Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

भारतीय प्रतिभाओं के बिना भारत आगे नहीं जा सकता

किसी भी देश की शक्ति होते हैं उसके नागरिक और अगर वो युवा हों तो कहने ही क्या। भारत एक ऐसा ही युवा देश है। हाल ही में भारतीय जनसंख्या आयोग के रजिस्ट्रार जनरल की ओर से तैयार किए गए सैंपल रेजिस्ट्रेशन सिस्टम 2018 की रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में 25 वर्ष से कम आयु वाली आबादी 46.9% है। इसमें 25 वर्ष की आयु से कम पुरूष आबादी 47.4% और महिला आबादी 46.3%। यह आंकड़े किसी भी देश को प्रोत्साहित करने के लिए काफी हैं। भारत जैसे देश के लिए भी यह आंकड़े अनेकों अवसर और आशा की किरणें जगाने वाले हैं लेकिन सिर्फ आंकड़ो से ही उम्मीदें पूरी नहीं होती, उम्मीदों को अवसरों में बदलना पड़ता है।
इसे हम भारत का दुर्भाग्य कहें या फिर गलत नीतियों का असर कि हम एक देश के नाते अपने इन अवसरों का उपयोग नहीं कर पाते और उन्हें उम्मीद बनने से पहले ही बहुत आसानी से इन उम्मीदों को दूसरे देशों के हाथों में फिसलने देते हैं। हमारे प्रतिभावान और योग्य युवा जो इस देश की ताकत हैं जिनमें इस देश की उम्मीदों को अवसरों में बदलने की क्षमता है वो अवसरों की तलाश में विदेश चले जाते हैं।

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हृदय और बुद्धि की जंग से जन्मा यह प्राकृतिक असंतुलन

इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड में अगर किसी ग्रह पर जीवन है तो वह हमारी पृथ्वी है जिसकी अद्भुत व अद्वितीय रचना का श्रेय प्रकृति को जाता है। प्रकृति ने हमारी पृथ्वी को सम्पूर्ण संसाधनों की समस्त समृद्धि से इस प्रकार सजाया है कि पृथ्वी की सजीवता सदैव सुदृढ़ बनी रहे। प्रकृति ने पृथ्वी के समस्त जीवों को समान अधिकार प्रदान कर रखा है वह किसी भी जीव के साथ भेद-भाव नहीं करती। उसी जीव-जगत का एक अभिन्न व अनोखा अंग मानव है जो सम्पूर्ण जीव-जगत में अपनी बुद्धि के द्वारा इस जीव-जगत की श्रेष्ठ पात्रता को हासिल किया है।
मानव को श्रेष्ठ मानव का दर्जा उसके विकल्प चयन ने दिया। कहा जाता है कि मानव विकल्पों में ही जीता है वह विकल्पों का प्रतिनिधित्व भी करता है यही कारण है कि मानव हृदय का साधक बनने के बजाय बुद्धि के स्वामित्व की लालसा में बुद्धि का दास बन गया। बुद्धि और हृदय की इस जंग में बुद्धि ने काफी हद तक अपना लोहा मनवाया परंतु इस जंग में हृदय के घातक वार ने बुद्धि को सदा लहूलुहान किया।

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अपराध जगत में राजनीति और नौकरशाही की संलिप्तता -एक चुनौती

आज अपराध जगत और अपराधी इतने बेखौफ क्यो है? बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह है हमारी प्रशासनिक व्यवस्था पर, हमारी कानूनी व्यवस्था पर और हमारी सरकार पर। क्या अपराधियों के हाथ इतने लंबे हैं कि क़ानून की पकड़ से बाहर है, शासन प्रशासन मूक दर्शक मात्र है, सरकार भी मौन की मुद्रा में रहे। अवश्य ही बड़े बड़े भ्रष्ट व आपराधिक पृष्ठभूमि वाले राजनेताओं, प्रशासन के कुछ भ्रष्ट कर्मियों, पाले गए भ्रष्ट मुखबिरों व समाज के कुछ स्वार्थी भ्रष्ट दरबारी प्रवृति के चापलूस तत्वों की सरपरस्ती में अपराध जगत फलता फूलता है। अपराधी कानून व शासन के समानांतर अपनी आपराधिक गतिविधियों को लगातार अंजाम देते रहते हैं और कानून के शिकंजे से बाहर भी आते रहते हैं।

