Saturday, April 27, 2024
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भयंकर विनाश के संकेत

Pankaj k singhपंकज के. सिंह
वर्ष 2009 में ‘अलकायदा’ की सऊदी और यमन शाखाओं ने एकजुट होकर संगठित रूप से एक नए संगठन ‘अलकायदा फॉर अरब पेनिंसुला’ का रूप ले लिया था। इसके उपरांत पिछले कुछ वर्षों से निरंतर जारी ड्रोन हमले और आतंकवाद निरोधी सुरक्षा बलों की कार्रवाई के बावजूद यमन और सऊदी अरब के सीमावर्ती क्षेत्रों में ‘अलकायदा’ की स्थिति आज भी बेहद मजबूत बनी हुई है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि निकट भविष्य में यमन में भी सीरिया और इराक जैसे ही भयंकर सांप्रदायिक गृहयुद्ध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। वैसे भी पश्चिम एशिया में सांप्रदायिक हिंसा और व्यापक आतंकवाद के कारण संपूर्ण क्षेत्र में ही दहशत और तनाव का वातावरण बना हुआ है। इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष तथा लीबिया और मिस्र में उत्पन्न गृहयुद्ध के चलते समूचे पश्चिम एशिया और अरब प्रायद्वीप के क्षेत्र में भयंकर विनाश के स्पष्ट संकेत दिखाई पड़ रहे हैं।अमेरिका ने इस बात की पुष्टि की है कि यमनी राष्ट्रपति हादी ने अदन का अपना घर छोड़ दिया है। अमेरिका उनके संपर्क में है। विदेश विभाग की प्रवक्ता जेन साकी ने इससे ज्यादा कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। चीन ने यमन की बिगड़ती स्थिति पर चिंता जाहिर की है। विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा कि चीन सभी पक्षों से यमन के बारे में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के अनुसार कार्रवाई की अपील करता है। यमन में गृह युद्ध की स्थिति है। शिया हाउती विद्रोहियों की बढ़त के चलते अमेरिकी समर्थक राष्ट्रपति अब्दुराबुह मंसूर हादी को भागना पड़ा है। माना जा रहा है कि इन विद्रोहियों को शिया देश ईरान मदद दे रहा है। गहराते संकट के बीच सुन्नी देश सऊदी अरब ने खाड़ी देशों के साथ शिया विद्रोहियों के खिलाफ हवाई हमले शुरू कर दिए हैं।
गत सितंबर 2014 से ही लगातार हाउती विद्रोही यमन के एक के बाद दूसरे क्षेत्रों को जीतते हुए बढ़ते रहे हैं। हाउती विद्रोहियों को अंसार अल्लाह भी कहा जाता है। ये शिया समुदाय की शाखा जेदी से खुद को जोड़ते हैं। हाउती विद्रोही शिया अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध रखते हैं और इनकी यमन में एक-तिहाई आबादी है। उत्तरी यमन में करीब एक हजार साल तक इमामत व्यवस्था के तहत इन्होंने 1962 तक राज किया। हाउती विद्रोहियों ने सुन्नी चरमपंथियों से अपने धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं की सुरक्षा के लिए हुसैन बद्र अल-दीन अल हाउती के नेतृत्व में संघर्ष किया था। इस संगठन ने 2004 में वृहद स्वायत्ता की मांग के साथ संघर्ष किया। हाउती के नाम पर ही इस संगठन का नाम पड़ा है। सेना द्वारा हाउती विद्रोहियों को मारे जाने के बाद उनका परिवार इसका नेतृत्व कर रहा है। 