Monday, November 25, 2024
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कर्नाटक में मिली हार, भाजपा के अहंकार पर करारा प्रहार

‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा देने वाली भाजपा को ही मतदाताओं ने कर्नाटक में हराकर दक्षिण भारत को भाजपा से मुक्त करा लिया। कर्नाटक चुनाव परिणाम के 10 दिन बीतने के बाद भी भाजपा पराजय नहीं पचा पा रही है और पराजय के कारणों को जानने के लिए बीजेपी के साथ साथ संघ के वरिष्ठ नेता भी विश्लेषण कर रहे हैं। कर्नाटक में हिंदुत्व के साथ हिजाब और हलाल से जुड़ा मुद्दा क्यो विफल हो गया? संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले और भाजपा महासचिव बीएल संतोष दोनों ही संघ पृष्ठभूमि के नेता हैं,और दोनों मैसूर क्षेत्र से आते हैं। होसबोले और संतोष के बीच कामकाजी तालमेल अच्छा रहने के बाबजूद भाजपा को इनके ही क्षेत्र में करारी शिकस्त मिलना,बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रहा है। संघ कर्नाटक चुनाव के नतीजे से खासा नाराज है क्योंकि संगठन तटीय क्षेत्रों में सबसे ज्यादा सक्रिय है। इस क्षेत्र में संघ के कई स्वयंसेवकों की हत्या के मामले भी सामने आए हैं और यहां प्रतिबंधित पीएफआई के साथ लगातार संघर्ष भी बना है।
भाजपा युवा नेता प्रवीण नेट्टारू की हत्या आरएसएस के लिए निर्णायक मोड़ थी। स्थानीय बीजेपी और आरएसएस के सदस्यों ने तब बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया था और तत्कालीन बीजेपी सरकार पर निष्क्रियता के आरोप लगाए थे। आरएसएस के लोगों ने भाजपा सरकार पर आरोप भी लगाया कि कन्नड़, उडुपी मूडबिद्री पुत्तुर सुलिया मंगलौर इलाकों में संघ के दर्जनों कार्यकर्ताओं की हत्या के बाद भाजपा सरकार में हत्यारों के गवाहों का मुकरना ,पीड़ित परिवार को सहयोग नहीं देना दुर्भाग्य की बात है। राज्य में भाजपा की सरकार होते हुए भी आरएसएस सदस्यों और स्वयंसेवकों के साथ सरकार खड़ी दिखाई नहीं दी। उन्होंने पीएफआई के कट्टरपंथियों और उग्रवादियों के खिलाफ अकेले लड़ाई लड़ी।श्जिसके कारण इन क्षेत्रों में भाजपा को पराजय का स्वाद मिला है। कर्नाटक में चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस पार्टी ने भ्रष्टाचार का मुद्दा जमकर उछाला। कांग्रेस ने प्रचार के दौरान राज्य सरकार पर भ्रष्टाचार को लेकर कई आरोप लगाए। यहां तक कि पार्टी ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए ढाई हजार करोड़ में मुख्यमंत्री की कुर्सी खरीदने और ‘40 परसेंट की सरकार’ का अभियान तक चलाया। वहीं दूसरी तरफ भाजपा भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी जवाब नहीं दे पाई और बैकफुट पर रही।कर्नाटक के बाद अब राजस्थान, मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ के साथ महाराष्ट्र और हरियाणा का चुनाव जीतना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर दिखाई दे रही है। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा की सरकारें चल रही है। इसी वर्ष के अंत में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव होने हैं। लोकसभा चुनाव के साथ कम से कम तीन विधानसभा चुनाव (आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और ओडिशा) भी हो सकते हैं. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में कभी भी चुनाव की घोषणा हो सकती है। ऐसे में क्या कर्नाटक का असर इन राज्यों पर पड़ेगा ?
पिछले साढ़े तीन वर्ष में सर्वाधिक चर्चित राज्य महाराष्ट्र चुनाव पूर्व बीजेपी-शिवसेना (अब टूट कर दो गुट बन चुका है) के बीच उपजा विवाद अंत में गठबंधन में फूट डाल गया। राज्य में पहले महाविकास अघाड़ी और फिर अब भाजपा-शिवसेना (शिंदे गुट) की सरकार बनवाना।। शिवसेना में फूट डालना राज्यपाल का निर्णय, सर्वाेच्च न्यायालय का कड़ा रुख, मतदाताओं में उद्धव ठाकरे के प्रति सहानभूति, शिवसैनिकों का एक जुट होना, उत्तर भारतीय और अल्पसंख्यक मतदाताओं का उद्धव प्रेम, भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित होगा।
राजस्थान में पायलट-गहलोत विवाद के बीच, बीजेपी को यहां उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है और पार्टी यहां मजबूत भी है. लेकिन बीजेपी के सामने उनकी ही नेता (दो बार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे) चुनौती बनकर खड़ी हो गयीं हैं.बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व राजे की तरफ झुकने को तैयार नहीं दिख रहा है। ऐसे में कुल मिलाकर भाजपा के लिए आने वाले विधानसभा चुनावों को जीतना तथा 2024 लोकसभा चुनाव को जीतना, कहीं दिवास्वप्न बनकर न रह जाए।

मंगलेश्वर त्रिपाठी