कानपुर नगर, फैसल निहाल। कोविड.19 से सम्पूर्ण देश वासी लड़ रहे है इस वैश्विक महामारी से दो माह से ऊपर लाॅकडाउन होने को आया है। जिससे लोगों के जीवन में समस्याओं का पर्वत खड़ा हो चुका है। जिससे वे पल-पल जूझ भी रहे है इसी प्रकार शिक्षा से सम्बन्धित छात्र व अभिभावक भी प्रभावित हो रहे है। इस प्रभाव को देखते हुए अधिकतम निजी स्कूलों ने बच्चों की उज्ज्वल भविष्य हेतु ऑनलाइन शिक्षा को प्रारम्भ भी किया है। जिससे बच्चे ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण करने लगे है। इस ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण करने वालों का औसत 60 से 70 प्रतिशत सक्रिय भी है। परन्तु वही 30 से 40 प्रतिशत के बच्चों के अभिभावकों की आय उतनी नहीं है जो महंगे मोबाइल खरीद कर अपने बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा दे सके। कुछ तो निजी स्कूल ऑनलाइन शिक्षा कम, माह शुल्क वसूली के कार्य में सक्रिय अधिक दिख रहे है। जिसकी जानकारी शासन व प्रशासन दोनों को है यूँ तो अधिकतम अभिभावकों की आर्थिक स्थिति चरमरा सी गयी है। इस लॉकडाउन में सभी उधोग बन्द, दुकान बंद, स्रोत बन्द व सब बन्द है।
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फार्मा व्यवसाय को एआई और मशीन के मूल्य को पहचानने में मदद कर रहे हैं इंद्रप्रीत सिंह कैम्बो
पिछले कुछ वर्षों में, समाचार में ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (एआई) और ‘मशीन लर्निंग’ (एमएल) शब्द आम हो गए हैं। पिछले पांच वर्षों में फार्मा और बायोटेक उद्योग में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग ने नया स्वरूप दिया है कि कैसे वैज्ञानिक नई दवाओं का विकास करते हैं, बीमारी से निपटते हैं, आदि।
इंद्रप्रीत सिंह कम्बो एक विशेषज्ञ हैं जो फार्मा व्यवसाय को एआई और मशीन के मूल्य को पहचानने के बीच अंतर को कम करने में मदद कर रहे हैं। वह कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रौद्योगिकियों (एआई) की तैनाती से फार्मा कंपनियों की सहायता कर रहा है। अपनी विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए, वह डेटा से समझौता किए बिना विशिष्ट अंतर्दृष्टि को उजागर करने में सक्षम है। वह एक इनोवेटर है, जो कि थियो फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री की जटिल व्यावसायिक जरूरतों को हल करने के लिए आउट ऑफ द बॉक्स आइडिया देते है। क्योंकि उनके समाधान आम तौर पर क्लाउड में बनाए जाते हैं, वे लचीली, स्केलेबल और हमेशा बदलती जानकारी और विश्लेषणात्मक जरूरतों के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
आत्मनिर्भर भारत
आत्मनिर्भरता का जो संदेश भारत को दिया गया है वो इससे ज्यादा क्या आत्मनिर्भर बनेगा कि श्रमिक वर्ग अव्यवस्था के चलते पैदल ही चल निकला है अपने घरों की ओर। ये आत्मनिर्भरता का ही सबूत है कि उम्मीद, सहयोग और परिस्थितियों से लड़कर बिना हताश हुए वो लगातार चल रहा है। भूख – प्यास, धूप छांव की परवाह किए बिना बस चल रहा है। आजकल जो तस्वीरें वायरल हो रही है मजदूरों की वह हमें बेबस कर देने के लिए काफी है। खून से रिसते पैर, फफोलों से भरे हुए पैर लेकर नंगी जमीन पर बस चल रहा है। पैदल यात्री और कुछ जमीन पर नंगे पैर चलते लोग या एक ही साइकिल पर तीन चार लोगों की सवारी, गर्भवती स्त्रियां अपने पेट का भार उठाए न जाने कितने किलोमीटर से चले आ रही है। पुलिस की लाठियां भी झेल रहा श्रमिक वर्ग की अभी न जाने कितनी यात्रा बाकी है? घर वापसी के बाद वह क्या खाएगा और परिवार को खिलाएगा क्या यह भी एक सवाल मुंह बाए खड़ा है उसके सामने? लाकडाउन के चलते इन दिनों मजदूरों के साथ लगातार सड़क दुर्घटनाएं घट रही है। डरा हुआ श्रमिक वर्ग जल्दी से जल्दी अपने घर पहुंच जाना चाहता है। शासन को चाहिए कि उचित व्यवस्था करके मजदूरों के पलायन को रोके। -प्रियंका माहेश्वरी
Read More »मेरी प्यारी दादी माँ
माँ मेरी पूरी दुनिया है..
माँ मेरी पूरी दुनिया है।
वो दुनिया जहाँ मैं हमेशा हस्ती, खेलती हूँ उसकी गोद में सर रखकर होती हूँ।
माँ वो जादू की छड़ी है जो मेरी सारी परेशानियों को खुशियों में बदल देती है।
वो मेरे आंसूओ को भी अपनी आंखों में भर लेती है।
और अपने हिस्से की मुस्कान मुझे दे देती है।
उसने मुझे जिंदगी में हारना नहीं जिंदगी की हर मुश्किल का डटकर सामना करना सिखाया है।
माँ मेरी जिंदगी का वो अंग है जिसके बिना मेरी जिंदगी ही नहीं।
माँ मुझे सुंदर सी जिंदगी देने के लिए – धन्यवाद!
रिया सचान, कानपुर
मेरी माँ मुझे बताती हैं..
मैं ख्याल नहीं रखती खुद का
मेरी माँ मुझे बताती हैं..
मैं रोने लग जाऊ तो वो
डांट कर चुप कराती हैं…
उसका साया मुझे कुछ इस कदर सुकून देता हैं…
जैसे देवी माँ अपने हाथों से मेरा सिर फिराती हैं…
खुद को भाग्यशाली कहुँ
इस बात का अहसास मेरी माँ कराती हैं….
प्रियंका राठौर बर्रा विश्व बैंक कालोनी, कानपुर
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अल्पसंख्यक उत्पीड़न और भारत
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कोरोनॉ-व्याधि- संकट और चिंतन
संकट की है घड़ी विकट, एक जुट होकर लड़ना होगा,
आपसी भेदभाव से उठकर, कोरोनॉ से भिड़ना होगा।
हो रहा विषैला पर्यावरण, यह सबसे बड़ी चुनौती है,
प्रकृति से छेड़छाड़ अनुचित, नितप्रति कर रही पनौती है।
क्रुद्ध हुई प्राकृतिक सृष्टि, प्रतिक्रियात्मक प्रकोप दिखाती है,
ऋतु चक्र, कालक्रम बदल बदल, मानव को लक्ष्य बनाती है।
अब भी हम संभले नहीं अगर, यह आफत कहर मचाएगी,
प्राकृतिक चक्र यूं ही टूटेगा, सृष्टि पर विपदा आएगी।