महिलाओं ने स्वयं अपनी ‘आत्मनिर्भरता ‘ के अर्थ को केवल कुछ भी पहनने से लेकर देर रात तक कहीं भी कभी भी कैसे भी घूमने फिरने की आजादी तक सीमित कर दिया है। काश कि हम सब यह समझ पांए कि खाने पीने पहनने या फिर न पहनने की आजादी तो एक जानवर के पास भी होती है। लेकिन आत्मनिर्भरता इस आजादी के आगे होती है, हमारी संस्कृति में स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनी कहा जाता है।
अगर आँकड़ों की बात करें यह तो हमारे देश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं।
महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए अनेक कानून और योजनाएं हमारे देश में बनाई गई हैं लेकिन विचारणीय प्रश्न यह है कि हमारे देश की महिलाओं की स्थिति में कितना मूलभूत सुधार हुआ है।
चाहे शहरों की बात करें चाहे गांव की सच्चाई यह है कि महिलाओं की स्थिति आज भी आशा के अनुरूप नहीं है। चाहे सामाजिक जीवन की बात हो, चाहे पारिवारिक परिस्थितियों की,
चाहे उनके शारीरिक स्वास्थ्य की बात हो या फिर व्यक्तित्व के विकास की,
महिलाओं का संघर्ष तो माँ की कोख से ही शुरु हो जाता है।
लेख/विचार
हास्य-व्यंग्य : हमें गर्व है कि हम गधे हैं……..
23 फरवरी के बाद से जंगल के राजा की नीद उड़ी हुई थी। अपने प्रकृति निर्मित आवास के शयनकक्ष में आज सुबह से ही इधर से उधर चक्कर पे चक्कर मारे जा रहे थे। दो, तीन बार बाहर भी झाँक आये थे। ऐसा लग रहा था जैसे किसी की प्रतीक्षा कर रहे हों। बच्चों के साथ छू-छू खेल रही महारानी तिरछी निगाहों से बड़ी देर से उन्हें निहार रही थीं। आखिर उन्होंने पूंछ ही लिया “क्या बात है प्राणनाथ, बड़े परेशान दिखायी दे रहे हो? क्या किसी ने आपकी गैरत को ललकारा है जो इतने व्यग्र हो रहे हो, मुझे आदेश दीजिये प्राणेश्वर, कौन है गुस्ताख, मै एक ही पंजे से उसके प्राण पखेरू कर दूंगी”। चेहरे पर परेशानी का भाव लिये महाराज ने महारानी की ओर देखा और बोले “नहीं ऐसा कुछ भी नहीं करना है महारानी, कोई विशेष बात नहीं है। गजराज को बुलाया है, उनके आने के बाद ही कुछ सोचूंगा“ , “ऐसा क्या है जो आप मुझे नहीं बताना चाहते हैं ?” महारानी के इतना पूंछते ही दरबान लकड़बग्घा आ गया और सर झुकाकर बोला “महाराज की जय हो, महामन्त्री गजराज पधारे हैं, आपका दर्शन चाहते हैं, सेवक के लिए क्या आदेश है महाराज” , “ठीक है उन्हें अन्दर भेज दो“, “जो आज्ञा महाराज“ कहते हुए लकड़बग्घा चला गया। थोड़ी देर में गजराज आ गये उन्होंने महाराज का अभिवादन किया “आओ गजराज आओ, बड़ी देर कर दी आने में“, “कुछ नहीं महाराज, दरअसल हमारे पड़ोस में बनबिलार और बन्दर में सुबह-सुबह विवाद हो गया था, बस उन्हीं को शान्त कराने के चक्कर में थोड़ी देर हो गई” , “अच्छा-अच्छा, निपट गया, क्यों लड़ गये थे दोनों ?”, “कुछ नहीं महाराज, बस यूँ ही गधे के चक्कर में…….”, “ग..ग..ग..गधे के चक्कर में“ कहते हुए महराज को जैसे चक्कर आ गया हो।
यह कैसी पढ़ाई है और ये कौन से छात्र हैं
आजादी का मतलब बेलगाम होना कतई नहीं होता। दुनिया का हर आजाद देश अपने संविधान एवं अपने कानून व्यवस्था के बन्धन में ही सुरक्षित होता है। आजादी तो देश के हर नागरिक को हासिल है अगर आप आजाद हैं अपनी अभिव्यक्ति के लिए तो दूसरा भी आजाद है आपका प्रतिकार करने के लिए। वह भी कह सकता है कि आप उनके विरोध का विरोध करके उसकी आजादी में दखल दे रहे हैं।
9 फरवरी 2016 में जेएनयू के बाद एक बार फिर 21 फरवरी 2017 को डीयू में होने वाली घटना ने सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि क्यों हमारे छात्र संगठन राजनैतिक मोहरे बनकर रह गए हैं और इसीलिए आज एक दूसरे के साथ नहीं एक दूसरे के खिलाफ हैं।
इन छात्र संगठनों का यह संघर्ष छात्रों के लिए है या फिर राजनीति के लिए?
