देश का कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति जब भी अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर जाता है तो चीन को मिर्ची जरूर लगती है और वह वहां पर अपना दावा दोहराने लगता है। ताजा मामला देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू की 9 अक्टूबर की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा का है। इस यात्रा पर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झााओ लिजियन ने कहा कि चीन भारत के उपराष्ट्रपति की हाल की अरुणाचल यात्रा का कड़ा विरोध करता है। लिजियन ने कहा था कि चीन अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं देता है। भारत का इस इलाके पर दावा अवैध है। इस इलाके को चीन में झांगनान कहा जाता है। प्रवक्ता झााओ लिजियन ने कहा कि कि सीमा मुद्दे पर चीन की स्थिति अडिग और स्पष्ट है। उनकी यह टिप्पणी पूर्वी लद्दाख में पिछले 17 माह से चले आ रहे भारत.-चीन के गतिरोध को दूर करने में विफल रहने के कुछ दिन बाद आयी है।
गौरतलब है कि 10 अक्टूबर को 13वें दौर की सैन्य वार्ता में भारतीय पक्ष की दी गई सकारात्मक सलाह पर चीनी पक्ष सहमत नहीं हुआ और न ही उम्मीद दिखाने वाला कोई प्रस्ताव दे सका था। चीन की इस आपत्ति को भारत ने सिरे से खारिज किया और कहा कि अरुणाचल प्रदेष भारत का अटूट और अभिन्न हिस्सा है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने 13 अक्टूबर को कहा कि भारतीय नेताओं द्वारा भारत के किसी राज्य की यात्रा का विरोध करने का कोई कारण नहीं है। उल्लेखनीय है कि अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन से भारत का विवाद काफी पुराना है। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा मानता है। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद के कारण 1962 की लड़ाई भी हो चुकी है लेकिन अभी भी कुछ इलाकों को लेकर विवाद जारी है।
भारत मैकमोहन रेखा को सीमा के रूप में मानता आ रहा है जबकि चीन इसका उल्लघंन करता है। विदित हो कि ब्रिटिश भारत और तिब्बत ने सन् 1914 में शिमला समझौते के तहत अन्तर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में मैकमोहन रेखा का निर्धारण किया था लेकिन चीन इसे नहीं मानता है। उसका पक्ष है कि हिमालय प्राकृतिक सीमा का निर्धारण नहीं करता क्योंकि अनेक नदियां यहां सीमाओं को काटते हुए निकलती हैं। भारत-चीन के बीच 4057 किलोमीटर लम्बी वास्तविक नियन्त्रण रेखा विवादित है। यह लद्दाख, कश्मीर, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरूणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है। दोनों देशों की सेनाओं का इस मामले में भिन्न मत है। वास्तविक नियन्त्रण रेखा तीन सेक्टरों में विभाजित है। पश्चिमी भाग मंे लद्दाख, मध्य भाग उत्तराखण्ड की सीमा से सटा हुआ और पूर्वी भाग सिक्किम व अरूणाचल प्रदेश से सटा हुआ है। सबसे कम विवादित मध्यवर्ती भाग है। चीन पश्चिमी सेक्टर में 1597 किलोमीटर, मध्य सेक्टर में 545 किलोमीटर, सिक्किम सेक्टर में 220 किलोमीटर तथा पूर्वी सेक्टर में 1126 किलोमीटर सीमा को विवादित मानता है।
