासन को ध्यान में रखकर विशेषज्ञ निर्णय लेना अति आवश्यक था, शीर्ष डॉक्टरों, महामारी विज्ञानियों, वैज्ञानिकों, यहां तक कि रसद विशेषज्ञों की एक स्वायत्त पूरी तरह से अधिकार प्राप्त टास्क फोर्स को वायरस पर नज़र रखने, जीनोम अनुक्रमण, ऑक्सीजन के परिवहन और टीके की खरीद पर भारत का नेतृत्व करने की आवश्यकता थी।

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कोरोना से भी ख़तरनाक वायरस पल रहे है हमारे भीतर

क्यूँ सब कोरोना को कोसते हो घ् ये तो महज़ छोटा सा वायरस है। कोरोना वायरस ने सिर्फ़ इंसानों की दुनिया ही तो हिला दी है। शरीर के भीतर घुसते ही सर से पैर तक हर अवयव को खोखला कर देता है और ये वायरस जान तक ले लेता है इतना ही तो ख़तरनाक है बस।
पर सोचा है। कभी समाज को और देश को खोखला करने वाले और धरती से इंसानियत को जड़ से ख़त्म करने वाले कोरोना से भी भयंकर और बर्बाद करने वाले कई वायरसों को हम अपने भीतर बड़े प्यार से गर्व के साथ पालते रहते है।लालच, स्वार्थ, इर्ष्या, किसीके प्रति वैमनस्य, धर्मांधता, छोटी सोच, कपट और षडयंत्र जैसे वायरसों को ख़त्म करने वाली वैक्सीन कब कोई विकसित करेगा। दिमागी कारखानों में हम पालते है इन सारे वायरसों को बड़े नाज़ों से, जो अपनेपन को, मानवता को, भाईचारे को और इंसानियत को निगल रहे है। देश में अराजकता और समाज में बैर भाव का ज़हर फैला रहे है। परिवारों को विभक्त कर रहे है।

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कोविड-19 से अनाथ हुए बच्चों के भविष्य का रणनीतिक रोडमैप, योजनाएं सरकारों द्वारा तात्कालिक बनाना जरूरी

कोविड-19 से अनाथ बच्चों की मदद के लिए गैर सरकारी संस्थाओं, एनजीओस का बेसहारा बच्चों को सेवायज्ञ से मदद सराहनीय – एड किशन भावनानी
वैश्विक महामारी कोविड-19 ने काल का ग्रास बनाकर लाखों मानव जीवो की इह लीला समाप्त कर ली। और अभी भी तांडव मचाना जारी है।..बात अगर हम भारत की करें तो यहां इस महामारी की दूसरी लहर की तीव्रता में हल्का सा सुधार आना शुरू हुआ था, लेकिन इससे घातक बीमारी ब्लैक फंगस और वाइट फंगस ने तीव्रता से पैर पसारना शुरू कर दिया है और 15 राज्यों में पैर पसार दिया है जिसमें से 12 राज्यों ने इसे महामारी अधिनियम 1897 के तहत महामारी घोषित कर दिया है…बात अगर हम इन महामारीयों से ग्रस्त भारतीय परिवारों की करें तो इस भारी त्रासदी में देश के बड़ी संख्या में बच्चे अनाथ हो गए हैं

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लेखक और वक्ता समाज का आईना

एक लेखक और वक्ता समाज का आईना होते है। दुन्यवी हर शै पर समाज के हर मुद्दों पर लिखन-बोलना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। पर आजकल के कुछ लेखक और वक्ता बिकाऊ सामान जैसे बन गए है। समाज को सही राह दिखाना और असत्य को कुरेद कर सत्य तक पहुँचना और सत्य को उसके असली स्वरूप में प्रजा के सामने रखना उनका धर्म है पर आज पैसों की खनकार पर नाचते नज़र आ रहे है।
लेखक की कलम और वक्ता की वाणी जब किसीकी गुलाम बन जाती है तब अपना मूल रुप और कलात्मक अभिव्यक्ति खो देते है। चाहे सरकार हो, चाहे कोई राजनीतिक पार्टी हो या कोई भी मुद्दा हो, एक तरफ़ा समीक्षा लोगों के दिमाग में उस मुद्दे के प्रति नकारात्मक ग्रंथी को जन्म देती है।

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ब्लैक फंगस अनेक राज्यों ने महामारी घोषित किया- बच्चों, बुजुर्गों को ध्यान में रखकर स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर की तैयारी जरूरी

