हमारी हिंदू सभ्यता और संस्कृति पौराणिक स्थलों में बखूबी दिखाई देती है। वास्तुकला, शिल्प कला और दर्शन इन सब की भव्यता और जानकारी हमें यही से मिलती है। वास्तव में जो भी पौराणिक मंदिर या पर्यटन स्थलों में जो चित्र या कलाकृतियां होतीं हैं वो उस समय के जीवन काल और दिनचर्या का आभास देती है। मेरी एक और यात्रा का संस्मरण औरंगाबाद से शुरू होता है।
घृष्णेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के छोटे से गांव वेरूल में स्थित है। वैसे यह ज्योतिर्लिंग बाबा का अंतिम ज्योतिर्लिंग माना जाता है लेकिन जो भी दर्शन पहले हो जाए वहीं बाबा के आगे सर झुक जाता है। बिल्कुल बनावटीपन दूर शोर शराबे से अलग एक शांत वातावरण में बाबा के दर्शन किए। लाल पत्थरों से बना हुआ यह मंदिर वाकई बेहद खूबसूरत है उसके दरवाजे पर बैठकर मन को बहुत शांति मिलती है।
इस ज्योतिर्लिंग को राजा कृष्णदेव राय ने दसवीं शताब्दी ई. में बनाया था। चौबीस खंभों से बना यह मंदिर लाल पत्थर और प्लास्टर से बना हुआ है। बाद में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने 18वीं शताब्दी ई. में समूचे मंदिर और यहां से करीब शिवालय तीर्थ कुंड और उसके परिसर का फिर से नव निर्माण करवाया। फरवरी और मार्च के बीच में महाशिवरात्रि को यहां बहुत बड़ा मेला लगता है। कहीं कहीं इस मंदिर को घुष्मेश्वर, कुंकुंमेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर एलोरा की गुफाओं के करीब है। ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। दक्षिण दिशा में देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। वह बहुत ही बड़ा शिव भक्त था और प्रतिदिन शिव भगवान की विधि-विधान से पूजा किया करता था। वे दोनों अपना जीवन शांतिपूर्वक व्यतीत कर रहे थे लेकिन उन्हें एक बात का दुःख था कि उनकी कोई संतान नहीं थी। उनके पड़ोसी उन पर व्यंग करते थे। एक बार सुदेहा ने परेशान हो कर सुधर्मा से कहा कि इस पृथ्वी का नियम है कि वंश आगे संतान से ही चलता है, लेकिन हमारी कोई भी संतान नहीं है। अपने वंश को नष्ट होने से बचाइए और मेरे अनुसार इसका एक ही उपाय है कि आप मेरी बहन घुश्मा से विवाह कर लें। ऐसा सुनकर सुधर्मा ने कहा कि इस विवाह से सबसे ज्यादा दुःख तुम्हे ही होगा। लेकिन ज़िद्द करके सुदेहा ने अपनी बहन का विवाह अपने पति सुधर्मा से करा दिया।
अपनी बड़ी बहन सुदेहा के कहे अनुसार घुश्मा प्रतिदिन 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर विधि-विधान से पूजा किया करती थी और उन शिवलिंगों का विसर्जन तालाब में किया करती थीं। तब शिव जी की कृपा से घुश्मा को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। घुश्मा का सम्मान बढ़ता गया और सुदेहा के मन में अपनी छोटी बहन घुश्मा के लिए ईर्ष्या उत्पन्न होने लगी। वह पुत्र बड़ा हुआ और उसके विवाह की बारी आ गयी। उसका विवाह बड़ी धूम–धाम के साथ सपन्न हुआ। पुत्रवधू आने से सुदेहा की ईष्या और भी बड़ गयी और इस कारण से सुदेहा ने उस सोते हुए पुत्र की चाकू से हत्या कर दी और उसके अंगों को काटकर उसी तालाब में डाल दिया जहाँ घुश्मा पार्थिव लिंग का विसर्जन किया करती थी।
