मंद मंद पवन बहे पुष्पन सुगंध लेत
मन उलसित भयो आज आओ री, आओ री
बसंत चपल है, वसंत चंचल है, बसंत सुन्दर है, बसंत मादक है, बसंत कामनाओं की लड़ी है, बसंत तपस्वियों के संयम की घड़ी है, बसंत )तुओं में न्यारा है, बसंत अग-जग का प्यारा है।
इस ऋतु में सरसों फूलकर पूरी धरती को पीले रंग से रंग देती है। हमारे यहाँ वसंत का विशिष्ट रंग पीला होता है। पीला रंग आध्यात्म का भी प्रतीक है। कई पश्चिमी देशों में बसंत का विशिष्ट रंग हरा होता है। हरा का मतलब सर्वत्र हरियाली, प्रकृति का रंग, पर हमारे यहाँ इस मनोहारी ऋतु को आध्यात्म के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। हम भारतीय इसे सरस्वती की अभ्यर्थना से प्रारंभ करके होली के महा-उत्सव पर समाप्त करते हैं।
शीत या शिशिर की ठिठुरन भले ही हाड़ कंपाती हो किन्तु इन बर्फीली ऋतुओं के बिना भी तो प्रकृति का आँगन सूना-सूना होता है और फिर इसके बाद गाते गुनगुनाते रस के पुखराजी छींटे उड़ाते बसंत के आगमन से मौसम के आँगन का सुख दूना-दूना होता है। वसंत की रंगत ही ऐसी मनोहारी है कि कठोर से कठोर तपस्वी का ह्रदय भी पुरवैया की झकोर से बेबस हो आत्मनियंत्रण खो कर बेकाबू हो जाए। ऋषि विश्वामित्र के तपोभंग का वृतांत इसका सबसे प्रबल प्रमाण है।
लेख/विचार
अनुशासन की आड़ में कहीं शोषण तो नहीं
अगर हम वाकई में राष्ट्र हित के विषय मे सोचते हैं तो हमें कुछ खास लोगों द्वारा उनके स्वार्थ पूर्ति के उद्देश्य से बनाए गए स्वघोषित आदर्शों और कुछ भारी भरकम शब्दों के साये से बाहर निकल कर स्वतंत्र रूप से सही और गलत के बीच के अंतर को समझना होगा।
भ्रष्टाचार जिसकी जड़ें इस देश को भीतर से खोखला कर रही हैं उससे यह देश कैसे लड़ेगा ?
यह बात सही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काफी अरसे बाद इस देश के बच्चे बूढ़े जवान तक में एक उम्मीद जगाई है। इस देश का आम आदमी भ्रष्टाचार और सिस्टम के आगे हार कर उसे अपनी नियति स्वीकार करने के लिए मजबूर हो चुका था,उसे ऐसी कोई जगह नहीं दिखती थी जहाँ वह न्याय की अपेक्षा भी कर सके। लेकिन आज वह अन्याय के विरुद्ध आवाज उठा रहा है।
सोशल मीडिया नाम की जो ताकत उसके हाथ आई है उसका उपयोग वह सफलतापूर्वक अपनी आवाज प्रधानमंत्री तक ही नहीं, पूरे देश तक पहुँचाने के लिए कर रहा है। देखा जाए तो देश में इस समय यह एक आदर्श स्थिति चल रही है जिसमें एक तरफ प्रधानमंत्री अपनी मन की बात देशवासियों तक पहुंचा रहे हैं तो दूसरी ओर देशवासियों के पास भी इस तरह के साधन हैं कि वे अपनी मन की बात न सिर्फ प्रधानमंत्री बल्कि पूरे देश तक पहुंचा पा रहे हैं।
नेता जी ने शायद ऐसा अन्त तो नहीं सोचा होगा
देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश के सबसे शक्तिशाली राजनैतिक परिवार में कुछ समय से चल रहा राजनैतिक ड्रामा लगभग अपने क्लाइमैक्स पर पहुंच ही गया; कुछ कुछ फेरबदल के साथ। दरअसल यू पी के होने वाले चुनावों और मुलायम सिंह की छवि को देखते हुए केवल उनके राजनैतिक विरोधी ही नहीं बल्कि लगभग हर किसी को उनकी यह पारिवारिक उथल पुथल महज एक ड्रामा ही दिखाई दे रहा था ए वो क्या कहते हैं न महज एक पोलीटिकल स्टंट!
