Tuesday, November 26, 2024
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मैं अभी भी जल रही… निर्भया

हालांकि हमारी आदत में शुमार है भेड़चाल में चलना जैसे ही कोई मुद्दा तेजी से उभरता है हम उस पर चिल्लाना शुरू कर देते हैं और कुछ दिन बीतते ही जब सब शांत हो जाता है तो हम भी शांत हो जाते हैं। यह हमारी आदत में शुमार है और हम इसके आदी भी हैं लेकिन कुछ घटनाएं दिलोदिमाग से हटती नहीं बल्कि अक्सर याद आती रहती है। बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा का मसला कोई आज से है ऐसा नहीं है.. बरसों से चला आ रहा है। महिलाओं के प्रति अपराध भी होते आ रहे हैं लेकिन अब इनमें निरतंर बढ़ोत्तरी होती जा रही है और जब सरकार अपने काम में नकारा साबित होने लगे तो जरूरी है कि उस मुद्दे पर ध्यान दिलाया जाये।

हमारे यहाँ लोगों की सोच कम है या मानसिक विकृति है या विक्षिप्तता है जिसकी वजह से महिला, छोटी बच्चियां समाज में कहीं भी सुरक्षित नहीं है। इन दिनों एनआरसी के मुद्दे ने इस विषय को एकदम दबा दिया है। महिला सुरक्षा से जुड़ी सभी बातें गायब हैं इस वक्त। यूं भी महिला सुरक्षा के सारे दावे सिर्फ कागजों पर ही है। मुझे आश्चर्य होता है कि जब एक अपराधी दोषी साबित हो गया है तो उसे क्षमा याचिका दायर करने का अधिकार क्यों? निर्भया केस के निर्णय में आखिर इतना विलंब क्यों? उन्नाव गैंगरेप की पीड़िता या प्रियंका रेड्डी या अन्य रोज ही इस तरह की घटती घटनाएं “बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ” का नारा एक गाली सा महसूस कराती है। एक अपराधी नाबालिग कैसे हो सकता है? जिसे दुष्कर्म करने की सूझ है, जो घटना को अंजाम दे सकता है उसे सुधार गृह भेज कर सिलाई मशीन क्यों दी जाती है? कुंठित मानसिकता इसलिए भी कहा कि हमारे यहां गाय की तस्करी या गाय को मार देने पर माबलिचिंग हो जाती है। गाय को हम माता का स्वरूप मानते हैं, स्त्री को दुर्गा का स्वरूप मानते हैं फिर भी स्त्री नगण्य है। लोग चुप रहते हैं। गाय के मरने पर माबलीचिंग हो सकती है लेकिन एक स्त्री के मरने पर या जिंदा जलाने पर माबलीचिंग नहीं हो सकती। शायद लोगों का गुस्सा नहीं आता होगा या शायद गायों का दर्जा स्त्रियों से ज्यादा है। कैंडल मार्च के बजाय लोगों के हाथों में हथियार क्यों नहीं होते? मुझे आश्चर्य होता है कि हमारी महिला नेता जो बोलने में तलवार के धार जैसी जबान रखती हैं लेकिन इस विषय में चुप्पी साधे रहती है जबकि वह खुद इस तरह की घटनाओं से दो-चार हो चुकी हैं फिर भी वह अपनी खामोशी नहीं तोड़ती। कितनी ही महिला नेता हैं जो ऐसे विषय पर चुप्पी साधे हुए रहतीं हैं। जया बच्चन ने संसद में अपनी बात रखी कि ऐसे लोगों की लिंचिंग करा देनी चाहिए मैं सहमत हूं इस बात से क्योंकि जब सरकार सही तरीके से काम ना कर पाए तो निर्णय जनता के हाथ में ही सौंप देना चाहिए। अगर प्रशासन व्यवस्था की भी बात की जाए तो पीड़ित व्यक्ति की एफआईआर तक नहीं लिखी जाती। पीड़िता के माता-पिता परिवार जन न्याय की आस में लुटे पिटे से रहते हैं। रक्षक ही भक्षक हो जाते हैं और कानूनी रूप से भी इतने दांवपेच होते है कि मामला आगे बढ़ ही नहीं पाता। त्वरित न्याय का सिलसिला निकलने के बावजूद ऐसी वीभत्स घटनाएं सामने आ रही है और लोगों की मानसिक स्थिति ऐसी हो गई है कि देखकर भी अनदेखा कर जाते है और क्या कहा जाये जब इस तरह के अपराध को एक “गल्ती” का नाम दे दिया जाये।  आखिर पीड़ित व्यक्ति सरकार और प्रशासन से क्या उम्मीद करें? हैदराबाद पुलिस ने आरोपियों का एनकाउंटर किया लोग बहुत खुश हुए, पूरा देश खुश था और मुझे सही भी लगा अपराधियों को ऐसे ही सजा मिलनी चाहिए। डर होना चाहिए ताकि इस तरह की घटनाएं न घटें और ऐसा बहुत कम देखने में आता है त्वरित कार्यवाही वाली कोर्ट बहुत कम समय में फैसला सुनाए। शायद ही अपवाद स्वरूप कोई ऐसा मसला होगा जो कुछ ही दिनों में निपट गया। एक सर्वे  के अनुसार 30 जून 2019 तक बालक बालिकाओं से दुष्कर्म 24212 मामले सामने आए। जरूरी यह भी है कि जो साधु संत आश्रम के नाम पर सेक्स रैकेट चलाते हैं उसका पर्दाफाश हो। आश्चर्य होता है कि नामी-गिरामी लोग इन्हें बचाने में लगे रहते हैं। एक सर्वे के अनुसार महिलाओं के खिलाफ क्राइम के मामलों में भाजपा के सांसद टॉप लिस्ट पर है। भाजपा में सर्वाधिक 21 सांसद ऐसे हैं और दूसरे नंबर पर कांग्रेस के 16 सांसद आते हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफोर्म एनटीआर ने यह बात कही है। उसने यह भी कहा कि  पिछले 5 सालों में मान्यता प्राप्त दलों ने 41 उम्मीदवारों को टिकट दिया जिन्होंने दुष्कर्म से संबंधित मामले घोषित किए थे। 5 सालों में भाजपा ने महिलाओं के खिलाफ अपराध से जूझ रहे उम्मीदवारों को लोकसभा राज्यसभा विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया। कांग्रेस ने 46 उम्मीदवार और बहुजन समाज पार्टी ने 40 ऐसे उम्मीदवार उतारे और नेशनल इलेक्शन वॉच ने कहा 759 सांसदों और 4896 चुनावी हलफनामे में से 4122 का विश्लेषण किया। आश्चर्य है लोग अपने नेताओं को बचाने में लगे रहते हैं जबकि इन्हें टिकट भी नहीं मिलना चाहिए। मनुष्य भी कितना असंवेदनशील हो गया है की पोर्न साइट पर पीड़िता के दुष्कर्म का वीडियो ढूंढता है। इससे ज्यादा शर्म की क्या बात होगी इस समाज के लिए?  इस तरह के अपराधियों के लिए ऐसा भी होना चाहिए कि वकील ऐसे केस लड़ने से इंकार दें। कानूनी पेचीदगियां अपराधियों की मददगार साबित होती हैं। जरूरत है सशक्त कदम की, एक आवाज की ताकि इस तरह की घटनाएं ना घटें। -प्रियंका माहेश्वरी गुजरात।