सबको धर्म के प्रति खुद के विचार श्रेष्ठ लगते है। चाहे हिन्दु पंडित, बाबा या स्वामी हो, मदरेसा का मौलवी हो या नेता यह सब धर्म के ठेकेदार पाखंड को धर्म के रंग में रंगकर अनपढ़ गंवार लोगों को कट्टरवाद का चोला पहना देते है और कहते है लड़ो, देखो तुम्हारे धर्म पर ऊँगली उठा रहे है और इस वाक्य को ब्रह्म वाक्य समझकर हाथ में धर्म की लाठी लेकर देश को जलाने अक्कल के अंधे लोग निकल पड़ते है। धर्म हर इंसान का निजी मामला है जो आज सरेआम भटक रहा है। आस्था पर टीका धर्म आज हरा-केसरिया दो रंगों में बंटकर बदबूदार और खून से लथपथ होता जा रहा है। तिरंगे में सजे यह दो रंग एकता का प्रतिक है जिसे हमने धर्म की शूली पर चढ़ा रखा है। इस दो रंगों पर सियासत चल रही है।
पहले सियासत चाणक्य नीति पर चलती थी, फिर छल कपट पर चलने लगी और अब धर्म के नाम पर लोगों को भड़काकर चलाने लगे है। दरअसल लाउड स्पिकर की लड़ाई धर्म को लेकर नहीं बल्कि सत्ता को बचाए रखने की साज़िश लग रही है। धर्म क्या है? चीख-चीख कर चिल्लाते हुए अज़ान पढ़ना या ज़ोरों शोरों से हनुमान चालीसा पढ़ना? नहीं… धर्म शांति सद्भाव और भाईचारा सिखाता है। अज़ान बिना लाउडस्पीकर के भी कर सकते हैं, ताकि दूसरे लोग परेशान न हों।दूसरों की दिनचर्या प्रभावित न हो। जरूरी नहीं लाउडस्पीकर लगाकर ही बंदगी की जाए। ईश्वर हमारे मन में है शांत मन से की हुई बंदगी भी कुबूल होती है।आजकल लाउडस्पीकर का मुद्दा गरमाया हुआ है। इसे लेकर पूरे देश में हल्ला मचा हुआ है जिसकी हवा महाराष्ट्र से चली है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना चीफ राज ठाकरे ने लाडस्पीकर को लेकर कड़ा रुख अपना लिया है। राज ठाकरे ने तीन मई से पहले मस्जिदों के ऊपर से लाउडस्पीकर हटाने की मांग की है। साथ ही शिवसेना की अगुआई वाली महा विकास आघाड़ी सरकार को चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो मनसे कार्यकर्ता मस्जिदों के बाहर और ऊंचे स्वर में हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे। धीरे-धीरे दूसरे राज्यों में भी यह हवा फैल रही है। यूपी, गोवा, कर्नाटक, बिहार सहित कई राज्यों में हिंदू संगठनों ने लाउडस्पीकर का इस्तेमाल बंद करने के लिए कहा है। उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने अलीगढ़ के 21 चौराहों पर हनुमान चालीसा बजाने को कहा है। ये लड़ाई नहीं तो और क्या है? अरे धर्म के लिए नहीं इंसानियत के लिए लड़ो, देश को एक बनाने के लिए लड़ो इंसान धर्म से नहीं कर्म से महान बनता है।
दर असल यहाँ से शुरू हुई परंपरा?
लाउडस्पीकरों के वजूद में आने से पहले अजान देने वाले मुअज्जिन मीनारों और ऊंची दीवारों पर चढ़कर ज़ोर-ज़ोर से आवाज लगाकर नमाजियों को नमाज के लिए बुलाते थे। मस्जिदों में मुअज्जिनों को इसी काम के लिए रखा जाता है कि वो नमाज के वक्त नमाजियों को बुलाएं। बाद में इसी काम को लाउडस्पीकरों के जरिये किया जाने लगा। और आगे जाकर अज़ान और प्रवचन भी लाउडस्पीकर द्वारा होने लगे।
एक दूसरे के त्योहारों पर, परंपरा पर ऊँगली उठाना और धार्मिक जुलूसों के उपर पत्थरबाज़ी और आगजनी फैलाना धर्म की रक्षा करना होता है क्या? गाते तो है हम “मज़हब नहीं सीखाता आपस में बैर रखना” इस कथन का अमल क्यूँ नहीं होता? धर्म को लेकर बिना जानें समझे विद्रोह की मशाल लेकर निकल पड़ने वाले धार्मिक कैसे हुए। इनमें से कितने लोगों ने गीता और कुरान को पढ़ा है, समझा है और जीवन में उतारा है? हर धर्म का सम्मान करते हर धर्म की रक्षा करने वाला सच्चा धार्मिक होता है। अगर देश को बचाना है, उपर उठाना है तो धर्म को समझो गीता और कुरान जो कह रहा है उस राह पर चलोगे तभी एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर पाओगे।
भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर