Sunday, November 24, 2024
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अब भारत देख को रुठि गयौ भगवान……

मकर संक्राति पर काव्यनिशा में कवियों ने बांधा समां
सासनी, नीरज चक्रपाणि। मकर संक्राति पर्व पर शहर की सामाजिक साहित्यिक संस्था उद्घोष द्वारा शिक्षक नगर में काव्य निशा का आयोजन किया गया। जिसमें कवियों ने मकर संक्राति को नव सृजन संस्कार सहित देश में एक दूसरे को भाईचारा एकता व अखंडता से जुड़े रहने का संदेश दिया।
शनिवार की देर शाम काव्य निशा का शुभारंभ कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कवि मुरारीलाल शर्मा द्वारा मां सरस्वती के छविचित्र पर माल्यार्पण एवं उसके सामने दीप प्रज्वलन करने के एवं व्यंग कवि वीरेन्द्र जैन नारद द्वारा मां सरस्वती वंदना के साथ किया गया। तत्पश्चात कवि सुरेश चंद्र शर्मा ने सुनाया कि नए साल की चांदनी लाए नव संचार, नव आशा के सृजन से सजा रहे संसार। कवि रामनिवासी उपाध्याय ने सुनाया कि प्रजा के दुबले हाथों से ये ताज-ओ-तख्त मिलता है, मिले गर ताज पोशी तो रवैया सख्त मिलता है। गजलकार हनीफ संदली ने अपनी गजलों से कुछ इस प्रकार समां बांधा कि- मतलब के हैं रिश्ते नाते, मतलब की सब यारी है, यहां नहीं कोई किसी का देखी दुनियांदारी है। कवि महेन्द्र पाल ने सुनाया कि निर्वाचन कूं देखि कैं अकल भई हैरान, अब भारत देश कौ रुठि गयो भगवान। कवि देवेन्द्र बौबी ने सुनाया कि झिलमिल-झिलमिल सूरज चंदा गगन में आते हैं, हमारी इस धरा को वे पावन स्वर्ग बनाते हैं। कवि नरेनद्र पाल सिंह ने सुनाया कि आओ लोगों भारत की नारी देखो आज की, कैसी अदब की उड़ी धज्जियां लोक लाज की। कवि धर्मेन्द्र यदुवंशी ने सुनाया – उठो जवानों उत्साहित हो जन-जन में तुम जोश भरो, बन सुभाष टेगोर तिलक तुम एक नया उद्घोष बनो। कवि मुरारीलाल मधुर ने सुनाया कि लंबी गर्दन पायकें ऊंट बगुदाय, देखा पर्वत समाने गयो सनाकौ खाय। इसके अलावा विनोद जैसवाल, वीरपाल सिंह, आदि ने भी अपनी रचनाओं के माध्यम से श्रोताओं को गुदगुदाया। कार्यक्रम के अंत में रेवड़ी गजक एवं खिचड़ी सहभोग का आयोजन किया गया। इस दौरान पंकज कुमार, मनोज वाष्र्णेय, सौरभ चक्रवर्ती, आविद हुसैन, सुनील शर्मा, प्रशांत दीक्षित, सुरेश चंद्र शर्मा, वेद प्रकाश, संजय सिंह, अशोक कुमार, जगदीश प्रसाद आदि मौजूद थे।