2010 में सरकार और इनके बीच संघर्षविराम हो गया था। सालेह के हटने के बाद हाउती विद्रोहियों ने अपनी मांगों के लिए फिर संघर्ष शुरू किया है। तीन साल पहले अरब क्रांति के चलते 1990 से सत्ता पर काबिज रहे तानाशाह अली अब्दुल्ला सालेह को गद्दी छोड़नी पड़ी थी। तब से ही यमन में राजनीतिक अस्थिरता का दौर जारी है। सेना अभी भी सालेह के प्रति ही वफादार है और हाउती विद्रोहियों को सालेह का समर्थन प्राप्त है। ईरान हाउती विद्रोहियों का साथ दे रहा है। सऊदी अरब की सीमा यमन से मिलती है और इसीलिए सऊदी अरब राष्ट्रपति हादी का प्रबल समर्थक बना हुआ है। पश्चिमी सुरक्षा एजेंसियां यमन की अलकायदा शाखा को तकनीकी दक्षता और वैश्विक पहुंच के कारण सबसे बड़ा खतरा मानती हैं। हादी के हटने के बाद अमेरिका द्वारा इस पर नकेल कसना मुश्किल होगा और आतंकी खतरा बढ़ेगा। राष्ट्रपति हादी और हाउती विद्रोहियों से यमन स्थित सुन्नी आतंकी संगठन ‘अलकायदा’ का संघर्ष बना रहता है। हादी ने वर्ष 2012 में अमेरिका के साथ इसके खिलाफ अभियान भी चलाया था। सुन्नी आतंकी संगठन ‘इस्लामिक स्टेट’ भी इराक और सीरिया में सिकुड़ने के बाद यमन में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। वह यहां ‘अलकायदा’ का विकल्प बनने की कोशिश में है। शिया हाऊती विद्रोहियों पर सऊदी अरब के नेतृत्व में गठबंधन बलों के हवाई हमले जारी हैं। इसके बावजूद विद्रोहियों की बढ़त बनी हुई है। यह देखते हुए सभी देश अब अपने राजनयिकों को यहां से निकालने में जुट गए हैं। सऊदी अरब की नौसेना ने दर्जनों राजनयिकों को यमन के दक्षिणी शहर अदन से निकाल लिया है। हाऊती विद्रोहियों द्वारा राजधानी सना पर कब्जे के बाद पिछले माह सऊदी अरब और कुवैत ने अपने दूतावास अदन में स्थांतरित कर दिए थे। कई पश्चिमी देशों ने भी अपने राजनयिकों को हटा लिया था। बिगड़ते हालात को देख संयुक्त राष्ट्र ने भी सना से अपने कर्मचारियों को निकालने का काम शुरू कर दिया है। करीब 100 कर्मचारी जार्डन सहित आसपास के देशों के लिए रवाना हुए हैं। तेल कंपनियों और गैर सरकारी संगठनों के लिए काम करने वाले विदेश कर्मचारी भी पड़ोसी देश इथोपिया और जीबोट के लिए रवाना हो गए हैं। हमले के बावजूद शिया मुस्लिम हाऊदी विद्रोहियों की बढ़त कायम है। विद्रोहियों ने अरब सागर के तट पर स्थित शकरा बंदरगाह में प्रवेश कर लिया। यह बंदरगाह अदन से करीब सौ किलोमीटर दूर है। विद्रोहियों ने अदन एयरपोर्ट की ओर कदम बढ़ा लिए हैं। इस बीच हाऊदी विद्रोहियों पर सऊदी अरब के नेतृत्व में हो रहे हवाई हमलों में संयुक्त अरब अमीरात, यूएई के भी लड़ाकू विमान शामिल हो गए हैं। इन विमानों ने यमन के तेल उत्पादक मारिब इलाकों में कमान नियंत्रण और आपूर्ति केंद्रों पर बमबारी की। सऊदी अरब से आए एक लड़ाकू विमान में आए तकनीकी खराबी के कारण इंजेक्टर सीट से बाहर निकले दोनों पॉयलटों को अमेरिकी सेना ने लाल सागर से सुरक्षित बाहर निकाल लिया। मिस्र में अरब लीग के सदस्य देशों के सम्मेलन में कुवैत के अमीर शेख सबाह अल अहमद अल सबाह ने हाउती विद्रोहियों को संपूर्ण क्षेत्र के लिए खतरा करार देते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई को जायज ठहराया था।