इनकी यह लड़ाई शिक्षा नौकरी बेरोजगारी या फिर बेहतर भविष्य इनमें से किसके लिए है?
इनका विरोध किसके प्रति है भ्रष्टाचार भाईभतीजावाद या फिर गुंडागर्दी ?
इनका यह आंदोलन किसके हित में है उनके खुद के या फिर देश के?
अफसोस तो यह है कि छात्रों का संघर्ष ऊपर लिखे गए किसी भी मुद्दे के लिए नहीं है।
चिकित्सा – मानवता से जुड़ा एक पेशा
मनुष्य, जीवन जीने के लिए किसी न किसी विधि से उपार्जन करता है l इसके लिए वह विभिन्न पेशों, व्यवसायों या कार्यों का चुनाव करता है लेकिन मानवीय दृष्टि से अगर कोई पेशा या कार्य सबसे ज्यादा पवित्र, उत्तरदायित्वपूर्ण व संवेदनपूर्ण होता है तो वह है चिकित्सक का पेशा l किसी भी मानव या जीव को सबसे ज्यादा प्रिय उसके प्राण होते हैं और इस दृष्टिकोण से सृष्टि में ईश्वर के बाद अगर किसी का स्थान आता है तो वह है एक चिकित्सक का … जो अपनी सेवा और हुनर से मरते हुए इन्सान को बचाकर नया जीवन देता है l यही एक चिकित्सक का धर्म भी होता है पर आज चिकित्सा भी एक धंधा बन गया है .. मरीज़ों के शोषण का l कारण तो एक हीं है कि, पैसा आज मानवीय मूल्यों, भावों और सरोकारों से ऊपर हो चुका है किन्तु इसके आलावा मेडिकल कॉलेजों की कम संख्या, चिकित्सा की पढाई में होने वाला भारी खर्च, न्यूनतम सीटें आदि अनेक वजहें भी इसके लिए जिम्मेवार है l मानवीयता जैसे गुण और सेवा-भाव के प्रति समर्पण जैसी भावना एक तो वैसे हीं लोगों में बहुत कम रह गए हैं ऊपर से इन्ट्रेंस टेस्ट में इन चीजों को वरीयता देने की कतई जरूरत नहीं समझी जाती जबकि चिकित्सा क्षेत्र के लोगों का यही चरम लक्ष्य और प्रयोजन भी होना चाहिए l
भयंकर विनाश के संकेत
पंकज के. सिंह
वर्ष 2009 में ‘अलकायदा’ की सऊदी और यमन शाखाओं ने एकजुट होकर संगठित रूप से एक नए संगठन ‘अलकायदा फॉर अरब पेनिंसुला’ का रूप ले लिया था। इसके उपरांत पिछले कुछ वर्षों से निरंतर जारी ड्रोन हमले और आतंकवाद निरोधी सुरक्षा बलों की कार्रवाई के बावजूद यमन और सऊदी अरब के सीमावर्ती क्षेत्रों में ‘अलकायदा’ की स्थिति आज भी बेहद मजबूत बनी हुई है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि निकट भविष्य में यमन में भी सीरिया और इराक जैसे ही भयंकर सांप्रदायिक गृहयुद्ध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। वैसे भी पश्चिम एशिया में सांप्रदायिक हिंसा और व्यापक आतंकवाद के कारण संपूर्ण क्षेत्र में ही दहशत और तनाव का वातावरण बना हुआ है। इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष तथा लीबिया और मिस्र में उत्पन्न गृहयुद्ध के चलते समूचे पश्चिम एशिया और अरब प्रायद्वीप के क्षेत्र में भयंकर विनाश के स्पष्ट संकेत दिखाई पड़ रहे हैं।
हिंसा का अंतहीन दौर
पंकज के. सिंह
यमन में वर्चस्व और सत्ता के लिए शिया और सुन्नी समुदायों के मध्य कड़ा संघर्ष चल रहा है। इस संघर्ष में जहां अलकायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे खतरनाक आतंकी संगठन सुन्नियों का साथ दे रहे हैं, वहीं शिया लड़ाकों की अगुवाई हूती मिलिशिया जैसे विद्रोही संगठन कर रहे हैं। मौजूदा हालात को देखते हुए यह नहीं लगता है कि यमन बहुत जल्द गृह युद्ध और हिंसा की जटिल परिस्थितियों से बाहर आ सकेगा। गृहयुद्ध के कगार पर पहुंच चुके अरब देश यमन में शिया हाउती विद्रोहियों के ठिकानों पर सऊदी अरब के नेतृत्व में हवाई हमले शुरू किए गए। राजधानी सना और उसके आसपास के इलाकों में किए गए हमलों तथा सत्ता संघर्ष में सरकार और विद्रोहियों में जारी हिंसा में हजारों नागरिकों की मौत हो चुकी है तथा कई लाख नागरिक बेघर हो गए हैं। हजारों इमारतें और मकान ध्वस्त हो गए हैं तथा चारो ओर आतंक और दहशत का हाहाकार मचा हुआ है। इन हमलों के बाद मुस्लिम राष्ट्र दो गुटों में बंट गए हैं। एक ओर सऊदी अरब के नेतृत्व में कतर, बहरीन, कुवैत, मिस्र जैसे देश हैं, जो किसी भी कीमत पर शिया हाउती विद्रोहियों से यमन के राष्ट्रपति आब्दीरब्बू मंसूर हादी को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी ओर ईरान इन देशों के विरोध में खड़ा हो गया है। हवाई हमलों पर नाराजगी जताते हुए ईरान ने कहा है कि इससे विवादों का हल तलाशने में मदद नहीं मिलेगी। सऊदी अरब के नेतृत्व में यमन सरकार को बचाने के लिए पांच अरब राजशाही सहित 10 देशों का गठबंधन बनाया गया है।
क्या यह पूरा न्याय है
बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी क्योंकि अगर सरकार की जानकारी के बिना यह प्रवेश हुए तो फिर सरकार क्या कर रही थी और अगर सरकार की जानकारी में हुए तो वो होने क्यों दे रही थी? दोनों ही स्थितियों में सरकार सवालों के घेरे से बच नहीं सकती। तो जिस दोषी सिस्टम और सरकारी तंत्र के सहारे पूरा घोटाला हुआ उस का कोई दोष नहीं उसे कोई सजा नहीं लेकिन जिसने इस सिस्टम का फायदा उठाया दोषी वो है और सजा का हकदार भी। तो यह समझा जाए कि सरकार की कोई जवाबदेही नहीं है न तो सिस्टम के प्रति न लोगों के प्रति, उसकी जवाबदेही है सत्ता और उसकी ताकत के प्रति यानी खुद के प्रति। ‘व्यापम’ अर्थात व्यवसायिक परीक्षा मण्डल, यह उन पोस्ट पर भर्तियाँ या एजुकेशन कोर्स में एडमिशन करता है जिनकी भर्ती मध्यप्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन नहीं करता है जैसे मेडिकल इंजीनियरिंग पुलिस नापतौल इंस्पेक्टर शिक्षक आदि। साल भर पूरी मेहनत से पढ़कर बच्चे इस परीक्षा को एक बेहतर भविष्य की आस में देते हैं। परीक्षा के परिणाम का इंतजार दिल थाम कर करते हैं। वह बालक जो अपनी कक्षा और कोचिंग दोनों ही जगह हमेशा अव्वल रहता है, तब निराश हो जाता हैं जब पता चलता है कि मात्र एक नम्बर से वह अनुत्तीर्ण हो गया लेकिन उसे आज पता चला कि वह एक नम्बर नहीं बल्कि चन्द रुपयों से अनुत्तीर्ण हुआ था। यह परीक्षा बुद्धि बल की नहीं धन बल की थी।
त्रिकोणात्मक संघर्ष की ओर अग्रसर उत्तर प्रदेश
डॉ. दीपकुमार शुक्ल
देश के पांच राज्यों पंजाब, गोवा, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश तथा मणिपुर में संपन्न हो रहे विधान सभा चुनाव में सर्वाधिक महत्व उत्तरप्रदेश को ही दिया जा रहा है। दरअसल इस राज्य के चुनाव परिणाम से ही आगामी लोकसभा चुनाव की दिशा तय होनी है। लोकसभा में उत्तर प्रदेश की 80 में से 71 सीटें जीतकर केन्द्र में सरकार बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश विधान सभा का चुनाव किसी परीक्षा से कम नहीं है। लोकसभा चुनाव परिणाम के दृष्टिगत भाजपा को तीन सौ से भी अधिक सीटें मिलनी चाहिए परन्तु अब तक के विभिन्न सर्वेक्षणो पर यदि निगाह डालें तो भाजपा को सरकार बनाने के लिए आवश्यक 202 सीटें भी मिलती हुई नहीं दिखायी दे रही हैं। उत्तर प्रदेश की सत्ता में बैठी समाजवादी पार्टी कांग्रेस से गठबंधन करके एक नए उत्साह के साथ मैदान में डटी है। समाजवादी पार्टी को कांग्रेस से गठबंधन करने का लाभ भले ही न मिले परन्तु उसने अपना एक विरोधी जरुर कम कर लिया है। हालाकि इस गठबंधन के चलते चुनाव लड़ने से वंचित हुए अनेक समाजवादी नेताओं का भितरघात भी सपा को झेलना पड़ेगा। जिसका सीधा लाभ भाजपा को ही होगा। सर्वेक्षण के नतीजों में यह गठबंधन बहुमत से काफी दूर है। वर्ष 2012 के चुनाव में भ्रष्टाचार तथा अराजकता से त्रस्त यू.