Sunday, November 24, 2024
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कहानी- जरूरत………

टूटी खाट पर पड़े 60 साल के मलकू चचा जिन्हें पूरा गांव चचा कहकर ही सम्बोधित करता था और चिढ़ाता भी था क्योंकि मलकू चचा को चाय से बहुत चिढ़ थी। इसी कारण जो चचा के घर के सामने से गुजरता तो चाय गरम टन्न गिलास कहकर गुजरता तो मलकू चचा उस व्यक्ति पर गालियों की बौछार कर देते और सब हंसते हुये भाग जाते। कुछ भले लोग अपने बच्चों को डांटते कि मलकू चचा बूढ़े और कमजोर हो गये है चाय गरम टन्न गिलास कहकर चिढ़ाया मत करो। दस मिनट तक लगातार गालियाँ बुलवाकर तुम सब क्यों उनका खून जलाते हो? यह सुन चचा चिल्लाते भाग जाओ सब। अब हम लोग मजदूरी के लिये दिल्ली जा रहे हैं फिर सताते रहना इन दीवारों को। यह बात सुन पड़ोस की चाची बोली काहे दिल्ली काहे चचा? चचा बिना कुछ बोले अपने कच्चे कमरे के कच्चे फर्श पर पानी छिड़क कर वहीं चुपचाप लेट गये और पंखा डुलाने लगे।
कुछ देर बाद खुसुर-फुसर की आवाज ने मलके चचा का ध्यान भंग कर दिया और वह घर के पीछे लगे आम के पेड़ों के तरफ बढ़ चले तो देखकर दंग रह गये कि एक घूँघट में वृद्ध औरत और रूमाल बांधे अधेड़ आदमी दोनों अश्लील हरकते कर रहे हैं। मलके चचा ने मन ही मन कहा घोर कलयुग है जून की तपती दोपेहरी में भी चैन नही! फिर इधर – उधर देखा कि कोई देख तो नही रहा फिर चचा चुपचाप छिप कर सब देखते रहे। जब वे लोग चले गये तो चचा वहीं कच्चे जमीन पर आकर लैट गये पर उनके मन – मस्तिष्क पर वही अश्लीलता हावी हो रही थी और अब बार-बार देखने को उनका जी करने लगा। पर वह करें भी तो क्या? तभी उन्होनें मन ही मन वही सब देखना शुरू कर दिया जो वह देखना चाहते थे और मलके चचा बहुत आनंद की अनुभूति में गुम थे कि उनकी पत्नी गाय की घास रखते हुये बोलीं खाना खा लिया था आपने? मलके चचा आँख बंद किये किसी दूसरे लोक में मगन थे। चाची ने हिलाकर कहा, ’’सो रहे क्या?’’ मलके चचा ने आँख खोली और चाची को घूरने लगे और हाथ पकड़ के कुछ बोलते कि चाची ने इधर-उधर देखा और हांथ झटक कर कहा कोई लाज शरम है कि नही, उम्र का कुछ तो ख्याल करो। चैके में रोटी सब्जी रखी है खा लेना। मैं गाय को पानी पिला आऊँ। यह देख मलके चचा कि फैलती महत्वाकांक्षा फिर से मानो सिकुड़ कर वहीं दफ्न हो गयीं।
बाहर चबूतरे पर बैठे मलके चचा स्वप्नलोक में इस कदर खोये हुये थे कि गली के बच्चे चाय गर्म टन्न गिलास कहकर चिढ़ाकर वहीं खड़े थे पर मलके चचा लैटे – लैटे मन ही मन मुस्कुरा रहे। मोहल्ले के सभी लोग हैरान थे कि आखिर! मलके चचा जो हमेशा चिड़चिड़े रहते और सभी को खूब गालियाँ देते पर आज इतने शांत क्यों?
