बछरावां रायबरेलीः जन सामना ब्यूरो। अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना और रोटी, कपड़ा, स्वास्थ्य तथा आवास को प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है। मानवाधिकारों के अन्दर इस बात का स्पष्ट उल्लेख दिया गया है। मानवाधिकार समूचे राष्ट्र के द्वारा हिटलर के अत्याचारों से तृस्त होने के बाद बनाये गये थे क्योंकि हिटलर एक ऐसा क्रूर शासक था जिसने 10 लाख योगियों सहित लाखों लाख बच्चों तथा महिलाओं का कत्ल करवा दिया था। तब पूरे विश्व को यह लगा था कि ऐसे आंतकियों से समाज को बचानें के लिए नियम होने चाहिए यह विचार वरिष्ठ अधिवक्ता ड़ी0पी0 पाल के जो उन्होंने बछरावां विकास खण्ड़ परिसर में आयोजित विश्व मानवाधिकार दिवस संगोष्ठी पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान व्यक्त किये। इस कार्यक्रम का आयोजन भारत मानवाधिकार मंच द्वारा किया गया था। उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा मानवाधिकारों का हनन भारत में पुलिस वालों के द्वारा किया जाता है। मानवाधिकार के स्पष्ट निर्देश है कि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय उसके अपराध की जानकरी दी जाये तथा गिरफ्तारी के बाद उसके परिजनों को सूचित किया जाये। इतना ही नहीं है दोषी व्यक्ति को प्रथम सूचना की एक प्रति भी दी जाये परन्तु ऐसा कहीं नहीं किया जाता। संविधान के अनुच्छेद 39 में स्पष्ट रूप से व्याख्या की गयी है कि प्रत्येक कर्मचारी को समान काम का समान वेतन दिया जाय। परन्तु यह योगी सरकार संविधान की इस व्याख्या को पूरी तरह झूठला रही है। आज स्थिति यह है कि खून पसीना बहाकर अपने बच्चों का पालन पोषण करनें वाले मां बाप को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही है। जबकि 2007 में कानून बना की बुजुर्गों की देखभाल की जिम्मेंदारी बेटा बेटी व पोता पोती पर होगी। अनुच्छेद 51ए बच्चों में वैज्ञानिक सोच की बात करता है। परन्तु क्या ही विड़म्बना है कि हमारे नव निहाल व्हाटशाॅप तथा फेसबुक से चिपककर उससे ज्ञान पूर्ण बातें लेने के बजाय अश्लीलता के सागर में ड़ूबते जा रहें है। यही कारण छोटे-छोटे बच्चें अपराधियों की श्रेणी में आ रहें है। इस पर समाज को सोचना होगा। श्री पाल नें कहा कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश है कि एफ0आई0आर0 लिखते ही तुरन्त जिम्मेंदार नहीं की जायेगी। विवेचना के बाद अगर व्यक्ति दोषी पाया जाता है तभी उसे जेल भेजा जायेगा। परन्तु हमारे देश की पुलिस ऐसा नहीं करती है। विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए थानाध्यक्ष अनिल कुमार सिंह ने कहा कि लोग पुलिस को गालियाँ देते है। यातायात नियमों के अन्तर्गत जब हम बिना हेलमेट के चालान करते है तो लोगों को बुरा लगता है जबकि यह कार्य हम उनके परिवार के भलाई के लिए करते है। पुलिस वाले भी इसी समाज के अंग है उनका भी एक परिवार है, बेटा व बेटी है। और वह यह भी जानते कि दुर्घटना में पिता के न रहने के बाद उसका बेटा हक के साथ परिवार वालों से एक चाॅकलेट भी नहीं मांग पाता। घर के मुखिया के असमयिक मृत्यु के बाद पूरा परिवार बिखर जाता है। इस समाज की यह जिम्मेंदारी है िकवह घर से बाहर निकलें तो पूर्णतया परिवार को सुरक्षित रखते हुए सफर करे। यही नहीं अगर उनका बेटा व बेटी ज्यादा खर्च कर रहा है या मोबाईल पर ज्यादा बातें कर रहा है तो आखिर वह किससे बात कर रहा है। इसकी जानकारी अभिभावकों को रखनी होगी। यह ध्यान रखना होगा कि उनका बेटा कहीं ऐसी जगह तो नहीं खड़ा हो रहा है जहां वह बदनामी का वायस बन सके। बेटी जो कपड़े पहनकर निकल रही है वह उनके द्वारा खरीदें गये है या नहीं। अगर यह जानकारी अभिभावक रखना शुरू कर दे तो समाज का कुरीतियों का व अपराध का पतन किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक पुलिस वालों को चाहिए कि व राजनैतिक दबाव में न आकर निष्पक्ष रूप से विवेचना करें और समाज को सुरक्षा प्रदान करे। क्योंकि उनके शरीर पर जो वर्दी है उस पर लोग विश्वास करते है। 60 वर्ष की उम्र से पहले उनसे यह वर्दी छीनी नहीं जा सकती। केवल इतना हो सकता है कि उनका स्थान्तरण अन्यत्र कर दिया जाये। श्री सिंह नें कि आज कि भौतिक संसाधन बड़ रहें है। परन्तुं समाज से नैतिकता का पतन हो रहा है। और इसको वापस लाने के लिए पूरे समाज को आगे आना होगा। उत्तर-प्रदेश राज्य कर्मचारी संघ के महामंत्री अनूप कुमार मिश्र नें कहा कि समाज के अन्दर सभी व्यक्तियों को इज्जत के साथ जीनें का अधिकार है। और इसे छीना नहीं जा सकता। यही अधिकार मानवाधिकारों की श्रेणी में आते है। कार्यक्रम के दौरान रेखा, मिश्रा, मंेजू, चैधरी, अनुराग सिंह, राजेश कुरील, संगीता देवी गौतम, प्रेमा देवी, राममिलन गौतम, सुरेश सिंह, रामचन्द्र, आकाश कुमार द्वारा विचार व्यक्त किये गये। धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम के आयोजक बृजपाल द्वारा दिया गया।