चीन की संसद ने पिछले माह 23 अक्टूबर को एक नए लैंड बॉर्डर्स लॉ को मंजूरी प्रदान कर दी है। यह कानून आने वाले नए साल की पहली तारीख से लागू हो जाएगा। लैंड बॉर्डर्स लॉ यह कहता है कि वह अपनी सीमा का अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं करेगा। दरअसल चीन 1949 से ही यह कहता आया है कि भारत और चीन के बीच सीमा की पहचान कभी की ही नहीं गई। इस पर भारत का कहना यही रहा है कि कुछ इलाकों के लिए भले ही यह बात सही हो लेकिन परी सीमा के लिए ऐसा नहीं है। दोनों देशों के बीच हमेषा एक ऐतिहासिक आधार की पारंपरिक सीमा रही है। चीन की नेशनल कांग्रेस की स्थायी समिति के द्वारा दी गई इस कानून की मंजूरी के बाद भारत से उसका विवाद बढ़ सकता है। इस कानून की रिपोर्ट में यह कहा गया है कि सीमा सुरक्षा को मजबूत करने, आर्थिक एवं सामाजिक विकास को मदद देने, सीमावर्ती क्षेत्रों को खोलने, ऐसे क्षेत्रों में जनसेवा और बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने, उसे बढ़ावा देने और वहां के लोगों के जीवन एवं कार्य में मदद देने का कार्य करेगा।
इस कानून के अनुसार चीन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखण्डता की ऐसी पवित्रता होगी जिसमें किसी तरह का फेरबदल नहीं हो सकेगा अर्थात जिस जमीन पर चीन का आधिपत्य है वह जमीन चीन की मानी जाएगी। यदि इससे पीछे हटा जाता है तो यह माना जाएगा कि लैंड बॉर्डर्स लॉ का उल्लंघन किया जा रहा है। अब यदि ऐसा होता है तो पहले चले आ रहे भारत-चीन सीमा विवाद हल नहीं हो सकेंगे। जब चीन भारत की सीमा में बागे बढ़ेगा तो भारत इसका विरोध करेगा और भारत के विरोध पर जब चीन वापस लौटेगा तो उसे या उसकी सेना को ऐसा लगेगा कि वे अपने लैंड बॉर्डर्स लॉ का उल्लंघन कर रहे हैं। यह स्थिति दोनों देषों के बीच विवाद को और अधिक बढ़ा देगी। लैंड बॉर्डर्स लॉ के दो पहलू निकल कर सामने आ रहे हैं। जिसमें पहला यह है कि चीन इसके सहारे अपने पड़ोसी देषों के साथ चल रहे सीमा विवादो को आसानी से निपटा सकेगा और दूसरे जो जमीन उसके कब्जे में है उसे चीन खाली नहीं करेगा। इसके साथ ही उस पर आधिपत्य जमाए रखने के लिए सैन्य ताकत को मजबूती प्रदान करेगा।
चीन के नए कानून का उद्देश्य किसी से छिपा नहीं है। गौरतलब बात यह है कि चीन ने यह चाल ऐसे समय पर चली है जब भारत के साथ सीमा पर विवाद चल रहा है और इसी कारण तकरीबन 19 माह से विवाद चल रहा हैं तथा टकराव की स्थिति बार-बार उत्पन्न हो रही है। चीन ने जिस तरह से अक्साई चिन को अपने आधिपत्य में लिया, अब उसी तरह से पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी पर अपना कब्जा जमाना चाहता है। चीन की सीमा 14 देषों से लगती है और वह तकरीबन 12 देषों की जमीनों पर कब्जा करना चाहता है। वर्तमान में वह 23 देषों की जमीन और सामुद्रिक सीमाओं पर अपना दावा जताता है। उसका कई देशों की नदियों का विवाद चल रहा है। चीन अब तक दूसरे देशों की लगभग 41 लाख वर्ग किलोमीटर जमीन पर अपना आधिपत्य जमा चुका है। आधिपत्य में ली गई यह जमीन चीन की कुल जमीन का तकरीबन 43 फीसदी है। इस तरह षुरू से अब तक चीन अपनी जमीन को लगभग दो गुना कर चुका है।