रात सभी ने सामान बांधा और अपनी गाय सामने वाली चाची को सौंप कर दिल्ली ट्रेन से रवाना हो गये। पहली बार दिल्ली शहर की चकाचैंध देख मलके चचा हैरान रह गये। फिर गलियों कूँचे से होते हुये बताये गये पते पर पहुंचे जो बहुत बड़ा बंगला था। बाहर खड़े गार्ड ने अंदर से बनवारी को बुलाया जो बागवानी का काम देखते थे। तो बनवारी ने जैसे ही चचा चाची को देखा तो बहुत खुश हुआ और कहा गेट के अंदर आ जाओ चचा। हाँ यही काम करना है हम सबको। दोनों कांपते कदमों से अंदर पहुंचे जहां बनवारी ने पौध कटिंग से लेकर सब काम समझा दिया और एक कमरा भी दिखा दिया कि इसमें मैं मेरी पत्नी और लड़के की विधवा बधू साथ रहते हैं। पास वाले कमरे में आप दोनों रहो। रात को मालकिन आयेगीं तो मिलवा देगें। मलके और मलके की पत्नी दोनों चुपचाप अलग-अलग कोना पकड़ कर लैट गये। रात बनवारी ने कहा कि मालिक – मालकिन आये हुये हैं उस हॉल में हैं तुम दस मिनट बाद जाकर मिल लो अकेले। मैं सब्जी लेने जा रहा हूँ। मलके चचा वहीं टहलने लगे और टहलते हुये मालिक से मिलने हॉल में जा पहुंचे। वह अंदर बढ़ते कि मलके के कदम अचानक रूक गये और वह वहीं खिड़की पर खड़े हुये अंदर का नजारा देखने लगा कि खूबसूरत भारी बदन की अधेड़ मालकिन अधेड़ मालिक के साथ रोमांस कर रहीं और लिपटे हुये उन्हें शराब पिला रहीं हैं। चचा सब देख ही रहे थे कि पीछे से बनवारी ने कहा बाहर से क्या देख रहे हो चचा। यहां ये सब आम बात है। चलो अंदर। मलके अंदर पहुंचे फिर भी मालिक मालकिन गले में हांथ डाले, काम समझाते हुये बोले कर तो लोगे न, बाकि बनवारी ने बता ही दिया होगा। तभी मालकिन उठ कर आयीं और चचा के कंधे पर हाथ रख बोलीं यहां आपको कोई तखलीफ नही होगी। हम लोग औरों जैसे कठोर नहीं। कहते हुये मालिक के हाथ को पकड़ कर हँसते हुये अंदर कमरे की ओर चली गयीं। मलके चचा ने कहा बनवारी ये लोग अच्छे लोग हैं। तो बनवारी बोला हाँ चचा। दोनों कमरे में लौट आये बनवारी कि विधवा पुत्र बधू ने सभी के लिये खाना परोसा और सब खा पीकर अपने रूम में जाकर सो गये। आधी रात मलके चचा की नींद खुलीं तो वह अपनी पत्नि को हिलाया तो वह चिल्ला कर बोलीं सो जाओ चुपचाप यह गांव नही हैं समझे। मलके चचा मन मसोस कर प्यासी इच्छाओं को सिर पर लेकर बाहर निकल टहलने लगे और उनके कदम मालकिन के रूम तक कब बढ़ गये ये उन्हें भी पता न चला। बस चचा चुपचाप रूम की खिड़की से झांकने लगे और अंदर का नजारा देख उनके पांव तले जमीन खिसक गयी कि मालकिन बनवारी के साथ हमबिस्तर हैं और दोनों इतने निश्चिंत कि मानो किसी का डर नहीं। चचा काफी देर खड़े देखकर आंखों को सुकून देते रहे पर उनका मन बैचेन हो उठा और वह अपने कमरे में लौटने लगे कि पेड़ो के पीछे वही खुसुर-फुसुर सी आवाजें सुन मलके चचा ने पेड़ों की ओर से देखा कि बनवारी की जवान पुत्रबधू और मालिक दोनों प्रेम में डूबे हुये हैं। यह सब देख मलके चचा की जिस्मानी हसरतें पूरी तरह जाग उठीं और वह अपने कमरे में आकर दूर लेटी अपनी पत्नी से जैसे ही लिपटे कि वह चिल्ला उठीं कि यह क्या कर रहे हो आप? शर्म नहीं आती। कुछ तो उम्र का लिहाज करो। यह सब सुन मलके चचा ने बड़ी मुश्किल से सोने का प्रयास किया।
