पवन कुमार गुप्ताः रायबरेली। उत्तर प्रदेश का वीवीआईपी जिला कहा जाने वाला रायबरेली आज भी अपने विकसित होने की बाट जोह रहा है। यहां चाहे जिस किसी भी पार्टी की सत्ता रही हो सभी ने किसी न किसी कदम पर सबने इसकी उपेक्षा ही की है।
आज हम बात करते हैं प्रदेश में वीवीआईपी जिला कहे जाने रायबरेली के ऊंचाहार विधानसभा क्षेत्र की। जहां करीब 40 वर्षों से दीपक तले अंधेरा की कहावत यथार्थ देखने को मिल रही है। यहां का विकास कागजों में और चित्रों में ही देखने को मिल सकता है। जमीनी स्तर पर विकास देखा जाए तो उसके सारे दावे खोखले नजर आते हैं। जिले के अंदर आने वाले बड़े बड़े नेता और जनप्रतिनिधियों ने भी ऊंचाहार की उपेक्षा की है, हालांकि आज तक हुआ विकास भी उन्होंने ही किया है। चुनाव आने पर वोट की लालच में प्रत्याशी बड़े-बड़े वादे तो करते हैं और चुनाव समाप्त होने के बाद बैरंग लौट जाते हैं और फिर दोबारा नजर नहीं आते।
कुछ महीने पूर्व जिले के एक बड़े नेता ने यहां पदयात्रा भी शुरू की और इस पदयात्रा के दौरान उन्हें कई सैकड़ो प्रार्थना पत्र भी मिले लेकिन उनमें से कितने का निस्तारण हुआ, यह आज तक पता नहीं चल सका। पत्रों के निस्तारण की बात छोड़ दी जाए तो, जो सामाजिक समस्याएं देखने को मिल रही हैं उस पर भी नेता संज्ञान नहीं लेते।
जनप्रतिनिधियों की अनदेखी और उपेक्षा के चलते वीवीआइपी जिले का विधानसभा ऊंचाहार (183) एनटीपीसी परियोजना के होने के बावजूद आज पिछड़ा हुआ मालूम पड़ता है।
ऊंचाहार नगर की बड़ी रेलवे क्रॉसिंग पर रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण हो जाने के बाद से ही नगर की बड़ी रेलवे क्रॉसिंग को स्थायी रूप से बंद करके ऊंचाहार नगर को दो भागों में बांट दिया गया है, वहीं आरओबी निर्माण के बाद से ही सर्विस लेन के निर्माण कार्य को अधूरा छोड़कर कार्यदायी संस्था भाग चुकी है। ऊंचाहार में कई उप जिलाधिकारी आए और गए लेकिन सभी ने आज तक सिर्फ पत्राचार का ही बहाना किया है, इस आरओबी के सर्विस लेन को पूर्ण कराने हेतु कठोर कार्रवाई अमल में नहीं ला सके। यह सब ऊंचाहार के विकास की उपेक्षा करना नहीं है, तो फिर क्या है.?