सन् 1962 की लड़ाई के बाद से जम्मू कश्मीर की 38 हजार वर्ग किलोमीटर भारतीय भूमि चीन के कब्जे में है। इसके अलावा पाकिस्तान ने तथाकथित चीन-पाकिस्तान सीमा समझौते के तहत 5180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की भारतीय भूमि चीन को दे रखी है। चीन अरूणाचल प्रदेश में भी 90 हजार वर्ग किलोमीटर भारतीय भूमि पर अपना अवैध दावा करता है। ऐसे में चीन के साथ विवाद सुलझाना आसान नहीं है। चीन के साथ हाल ही में हुई 13वें दौर की सैन्य वार्ता में कोई नतीजा नहीं निकला। चीनी सेना भारतीय सेना द्वारा दिए गए सुझावों से सहमत नहीं हुई। असल में चीन जबरदस्ती आधिपत्य जमाए गए मोर्चों से पीछे हटने को तैयार नहीं है। इससे यह लगता है चीन सीमा विवाद को सुलझाने के मूड में नहीं है। चीन जिन निर्जन क्षेत्रों में आगे बढ़ आया है उनसे वह पीछे हटना नहीं चाहता है। तभी उसने भारतीय प्रस्तावों को अनुचित और अवास्तविक बताया। इस दौर की वार्ता में हॉट स्प्रिंग्स में तैनात चीनी सैनिकों को पीछे हटना था लेकिन उसका इरादा तनाव बढ़ाने और जमीन पर आधिपत्य बनाए रखने की है। इससे यह बात उभरकर सामने आती है कि चीन के साथ अभी तनातनी का दौर अभी जारी रहेगा।
कुल मिलाकर चीन सीमा विवाद को लेकर अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। इससे पहले अरुणाचल प्रदेश के तवांग में भारतीय इलाके में चीनी सैनिकों की घुसपैठ की कोशिश के दौरान दोनों सेनाओं के बीच नोकझोंक हुई लेकिन कमान्डरों ने बातचीत करके टकराव को टाल दिया था। इससे कुछ दिन पहले उत्तराखंड राज्य के बाराहोती सेक्टर से लगी सीमा में घुसपैठ की थी। इस इलाके में चीन के तकरीबन 100 सैनिकों ने एलएसी को पार करके पांच किलोमीटर अन्दर तक घुस आए और तीन घण्टे वहां रहने के बाद वापस चले गए। ये सैनिक घोड़ों पर सवार होकर तुन जुन ला पास से बाराहोती इलाके में आये और लौटने से पहले एक पुल तथा कुछ अन्य आधारभूत ढांचे को भी तोड़ गए। यह घटना 30 अगस्त की बताई जा रही है जो बाद में सामने आई है। विदित हो कि बाराहोती वही इलाका है जहां चीन ने 1962 की लड़ाई के पहले भी घुसपैठ की थी।
उल्लेखनीय है कि बाराहोती में एक ऐसा चारागाह है जिसे लेकर दोनों पक्षों के बीच विवाद बना हुआ है। यह चारागाह 60 वर्ग किलोमीटर के इलाके में फैला हुआ है जिसमें दोनों देषों के चरवाहे समय-समय पर आते जाते रहते हैं। फिलहाल इस इलाके में पेट्रोलिंग नहीं की जाती है। वैसे स्थानीय प्रशासन की टीमें समय-समय पर इस क्षेत्र का मुआयना करती रहती हैं। इस इलाके में पिछले कुछ दशकों से दोनों देशों के बीच यह नीति चली आ रही है कि पेट्रोलिंग की कोई टीम वहां नही जाएगी। दोनों देशों के बीच यहां पर सीमाओं के रेखांकन को लेकर अस्पष्टता है जिसके चलते इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं।
बाराहोती की इस घटना से कुछ दिन पहले ये खबरें आयी थीं कि चीन ने लद्दाख सीमा के नजदीक अपनी सैन्य सक्रियता बढ़ा दी है। खुफिया सूत्रों की रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने पूर्वी लद्दाख के सामने वास्तविक नियन्त्रण रेखा के पास तकरीबन आठ सामरिक लोकेशनों पर नए अस्थायी सैन्य शिविर तैयार कर दिए हैं। इन लोकेशनों पर 80 से 84 की संख्या में शिविर बनाए गये हैं। गत वर्ष अपै्रल-मई माह में भारत-चीन के बीच हुए सैन्य टकराव के बाद चीन ने अनेक सैन्य शिविरों का निर्माण किया है। ये शिविर पुराने शिविरों के अलावा तैयार किए गए हैं। चीन की सेना पीएलए ने उत्तर में काराकोरम के नजदीक वहाब जिल्गा से लेकर पीयू, हॉट स्पिं्रग्स, चांग लॉ, ताषिगॉंन्ग, मांजा और चुरुप तक अपने सैनिकों के लिए अनेक शेल्टर्स बना लिए हैं। इन गतिविधियों से स्पष्ट होता है कि सीमा के नजदीक से अपनी फौज हटाने का उसका कोई इरादा नहीं है।
(लेखक – डॉ0 लक्ष्मी शंकर यादव सैन्य विज्ञान विषय के प्राध्यापक रहें है)