दूसरे दिन सब लोग अपने-अपने काम में लग गये। दोपहर में बनवारी ने कहा आप सब लोग काम करो। मैं बहू को दवा दे आऊँ। कल मंगवाई थी उसने। मैं देना भूल गया। यह कहकर बनवारी तेज कदमों से अपने रूम की तरफ बढ़ चला। यह देख मलके चचा भी चुपचाप बनवारी के पीछे गये और मलके चचा का शक उस समय हकीकत में बदल गया जब उन्होंने देखा कि ससुर बहू दोनों जिस्मानी सम्बंध बनाने में रत् हैं। काफी कुछ देख मलके चचा लौट आये और पौधों को पानी देने लगे। पीछे से बनवारी हँसता हुआ आया और बोला कैसे हो चचा? यहां का माहौल तो अच्छा लग रहा न? मलके ने पूछा बनवारी तेरी उम्र क्या होगी तो वह बोला क्यूँ चचा, वैसे 49 पार हो गयी चचा, 50 में लगने वाला हूँ। फिर मलके ने कहा और मालिक की कितनी उमर होगी? तो बनवारी ने कहा कि मालिक की उम्र 65 साल और मालकिन की 55-60 के करीब होगी। यह सुन मलके चचा चुप हो गये तो बनवारी ने पूछा चचा चुप क्यों हो गये? तो मलके ने कहा कि तुम सब पर उम्र का असर क्यों नही दिखता तुम सब इतना खुश कैसे हो? बनवारी ने कहा कि हम सब खुद को जवान समझ कर जीते हैं और जो मन करता वह करते हैं बस। मलके ने कहा जो मन करता का क्या मतलब? तो बनवारी कान में बोला कि अपनी पत्नी को हर तरह से खुश रखता हूं और खुद भी खुश रहता हूँ। मलके चचा ने कहा मैं नही मानता? इस उम्र पर बीवी को छुओ तो वह कहतीं कि उम्र का लिहाज करो। बनवारी ने कहा नही चचा प्यार मोहब्बत में उम्र बीच में कहां से आ गयी। चचा जरूरत तो हर उम्र में होती है। सच कहूँ तो इस उम्र में ज्यादा। फिर बनवारी ने मलके चचा को अपने रूम में ले जाकर पर्दे के पीछे खड़ा कर दिया और कहा बोलना मत केवल देखना। पीछे से बनवारी की अधेड़ औरत कमरे में आयी और बनवारी उसे चूँमने लगा तो उसकी औरत उसे दुगनी तेजी से चूँमते हुये बोली कि दिन में भी तुमको चैन नहीं यार। तो बनवारी ने अपनी पत्नी को बाहों में भरकर कहा कि दिन में भी होते है सितारे जानेमन तुम्हें क्या पता, दिन में भी होती है जरूरत, जानेमन तुम्हें क्या पता। कहते हुये दोनों एक हो गये फिर मलके चचा धीरे से कमरे से बाहर निकल गये। कुछ देर बाद बनवारी ने आकर कहा देखा चचा। पता चला न कि हम लोग बुढ़ापे में भी जवान कैसे हैं। क्योंकि हम मानसिक रूप से संतुष्ट हैं। और आप लोग वही पुरानी बातों में दूर – दूर रहते हो और चिढ़चिड़े होकर घुट-घुट कर मर जाते हो। मलके चचा को बनवारी की बातें अच्छी लगीं क्योंकि यही बातें वह सुनना जो चाहते थे। मलके चचा दिन-रात स्वप्नों में देखते कि वह मालकिन के साथ रोमांस कर रहे हैं। ध्यान भंग होता तो काम में लग जाते। हर दिन मालिक मालकिन बनवारी और उसकी बहू और पत्नी सबको जिंदगी के मजे लेत देख चचा खुद को बहुत असहाय और अकेला महसूस करने लगे। एक दिन मलके चचा ने सोचा कि बहू और मालिक के नाजायज सम्बन्ध के बारे में बनवारी को बता दें। बहुत हिम्मत कर मलके ने बनवारी से कहा कि आजकल शहर में ससुर बहू के नाजायज रिश्ते बहुत बढ़ चले हैं। यह सुनकर बनवारी ने कहा कि मॉडर्न युग है सबको जीने का हक मिलना ही चाहिए और चचा तुम्हारा इशारा मेरी तरफ है तो साफ सुनो मेरी बहू को हेपटाइटिस बी की गम्भीर बीमारी हैै और वह कुछ महीनों की मेहमान है। यह बात वह भी जानती है। अगर वह मालिक के साथ वक्त बिता रही तो बुरा क्या है? गांव में लोग बिधवा बधु को जीने नहीं देते। उसे