देश के भविष्य बच्चों और मार्गदर्शक बुजुर्गों की सुरक्षा, जीवनरक्षा के लिए तात्कालिक राष्ट्रीय रणनीतिक रोडमैप बनाना जरूरी – एड किशन भावनानी
वैश्विक रूप से महामारीओं, तूफान, ज्वालामुखी फूटना, जंगलों में आग इत्यादि अनेक प्राकृतिक विपत्तियों का पहाड़ सभी देशों पर टूट पड़ा है। जिसमें कोरोना महामारी से क़रीब क़रीब सभी देश ग्रस्त हुए हैं और बाकी तूफ़ान और ज्वालामुखी फटने की घटनाएं कुछ देशों में चालू है। हालांकि इनका सुरक्षित मुकाबला करने वैक्सीन का इज़ाद भी कुछ देशों ने किया है और टीकाकरण अभियान अनेक स्तर पर शुरू है तथा अमेरिका, ब्रिटेन, रूस सहित कुछ देशोंमें अधिकांश टीकाकरण पात्र लोगों को वैक्सीन लगा दी गई है। परंतु फिर भी वहां पूर्ण रूप से महामारी समाप्त नहीं हुई है।…

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ईश्वर पर हमेशा भरोसा रखें

एक अमीर व्यक्ति था। उसने समुद्र में अकेले घूमने के लिए एक नाव बनवाई और छुट्टी के दिन वह नाव लेकर अकेले समुद्र की सैर करने निकल पड़ा। वह समुद्र में थोङा आगे पहुंचा ही था कि अचानक एक जोरदार तूफान आ गया। उसकी नांव पुरी तरह से तहस-नहस हो गइ लेकिन वह लाइफ जैकेट के साथ समुद्र में कूद गया। जब तूफान शान्त हुआ तब वह तैरता-तैरता एक टापु पर जा पहुंचा। मगर वहां भी कोई नहीं था। टापु के चारों ओर समुद्र के अलावा क़ुछ भी नजर नहीं आ रहा था।
उस आदमी ने सोचा कि जब मैंने पूरी जिंदगी में किसी का कभी बुरा नहीं किया तो मेरे साथ बुरा नहीं होगा। उसको लगा कि ईश्वर ने मौत से बचाया है तो आगे का रास्ता भी वही दिखाएगा। धीरे-धीरे वह वहां पर उगे झाङ-फल-पत्ते खाकर दिन बिताने लगा।

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महामारी में कहाँ दुबक गए एनसीसी, एनएसएस और सारे एनजीओ?

(कोरोनावायरस महामारी के दौरान केन्द्र, राज्य सरकारें तथा प्रशासन अपने स्तर पर मुस्तैदी से काम कर रहा है। सरकार के इन प्रयासों के साथ-साथ देश भर की कई धर्मार्थ संस्थाएं और गैर सरकारी संगठन सफल बनाने में जुटे हैं ताकि देश में इस महामारी से ज्यादा से ज्यादा लोगों की जिंदगी बचायी जा सके। एनसीसी, एनएसएस के स्काउट्स कहाँ है ? जिन पर अरबों रुपये सालाना खर्च होते है और जो सरकारी नौकरी में एक्स्ट्रा मार्क्स लेते है. आज जब उनकी सेवाओं की देश को जरूरत है तो वो घर बैठे है )
कोरोनावायरस महामारी के दौरान केन्द्र, राज्य सरकारें तथा प्रशासन अपने स्तर पर मुस्तैदी से काम कर रहा है। सरकार के इन प्रयासों के साथ-साथ देश भर की कई धर्मार्थ संस्थाएं और गैर सरकारी संगठन सफल बनाने में जुटे हैं ताकि देश में इस महामारी से ज्यादा से ज्यादा लोगों की जिंदगी बचायी जा सके। एनसीसी, एनएसएस के स्काउट्स कहाँ है ? जिन पर अरबों रुपये सालाना खर्च होते है और जो सरकारी नौकरी में एक्स्ट्रा मार्क्स लेते है. आज जब उनकी सेवाओं की देश को जरूरत है तो वो घर बैठे है. मगर आपने देखा होगा की सामान्य दिनों में अरबों की सरकारी सहायता प्राप्त कर मीडिया जगत में छाये रहने वाले और जगह-जगह अपनी ब्रांच का प्रचार करने वाले पंजीकृत गैर सरकारी संगठन यानी एनजीओ इस दौरान न जाने कहाँ दुबके रहे ?