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साइकल्स फॉर चेंज से लौटेगी अब साइकिल

कोरोना संकट के दौर में परिवहन के लिए साइकिल एक मुफीद साधन है – डॉo सत्यवान सौरभ
कोरोना काल में साइकिल का क्रेज आये दिन बढ़ रहा है। अब लॉकडाउन के कारण बदली जीवन शैली और पर्यावरण के प्रति लोग अधिक जागरूक हो रहे हैं।तभी तो साइकिल की खरीदारी भी बढ़ रही है। आज युवाओं के अलावा इंजीनियर, प्रोफेसर, डॉक्टर, रिटायर कर्मचारी और प्रोफेशनल लोग भी सेहत बढ़ाने के लिए साइकिल की खरीदारी करने लगे हैं।
कोरोना संकट के दौर में परिवहन के लिए साइकिल मुफीद साधन है। इस काल में साइकिल की सवारी सस्ती और सुलभ होने के साथ ही स्वास्थ्य के लिहाज से भी मुफीद है। पर हमारी सरकारों ने नगर नियोजन में साइकिलों के बारे में बहुत कम सोचा है। आधुनिक चमक-दमक के पीछे भागने वाला भारतीय मध्य वर्ग वैसे भी साइकिलों पर चलना हेठी समझता है।

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जलती आग में घी डालना कोई विपक्षियों से सीखे

कल जब आठ पुलिस कर्मियों की बड़ी ही क्रूरता व निर्दयता से हत्यारे ने हत्या की, तब विपक्ष ने उसे हत्यारा कह-कहकर सरकार के नाक में दम कर दिया था। सोशल मीडिया से लेकर समाचारों के हर पन्नों पर विपक्ष की खोखली बयान बाजियां प्रमुखता से छाई हुई थीं, कि एक ऐसा खूंखार हत्यारा जो हमारे आठ पुलिस कर्मियों को मार कर खुलेआम घूम रहा है। आखिर उसके खिलाफ कार्रवाई कब होगी ? कल पुलिस कर्मियों के साथ दया भाव व घड़ियाली आसूं बहाने वाला यही विपक्ष जो सरकार पर सवालों के अंबार लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था, अब वही विपक्ष जिसने उसे खूंखार हत्यारे से संबोधित किया, आज उस हत्यारे के एनकाउंटर किए जाने के बाद विपक्ष ने ऐसा रंग बदला कि उसके आगे गिरगिट भी रंग बदलने में मात खा गया। आठ पुलिस कर्मियों के घर वाले कल महज विपक्ष की बयान बाजियां सुनते रहे और आज वही विपक्ष पलटी मार हत्यारे के साथ जा खड़ा हो गया। अब कांग्रेस को ही ले लें , वह खूंखार हत्यारे की हत्या के बाद हत्यारे का पक्षधर बन मानवाधिकार आयोग में जा पहुंचा। कल शहीद हुए पुलिस कर्मियों के पक्ष में महज खोखले राग अलाप रहे इस विपक्ष ने उन आठ पुलिस कर्मियों के पक्ष में मानवाधिकार आयोग का दरवाजा नहीं खटखटाया और न ही उन पुलिस कर्मियों के परिजनों से मिल उन्हें कोई सांत्वना ही दी, बस दूर से राजनैतिक रोटियाँ सेंकने में ही व्यस्त दिखे।

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महामारी में कहाँ दुबक गए सारे एनजीओ?

