आजकल समाचारों की दुनियां में सबसे अधिक पाकिस्तान का, इमरान खान का ही नाम गूंज रहा हैं।कोई भी न्यूज चैनल या सोशल मीडिया को देखो तो एक ही बात सुनाई पड़ती हैं ,नियाजी की बिदाई,इतने हथकंडे अपनाएं,सुप्रीम कोर्ट को भी इन्वॉल्व किया,जर्नल बाजवा को भी बिनती हुई,सोशल मीडिया पर भी बेबाक बातें की,भारत और भारतीयों और यहां तक कि अपने प्रधानमंत्री जी की रीति नीति का भी भर पेट बखान काम नहीं आया और अलविदा हो ही गएं नियाजी।दिन रात पाक संसद चली,बीच में सस्पेंड भी हुई रात 12 बजे के बाद संसद ने काम किया तो नियाजी समर्थक गायब और जो थे वो सिर्फ नियाजी के कसीदे पढ़ने के लिए।वे खुद भी तो संसद आने की हिम्मत नहीं कर पाएं घर बैठ टीवी लाइव देख रहे थे और अपनी ही बेइज्जती होती देख रहे थे। वैसे तो वे तीन शर्तों के साथ इस्तीफा देने के लिए तैयार थे ,एक तो इस्तीफे के बाद उनकी गिरफ्तारी न हो,शाहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री न बनाया जाएं उनके बदले किसी ओर को प्रधानमंत्री बनाया जाएं।
लेख/विचार
पेंशन ज़र्रज़रित बुढ़ापे की चद्दर होती है’
“खाली जेब मुफ़लिसी का प्रमाण है पास नहीं पैसे तो आप ठन-ठन गोपाल हो, दुनिया पूजती है बस पैसों की खन-खन को”
ये कहने में ज़रा भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इंसान के पास अगर पैसा हो तब आधी से ज़्यादा परेशानी ख़त्म हो जाती है। खासकर बुढ़ापे में इंसान किसीका मोहताज नहीं होना चाहिए।कभी किसीने सोचा है बुढ़ापे में जब कमाई का और कोई ज़रिया नहीं होता तब पेंशन मीठे झरने का काम करती है। पेंशन पाने वालें बुज़ुर्ग खुशकिस्मत होते है। पास पैसे होंगे तब सेवा करने वाले मिल जाएंगे, या तो घर वाले भी पैसों की लालच में ही सही ढंग से देखभाल कर लेते है।60 सालों तक लगातार काम करते इंसान का शरीर थकान महसूस करता है।
प्रदेश में तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त कर युवा हो रहे हैं आत्मनिर्भर
प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी की नीति है कि युवाओं को अधिक से अधिक रोजगार उपलब्ध कराया जाएं। सरकार द्वारा युवाओं को प्रदेश में स्थापित विभिन्न व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों से उनमें अभूतपूर्व गुणात्मक सुधार लाकर उच्च स्तरीय प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा हैं। प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश में स्थापित विभिन्न प्रकृति के उद्योगों, औद्योगिक इकाईयों तथा क्षेत्र से सम्बंधित प्रतिष्ठानों के संचालन हेतु कुशल कर्मकार तैयार करने और उन्हें व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान कराकर रोजगार/स्वरोजगार से जोड़कर उच्च गुणवत्ता के जीवनयापन को सुनिश्चित कराने का कार्य सफलता पूर्वक कराया जा रहा हैं।
प्रदेश सरकार द्वारा व्यावसायिक शिक्षा एवं कौशल विकास मिशन के अर्न्तगत प्रदेश में सेवा क्षेत्र में बढ़ते हुऐ दायरे को दृष्टिगत रखते हुए दीर्घकालीन एवं अल्पकालीन कौशल प्रशिक्षण प्रदान कराये जा रहे है। दीर्घकालीन प्रशिक्षण एक व दो वर्षीय अवधि के अभियान्त्रिकी तथा गैर-अभियान्त्रिकी विषयों, पाठ्यक्रमों का औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षण देते हुए रोजगार से लगाया जाता है। युवाओं/युवतियों को कौशल विकास मिशन के अर्न्तगत अल्पकालीन विभिन्न ट्रेड्स में निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जाता हैं।
उप्रः सरकार व सरकारी तन्त्र को पत्रकारों से इतनी नाराज़गी क्यों ?