बोलते कि आदमी को खा गयी कमबख्त, अपशगुनी, डायन और उसे किसी पूजा-पाठ और शुभ कामों में बैठने नही देते। अनेकों शब्द वाणों से उसे दिन रात जख्मी करके पल-पल मरने को मजबूर कर रखा था और मैंने सोचा दूसरा ब्याह कर दूँ पर लोग पूछते तुम्हारी बहू की सरकारी नौकरी है क्या? मैं मना कर देता कि वह पढ़ी-लिखी है कोई ट्रैनिंग करवा दो तो लग भी सकती है नौकरी पर इस लालची और ढ़ोंगी समाज को तो पकी पकायी खीर जो चाहिए थी। बाद में सब बहाना बनाकर पल्ला झाड़ कर चल निकलते। फिर रोज – रोज के तानों से और अपनी इच्छाओं की पूर्ति न होने से वह बीमार हो गयी। तब उसे उसके मायके वालों ने भी रखने को मना कर दिया। जब मैं यहां लाया तो मालिक ने इसका बहुत इलाज कराया। अब दोनों दोस्त की तरह हंस खेल कर खुश हैं तो मैं क्यूँ उसकी खुशियों का गला घोट दूं। हाँ मैं मॉर्डन हूं। क्यूं कि मुझे पता है कि जिस्मानी जरूरत एक मर्द होने के नाते जितनी मुझे है ठीक उतनी मेरी पुत्रबहू को भी है। यह बात इस समाज को जिस दिन समझ आयेगी तब औरत को सम्मान मिलेगा वरना संस्कारों की दुहाई देकर वह हरपल घुटन से मरती रहेगी और यह समाज उसे देवी थान बनाकर पूजता रहेगा। मैं उसका छिप कर शोषण नही करता बल्कि मैं उसकी मर्जी से उसे जिंदा रखने की कोशिश जरूर करता हूँ। हाँ इसीलिए मैं शहर आकर खुश हूँ क्योंकि यहाँ कोई किसी की निजि जिंदगी में ज्यादा दखल नहीं देता।
मलके चचा बनवारी का हाथ पकड़कर बोले तू सचमुच जी रहा है और जीने भी दे रहा है। हम जैसे दकियानूसी सोच के लोग अपनी सिकुड़ी जिंदगी ढ़ो रहे हैं बस। जिसमें कोई रस नही। हम 60 के हो गये तो परिवार क्या पत्नि भी यही समझने लगती कि हम तो कल ही मर जायेगें मानो। बनवारी ने हँसते हुये कहा कि सही कह रहे हो पर इसमे भी हम पुरूषों की ही गल्ती हैं कारण हमने ही उन्हें ऐसा दमघोटूं माहौल दिया। कोई महिला अपनी इच्छाओं को दफ्न करके मर जाये तो संस्कारी और कोई महिला अपनी दिल की सुन कर जी ले तो वह मॉर्डन और कुलक्षणी हो गयी। ये कहाँ का न्याय? मलके चचा ने कहा सही कह रहे हो बनवारी छोटी सी जिंदगी जीभर जियो । तो बनवारी ने कहा नही चचा, जिंदगी छोटी नहीं होती हैं.. लोग जीना ही देर से शुरू करते हैं..! और जब तक रास्ते समझ मे आते हैंय तब तक लौटने का वक्त हो जाता हैं…। मलके चचा ने कहा सही कहते हो बनवारी चलो थोड़ी पी लें चलकर। थोड़ी सी। बनवारी ने कहा बिल्कुल चचा शाम को चलते हैं। तभी मलके की पत्नी नेे बनवारी की पत्नी से कहा मुझे इशारे से लग रहा यह दोनों दारू पीने जायेगें। चलो रोक दें। चलो झगड़ा करें। बनवारी की औरत ने कहा अरे! रूको चाची। आदमी है दिनभर धूप में काम करते थोड़ी पी लेगें तो क्या जायेगा। कौन सा दिन-रात पियेगें। ज्यादा टोका टाकी रिश्ते बिगाड़ देती है चाची। मलके की पत्नी बोलीं दिनभर धूप में हम तुम बहू भी थक गयी तो क्या हम सब भी दारू पियें बोलो? वह हँसी और बोली पी भी लेगें तो क्या? चलो रूम पर। तीनों रूम पर पहुंची और मलके की पत्नी हैरान रह गयी जब बनवारी की पत्नी ने तीन गिलास में थोड़ी – थोड़ी दारू डाली और कहा छिपाकर रखी थी। लगा जाओ चाची सारी थकान खत्म। फिर क्या था जबरदस्ती चाची को दारू पिला दी गयी और तीनों ने जीभर के अपनी दिल में छिपे दर्द को बाहर निकाल