अरबों की सरकारी और विदेशी सहायता इनकी जेबों में, पूछे कौन सवाल – डॉo सत्यवान सौरभ
कोरोनावायरस महामारी के दौरान केन्द्र, राज्य सरकारें तथा प्रशासन अपने स्तर पर मुस्तैदी से काम कर रहा है। सरकार के इन प्रयासों के साथ-साथ देश भर की कई धर्मार्थ संस्थाएं और गैर सरकारी संगठन सफल बनाने में जुटे हैं ताकि देश में इस महामारी से ज्यादा से ज्यादा लोगों की जिंदगी बचायी जा सके। मगर आपने देखा होगा की सामान्य दिनों में अरबों की सरकारी सहायता प्राप्त कर मीडिया जगत में छाये रहने वाले और जगह-जगह अपनी ब्रांच का प्रचार करने वाले पंजीकृत गैर सरकारी संगठन यानी एनजीओ इस दौरान न जाने कहाँ दुबके रहे ?

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भारत में सर्पदंश से मृतकों के आंकड़ें बेहद चौकाने वाले

दुनिया के सभी विषैले जंतुओं की अगर बात करें तो उनमें सबसे खतरनाक व जानलेवा दंश सर्प दंश का ही होता है। जिसमें व्यक्ति की मृत्यु कुछ ही मिनटों में हो जाती है। हालांकि सभी सांपों के दंश एक जैसे नहीं होतें, कुछ तंत्रिका तंत्र को, कुछ रुधिर को और कुछ रुधिर व तंत्रिका तंत्र दोनों को आक्रांत करते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सर्प दंश से होने वाली मृत्यु के आंकड़ें बेहद ही चौकाने वाले हैं। भारत में पिछले बीस सालों के रिकार्ड पर अगर गौर करें तो यहाँ सर्प दंश से मरने वालों की संख्या तकरीबन 12 लाख के आस-पास हैं। जिनमें अगर सर्प दंश से मरने वाले व्यक्तियों के उम्र की बात करें तो तकरीबन उनमें आधे लोग 30 साल से लेकर 69 साल के करीब हैं, जबकि सर्प दंश से मरने वालों में बच्चों की संख्या लगभग एक चौथाई है। सर्प दंश से होने वाली अधिकतर मौतें रसेल्स वाइपर, करैत व नाग के काटने से हो रही हैं, जबकि 12 अन्य सांपों की प्रजातियां हैं, जिनसे बाकी की मौतें हो रही हैं।

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घरेलू कामगारों की अहमियत कब समझेंगे हम?

इनकी असुरक्षा और हीनता की भावनाएँ किसी के लिए मानवीय दृष्टिकोण वाली क्यों नहीं है -प्रियंका सौरभ
घरेलू कामगारों की बात करते ही मन विचलित हो उठता है और सीने में दर्द भर जाता है कि वो बेचारे कैसे और तरह-तरह के के निम्न स्तर के काम पेट की आग बुझाने के लिए करते है। हर समय गाली-गलौज सहकर भी कम पैसों में ज्यादा कार्य करते रहते है। हमारे देश में घरेलू कामगारों की संख्या करोड़ों में है। एक सर्वे के अनुसार ‘भारत में 4.75 मिलियन घरेलू कामगार हैं, जिनमें से शहरी क्षेत्रों में तीन मिलियन महिलाएँ हैं। भारत में लगभग पाँच करोड़ से अधिक घरेलू कामगार हैं, जिनमें से अधिकांश महिलाएँ हैं। बड़े-बड़े और कस्बों में प्रायः हर पाँचवें घर में कामवाली ‘बाई’ बहुत ही सस्ते दरों में आपको काम करते हुए दिख जाएँगी।
हमारे रोज़मर्रे के जीवन में आस-पास एक ऐसी महिला ज़रूर होती है जो अदृश्य होती है जो हमारे घरों में सुबह-सुबह अचानक से आती हैं, झांड़ू-पोछा करती हैं, कपड़े धोती हैं, खाना बनाती हैं और दिन भर बच्चे-बूढ़ों को भी देखती हैं। मगर वो इतना सब करने के बावजूद हमारे जीवन में रोजमर्रा के कार्यों में होते हुए भी इस तरह से गायब रहती है कि हम उनके बारे में कुछ जानते ही नहीं। या हम उसको कोई खास स्थान नहीं देते? हम नहीं जानते कि वे शहरों में कहां से आई हैं, कहां रहती हैं, वे और कितने घरों में काम करती हैं, कितना कमाती हैं और कैसा जीवन जीती हैं?

