आतंकवाद के अनेक खौफनाक विवरणों और उनके बढ़ते दायरे की दास्तानों के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि वे इतने सक्षम हो गए हैं कि संपूर्ण विश्व की शासन व्यवस्था को अपने हाथों में ले सकें। मुठ्ठीभर आतंकी केवल इसलिए अपनी शक्ति और दायरे को बढ़ा सके हैं, क्योंकि वैश्विक महाशक्तियों द्वारा निहित स्वार्थों के कारण उनको हथियारों से लेकर समस्त अन्य संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं। बहरहाल अब यह सिद्ध हो गया है कि ‘अच्छे आतंकवाद और बुरे आतंकवाद’ में अंतर का सिद्धांत पूरी तरह विफल रहा है। अपनी शक्ति और सामर्थ्य बढ़ाने के बाद यह आतंकी संगठन अंततः किसी के भी नियंत्रण में नहीं रह जाते हैं और यह संपूर्ण मानव सभ्यता के लिए घातक सिद्ध होते हैं। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि इस प्रकार के अनुभवों के बाद वैश्विक महाशक्तियों को यह ज्ञान अवश्य हो गया होगा कि इस प्रकार की घातक रणनीति अंततः उनके लिए भी विनाशकारी सिद्ध होती है। वैसे भी वैश्विक महाशक्तियों का यह दायित्व बनता है कि वह संपूर्ण विश्व और मानव सभ्यता की सुरक्षा के प्रति अपने दायित्व और जिम्मेदारियों को न केवल ठीक से समझें, वरन पूरी ईमानदारी के साथ उसका अनुसरण भी करें।
समय की मांग यही है कि संपूर्ण विश्व को आतंकवाद के विरुद्ध साझा लड़ाई लड़ते हुए आतंकवाद के खात्मे का संकल्प लेना चाहिए। यदि विश्व के समस्त देश एकजुट हो जाएं, तो 24 घंटे के भीतर ही समस्त आतंकी संगठनों को जड़ से उखाड़कर नष्ट किया जा सकता है। आतंकवाद के विरुद्ध हो रही लड़ाई अभी आधी-अधूरी है और अनेक देश निहित स्वार्थों के कारण आतंकवाद के लाभार्थी बने हुए हैं। यद्यपि कालांतर में आतंकवाद से इन लाभार्थी देशों को भी जूझना पड़ेगा, यह पूरी तरह सुनिश्चित है। आतंकी संगठन कभी भी नियंत्रित होकर काम नहीं करते और समय आने पर अराजकतापूर्ण ढंग से उस देश की समूचे सत्ता प्रतिष्ठान पर अपना हक जाहिर कर देते हैं। आतंकी संगठन इतने शक्तिशाली कदापि नहीं हैं कि उन्हें शक्ति के बल पर उखाड़ फेंका न जा सके।
आतंकी संगठनों की कायरता और उधार की ताकत के बल पर हेकड़ी दिखाने की प्रवृत्ति सामने आती रहती है। इराक और सीरिया में आतंकवाद निरोधी सैन्य अभियान के बाद वहां इस्लामिक स्टेट के आतंकी जंग के मैदान से भागने के लिए महिलाओं के लिबास और बुर्के का प्रयोग कर रहे हैं। इराकी सेना ने ऐसे अनेक आतंकियों को पकड़ा है, जो महिलाओं के लिबास और बुर्के में भागने का प्रयास कर रहे थे। इस संदर्भ में कई तस्वीरें भी मीडिया व सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर प्रसारित हुई हैं। उत्तरी इराक में एक तस्वीर में ऐसे शख्स को दिखाया गया है, जो महिलाओं के लिबास तथा मेकअप का सहारा लेकर भागने की कोशिश कर रहा था और पकड़ा गया। ‘इंस्टाग्राम’ पर पोस्ट की गई तस्वीरों में बुर्के में छिपे लड़ाकों को देखा जा सकता है। बुर्का हटाने के बाद इराकी सेना और प्रशासन ने पाया कि इनमें अनेक आतंकी युवक छिपे हुए थे। विश्व के अनेक देश सैन्य शक्ति की दृष्टि से बहुत सक्षम हैं। लोकतांत्रिक तथा संवैधानिक प्रणाली से संचालित होने वाली विश्व के अनेक देशों की सरकारें निश्चित रूप से इतनी सक्षम हैं कि यदि वे सुनिश्चित कर लें, तो आतंकवाद को संपूर्ण विश्व से जड़ सहित उखाड़कर फेंका जा सकता है। संवैधानिक सरकारों की तुलना में निश्चित रूप से आतंकियों को उपलब्ध हथियार और मानव संसाधन न के बराबर है। यह आश्चर्यजनक है कि विनाशकारी संकट की स्पष्ट पदचाप सुनने के बाद भी विश्व जगत एकजुट होकर आतंकवाद के समूल उन्मूलन के लिए प्रयास करने की दिशा में आगे नहीं बढ़ रहा है।
अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की विदाई के साथ ही यह सवाल पुनः उठ खड़ा हुआ है कि बीते एक दशक में अफगानिस्तान में कहां-क्या बदला? आज भी अफगानिस्तान में गंभीर समस्याएं बनी हुई हैं। महिलाओं और बच्चों की स्थिति अत्यंत नाजुक बनी हुई है। सामाजिक सुरक्षा की स्थिति गंभीर है और शिक्षा व्यवस्था का पूरी तरह से पतन हो चुका है। 2001 में तालिबान शासन के पतन के समय तक अफगानिस्तान में महिलाओं के पास किसी भी प्रकार के कोई अधिकार नहीं थे। उस समय तक महिलाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा पर कोई भी निवेश नहीं किया जाता था। उनके आने-जाने पर भी सख्त पाबंदियां थीं। अफगानिस्तान में महिलाओं को हमेशा बुर्के में रहना पड़ता था। यद्यपि आज एक दशक से अधिक समय बीतने के बाद अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति में थोड़ा सुधार आया है, परंतु इसे संतोषजनक नहीं माना जा सकता। अफगानिस्तान में अब लड़कियां भी स्कूल जाने लगी हैं तथा देश में स्वास्थ्य सुविधाओं में थोड़ी बेहतरी आई है। महिलाओं और लड़कियों ने कुछ हुनर सीखते हुए अपने आप को कौशलयुक्त (स्किल्ड) बनाने की दिशा में भी कदम आगे बढ़ाए हैं। नौकरियों और रोजगार में भी महिलाओं को कुछ हिस्सेदारी मिलनी शुरू हुई है।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान के सुरक्षा बल की कुल जनशक्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी दो प्रतिशत तक पहुंच सकी है। एक लंबे समय तक अफगानिस्तान में अमेरिकी और नाटो सेनाओं के प्रभाव के कारण अफगानिस्तान में कुछ हद तक आधारभूत संरचना का विकास हो सका और नागरिकों को प्रगतिशील तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ सोचने और जीने का भी अवसर मिला। अभी भी परंपरागत अफगानी सामाजिक जीवन में महिलाओं की स्थिति समग्र रूप में बहुत संतोषजनक नहीं है और महिलाओं के विरुद्ध हिंसा एक आम बात है। यहां तक कि जो महिलाएं सैन्य एवं सुरक्षा बलों में शामिल हो जाती हैं, उन्हें भी समाज में सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता। उन महिलाओं को अधिकांश अवसरों पर बेहद हिकारत के भाव से देखा जाता है और उन्हें अपमान का सामना करना पड़ता है। व्यापक सोच यह है कि अच्छे घरों की महिलाएं सुरक्षा बलों में शामिल नहीं होतीं। कई बार इन्हें वेश्याओं की तरह देखा जाता है और अनेक प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करते हुए सुरक्षा बलों में शामिल महिलाओं को अपने मान, सम्मान और सुरक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ता है। स्पष्ट है कि कट्टरपंथी सोच से प्रभावित रहे समाजों में कोई भी बदलाव बहुत आसानी से नहीं आ पाता। संकीर्ण और विकृत सोच से एक दीर्घकालिक और स्थाई नीति बनाकर ही पार पाया जा सकता है। शिक्षा का प्रसार और आर्थिक विकास समाज को प्रगतिशील बनाने की दिशा में आगे ले जा सकते हैं।- पंकज के. सिंह