उप्र में सरकार अथवा सरकारी तन्त्र के खिलाफ खबरें चलाने के चलते पिछले दो-तीन वर्षो में अनेक पत्रकारों के खिलाफ मुक़दमे दर्ज कराए गए हैं। शासन-प्रशासन की आलोचना करने के जुर्म में जिन पत्रकारों के खिलाफ़ एफ आई आर दर्ज करवाई गई थीं। उन मुक़दमों के बाद कई पत्रकारों की गिरफ़्तारियाँ भी हुई थीं, जिन्हें कुछ समय हिरासत में रहने के बाद ज़मानत भी मिल गई थी, कुछ मामलों की सुनवाई भी जारी है। बिगत कुछेक वर्षो पर नजर डालें तो अनेक पत्रकारों के खिलाफ मामले दर्ज करवाकर पत्रकारों के बीच भय व्याप्त करने का माहौल तैयार किया गया। ऐसा नहीं कि ऐसा माहौल पिछली सरकारों में नहीं रहा, रहा लेकिन तुलनात्मक आकड़ों के अनुसार वर्तमान में कुछ ज्यादा ही है। पत्रकारों के खिलाफ दर्ज करवाये गये मामलों पर अगर नजर डालें तो जो मामले प्रकाश में आ चुके हैं उन्हें प्रस्तुत कर रहा हूं।
अगस्त 2019 में मिर्ज़ापुर में सरकारी स्कूल में व्याप्त अनियमितता और मिड डे मील में बच्चों को नमक रोटी खिलाए जाने से संबंधित ख़बर चलाने पर पवन जायसवाल के खिलाफ मामला दर्ज कर प्रताड़ित किया गया। पीसीआई द्वारा मामला संज्ञान लेने पर पवन जायसवाल का नाम एफ़आईआर से हटाया गया। मिर्ज़ापुर में मिड डे मील में कथित धांधली की ख़बर दिखाने वाले पत्रकार पर दर्ज हुई एफ़आईआर के बाद सरकार की काफ़ी किरकिरी हुई थी। इस घटना का दिलचस्प पहलू ज़िले के कलेक्टर का वह बयान था जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘प्रिंट मीडिया का पत्रकार वीडियो कैसे बना सकता है? इस मामले में प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया को हस्तक्षेप करना पड़ा था।
नई पीढ़ी के विचारों के साथ सामंजस्य बैठाना समय की मांग
बदलते आधुनिक परिपेक्ष में नई सकारात्मक वैचारिकता का धारण करना समय की मांग – जो समय को छोड़ देते हैं समय उनको छोड़ देता है!!! – एड किशन भावनानी
गोंदिया – भारतीय संस्कृति, सभ्यता और हमारे पूर्वजों, बड़े बुजुर्गों की वैचारिकता, सोच, कहावतें, प्रेरणा, मार्गदर्शन, हमारे लिए अनमोल धरोहर ही नहीं एक अणखुट ख़जाना भी है!!! अगर हम अपनी संस्कृति, सभ्यता और पूर्वजों, बड़े बुजुर्गों की वैचारिक को ग्रहण कर उनकी बताई राहों, उनके द्वारा कही कहावतों पर गहराई से सोचें तो हमें एक-एक शब्द या लाइन में बहुत बड़ी सीख, प्रेरणा, मार्गदर्शन मिल सकता है जो उम्र का तकाज़ा, समय का तकाज़ा, समय बड़ा बलवान रे भैया समय बड़ा बलवान, मुख में राम बगल में छुरी, आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है, इत्यादि ऐसे अनेक सुने अनसुने शब्द कहावतें हैं जिनकी गहराई में जाकर उनका सकारात्मक मतलब निकाल कर हम बुराई से बच सकते हैं और मूल्यवान शब्दों को अपनाकर अपना जीवन संवार सकते हैं।
Read More »बच्चों की शिक्षा के प्रति लापरवाही अब अभिभावकों को पड़ सकती है भारी
बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने के लिए शिक्षकों के साथ अब अभिभावकों को भी अपना पूर्ण योगदान देने की आवश्यता है
“स्कूल अब शुरू हुए, शुरू हुई फिर पढ़ाई
दो साल बाद नन्ही बिटिया, स्कूल देख पाई
अब बच्चों के संग सब, स्कूल पढ़ने जायेंगे
नई गुरूजी की नई सीख, खूब सीखकर आयेंगे”