चीन यह भी दावा कर रहा है कि उसने अब तक अपनी सीमा से लगने वाले 12 देशों से अपने सीमा विवाद सुलझा लिए हैं लेकिन भारत व भूटान से सीमा विवादों का समाधान निकालना बाकी है। यहां यह जानना उचित होगा कि भूटान की तुलना में भारत-चीन सीमा विवाद सुलझना अधिक पेचीदा एवं गम्भीर मसला है। इस कानून से चीन को उन इलाकों में अधिक फायदा मिलेगा जहां उसने गलत तरीके से सीमाई इलाकों में निर्माण कर लिए हैं। ऐसे में अरुणाचल प्रदेष व सिक्किम से लगी सीमाओं पर चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियां चिन्ता पैदा करने वाली हैं। पिछले साल जून माह में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर हमला चीन के सैनिकों ने ही किया था। ये घटनाएं यही स्पश्ट करती हैं कि चीनी कानून का उद्देश्य भारत से लगती सीमा पर किए गए निर्माण पर अपनी वैधता प्रदान करना ही है।
चीन सीमाई इलाकों में 2016 से ही निर्माण कार्यों में लगा हुआ है और बड़ी संख्या में गावों को बसा चुका है। इन क्षेत्रों में सीमा के नजदीक तक सड़कें भी बनाई जा चुकी हैं। इन सड़कों की संख्या 100 से ज्यादा हो चुकी है। इसके अलावा उसका रेल नेटवर्क भारतीय सीमा तक आ चुका है। ये सभी रेल, गांव व सड़कें युद्ध के समय सामरिक बढ़त प्रदान करेंगे। चीन भारत ही नहीं बल्कि साइबेरिया और म्यांमार के सीमाई इलाकों में अपनी गतिविधियों को बढ़ाए हुए है। अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जे के बाद चीन उधर भी अपनी गतिविधियां बढ़ा सकता है।
ताइवान पर चीन की पूरी नजर है लेकिन वह डटकर उसके सामने मोर्चा लिए खड़ा रहता है और अमेरिका उसकी मदद को तैयार रहता है। इसलिए चीन हमला नहीं कर पा रहा है। पूर्वी चीन सागर के आठ द्वीपों पर चीन की नजर है। जिस कारण जापान से तनाव जारी है। रूस के साथ 52000 किलोमीटर क्षेत्र पर चीन का विवाद है। दक्षिण चीन सागर में जमीन हड़पने की नियति के कारण चीन का इंडोनेषिया, मलेषिया, फिलीपींस, वियतनाम, सिंगापुर, ब्रुनेई व ताइवान आदि देषों से तनाव चल रहा है। दक्षिण चीन सागर के तकरीबन 90 प्रतिषत क्षेत्र पर चीन अपना दावा जता रहा है। यहो पर चीन अपने कई सैन्य अड्डे भी बना चुका है।
चीन के इस कानून का अपने सीमा विवाद पर संभावित असर को देखते हुए भारत ने इसे चिंताजनक करार देते हुए इसे मनमाना रवैया बताया है। विदेष मंत्रालय के प्रवक्ता की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि वर्श 1963 में चीन व पाकिस्तान के बीच किया गया समझौता भी पूरी तरह से अवैध और गैर कानूनी है। उल्लेखनीय है कि इसी समझौते के तहत पाकिस्तान ने गैर कानूनी तरीके से भारतीय राज्य जम्मू व कश्मीर के एक बड़े हिस्से को चीन के हवाले कर दिया था। बदले में चीन ने भी उसे कुछ हिस्सा दिया था। कुल मिलाकर चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद के कारण एलएसी पर हुए घटनाक्रमों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन चैन को गंभीर रुप से प्रभावित किया है जिसे अब दोनों देषों को दूर करना होगा।
लेखक -डॉ0 लक्ष्मी शंकर यादव सैन्य विज्ञान विषय के प्राध्यापक रहें