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रेलवे का निजीकरण रक्त शिराओं को बेचने जैसा होगा

छोटे से फायदे के लिए हम आधी से ज्यादा आबादी का रोजमर्रा का नुकसान नहीं कर सकते -डॉo सत्यवान सौरभ
हादसों की वजह से चर्चा में रहने वाली भारतीय रेल अब कोरोना से उपजे वित्तीय संकट की जद में है। दुनिया के चौथे सबसे बड़े रेल नेटवर्क को पटरी पर लाने के लिए सरकार उसके स्वरूप में बदलाव की तैयारी कर रही है। इसके तहत हजारों पदों में कटौती करने के अलावा नई नियुक्तियों पर रोक लगाने और देश के कई रूट पर ट्रेनों को निजी हाथों में सौंपने जैसे कदम उठाए जा रहे हैं।
देश की ज्यादातर आबादी के लिए भारतीय रेल जीवनरेखा की भूमिका निभाती रही है। निजी हाथों में जाने के बाद सुविधाओं की तुलना में किराए में असामान्य बढ़ोतरी तय मानी जा रही है। रेल देश में सबसे ज्यादा लोगों को नौकरी देने वाला संस्थान है। फिलहाल, इसमें 12 लाख से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं।
देश की अर्थव्यवस्था से लेकर आम जन-जीवन को यह कैसे प्रभावित करेगा यह समझना ज़रूरी है। देश के लिए यह निजीकरण कितना अच्छा है या कितना बुरा है इसपर विचार करना आवश्यक है। भारत की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस एक्सप्रेस के संचालन के बाद अब भारतीय रेलवे ने 151 नई ट्रेनों के माध्यम से निजी कंपनियों को अपने नेटवर्क पर यात्री ट्रेनों के संचालन की अनुमति देने की प्रक्रिया शुरू की है। यह सभी यात्री ट्रेनें संपूर्ण रेलवे नेटवर्क का एक छोटा हिस्सा हैं, सरकार द्वारा प्रारंभ की गई निजीकरण की प्रक्रिया यात्री ट्रेन संचालन में निजी क्षेत्र की भागीदारी की शुरुआत का प्रतीक है।

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असली चेहरा तो नक़ाब में ही रह गया, सांप भी मर गया, लाठी भी नहीं टूटी

सोची समझी योजना सफल, भ्रष्ट राजनेता और पुलिस वाले बने नायक -प्रियंका सौरभ
अंततः विकास दुबे कानपुर वाला कानपुर में पुलिस के हाथों मारा गया। वैसे भी हर अपराधी को उसके अपराध का उचित दण्ड अवश्य मिलना चाहिए। लेकिन ये दंड देश में संविधान द्वारा स्थापित कानून व्यवस्था के तहत ही मिलना चाहिए। यदि वर्तमान कानून व्यवस्था में कोई त्रुटियां हैं तो उनमें सुधार करना चाहिए, कानून को हाथ में लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है।
आज विकास दुबे के विवादास्पद एनकाउंटर पर ये हज़ारों प्रश्न उठ खड़े हुए है, किसकी नाकामी है ये? अगर ऐसा ही चलता रहा और ऐसे एनकाउंटर्स को ठीक समझा जाने लगा तो, कहीं ऐसा ना हो कि लोग अपना-अपना न्याय अपने ही हाथों से सड़कों पर ना करनें लग जाएं।
गैंगस्टर विकास दुबे की गिरफ्तारी और उसके कुछ साथियों के एनकाउंटर पुलिस की कामयाबी नहीं है। बल्कि पुलिस और राजनीति का बहुत बड़ा गठजोड़ है, जिसको समझने लायक छोड़ा नहीं गया मगर ये पब्लिक है जनाब सब समझ लेती है। अपराधी पकड़े जाते हैं और छूट भी जाते हैं।

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