Wednesday, May 21, 2025
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वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

यह वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए डिज़ाइन किया गया है – कपिल सिब्बल
राजीव रंजन नाग: नई दिल्ली। वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर सुनवाई हुई। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट में तर्क दिया कि वक्फ का निर्माण कोई धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह मुसलमानों द्वारा अपनी संपत्ति ईश्वर को समर्पित करने की धार्मिक प्रक्रिया है। उन्होंने इस वर्ष पारित वक्फ संशोधन अधिनियम में निर्धारित वक्फ निकायों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का विरोध किया।
‘वक्फ बाय यूज़र’ को लेकर सिब्बल ने कहा कि मंदिरों में चढ़ावा आता है, लेकिन मस्जिदों में नहीं। यही ‘वक्फ बाय यूज़र’ की अवधारणा है। बाबरी मस्जिद भी ऐसी ही थी। 1923 से 1954 तक विभिन्न प्रावधान लागू हुए, लेकिन बुनियादी सिद्धांत वही रहे।
कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ को दान में दी गई निजी संपत्तियों को केवल किसी विवाद के कारण छीन लिया जा रहा है। यह कानून वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश सिब्बल ने तर्क दिया कि नए कानून के तहत केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना ऐसी बनाई गई है कि उसमें मुसलमान अल्पसंख्यक हो सकते हैं। 22 सदस्यीय निकाय में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री पदेन सदस्य होते हैं। इसमें से दस सदस्य मुसलमानों में से चुने जाने चाहिए, जबकि शेष में न्यायविद, राष्ट्रीय स्तर के व्यक्ति और एक नौकरशाह शामिल हैं। उन्होंने तर्क दिया कि इस तरह निकाय पर से मुसलमानों का नियंत्रण समाप्त किया जा रहा है।
सिब्बल ने कहा कि एक बार कोई संपत्ति वक्फ हो जाती है तो वह हमेशा के लिए वक्फ ही रहती है। सरकार वक्फ संपत्तियों को आर्थिक सहायता नहीं देती, क्योंकि मस्जिदों में चढ़ावा नहीं होता, और वक्फ संस्थाएं केवल दान पर निर्भर रहती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि नए कानून के तहत कलेक्टर जांच करेगा, लेकिन जांच की कोई समय-सीमा नहीं है। जब तक जांच पूरी नहीं होती, तब तक संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा।
हिंदू और सिख संस्थाओं की ओर संकेत करते हुए सिब्बल ने कहा, “हर धार्मिक बंदोबस्त में एक भी मुसलमान या गैर-हिंदू नहीं होता।” इस पर मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने पूछा, “बोधगया के बारे में क्या? वहां सभी हिंदू हैं।” सिब्बल ने उत्तर दिया, “मुझे पता था कि आप यह पूछेंगे,” और स्पष्ट किया कि कुछ पूजा स्थल हिंदुओं और बौद्धों दोनों के लिए समान रूप से पवित्र हो सकते हैं। उन्होंने दोहराया कि वक्फ की प्रक्रिया धर्मनिरपेक्ष नहीं है, यह भगवान को समर्पित मुस्लिम संपत्ति है।
याचिकाकर्ता की ओर से ही वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि नया कानून इस प्रकार बनाया गया है कि आवेदक वक्फ पंजीकरण के लिए लगातार कार्यालयों के चक्कर काटता रहे। “यह डर फैलाने के लिए है। हर धर्म में धर्मार्थ दान होता है। कौन सा धर्म आपसे यह प्रमाण मांगता है कि आप पिछले पांच वर्षों से उसका पालन कर रहे हैं?” उन्होंने यह भी कहा कि जैसे ही किसी संपत्ति को लेकर विवाद उठता है, वक्फ का दर्जा समाप्त हो जाता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने यह सवाल उठाया कि नए कानून के तहत “प्रैक्टिसिंग मुस्लिम” की पहचान कैसे की जाएगी। “क्या कोई मुझसे पूछेगा कि क्या मैं दिन में पांच बार नमाज़ पढ़ता हूं? या क्या मैं शराब पीता हूं? क्या इसी आधार पर तय होगा कि मैं मुस्लिम हूं या नहीं?”
मामले की सुनवाई बुधवार को फिर से जारी रहेगी। इससे पूर्व, मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि संसद द्वारा पारित किसी कानून को संवैधानिक माना जाता है, और जब तक स्पष्ट असंवैधानिकता सिद्ध न हो, तब तक अदालतें उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं।
उल्लेखनीय है कि संसद द्वारा हाल ही में पारित वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि यह कानून अल्पसंख्यकों पर हमला है और सरकार की वक्फ संपत्तियों पर नज़र है। वहीं, सरकार का कहना है कि यह संशोधन वक्फ बोर्डों के कामकाज को अधिक पारदर्शी, कुशल और समावेशी बनाने के उद्देश्य से किया गया है।