आखिर वो पटकथा ही क्या जिसके केंद्र में कोई रोमांच न हो ! सबकुछ ठीक ही चल रहा था। एक पात्र था अखिलेश ए तो दूसरा शिवपाल और जिस को वो दोनों ही पाना चाहते थे ए वह थी सत्ता की शक्ति। पटकथा भी बेहद सधी हुई ए एक को नायक बनाने के लिए घटनाक्रम लिखे गए तो दूसरा खुदबखुद ही दर्शकों की नजरों में खलनायक बनता गया। 1992 में समाजवादी पार्टी के गठन से लेकर आज तक पार्टी पर नेताजी का पूरा कंट्रोल था। भले ही अपने भाईयों के साथ उन्होंने इसे सींचा था लेकिन श्नेताजी श् तो एक ही थे जिनके बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता था। यह उन्हीं की पटकथा का कमाल था कि आज अखिलेश को पार्टी से निकाले जाने के बाद पार्टी के 200 से भी अधिक लगभग 90ः विधायक मुलायम शिवपाल नहीं अखिलेश के साथ हैं ! 2012 के चुनावी दंगल में उन्होंने अखिलेश को पहली बार जनता के सामने रखा। मुलायम की कूटनीति और अखिलेश की मेहनत से समाजवादी पार्टी की साइकिल ने वो स्पीड पकड़ी कि सबको पछाड़ती हुई आगे निकल गई । शिवपाल की महत्वाकांक्षाओं और अपेक्षाओं के विपरीत अखिलेश को न सिर्फ सी एम की कुर्सी मिली बल्कि जनता को उनका युवराज मिल गया । उनके पूरे कार्यकाल में जनता को यही संदेश गया कि वे एक ऐसे नई पीढ़ी के युवा नेता हैं जो एक नई सोच और जोश के रथ पर यूपी को विकास की राह पर आगे ले जाने के लिए प्रयासरत हैं। वे ईमानदारी और मेहनत से प्रदेश के बुनियादी ढांचे में सुधार से लाकर आम आदमी के जीवन स्तर को सुधारने के लिए प्रतिबद्ध हैं और अपनी इस छवि निर्माण में वे काफी हद तक सफल भी हुए हैं। जिस रिकॉर्ड समय में आगरा लखनऊ एकस्प्रेस हाईवे बनकर तैयार हुआ है वह यूपी की नौकरशाही के इतिहास को देखते हुए अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। आज लखनऊ मेट्रो केवल अखिलेश का ड्रीम प्रोजेक्ट नहीं रह गया है बल्कि उसने यूपी के हर आमोखास की आँखों में भविष्य के सपने और दिल को उम्मीदों की रोशनी से भर दिया है। अखिलेश के सम्पूर्ण कार्यकाल में मुलायम सिंह की सबसे बड़ी उपलब्धि अखिलेश की यही छवि निर्माण रही।
दक्षिण चीन सागर में तनाव-पंकज के. सिंह
भारत ने हिंद महासागर क्षेत्र में सक्रियता बढ़ाते हुए सेशेल्स के साथ चार समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। सेशेल्स को भारत ने अपना विश्वसनीय मित्र और रणनीति साझीदार बताया है। भारतीय प्रधानमंत्री के अनुसार, हिंद महासागर के द्विपक्षीय देशों के साथ मजबूत और स्थाई संबंध भारत की सुरक्षा एवं आर्थिक प्रगति के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। सेशेल्स ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता का भी समर्थन किया है। भारत द्वारा सेशेल्स के नागरिकों के लिए तीन माह का मुफ्त वीजा और वीजा आॅन एराइवल की घोषणा की गई है। भारत और सेशेल्स के मध्य जल सर्वेक्षण, अक्षय ऊर्जा तथा बुनियादी ढांचे के विकास की दिशा में परस्पर सहयोग को सुनिश्चित किया गया है। दोनों देशों के मध्य नैविगेशन चार्ट और इलेक्ट्रॉनिक नैविगेशन चार्ट का निर्माण किया जाएगा। दोनों देश प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग करते हुए अपनी अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करने के लिए ब्लू इकॉनमी की दिशा में पारस्परिक सहयोग को और गति देंगे। इस संदर्भ में दोनों देश संयुक्त कार्यसमूह गठित करने पर भी सहमत हो गए हैं। भारत और आसियान देश दक्षिण चीन सागर में चीन के निरंतर बढ़ते प्रभुत्व के मद्देनजर सशंकित दिखाई पड़ रहे हैं। भारत और आसियान देश समुद्र और साइबर स्पेस समेत अनेक क्षेत्रों में नवीन सुरक्षा ढांचा विकसित करने पर चर्चा करते रहे हैं। भारत हमेशा ही इस बात के लिए प्रयत्नशील रहा है कि उच्च सागर में नौ चालन तथा परिवहन की स्वतंत्रता होनी चाहिए और दक्षिण चीन सागर से जुड़े किसी भी प्रकार के सीमा विवाद का हल पारस्परिक वार्ताओं द्वारा ही निकाला जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि दक्षिण चीन सागर में चीन, वियतनाम और फिलिपिंस समेत अन्य तटवर्ती देशों के मध्य अनेक द्विपीय और सामुद्रिक सीमा संबंधी विवाद निरंतर सामने आते रहते हैं और इनकी वजह से प्रायः तनावपूर्ण स्थितियां बनी रहती हैं। हिंद महासागर के द्वीपीय देशों की यात्रा के दौरान कूटनीतिक कारणों की वजह से भारतीय प्रधानमंत्री ने मालदीव को अपने दौरे में शामिल नहीं किया था। मालदीव ने इस संदर्भ में आधिकारिक रूप से दुख और निराशा व्यक्त की है। उल्लेखनीय है कि मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद को 13 वर्ष की सजा सुनाई गई थी, जिसके बाद भारत समेत विश्व के अनेक देशों ने इस पर चिंता व्यक्त की थी। मालदीव का इस संदर्भ में यही कहना है कि यह सजा एक विधिक प्रक्रिया का पालन करते हुए सुनाई गई है और यह मालदीव का एक नितांत घरेलू मामला है। मालदीव के विदेश मंत्रालय में उपविदेश मंत्री फातिमा इनाया ने भारत की चिंताओं के संदर्भ में कहा कि, ‘‘हम इस संदर्भ में भारत की चिंता समझ सकते हैं। यह स्वाभाविक ही है कि आप अपने पड़ोस में होने वाली घटनाओं के संदर्भ में चिंतित हों।’’
इश्क और जंग
इश्क और जंग (चुनावी जंग समाहित) में सब जायज है, शायद यह सोच भाजपा ने बसपा पर शिकंजा कस डाला है। जानते हुए भी कि बसपा ही नहीं, हर पार्टी के मुकाबले भाजपा के पास ज्यादा बेनामी चंदा है। भाजपा की यह चाल पोच है। बसपा ने पार्टी की नकदी से जमीनें नहीं खरीदी, न कमीशन देकर उस राशि को चोर बाजार में बदलवाया। बल्कि उसे अपने खाते में जमा ही करवाया। बसपा भ्रष्ट है, यह जाहिर जानकारी है। लेकिन चंदे के मामले में क्या भाजपा खुद धुली है? भाजपा और कांग्रेस तो इस सिलसिले में सबसे ज्यादा चंदा जमा करने वाले दल घोषित हो चुके हैं। क्या इन दलों ने पुराने नोटों में स्वीकार पैसा अपने खातों में जमा नहीं करवाया है? क्या बीस हजार तक के चंदे में नाम गुप्त रखने की ’नीति’ का फायदा और दलों ने नहीं उठाया है? विचित्र बात यह है कि काले या बेईमानी के धन के दाखिलेे की छूट खुद सरकार ने इस पर उठे तमाम हल्ले के बावजूद छोड़ दी है – काले धन के नाम पर छेड़ी गई अपनी ऐतिहासिक मुहिम के साथ-साथ। राजनीतिक दल न आरटीआइ के तहत आएँगे, न हजारों करोड़ के चंदों का स्रोत बताएँगे। पर मौका पड़ने पर दुश्मन दल पर सरकारी छापे पड़ते रहेंगे और उनके बहाने चुनावी दुष्प्रचार का अभियान भी चलेगा। बसपा के साथ भाजपा ने यही किया है। भले इसका फायदा मिलने के आसार नगण्य हों।
लेखिका मनीषा शुक्ला
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हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ता संघर्ष-पंकज के. सिंह