पी. की जनता ने अखिलेश यादव के विचारों से प्रभावित होकर 224 सीटें सपा की झोली में डालकर उन्हें पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने का अवसर दिया था। 2012 के चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश ने उत्तर प्रदेश की जनता को भरोसा दिया था कि वह प्रदेश से भ्रष्टाचार तथा अपराध को हर हाल में समाप्त कर देंगे। प्रदेश में अपराध और भ्रष्टाचार कितना कम हुआ यह तो सभी को पता है लेकिन इतना जरुर रहा कि पिता मुलायम सिंह के कार्यकाल की तरह प्रदेश दस्यु सरगनाओं की पनाहगाह नहीं बन पाया। साथ ही अपराधियों के संरक्षक की पहचान बना चुके चाचा शिवपाल सिंह को अखिलेश यादव ने न केवल अलग-थलग कर दिया बल्कि स्वयं को साफ सुथरी छवि वाला नेता सिद्ध करने में भी सफल रहे।
यह हैं असली नायिकाएँ
रानी पद्मावती एक काल्पनिक पात्र है लेकिन भंसाली शायद यह भी भूल गए कि काल्पनिक होने के बावजूद रानी पद्मावती एक भारतीय रानी थी जो किसी भी सूरत में स्वप्न में भी किसी क्रूर मुस्लिम आक्रमण कारी पर मोहित हो ही नहीं सकती थी।
भंसाली का कहना है कि पद्मावती एक काल्पनिक पात्र है । इतिहास की अगर बात की जाए तो राजपूताना इतिहास में चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का नाम बहुत ही आदर और मान सम्मान के साथ लिया जाता है।
भारतीय इतिहास में कुछ औरतें आज भी वीरता और सतीत्व की मिसाल हैं जैसे सीता द्रौपदी संयोगिता और पद्मिनी। यह चारों नाम केवल हमारी जुबान पर नहीं आते बल्कि इनका नाम लेते ही जहन में इनका चरित्र कल्पना के साथ जीवंत हो उठते है।
रानी पद्मिनी का नाम सुनते ही एक ऐसी खूबसूरत वीर राजपूताना नारी की तस्वीर दिल में उतर आती है जो चित्तौड़ की आन बान और शान के लिए 16000 राजपूत स्त्रियों के साथ जौहर में कूद गई थीं। आज भी रानी पद्मिनी और जौहर दोनों एक दूसरे के पर्याय से लगते हैं। इतिहास गवाह है कि जब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ के महल में प्रवेश किया था तो वो जीत कर भी हार चुका था क्योंकि एक तरफ रानी पद्मिनी को जीवित तो क्या मरने के बाद भी वो हाथ न लगा सका ।
मन उलसित भयो आज
मंद मंद पवन बहे पुष्पन सुगंध लेत
मन उलसित भयो आज आओ री, आओ री
बसंत चपल है, वसंत चंचल है, बसंत सुन्दर है, बसंत मादक है, बसंत कामनाओं की लड़ी है, बसंत तपस्वियों के संयम की घड़ी है, बसंत )तुओं में न्यारा है, बसंत अग-जग का प्यारा है।
इस ऋतु में सरसों फूलकर पूरी धरती को पीले रंग से रंग देती है। हमारे यहाँ वसंत का विशिष्ट रंग पीला होता है। पीला रंग आध्यात्म का भी प्रतीक है। कई पश्चिमी देशों में बसंत का विशिष्ट रंग हरा होता है। हरा का मतलब सर्वत्र हरियाली, प्रकृति का रंग, पर हमारे यहाँ इस मनोहारी ऋतु को आध्यात्म के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। हम भारतीय इसे सरस्वती की अभ्यर्थना से प्रारंभ करके होली के महा-उत्सव पर समाप्त करते हैं।
शीत या शिशिर की ठिठुरन भले ही हाड़ कंपाती हो किन्तु इन बर्फीली ऋतुओं के बिना भी तो प्रकृति का आँगन सूना-सूना होता है और फिर इसके बाद गाते गुनगुनाते रस के पुखराजी छींटे उड़ाते बसंत के आगमन से मौसम के आँगन का सुख दूना-दूना होता है। वसंत की रंगत ही ऐसी मनोहारी है कि कठोर से कठोर तपस्वी का ह्रदय भी पुरवैया की झकोर से बेबस हो आत्मनियंत्रण खो कर बेकाबू हो जाए। ऋषि विश्वामित्र के तपोभंग का वृतांत इसका सबसे प्रबल प्रमाण है।