रियल स्टेट के क्षेत्र में अफसरों व नेताओं के अदृश्य गठबन्धन से भ्रष्टाचार नहीं रूक पा रहा है, फिर चाहे कितनों की जान चली जाये। हादसा होने के बाद वही पुराना राग उच्चाधिकारियों द्वारा अलाप दिया जाता है कि दोषियों पर जांच कर कड़ी कार्रवाई होगी और सफेदपोशों द्वारा घड़ियाली आंसू बहा दिए जाते हैं। सांत्वना व सहायता के नाम पर कुछेक कागज के टुकड़े उन परिवारों के सामने फेंक दिये जाते हैं जिनके लिए उनका अपना इस दुनियां से असमय ही अलविदा कर चुका होता है। उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर की बात करें तो यहां नेताओं व अफसरों के अदृश्य गठबन्धन से रियल स्टेट के क्षेत्र में भरपूर भ्रष्टाचार पनपा है और भ्रष्टाचार उन लोगों की बलि ले रहा है जो मजबूरी में अपनों का पेट पालने व दो जून की रोजी रोटी की तलाश में अपना खून पसीना बहाते हैं।
महानगर में लोगों का आवासीय सपना पूरा करने के लिए जहां कानपुर विकास प्राधिकरण का एक अपना महत्वपूर्ण स्थान है तो दूसरी ओर धनाड्य लोग भी औने पौने में निजी लोगों की जमीने हथियाकर आवासीय सपना पूरा करने का दम भरते हैं। वहीं बाहुबली लोग शहरी क्षेत्र में ऐसी जमीनों पर अपनी गि( दृष्टि जमाए रहते हैं जिनपर किसी भी तरकीब से अपना कब्जा जमाना उनका पहला लक्ष्य होता है और इसके बाद उस पर जल्द से जल्द निर्माण कर देते हैं। अब निर्माण अगर जल्दवाजी में किया जायेगा तो यह मुमकिन है कि मानकों का पालन करना संभव नही होगा और इसे संभव करने में सरकारी मशीनरी भी साथ देती है। इसका जीता जागता उदाहरण महानगर का अभी हाल ही का है। एक निर्माणाधीन इमारत अचानक ही ढह गई। सैकड़ों परिवारों को न भूल सकने वाला दर्द मिल गया। अगर चुनावी बयार न चल रही होती तो शायद पीड़ितों को आर्थिक सहायता कुछ अधिक मिल जाती लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि राहत के नाम पर जिला प्रशासन ने डूबते को तिनके का सहारा वाली कहावत को चरित्रार्थ करते हुए कुछ मलहम जरूर लगाया। लेकिन अगर गौर करें तो मानकविहीन हो रहे निर्माणकार्य से यही नतीजा देखने को मिल रहा है कि अफसरों व नेताओं की मिलीभगत से सैकड़ों परिवारों को न भूलने वाला दर्द मिल रहा है। कार्यवाई के नाम पर कर्मचारियों को बलि का बकरा बना दिया जाता है और वास्तविक दोषियों को बचाया जाता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या सफेदपोशों व अफसरों का अदृश्य गठबन्धन ऐसे ही लोगों की बलि लेता रहेगा?