सेशेल्स हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित एक छोटा सा द्वीप है। भारत के लिए सेशेल्स का महत्व इसलिए भी बहुत अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि वहां चीन अपना दखल निरंतर बढ़ाता जा रहा है। वर्तमान समय में चीन द्वारा सेशेल्स में डेढ़ दर्जन के लगभग बड़ी सरकारी वित्तीय परियोजनाएं संचालित की जा रही हैं। चीन ने सेशेल्स को आठ करोड़ अमेरिकी डॉलर की सहायता प्रदान की है। पिछले कुछ वर्षों से चीनी अधिकारी और राजनयिक निरंतर सेशेल्स की यात्रा करते रहे हैं और उन्होंने सेशेल्स को हरसंभव चीनी सहयोग का आश्वासन दिया है। चीन की ओर से सेशेल्स को सैन्य सहयोग भी दिया जा रहा है और उसे अनेक रक्षा उपकरण भी चीन द्वारा दिए गए हैं। सेशेल्स 115 छोटे-छोटे द्वीपों से मिलकर बना है और इसकी आबादी मात्र एक लाख के लगभग है। सेशेल्स में करीब 10 हजार भारतीय नागरिक रहते हैं। चीन की बढ़त को कम करने के लिए भारत ने भी सेशेल्स की ओर सहयोग का हाथ बढ़ाया है। भारत द्वारा सेशेल्स को तटीय निगरानी रडार जैसे अत्याधुनिक तकनीकी रक्षा एवं निगरानी उपकरण देने का निर्णय लिया गया है। चीन के नौसैनिक हितों के दृष्टिगत सेशेल्स बहुत महत्वपूर्ण रहा है, क्योंकि वह इसी क्षेत्र में मॉरीशस के पास दिएगोगार्शिया में अमेरिकी नौसैनिक अड्डे के समक्ष अपना प्रतिरोधी केंद्र निर्मित करना चाहता है। उल्लेखनीय है कि हिंद महासागर भारत देश के नाम पर ही बना है। यह विश्व का इकलौता महासागर है, जो किसी देश के नाम पर है।
श्रीलंका में भारत विरोध के स्वर
भारत-श्रीलंका के बीच आशंकाओं के दौर का लाभ उठाते हुए चीन ने श्रीलंका के साथ अपनी नजदीकियां बहुत ज्यादा बढ़ा ली हैं। श्रीलंका-चीन संबंध भविष्य में भारतीय कूटनीतिक एवं सामरिक हितों को प्रभावित कर सकते हैं। भारत को श्रीलंका में चीन के बढ़ते प्रभुत्व पर सतर्क दृष्टि बनाए रखने की आवश्यकता है। श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना अपने पहले चीन दौरे में कई महत्वपूर्ण सामरिक मुद्दों पर चर्चा की थी। यहां सिरिसेना व उनके चीनी समकक्ष शी जिनपिंग ने हिंद महासागर में सुरक्षा को लेकर भारत की चिंता दूर करने के लिए तीनों देशों के बीच त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने को लेकर बात की। इसके अलावा दोनों ने सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने को लेकर भी वार्ता की। चीन की समुद्री सिल्क रोड योजना से देश की सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर भारत ने चिंता जताई थी। इसी को लेकर चीन ने सिरिसेना के सामने भारत, चीन व श्रीलंका के बीच त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने का प्रस्ताव रखा। चीन के सहयोगी विदेश मंत्री लियु जिंयकाओ ने बताया कि इस प्रस्ताव को लेकर दोनों नेताओं ने हामी भरी है। जिंयकाओ ने कहा कि सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र में सहयोग तीनों देशों के लिए लाभदायक होगा। यह चीन और दक्षिण एशिया सहयोग का हिस्सा है। सिरिसेना ने इस बैठक में यह उम्मीद भी जताई कि कोलंबो बंदरगाह शहर परियोजना जारी रहेगी। श्रीलंका की पूर्व सरकार द्वारा भारत के विरुद्ध अनर्गल और अतार्किक दुष्प्रचार किया गया था। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे ने श्रीलंका की विदेश नीति को पूरी तरह चीन के पक्ष में मोड़ दिया था। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे अति आत्मविश्वास के चलते चुनाव हार चुके हैं, परंतु राजपक्षे अभी तक अपनी इस हार को पचा पाने में असमर्थ रहे हैं। उन्होंने हाल ही में अपनी हार के लिए भारत तक जिम्मेदार ठहरा दिया है। बेहतर होता कि राजपक्षे अपनी कार्यप्रणाली और नीतियों पर विचार करते, जिनसे श्रीलंकाई जनता संतुष्ट नहीं थी, अन्यथा उन्हें ऐसी पराजय का सामना न करना पड़ता। राजपक्षे ने एक बयान में दावा करते हुए यह कहा है कि, ‘‘भारत, अमेरिका और यूरोपीय देश मुझे चुनाव हराने में बहुत अधिक सक्रिय थे। यह सभी जानते हैं कि यूरोप और विशेषतः नॉर्वे के लोग घोषित तौर पर हमारे विरुद्ध थे। भारतीय खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ ने हमें चुनाव हराने के लिए बहुत सक्रिय भूमिका निभाई।’’ राजपक्षे ने यह भी दावा किया कि भारत और अमेरिका जैसे देशों ने अपने दूतावासों का प्रयोग उन्हें सत्ता से बेदखल करने के लिए किया। राजपक्षे ने यह बयान ऐन उस समय दिया, जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीलंका की यात्रा पर थे। स्पष्ट है कि राजपक्षे ने भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा का समय ऐसे विवादित बयान देने के लिए जान-बूझकर चुना। श्रीलंका मीडिया का एक धड़ा भी राजपक्षे की इस मुहिम में उनके साथ रहा है।
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जिन पर देश बदलने की जिम्मेदारी है वो नहीं बदल रहे तो देश कैसे बदलेगा
कभी हमारी सरकार ने सोचा है कि भारत के जिस आम आदमी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में देश के लिए अपना सब कुछ लुटा दिया था औरतों ने अपने गहने कपड़े ही नहीं अपने बच्चों तक को न्यौछावर कर दिया था , वो आम आदमी जो मन्दिरों में दान करने में सबसे आगे होता है वो आम आदमी आज टैक्स की चोरी क्यों करता है ?
वो आम आदमी जो अपनी मेहनत की कमाई का कुछ हिस्सा भ्रष्टाचार के दानव को सौंपने के बाद अगर अपनी कमाई का कुछ हिस्सा छुपाकर अपने नुकसान की भरपाई करके अपने बच्चों का भविष्य संवारने लिए लगाता है तो काले धन और भ्रष्टाचार की इस लड़ाई में भी सबसे पहले वह ही क्यों पिस रहा है ?
जिन पर देश बदलने की जिम्मेदारी है वो नहीं बदल रहे तो देश कैसे बदलेगा
एक नई उम्मीद एक सपना इस देश की हर आँख में पल रहा है कि ’’मेरा देश बदल रहा है’’ सपना टूटा आँख खुली, हर दिल को समझने में जरा देर लगी कि लोग हैं कि बदल नहीं रहे हैं आम आदमी जो पहले अपनी परिस्थिती बदलने का इंतजार करता था आज देश की परिस्थितियों बदलने का इंतजार कर रहा है हाँ इंतजार के अलावा वो सवाल कर सकता है कि हर बार उम्मीद टूट क्यों जाती है?
इंतजार इतना लंबा क्यों होता है?
नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स को तो इस देश का हर नागरिक जानता है लेकिन बैंक के अधिकारी! आप से तो यह अपेक्षा देश ने नहीं की थी!
प्रधानमंत्री जी ने आपके कन्धों पर इस देश को बदलने की नींव रखी थी और आप ही नींव खोदने में लग गए? आम आदमी लाइन में खड़ा 2000 रुपए बदलने का इंतजार करता रहा और आपने करोड़ों बदल दिए ?
और इतने बदले कि बैंक नए नोटों से खाली हो गए लेकिन आप रुके नहीं!
आज हर रोज छापेमारी में जो नोट जब्त हो रहे हैं वो किसी के हक के थे!
किसी के भोग विलासिता के लिए किसी की जरूरत का आपने गला घोंट दिया!
वो करोड़ों की रकम जो में मुठ्ठी भर लोगों से जब्त हुई वो करोड़ों की आवश्यकताएँ पूरी कर सकती थी यही इस देश का दुर्भाग्य है जब वो लोग जो जिनके कन्धों पर देश को बदलने की जिम्मेदारी है वो ही नहीं बदल रहे तो देश कैसे बदलेगा ?