अगली सुबह घुश्मा और सुधर्मा पूजा में लीन थे, उनकी बहू ने जब देखा कि कमरे में सब जगह रक्त है तो वह घबरा कर चिल्लाई और रोने लगी। इस बात की खबर उसने घुश्मा और सुधर्मा को बताई। लेकिन वे दोनों पूजा में लीन थे। तब वहां उपस्थित सुदेहा दिखावे के कारण से जोर–जोर से रोने लगी। पूजा पूर्ण होने पर घुश्मा शिवलिंग का विसर्जन करने उसी तालाब के पास गयी। तब उसने देखा कि उसका पुत्र वहां खड़ा हुआ है, वह प्रसन्न हुई और भगवान की लीला को पहचान गयी। तब वहां एक ज्योति प्रकट हुई और उस ज्योति के रूप में साक्षात शिव भगवान प्रकट हुए और उन्होंने सुदेहा का अपराध बताया। शिव भगवान सुदेहा को मृत्यु दंड देने के लिए जाने लगे तब घुश्मा ने अपनी बहन को क्षमा करने के लिए भगवान से अनुरोध किया। तब शिव भगवान जी अति प्रसन्न हुए और वर मांगने के लिए कहा। तब घुश्मा ने प्रसन्न मन से कहा कि हे प्रभु ! अगर आप सच में मेरी भक्ति से प्रसन्न हुए हैं तो अपने भक्तों का कल्याण करने के लिए सदा के लिए यहीं विराजमान हो जाइए और उस लिंग की प्रसिद्धि मेरे नाम घुश्मेश्वर से ही सब जगह फैले। तब वहां शिव जी घुश्मेश्वर नाम से सदा के लिए स्थापित हो गए।
बाबा के दर्शन के बाद हम लोग एलोरा की गुफाएं देखने गए। करीब 34 गुफाओं का बना यह स्थान चट्टानों को काटकर बनाया गया है। इन्हें देखकर यह कल्पना करना बहुत मुश्किल हो जाता है कि उस वक्त इन चट्टानों को काटकर सीमित साधनों द्वारा ये गुफाएं किस तरह से बनाई गई होंगी। घोड़े की नाल के आकार की यह गुफा जैन भिक्षुओं द्वारा बनाई गई है और यह हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म का पवित्र स्थल है। यहां भगवान बुद्ध के जन्म से लेकर निर्वाण तक की कहानियां कलाकृति द्वारा दर्शाई गई है। एलोरा की गुफाओं में शिवजी को अनेक रूपों में दिखाया गया है पशुपति, पशुओं के राजा नटराज, ब्रह्मांड में नृत्य करने वाला, दान देने वाला, श्रेष्ठ योगी शिव जी को मुख्यता लिंग रूप में उतारा गया है जोकि प्रजनन का द्योतक है। एलोरा बुध गुफाएँ , बुद्धीसत्व और शक्ति दर्शन के अनेक देवतागणों के चित्र दर्शाती है। शिल्प कला के बेजोड़ नमूना के रूप में एलोरा का प्रथम स्थान है हर कलाकृति जीवंत सी लगती है। हालांकि अब बहुत सी गुफाएं और मूर्तियाँ जीर्ण शीर्ण अवस्था में है, सिर्फ दो गुफाओं को छोड़कर बाकी गुफाओं के स्थिति दयनीय है ।
इसके बाद हम बीवी का मकबरा देखने गए। यह लगभग ताजमहल की नकल ही है। यह मेरे लिए आश्चर्य था कि औरंगजेब ने अपनी बीवी के लिए मकबरा बनवाया होगा लेकिन वहां पढ़ने के बाद मालूम पड़ा कि औरंगजेब के बेटे शहजादा आजम शाह ने अपनी मां की याद में इसे बनवाया था। इस स्मारक की खास बात यह है कि इसके मुख्य दरवाजे पर लगी हुई पीतल की चादर पर एक तोता दर्शाया गया है जो अनार का दाना खाता हुआ नजर आता है मुस्लिम इमारतों में प्रायः ऐसा देखने को नहीं मिलता। फिर दौलताबाद का किला अन्य किलों की तरह ही है। इसका निर्माण एक पहाड़ पर हुआ है जिसके चारों ओर खाई है। इस किले की खास बात यह है कि अंदर बारादरी में जाने पर बारह कमान वाली इमारत पत्थर और चूने से बनाई गई है और इसकी भव्यता इसे देखकर ही लगा सकते हैं। फिर एक मोतीटाका है जिसमें सभी ऋतु का पानी जमा होता है।
घुमक्कड़ी हो रही हो और शापिंग ना हो तो घूमने का मजा नहीं आता। महाराष्ट्र की पैठणी बहुत प्रसिद्ध है और नवव्आरी साड़ी भी। खाने के मामले में वड़ापाव, मीसलपाव, भजियापाव ये स्ट्रीट फूड ज्यादा चलते हैं। एक सुंदर शहर और सुखद यात्रा का अनुभव रहा।
प्रियंका वरमा माहेश्वरी, गुजरात