अप्रैल माह आते ही स्कूलों की घंटी एक बार फिर से बजने के लिए तैयार है । एक लम्बे समय के बाद पूर्व प्राथमिक विद्यालयों के बच्चों की किलकारी स्कूल के कमरों से सुनाई देने को तैयार है । देश में लॉकडाउन के दौर ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है तो वह है शिक्षा; और शिक्षा में पूर्व-प्राथमिक एवं प्राथमिक शिक्षा की दशा बिगाड कर रख दिया है । सरकारी विद्यालयों में जहाँ बच्चा 5 से 6 वर्ष की उम्र में स्कूल जाकर अपनी शिक्षा ग्रहण करने को तैयार हो जाता है वही निजी विद्यालयों में 4 वर्ष से प्री-प्राइमेरी कक्षाओं में दाखिला के साथ पढाई की शुरुआत हो जाती है । अभी तक पूरे 2 वर्षों का समय गुजर गया है कुछ बच्चे जो शुरूआती कक्षा में दाखिले के लायक थे उन्होंने तो स्कूल का मुख तक नहीं देख पाया है; और यदि किसी तरह इन उम्र के बच्चों का दाखिला विद्यालय में हो भी गया तो कोरोना महामारी के दर से बंद स्कूलों के दर्शन नहीं हो पाए है । इनके लिए स्कूल की पढ़ाई और वहाँ का मजा एवं सीख परियों की कहानी जैसा है । नए सत्र के प्रारंभ होते ही बच्चों की शुरूआती शिक्षा के लिए शिक्षक के पास एक नई चुनौती होगी, क्योकि 2 वर्षों के लर्निंग गेप को समझते हुए, आगामी कार्ययोजना तय करके सत्र के लिए तैयारी करनी होगी ।
चस्का मुफ्तखोरी का
एक कहानी पढ़ी थी कि बहेलिये ने दाना डालकर जाल बिछाया हुआ था और फिर कबूतर दाना चुगने आए और जाल में फस गए। हमें इस कहानी से यह सबक सिखाया जाता था की लालच बुरी बला है। कुछ ऐसा ही आजकल का माहौल है करोना काल में शुरू की गई गरीबों के लिए मुफ्त राशन योजना को केंद्र सरकार ने तीन महीने के लिए आगे बढ़ा दिया है हालांकि यह स्पष्ट है कि यह घोषणा 2024 में लोकसभा चुनाव को मद्देनजर रखकर किया गया है। इस योजना की घोषणा मुख्यमंत्री की शपथ के अगले ही दिन कर दी गई और दावा किया गया है कि पंद्रह करोड़ लोगों को इस योजना का लाभ मिलेगा।
आकर्षण को प्यार समझने की भूल मत करो
इश्क की आँधी बहा ले जाती है जिनको कच्ची उम्र के पड़ाव पर, वह लड़कियां कहीं की नहीं रहती। छूट जाती है पढ़ाई और इश्क की आराधना करते कई बार हार जाती है अपनी ज़िंदगी।
यह उम्र ख़तरनाक होती है 15 से लेकर 20 साल के बीच का सफ़र विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण पैदा करता है। उस उन्माद को बच्चियाँ प्रेम समझकर एक ऐसी राह पर निकल जाती है, जहाँ फिसलन और पतन के सिवा कुछ नहीं होता।
न आजकल के लड़कें उस उम्र में इतने परिपक्व होते है। प्यार, इश्क, मोहब्बत को अपनी शारीरिक जरूरतें पूरी करने का ज़रिया समझते है। खासकर डिज़िटल युग में हर बच्चें मोबाइल का बेबाक उपयोग करते है, जिसमें अंगूठा दबाते ही पोर्नाेग्राफ़ी एप्स की भरमार मिलती है। बहुत कम उम्र में आजकल के बच्चे एडल्ट हो जाते हैं। हर माँ-बाप को अपने बच्चों की गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिए। बच्चे मोबाइल का उपयोग किस चीज़ के लिए करते हैं और बच्चों की मानसिकता का अध्ययन करते बातचीत से जानने की कोशिश करनी चाहिए की बच्चे किस दिशा में जा रहे हैं और हर माँ-बाप का कर्तव्य है की बेटे को यह संस्कार दें कि दूसरों की बेटी की इज्जत करें, सम्मान दें। प्यार के नाम पर कोई खेल खेलने से पहले सोचे की अपनी बहन-बेटी के साथ अगर कोई ऐसा करें तो?