डाला और कब आँख लग गयी पता ही न चला। दूसरे दिन जब बनवारी की पत्नी ने कहा चची कैसा लग रहा तो चची ने घूरते हुये कहा कि मुझे मॉर्डन नही होना। मुझे गंवार ही रहने दो, तुम दोनों ने मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया। यह सुन बनवारी की पत्नी जोर से हँस पड़ी। वह दोनों बात कर ही रही थी कि बड़ी सी गाड़ी से मालकिन अपने किसी पुरूष दोस्त की बाहों में लड़खड़ाते हुये रूम के अंदर चली गयीं। यह सब कुछ देखना तो बनवारी और मलके की पत्नी के लिये आम बात हो गयी थी। यह सब देख भी मलके की पत्नी पूरी तरह खुल न सकी। वह उन जैसा नही बनना चाहतीं थीं। इधर अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति न होने के कारण मलके चचा स्वप्नदोष नामक बीमारी के साथ मनोरोगी भी हो गये और मन ही मन टूट कर बिखर गये।
उन्हें तो बस प्यार चाहिए था जो वह किसी से कभी न कह सके। बनवारी सबको लाफ्टर क्लबों में ले जाता सब हँसते पर मलके की पत्नी अपने पति की खराब तबियत के कारण न हँस पाती और मलके चचा बिल्कुल खामोश थे मानो पत्थर की कोई मूरत। वह पता नही किस दुनिया में गुम थे। किसी को कुछ समझ नही आ रहा था। फिर बनवारी ने उनका काफी इलाज कराया पर डाक्टर उनका दिन- प्रतिदिन गिरते स्वास्थ्य और अचानक रात में उठकर बड़बडाने लगते तो कभी किसी अजीब चीज को देखकर चिल्लाना शुरू कर देते तो कभी बिल्कुल खामोश हो जाते, की वजह समझ में असमर्थ रहे । परिणामस्वरूप मलके चचा और चाची गांव लौट आये। गांव में भी तमाम झोलाछाप डॉक्टरों और पाखण्डियों ने जादू टोना किया पर मलके चचा बिस्तर से न उठ सके। वह इतने बीमार थे कि लोग कहने लगे कि यह मुश्किल से एक महीना जी जायें तो बहुत है।
तभी एक दिन बनवारी शहर से एक लड़के को लेकर आये और बोले कि यह पास के गांव नगार सुमरै का है पर आज यह बहुत बड़ा मनोचिकित्सक है डा. उसमान। मलके चचा उसे देखते रहे पर कुछ नही बोले। एक दिन उसमान ने अपने मोबाइल में एक रोमांटिक फिल्म दिखायी तो मलके ने पूरी फिल्म देखी। उसके बाद उसमान ने एक ब्लू फिल्म लगाकर वहीं रख दी और वह बाहर आकर बैठ गया। मलके ने जैसे ही आवाजें सुनी तो मोबाईल उठाकर पूरी फिल्म देख डाली। उसमान अंदर आया तो मलके हड़बड़ा गये। तो उसमान ने अपनी डायरी निकाल कुछ प्रश्न किये जिन्हें मलके हाँ और ना में जवाब देते चले गये।
उसमान बिल्कुल सही नतीजे पर पहुंच चुके थे कि इनके साथ करना क्या है। उसमान ने कहा चाची जी मेरे साथ आओ। फिर उसमान ने उन्हें सब समझाया और कहा सुहाग चाहिए या संस्कार आज तय कर लो। वह बोली सुहाग चाहिए बस। जो बोलोगे करने को तैयार हूं बेटा। वह बोला आज शाम मेरी वाइफ आयेगी जैसा वो कहे बिल्कुल वैसा करना। वरना हम लोग चाचा जी को हमेशा के लिए खो देगें। चाची आँसू भर के बोलीं क्या बीमारी है उनको? तो उसमान ने कहा कि इस बीमारी को हिस्टीरिया कहते हैं। यह मनोरोग है। अक्सर यह बीमारी महिलाओं में होती है पर पुरूषों में भी देखी गयी। इस बीमारी की कोई दवा नही कोई इलाज नहीं। हां बस हिप्नोसिस, साइकोएनेलेसिस द्वारा कोशिश कर सकते हैं। यह सुनकर चाची ने कहा बेटा यह सब मेरे समझ न आया तेरी दुल्हन जो बोलेगी वह मैं करूंगी बेटा। तुम बस उन्हें बचा लो। उसमान ने कहा बिल्कुल पूरी कोशिश करूंगा।