कूटनीति के स्तर पर व्यर्थ का आशावाद
भारत-श्रीलंका के मध्य कतिपय मुद्दों को लेकर तनाव बना हुआ है। जल क्षेत्र और मछुआरों को लेकर प्रायः संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। रानिल विक्रमसिंघे ने दो टूक ढंग से कह दिया है कि श्रीलंकाई जलक्षेत्र में भारतीय मछुआरों को महाजाल का प्रयोग करने की अनुमति बिल्कुल नहीं दी जाएगी। वास्तव में भारत और श्रीलंका के परस्पर संबंध पिछले कुछ दशकों से निरंतर जटिल बने रहे हैं। भारतीय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा श्रीलंका के गृह युद्ध में हस्तक्षेप किया गया था, जिसके बाद से ही श्रीलंका और भारत के संबंधों में फिर कभी वैसी उष्मा और सहिष्णुता दिखाई नहीं पड़ सकी। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे के कार्यकाल के आखिरी दौर में तो भारत-श्रीलंका के द्विपक्षीय संबंध बहुत अधिक खराब हो गए थे। यह उम्मीद की जा रही थी कि श्रीलंका में सत्ता परिवर्तन के उपरांत भारत-श्रीलंका संबंधों को नई दिशा और उष्मा प्राप्त होगी, परंतु ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है कि इस संदर्भ में सहजता के साथ आगे बढ़ा जा सकेगा। वास्तव में विदेश नीति और कूटनीति के स्तर पर कोई भी बदलाव कभी भी यकायक संभव नहीं होता। भारत प्रायः विदेश नीति के स्तर पर पड़ोसी देशों को लेकर अनावश्यक रूप से खुशफहमी तथा व्यर्थ का आशावाद पाल लेता है, जबकि विदेश नीति को सदैव राष्ट्रीय हितों के मद्देनजर वास्तविकता, सतर्कता और सजगता के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए। भारत को कूटनीति के मामले में चीन के आचरण और व्यवहार से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है, जो कभी भी विदेश नीति के संदर्भ में अनावश्यक खुशफहमी और आशावाद कभी नहीं पालता। चीन अपने नेताओं के विदेश दौरों और विदेशी नेताओं के चीन आगमन के समय कभी भी बढ़-चढ़कर न तो बयानबाजी करता है और न ही कभी इन यात्राओं को लेकर अनावश्यक उत्साह अथवा व्यर्थ का आशावाद दिखाता है। भारत को यह समझना चाहिए कि भले ही द्विपक्षीय कूटनीतिक यात्राएं कैसा भी उत्साहपूर्ण वातावरण बनाएं, परंतु असली चीज तो देश की अपनी अंदरुनी तैयारी और स्थाई शक्ति व सामर्थ्य ही होती है। यदि हम आर्थिक एवं सैन्य दृष्टि से सक्षम और सशक्त होंगे, तो अन्य देश भी हमारा सम्मान करेंगे। विदेश नीति दिखावे की वस्तु नहीं होती, वरन यह किसी देश की बुनियादी शक्ति और क्षमताओं का प्रतिबिंब होती है।
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नोट पर चोट-राजेश गोयल
रूपये लेने के लिये
बैंक पर अपार भीड़ लगी थी।
एक पंक्ति पुरूषों की,
दूसरी महिलाओं की खड़ी थी।
महिलाओं की पंक्ति में महाभारत की
‘कुन्ति’ और ‘गन्धारी‘ सुबह छः बजे से लगी थीं .
जनता का धमाल देख महाभारत का दृष्य
आंखों के समाने आ गया।
कुन्ति-से गन्धारी कहने लगी-
मैंने बैंक में अपने सौ पुत्रों
को पैसे लेने भेजा-
वहां से वह दो हजार के हिसाब से
सभी मिलकर दो लाख रूपये ले आये।
कुन्ती भी कहां चुप रहने वाली थी।
अरे! मुई, देख मेरे पांचों पाण्डव
द्रोपती से शादी का कार्ड दिखाकर-
ढाई लाख रूपये के हिसाब से
साढे बारह लाख रूपये लाये।
पुरूषों की पंक्ति में लगे राजा सगर
दोनों की बात सुनकर
मुंह में उंगली दबाकर
आश्चार्यचकित होकर कहने लगे-
तभी तो मेरे साठ हजार पुत्र
पैसे लेने की चाह में पचास दिन से खड़े हैं।
जो भिखमंगे, फटेहाल,
गरीब बनकर रह गये हैं।
इनका तीन माह तो क्या
छः माह में भी नम्बर नहीं आयेगा।
इस तरह कोई भी जीवनभर
बैंक से पैसे नहीं ले पायेगा।
और सभी को सरकार द्वारा
काले धन रखने के आरोप में
गिरफ्तार कर
जेल भेजा जायेगा।