कभी-कभी बच्चे आकर्षण को प्यार समझकर एक ऐसी राह पर निकल जाते हैं, जहाँ से बाकी सब पीछे छूट जाता है। पढ़ाई-लिखाई से भटक जाते हैं लक्ष्य को भूल जाते हैं।
पेट्रोल, डीजल व रसोई गैस की कीमतों में लगातार वृद्धि के लिये केन्द्र सरकार ही नहीं बल्कि राज्य सरकारें भी हैं जिम्मेदार
खाने-पीने की चीजों से लेकर जिस तरह पेट्रोल, डीजल व रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोत्तरी हो रही है, वह चिंता की एक बड़ी वजह है। इसके लिये कहीं न कहीं केंद्र और राज्य सरकारों का मुनाफाखोर आचरण पूरी तरह से जिम्मेदार है। पांच राज्यों में सम्पन्न हुए चुनावी दौरान पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कोई बढ़ोत्तरी ना करने के पीछे मतदाताओं की नाराजगी से बचने हेतु एक मजबूरी थी और जैसे ही नतीजे आ गये, मतलब निकला तो मंशा उजागर हुई और परिणामतः पेट्रोलियम पदार्थाे में लगभग हर रोज बढ़ोत्तरी जारी है।
इसमें कतई दो राय नहीं कि पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने का सीधा असर महंगाई पर पड़ता है और गरीब तबके व हाशिये पर मौजूद तबके के लिए ज्यादा मुश्किलें बढ़ती जातीं हैं। वर्तमान में देश में पेट्रोल, डीजल की कीमतें रोजाना बदलना व बढ़ना शुरू हो गई हैं। जो निरन्तर जारी रहने की उम्मीद है। वहीं पिछले वर्षाे की बात करें तो पूरी दुनियाँ में कोविड-19 महामारी के चलते क्रूड की कीमतें नीचे आई थीं लेकिन भारत में ईंधन के दाम कम नहीं किये गये थे।
केन्द्र सरकार एक तरफ तो बड़े उद्योगों व नौकरीपेशा के हित के लिए समय-समय पर राहत के पैकेज घोषित किया करती है लेकिन जिस पेट्रोल और डीजल की कीमतों की बढ़ोत्तरी के चलते समूची अर्थव्यवस्था प्राथमिक स्तर से ही प्रभावित होना शुरू हो जाती हैं उनके बारे में वह बेहद असंवेदनशीलता का परिचय दे रही है। इस असंवेदनशीलता का शिकार हर वर्ग हो रहा है लेकिन मध्यमवर्गीय तबका सबसे ज्यादा हुआ है और हो रहा है ?
बदतर होते हालातों में श्रीलंका
चीन के कर्ज में फंसे श्रीलंका के हालात दिन प्रतिदिन बदतर होते जा रहे हैं। पूरे देश में खाद्य सामग्री का संकट इतना गहरा हो गया है कि जनता के लिए अपना पेट भरना मुश्किल हो गया है। गौरतलब यह है कि चीन सहित अनेक देशों के कर्ज तले दबा श्रीलंका अब दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया है। उसका विदेशी मुद्रा भंडार काफी अधिक घट गया है। इस कमी के कारण देश में ज्यादातर सामानों सहित दवाइयां, पेट्रोल व डीजल आदि का विदेशों से आयात नहीं हो पा रहा है। इस कारण मंहगाई की मार से जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। ताजा हालातों की बात करें तो एक ब्रेड का पैकेट 0.75 डॉलर यानि कि 150 रुपये में खरीदना पड़ रहा है। इसी तरह सब्जियों के दाम भी आसमान पर पहुंच गए हैं। श्रीलंका में इन दिनों एक किलोग्राम चीनी 290 रुपये, एक किलोग्राम चावल 500 रुपये, 400 ग्राम मिल्क पाउडर 790 रुपये, एक लीटर पेट्रोल 254 रुपये, एक लीटर डीजल 176 रुपये एवं रसोई गैस का सिलेन्डर 4149 रुपये में मिल रहा है।