प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया लेख़कों और साहित्यकारों के लेख़न को प्रकाशित कर लेख़नी में जीवंतता प्रदान करते हैं – एड किशन भावनानी
भारत हजारों वर्ष पूर्व से ही संस्कृति,सभ्यता संस्कार, लेख़नी, अध्यात्म की विरासत का गढ़ रहा है। हजारों वर्ष पूर्व से लेख़न क्षमता का लोहा पूरा विश्व मानता है, क्योंकि भारत का साहित्यिक स्त्रोत हजारों साल पुराना है लेख़न कला से ही भारत के अनेकों ग्रंथ साहित्य लिखे गए हैं, जिनका बयान शब्दों में नहीं किया जा सकता, इतना उत्कृष्ट और परम कलाधारी लेख़नी है भारत माता के सपूतों की!!! साथियों बात अगर हम वर्तमान साहित्यकारों लेखकों औरसाहित्य जगत से जुड़े हमारे साथियों की करें तो आज भी उतनी ही उत्कृष्ट कला वर्तमान साहित्य जगत में विद्यमान है। हम प्रिंट वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से इस साहित्य जगत की कला को मीडिया के माध्यमों से पढ़ते और सुनते हैं तो हमारी कॉलर टाइट!! गर्व से सर ऊंचा हो जाता है कि इतने ज्ञानवान छैलि के साहित्यकार लेखक हमारे भारत माता की गोद में आज भी मौजूद है!! साथियों बात अगर हम हमारे तक साहित्यकारों लेखकों की रचनाएं, लेख, उत्कृष्ट कला, ज्ञानवार्ता प्रदर्शन छौली पहुंचाने की करें तो वही!! वही!! इस साहित्य लेखन कला को ऊंचाइयों की बुलंदियों तक पहुंचाने वाला है,और उसी के उत्साह, प्रोत्साहन और सहयोग से हम साहित्यकार लेखकों को सुन, पढ़ व जानसकते हैं,,साथियों वह है!!! प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया!! साथियों यही हमारा एक सच्चा सहयोगी और साथी है, जो हमारी रचनाओं, लेखों को प्रकाशित कर उन रचनाओं और लेखों को जीवंतता प्रदान करते हैं!!! जिनके सहारे साहित्य जगत की सामग्री पाठकों और जनता तक पहुंचती है।…साथियों एक कविता, लेख रचना, शंद, दोहे से लेकर भारी भरकम पुष्टों वाली एक किताब के प्रकाशन के पीछे भी मीडिया का बहुत अहम रोल होता है। साथियों मेरा यह निजी मानना है कि हम जो लेख़ रचना कविताएं लिख़ते हैं, जबतक वह प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में छपती या प्रकाशित या रिले नहीं होती तब तक मेरे विचारों से वह एक निर्जीव अवस्था में होती है। जब वह प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रकाशित होती है तो, उसमें जीवंतता का भाव उत्पन्न होता है, क्योंकि उसके आधार पर ही वह साहित्य जगत में और पाठकों जिसमें समाज के अंतिम छोर के अंतिम व्यक्ति से लेकर प्रधानमंत्री राष्ट्रपति तक पहुंचने का साधन से जीवंतता आ जाती है, क्योंकि कुछ अपवादों को अगर हम छोड़ दें तो प्रकाशन के बाद ही वह साहित्य जीवंतता से मानवीय पाठन के लिए उपलब्ध हो पाता है।…साथियों बात अगर हम भारत में प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संचार माध्यमों की करें तो,भारत के संचार माध्यम (मीडिया) के अन्तर्गत टेलीविजन, रेडियो, सिनेमा, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, तथा अन्तरजालीय पृष्ठ आदि हैं। अधिकांश मीडिया निजी हाथों में है और बड़ी-बड़ी कम्पनियों द्वारा नियंत्रित है। भारत में 70, हज़ार से अधिक समाचार पत्र हैं, 690 उपग्रह चैनेल हैं (जिनमें से 80 समाचार चैनेल हैं)। आज भारत विश्व का सबसे बड़ा समाचार पत्र का बाजार है।