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“जीवन साथी”

जीवनसाथी का मतलब क्या होता है, एक लड़की या स्त्री को क्या चाहिए? अच्छा घर, अच्छा पति, अच्छे सास- ससुर, दो बच्चे और दो वक्त का खाना और कपड़े। क्या सारी जरूरतें खत्म हो गई? यही है क्या स्त्री की जरूरतें।
नहीं ये बातें उस ज़माने की है जब लड़कीयाँ ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं होती थी, नौकरी और घर दोनों संभालने की ज़िम्मेदारी नहीं थी सिर्फ़ पति के उपर निर्भर रहती थी। दबी-दबी सहमी सी चुटकी सिंदूर के बदले खुद को गिरवी रख देती थी। टोटली टिपिकल बहू बनकर पति की हर बात पर कठपुतली सी नाचती थी। वैसे आज 21वीं सदी में भी कुछ स्त्रियों की हालत वही की वही है कुछ नहीं बदला।
कुछ पतियों के लिए चुटकी सिंदूर का मतलब स्त्री पर आधिपत्य जताने का लाइसेंस मात्र होता है। प्यार, परवाह और कदम-कदम पर पत्नी का हाथ थामकर चलने में कई मर्दो के अहं को ठेस पहुंचती है। पत्नी का साथ देने के चक्कर में कहीं लोग जोरू का गुलाम ना समझ बैठे ये सोचकर कतराते है पत्नी का साथ देने में और सम्मान करने में।

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जीवन में कुछ बनने के लिए विनम्र होना जरूरी – बीज को भी पेड़ बनने जमीन के नीचे दबना पड़ता है

वैश्विक मानवीय गुणों में से एक विनम्रता – यह मानव जीवन का बहुमूल्य श्रंगार, श्रेष्ठ गुणवत्ता अस्त्र – एड किशन भावनानी
वैश्विक मानवीय जीवन शैली को अगर हम देखें तो आधुनिकता का भाव कूट-कूट कर भरा है। वर्तमान डिजिटलाइजेशन और वैज्ञानिक युग में वैश्विक स्तरपर पुरानी परंपराओं, पौराणिक मान्यताओं, रीति-रिवाजों की सोच, आज वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक सोच ने इनका स्थान ग्रहण लिया है स्थिति आज ऐसी हो गई है कि यदि कोई इन रीति-रिवाजों, मान्यताओं, पौराणिक धार्मिकता, पर अपनी बात करेगा तो उसे पुरानी सोच, दकियानूसी बातें, हो गया पुराना जमाना, कह कर हंसी का पात्र बना दिया जाता है।…. बात अगर हम भारत की करें तो कुछ स्तर पर यहां भी ऐसी सोच पाश्चात्य देशों की तर्ज पर स्थापित होती जा रही है। परंतु यह भारतीय मिट्टी इसे सिरे से खारिज करने में अदृश्य अनमोल रोल अदा कर रहीं है।…बात अगर मानवीय गुणों की करें तो भारतीय मानवीय गुण विश्व में सर्वाधिक प्रसिद्ध है। मानवीय गुणों की श्रेष्ठता में भारत प्रथम रैंक में आएगा ऐसा मेरा मानना है।

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तीसरे विश्वयुद्ध का हूंकार: 35 एकड़ का भूमि का टुकड़ा

क्या हम तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं? जब से कोविड-19 ने दस्तक दी है चारों ओर त्राहि-त्राहि का मंजर रहा है। परंतु पिछले वर्ष से हमें काफी सारे जियो पोलिटिकल बदलाव दिखे हैं। इस आधुनिक युग में युद्ध की परिस्थितियां निरंतर पनप रही है। वैश्विक महामारी कई वैज्ञानिकों के अनुसार चीन के निजी फायदे के लिए थी जो एक बायोलॉजिकल वारफेयर की तरह विश्व में फैलाई गई वहीं चीन अपनी आदतों से बाज ना आते हुए हमारे पड़ोसी होने का गलत फायदा उठा रहा था जो गलवान घाटी घटना के रूप में नज़र आई। अज़रबाईजान वा आर्मीनिया के बीच भी सैनिक युद्ध छिड़ा एक धरती के टुकड़े को लेकर दोनों में भारी जानमाल का नुकसान हुआ। तथा 2021 में कुछ अलग आलम होगा जहां विश्व विजेता इजराइल पहला कोविड-19 मुक्त विश्व विजेता बना वहां आज फिर वारज़ोन बन गया है।

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