Tuesday, November 26, 2024
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प्लास्टिक बंद लेकिन विकल्प क्या..?

इन दिनों प्लास्टिक विरोध की चर्चा बहुत जोरों पर है और होनी भी चाहिए जो हमारे पर्यावरण और जनजीवन को नुकसान पहुंचा रहा हो उसका विरोध होना लाजमी है। प्लास्टिक की पन्नी से कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है इससे सभी अवगत हैं। गाय प्लास्टिक खा जाती हैं जो उनकी मृत्यु का कारण बनता है यहां वहां फैली प्लास्टिक कचरे के साथ साथ बीमारियों को भी जन्म देती है। नदियों का दूषित होना जिसकी वजह से पानी में रहने वाले जंतु मरते जा रहे हैं। ये वजह काफी है प्लास्टिक विरोध के लिए। बारिश में जब बाढ़ आती है या नदियां उफान पर होती है और बाद में जब पानी का स्तर अपने वास्तविक रूप में आता है तो नदियों के किनारे या सड़कों के किनारे पर जगह-जगह प्लास्टिक और गंदगी बिखरी पड़ी रहती है जिससे दुर्गंध और बीमारियां फैलती है इस लिहाज से प्लास्टिक किसी भी तरह से उपयोगी नहीं है।कुछ लोग इस बात को दूसरा ही रूप दे रहे हैं उन लोगों का मानना है कि प्लास्टिक बंद होना मतलब गरीबों का रोजगार छिन जाना। बड़ी कंपनियों पर यह नियम क्यों नहीं लागू होता। लोगों से एक सवाल है जब पॉलिथीन या प्लास्टिक बैग नहीं थे तब क्या लोग सामानों का लेनदेन नहीं करते थे? तब भी सामान का लेनदेन चलता था और बहुत सुचारू रूप से चलता था। बात यह भी की जा रही है कि बिस्किट के पैकेट, ड्राई फ्रूट्स पैकेट, नमकीन की पैकेट प्लास्टिक की पैकिंग में आते हैं और इन्हें भी बैन होना चाहिए। सही है जब यह भी बैन होगा तो इसका भी विकल्प निकाला जाएगा। मुझे मेरा बचपन याद आता है जब हम बाजार से सामान लाने जाते थे तो मां हाथ में कपड़े का थैला थमा दिया करती थी। कोई भी सामान हो कागज के लिफाफे में बंद करके हम थैले में डाल कर घर ले आते थे। उस समय कोई शिकायत नही थी तो अगर वही दौर फिर से चल पड़े तो कोई दिक्कत नहीं है? आज हम फिर से वही विकल्प इस्तेमाल कर सकते हैं। लिफाफे बना कर बेचना भी रोजगार ही है। कम से कम जरूरत जितना ही प्लास्टिक का इस्तेमाल हमारी जीवन और जीवन शैली दोनों में परिवर्तन ला सकता है। इसलिए गरीबों के रोजगार छिन जाने की दुहाई बंद कीजिए और हर तरह के प्लास्टिक पर बैन लगना चाहिए। यह सही है कि हम प्लास्टिक के इतने आदी हो चुके हैं कि इससे दूर हो पाना असंभव सा लगता है। देश में प्लास्टिक उत्पाद जो अभी 45 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है आगे बढ़कर 60 लाख से ऊपर पहुंचने की संभावना जताई जा रही है और यह उद्योग 2.25  लाख करोड़ रूपया सालाना है और जो आगे 5 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की आशंका जताई जा रही है। ऑल इंडिया प्लास्टिक मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अनुसार देश से 8 अरब डॉलर के प्लास्टिक उत्पाद निर्यात किए जा रहे हैं जिसके वर्ष 2025 तक बढ़कर 30 अरब डालर तक पहुंचने की उम्मीद की जा रही है। दूसरी ओर इस सच को भी नकार नहीं सकते कि भारत में सालाना 56 लाख टन प्लास्टिक का कूड़ा बनता है बड़ी बात यह भी है दुनिया भर में जितना कूड़ा हर साल समुद्र में डालते हैं उसका 60% हिस्सा भारत कचरा डालता है।भारतीय रोजाना 15000 टन प्लास्टिक कचरे के रूप में फेंकते हैं। इसलिए हमें प्लास्टिक की समस्या को खत्म करने के लिए पहल करनी ही होगी। -प्रियंका माहेश्वरी।