Sunday, April 28, 2024
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चस्का मुफ्तखोरी का

एक कहानी पढ़ी थी कि बहेलिये ने दाना डालकर जाल बिछाया हुआ था और फिर कबूतर दाना चुगने आए और जाल में फस गए। हमें इस कहानी से यह सबक सिखाया जाता था की लालच बुरी बला है। कुछ ऐसा ही आजकल का माहौल है करोना काल में शुरू की गई गरीबों के लिए मुफ्त राशन योजना को केंद्र सरकार ने तीन महीने के लिए आगे बढ़ा दिया है हालांकि यह स्पष्ट है कि यह घोषणा 2024 में लोकसभा चुनाव को मद्देनजर रखकर किया गया है। इस योजना की घोषणा मुख्यमंत्री की शपथ के अगले ही दिन कर दी गई और दावा किया गया है कि पंद्रह करोड़ लोगों को इस योजना का लाभ मिलेगा।केंद्र सरकार ने 100 दिनों में 10000 नौकरियां और 50000 रोजगार देने का वादा किया है हालांकि पिछले वादों (हर साल 200000 रोजगार देने की घोषणा) को ठंडे बस्ते में डालकर इन वादों पर जनता की उम्मीदें टिकी हुई है। आज कबूतर की कहानी जनता पर पूरी सटीक बैठती है। उन कबूतरो में एकता थी तो साथ में जाल लेकर उड़ गए और बच गए लेकिन जनता मुफ्तखोरी के जाल में ऐसी उलझी हुई है कि मूलभूत मुद्दों पर भी उसका ध्यान नहीं जाता। आखिर मुफ्त राशन क्यों चाहिए? मूलभूत जरूरतें शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार समस्या है उस पर सवाल क्यों नहीं? मुफ्त राशन, लैपटॉप, फोन और कपड़े तात्कालिक राहतें हैं जो लोगों का मनोबल कमजोर कर मुद्दे से भटका देती हैं। क्या इस मुफ्तखोरी को बढ़ावा मिलना चाहिए? मुफ्तखोरी कै बजाय समस्याओं पर बात की जानी चाहिए।
-प्रियंका वरमा माहेश्वरी, गुजरात।