…साथियों बात अगर हम प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ताकत की करें तो लोकतांत्रिक देशों में विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका के क्रियाकलापों पर पैनी नजर रख़ने उनमें जनता के हितों को देखने, आम जनता के हितों की रक्षा करने के लिए इस मीडिया को चौथे स्तंभ के रूप में जाना जाता है…। साथियों मीडिया की सकारात्मक भूमिका के कारण ही आज़ हम साहित्यकारों सहित एक व्यक्ति, संस्थान समूह और देश की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक गतिविधियों को पल भर में सारे विश्व तक पहुंचाया जाता है साथियों आज मीडिया की उपयोगिता महत्व एवं भूमिका निरंतर बढ़ती जा रही है कोई भी समाज़ सरकार वर्ग संस्था समूह व्यक्ति मीडिया की उपेक्षा कर आगे नहीं बढ़ सकता है आज मीडिया जीवन का एक अभिन्न अंग अपरिहार्य आवश्यकता बन गया है। आज मीडिया के बिना जीवन अधूरा है।…साथियों बात अगर हम प्रिंट मीडिया की दिक्कतों को समझकर स्वतः संज्ञान लें, तो वर्तमान डिजिटल युग में हर व्यक्ति के पास मोबाइल है और संसार की सारी जानकारी की कुंजी मोबाइल के की बटन में है एक क्लिक में सारी दुनिया की जानकारी प्राप्त हो जाती है तो लोग फिर क्यों अखबारों को खरीदेंगे और पढ़ेंगे बस!!! यही डिजिटल विकास आज प्रिंट मीडिया के लिए आर्थिक परेशानी का कारण बन रहा है…। साथियों मेरा मानना है ऐसा स्वतःसंज्ञान लेने की ज़रूरत सरकारों को भी है ताकि प्रिंट मीडिया को नकारात्मक परिणामों से बचाया जा सके इनके लिए दूरगामी रणनीतिक योजनाएं बनाने की ओर सरकार को कदम बढ़ाने होंगे।…साथियों बात अगर हम प्रिंट मीडिया के एक सकारात्मक पक्ष की करें तो सूत्रों के अनुसार, 2017 में अखबारों की विश्वसनीयता के पीछे सबसे बड़ा कारण है कि अखबारों ने टेक्नोलॉजी को अपना लिया।ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन (एबीसी) ने 10 साल (2006-2016) तक की गणना करके आंकड़े जारी किए। आंकड़ों के अनुसार प्रिंट मीडिया का सर्कुलेशन 2006 में 3.91 करोड़ प्रतियां था, जो 2016 में बढ़कर 6.28 करोड़ प्रतियां हो गया यानी 2.37 करोड़ प्रतियां बढ़ीं। प्रिंट मीडिया के सर्कुलेशन की दर 37 प्रतिशत थी और लगभग 5, हज़ार करोड़ का निवेश हुआ। अख़बारों में सबसे ज्यादा वृद्धि उत्तरी क्षेत्र में 7.83 प्रतिशत के साथ देखने को मिली वहीं सबसे कम वृद्धि पूर्वी क्षेत्रों में 2.63 प्रतिशत के साथ देखने को मिली।सभी भाषाओं के अखबारों में हिन्दी भाषा में सर्वाधिक वृद्धि हुई। 2011 की जनगणना के अनुसार पता चलता है कि भारत में साक्षरता दर बढ़ी है। 2001 की तुलना में, भारत में लोग शिक्षित हो रहे हैं, साथ ही साथ उनमें पढ़ने और जानने की उत्सुकता बढ़ रही है जिसके कारण भारत में प्रिंट मीडिया का प्रसार बढ़ रहा है। साथियों, आंकड़ों को देखने के बाद यह कोई भी नहीं कह सकता कि अखबारों का पतन हो रहा है। इलेक्ट्रॉनिक, वेब, सोशल,पैरालल आदि मीडिया उपलब्ध होने के बाद भी प्रिंट मीडिया के इतना पॉपुलर होने के पीछे कई कारण हैं जिनमें लोगों का शिक्षित होना सबसे बड़ा कारण है। जहां विकसित देशों में अखबारों के प्रति लोगों का रुझान घट रहा है वहीं भारत में इसके विपरीत प्रिंट मीडिया का प्रसार बढ़ रहा है। अतः अगर उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययनकर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे के प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया साहित्यकारों लेखकों के लिए ज्ञान की गहराई विश्लेषणात्मक क्षमता और लिखने की प्रेरक छौली का प्रदर्शन करने का एक आधारभूत मंच है और प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया लेख़कों और साहित्यकारों के लेख़न को प्रकाशित कर लेख़नी में जीवंतता प्रदान करते हैं।
-संकलनकर्ता, लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र