यही नहीं नेताओं और जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन ने भी ऊंचाहार के विकास में रोड़ा उत्पन्न किया है, जिससे जिले का ऊंचाहार क्षेत्र उपेक्षा का शिकार हुआ।
जानकारी के मुताबिक विगत कई महीनों पूर्व एनटीपीसी के द्वारा तहसील ऊंचाहार परिसर के अंदर एक पार्क के निर्माण के लिए करीब 13 लाख रुपए निर्गत किए गए थे, पार्क हेतु तहसील परिसर के अंदर जगह चिन्हित करके तत्कालीन तहसीलदार द्वारा भूमि पूजन भी कर दिया गया था, परंतु आज तक तहसील ऊंचाहार परिसर के अंदर कोई पार्क का निर्माण नहीं देखने को मिला है। अब यह पार्क सिर्फ कागजों में दौड़ रहा है या फिर हवा हवाई वाली योजना थी।
वही नगर पंचायत ऊंचाहार की बात करें तो पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष के द्वारा भी नगर को सुंदर बनाने के उद्देश्य से नगर की बड़ी रेलवे क्रॉसिंग के समीप स्थित दीवान तालाब पर करीब 30 लाख की लागत से पार्क इत्यादि बनाने की योजना अमल में लाई गई थी, जेसीबी लगाकर साफ सफाई का कार्य भी तेजी से शुरू कराया गया था। परंतु कुछ ही समय में यह भी किसी कारणवश अधूरा रह गया।
गौरतलब हो कि नगर के विकास को गति नहीं दे सके अधिकारियों द्वारा अब इसकी सुंदरता को भी धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है। उदाहरण स्वरूप नगर की बड़ी रेलवे क्रॉसिंग को रेलवे द्वारा स्थाई रूप से बंद कर दिया गया है और बड़े-बड़े पत्थर और लोहे के गाटर से मार्ग को अवरुद्ध कर दिया गया, जिससे दूर से देखने से यह क्षेत्र निर्माणाधीन मालूम पड़ता है। वहीं जब कोई राजमार्ग से ऊंचाहार नगर आने के लिए प्रवेश करता है तो उसे सबसे पहले यह बड़ी रेलवे क्रॉसिंग ही दिखती है जो कि निर्माणाधीन मालूम पड़ने से सुंदर दिखाई नहीं पड़ती। जबकि रेलवे को इस जगह इकट्ठा अतिरिक्त पत्थर व लोहे के गाटर को हटाकर इसे साफ़ कर देना चाहिए।
अब यहां उल्लेखनीय यह है कि जब ऊंचाहार के विकास में चार चांद लगाने के लिए जनप्रतिनिधियों ने कोई सफल प्रयास नहीं किया तो ऊंचाहार की जनता से अपने लिए वोंट पाने की अपेक्षा क्यों करते हैं.? विधानसभा क्षेत्र के अधूरे विकास को देखकर तो यही लगता है कि जन प्रतिनिधियों का प्रयास केवल सत्ता की कुर्सी को हथियाना ही रहा है। ऐसा भी नहीं है कि जनप्रतिनिधियों ने विकास नहीं किया, उन्होंने विकास भी किया है लेकिन अभी भी बहुत कुछ अधूरे विकास को पूरा करना बाकी है। ऊंचाहार विधानसभा के अंतिम छोर वाले गांव में जाकर यदि वहां के विकास का नजारा देखा जाए सड़क,नाली तक क्षतिग्रस्त हैं। गांव के तालाब और कुएं तो विलुप्त होते नजर आ रहे हैं, उनका संरक्षण भी नहीं हो पा रहा है। महंगाई और बेरोजगारी से तो जनता वैसे भी जूझ रही है। वहीं राजमार्ग के चौड़ीकरण के चलते नगर की बाजारों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया है, जद के बाहर आने वाली दुकानों के सामने गड्ढे खोद दिए गए हैं और भरने के लिए अधिक समय लिया जा रहा है, जिससे दुकानों पर ग्राहक नहीं पहुंच पा रहे हैं और व्यापार चौपट है। मुआवजा तो मिल रहा है लेकिन रोजी रोटी छिन रही है। मुआवजे के पैसे से ही सही अब किसी अन्यत्र जगह पर लोग रोजी रोटी की जुगत लगाएंगे। फिलहाल आज के लिए इतना ही, हां इतना जरूर कहना है कि जनप्रतिनिधि यदि आम जनता के मूलभूत मुद्दे, बुनियादी सुविधाओं को लेकर चुनावी मैदान में उतरें तो भविष्य में बहुत कुछ परिवर्तन हो सकता है। जनता भी अपने और समाज के विकास के लिए ऐसे ही किसी पार्टी के नेता को चुनेगी जो उसकी जरूरतों को समझ सके।