इधर मलके चचा खाट पर लैटे दिमागी फैंटसी की कैद से खुद को आजाद करना चाहते थे पर.. वह हकीकत और स्वप्न में फर्क नही कर पा रहे थे कि यह सच है या सपना। वह लेटे – लेटे कब सो गये पता ही न चला कि अचानक आँख खुली तो सामने शहर की मालकिन को अपने खाट पर अपने करीब बैठा देख वह चैंक गये। तभी वह मलके चचा पर किसी कॉलगर्ल की तरह टूट पड़ीं और गंदे से गंदे शब्द बोलने लगीं और मालकिन की छुअन से मलके चचा मानो महीनों से आज जाग उठे और मालकिन के हांथ से दारू का गिलास पीने लगे फिर वह भी हर गाली हर बुरा शब्द बोलते चले गये। आज दिल की वर्षों पुरानी गाँठें खुल चुकी थी और मन आजाद पंक्षी की तरह आज सुकून के आकाश में उड़ रहा था। मानो वर्षों पुरानी कोई मांग आज भरपूर तरीके से पूरी हुई थी। फिर आज जो सुकूनभरी नींद आयी उससे रात के मायने ही बदल गये। क्योंकि यह रात चचा के लिये उनकी नयी जिंदगी का सबसे खूबसूरत पहला दिन था।
सुबह हुई सूर्य भगवान चचा के सिर पर आ चुके थे और वह उठ बैठे। अब वह ठीक हो चुके थे। सामने खड़े उसमान ने चचा के पास आकर कहा कि कैसें हैं चाचा जी? तो चाचा ने कहा, ’’आज की रात मेरी जिंदगी की सुबह साबित हुई।’’ मैं बहुत हल्का महसूस कर रहा हूं…। डाक्टर बेटे तुमने मुझे ठीक कर दिया।
मनोवैज्ञानिक उसमान ने कहा, ’’ चाचा, आपकी डॉक्टर तो आपकी बीवी है यानि मेरी चाचीजी।’’
… मलके चचा चैंक उठे कि यह सपना है या हकीकत। तभी सामने मलके चाचा कि पत्नी पानी देते हुये बोलीं क्या बातें हो रही बेटा। मलके चचा ने कहा उसमान बेटा मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा।
तो उसमान ने मलके चाचा के कान में कहा कल रात कोई मालकिन नही थी आपके पास। वह हमारी यहीं चाची थीं। चाची हमारी उस मालकिन से ज्यादा प्यारी हैं। मलके चचा ने सामने खड़ी अपनी पत्नी की तरफ देखते हुये कहा पर तुम तो गांव की चुप – चुप रहने वाली औरत फिर कल रात इतनी अंग्रेजी हिन्दी में अश्लील गाली शब्द कहां सीखे.. तुमने? वह मुस्कुरायीं और मलके के कान में रात के कुछ रफ शब्द दोहराये और मलके चचा कुछ सोच पाते कि वह बोलीं कि आपके साथ शहर मैं भी तो गयी थी यार … और वहां बहुत कुछ मैंने भी तो देखा था…डार्लिंग।
मलके चचा, चाची के मुँह से डार्लिंग शब्द सुनकर सन्नाटे में आ गये और फिर जोर से हँस पड़े।
फिर वह अपनी पत्नी और उस मनोवैज्ञानिक लड़के डॉ. उसमान से बोले… यह स्वप्न है या हकीकत ?
तो चाची और उसमान उनके दोनों कान में एकसाथ बोले कि यह तो इलाज था… पर स्वप्न समझ कर यह सब भूल जाओ…!! तभी पास के कुछ बच्चे निकले और बोले चचा आप तो ठीक हो गये, चाय पियोगे चचा? तभी दूसरा बोला चाय गर्म टन्न गिलास। यह सुनकर मलके चचा ने मुँह भर-भर कर गालियाँ देना शुरू कर दिया। तो पड़ोस के सब लोग दौड़ के आ गये कि अरे! वाह चचा ठीक हो गये। उसमान ने कहा तुम लोग सुधर जाओ जाओ समझे, मेरे प्यारे चचा को चिढ़ाया न करो अब जाओ चचा के लिये चाय ले आओ। तो चचा ने उसमान का गला पकड़ कर कहा साले! तुम भी। वहीं पास खड़ीं पड़ोस की चाची बोली चचा की गाली में भी अपनापन होता है। महीनों से सन्नाटा पड़ा था मोहल्ले में…. आज रौनक लौट आयी। दूर खड़ी चाची मन ही मन बोलीं जरूरत लौट आयी।
ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना