माँ शारदे की वृहद पुत्री स्वर कोकिला लता जी के जीवन का विश्लेषण हमें जीवन के बहुत सारे पक्षों पर सोचने और सीखने को प्रेरित करता है। वह लता जी जो सबके दिलों में चीर-स्थायी विराजमान रहेंगी। आइये हम उनके जीवन के कुछ पक्षों को उजागर कर उनसे सीखने का प्रयास करते है।
ज़िम्मेदारी उठाना सीखे:- लता जी के पिताजी ने अपने अंतिम समय में उन्हें घर की बागडोर दी थी। उस तेरह वर्ष की किशोरी ने छोटे-छोटे चार भाई-बहनों के पालन की ज़िम्मेदारी को सहज स्वीकार किया। जीवन पर्यंत अविवाहित रही और अपना पूरा जीवन उन चारों को समर्पित किया। आज उनके परिवार की जगह समाज के प्रतिष्ठित परिवारों में से एक है। यह भी उनकी सफलता का एक महत्वपूर्ण आयाम है।
लेख/विचार
मेरी ख़्वाहिशों की लिस्ट में ‘तुम’
कहते है दाम्पत्य जीवन से गहरा कोई बंधन नहीं होता। प्रेम से शुरू होकर करुणा की यात्रा वाला सफर, पर जब प्रेम की अभिव्यक्ति को अपने हमसफर का सुंदर एहसास मिल जाता है तो दुनिया वाकई बहुत खूबसूरत हो जाती है। एक ऐसा हमदर्द जो आपके मौन और मनोभावों को पहचानने की क्षमता रखता हो तो मन-बसंत के नवीन प्रसून खिलने लग जाते है। तेरा मेरे जीवन में होना मेरे जीवन की बगियाँ को महका देता है। तेरा होना मुझे संजने-सँवरने और कुछ नया करने को प्रेरित करता है। तू ही तो मेरे जीवन में खुशियों की सुनहरी चाबी है। तेरे साथ ही तो मैं रूठना, मनाना, गुनगुनाना, इतराना, इठलाना जैसी भावनाओं को व्यक्त करना चाहती हूँ। तेरे होने से हृदय के एक कोने में सुखों की कल्पनाओं को सँजोये रखती हूँ।
किस दिशा में जा रही है आज की युवा पीढ़ी
हिजाब, बनाम भगवा स्कार्फ़ किसके दिमाग की उपज है ये तो नहीं पता, पर अगर आज की युवा पीढ़ी ऐसे मामलों में अटकी और उलझी रहेगी तो देश का भविष्य धुँधला समझो। युवाओं की काबिलियत पर देश का भविष्य टिका होता, है देश की रीढ़ होता है युवाधन। पर आजकल देश में जो माहौल दिख रहा है वो देश के भविष्य पर एक प्रश्नार्थ खड़ा करता है। युवा स्वार्थी हो गया है या यूँ कहे की भटक गया है। वो देश की तरक्की के बारे में न सोच कर सिर्फ अपने बारे में सोचता है या नेताओं के भड़काऊँ भाषणों से प्रभावित होते अपने लक्ष्य से भटक रहे है। नारे और पत्थरबाज़ी में अटक गए है। डेमोक्रेसी का गलत फ़ायदा उठाते देश में अशांति और अराजकता फैलाने में लगी युवा पीढ़ी पर अंकुश लगाना होगा और सही दिशा में मूड़ना होगा।
‘डीवर्मिंग-डे’ मनाइये, खुश और स्वस्थ रहिये
राष्ट्रीय डीवर्मिंग दिवस को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 10 फरवरी और 10 अगस्त को द्विवार्षिक रूप से मनाया जाता है। राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस 1- 19 वर्ष की आयु के सभी बच्चों में आंतों के कृमि संक्रमण के इलाज के लिए एक निश्चित दिन है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सलाह के अनुसार नियमित रूप से डीवर्मिंग करने से बच्चों और किशोरों में कृमि संक्रमण समाप्त हो जाता है, जिससे बेहतर पोषण और स्वास्थ्य प्राप्त करने में योगदान होता है। हेल्मिंथियासिस परजीवी कृमियों से होने वाला संक्रमण या रोग है। राष्ट्रीय डीवर्मिंग दिवस को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 10 फरवरी और 10 अगस्त को द्विवार्षिक रूप से मनाया जाता है। डीवर्मिंग का कार्यान्वयन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के नेतृत्व में, महिला और बाल विकास मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय और डब्ल्यूएचओ और तकनीकी भागीदारों से तकनीकी सहायता के सहयोग से किया जाता है। इसे 2015 में लॉन्च किया गया था।
पर्वतमाला परियोजना, पहाड़ों की मुश्किल भौगोलिक स्थितियों के लिए वरदान साबित होगी
पर्वतमाला परियोजना से रोपवे के बुनियादी ढांचे संचालित प्रमुख कारकों परिवहन का किफायती माध्यम, तेज माध्यम पर्यावरण के अनुकूल लास्ट माइल कनेक्टिविटी का लाभ मिलेगा- एड किशन भावनानी
भारत तेज़ी के साथ अपने लक्ष्य विज़न 2047 सहित अनेक क्षेत्रों के बुनियादी ढांचे को नए भारत, डिजिटल भारत के अनुसार बनाने, ढांचागत सुधार करने और भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने के लिए अर्थव्यवस्था में जान फूंकने कौशलता विकास कार्यक्रमों, स्टार्टअप, एमएसएमई, डिजिटल कृषि सहित परिवहन क्षेत्र में सबसे बड़ी परियोजनाओं भारतमाला, सागरमाला और अभी बजट 2022 में प्रस्तावित पर्वतमाला परियोजनाओं को शामिल करके बुनियादी परिवहन ढांचे का आधुनिकीकरण कर दुर्गम पहाड़ी इलाकों में परिवहन कनेक्टिविटी से पर्यटन उद्योग और रोज़गार को बढ़ावा देने में मील का पत्थर साबित होगी और वर्तमान प्रस्तावित पर्वतमाला परियोजना से रोपवे के बुनियादी ढांचे संचालित करने वाले प्रमुख कारकों में परिवहन का किफायती मध्यम, तेज माध्यम, पर्यावर अनुकूल, लास्ट माइल कनेक्टिविटी का अधिक लाभ मिलने की पूर्ण संभावना है।
विश्व के लिए एक और खतरा
पिछले साल इजराइल और फिलिस्तान का युद्ध भी विश्व युद्ध का खतरे जैसी परिस्थितियों को पैदा कर चुका था लेकिन विश्व युद्ध से बच ही गया विश्व।
लेकिन अब क्या होगा जब रूस और यूक्रेन के बीच जो तनातनी चल रही हैं ये और भी ज्यादा खतरनाक हैं। यूक्रेन जो १९३९ के दौरान विश्व युद्ध में रशिया ने अपना बचाव यूक्रेन की और से ही किया था।पहले तक रशियन साम्राज्य था तब १९१७ में ये साम्राज्य बिखर गया और यूक्रेन स्वतंत्र हो गया लेकिन ३ साल बाद १९२० में वापस रशिया में शामिल हो गया।फिर १९९१ में विघटन हो रशिया १५ देशों में बंट गया। सोवियत यूनियन ऑफ रशिया में से अलग हुए देशों में से एक हैं।युद्ध के हालात का कारण क्या हैं?
“रहे ना रहे हम….. महका करेंगे”
लता जी का जाना तो एक युग का अवसान है। वह लता जी जो सुरों का संज्ञान थी, भारत की पहचान थी। आप तो अपने मधुर स्वर से हर गीत में स्वयं ही अमर हो गई। आप तो एक ऐसी सूरो की मलिका थी जिनके तराने युगो-युगो तक लोगों को गुनगुनाने और झूमने पर विवश कर देंगे। यह कैसा निष्ठुर बसंत था जो जीवन में बहार का स्वर देने वाली अनूठी कोकिला को ही मौन देकर चला गया। आपकी असीम सुर साधना की क्षमता तो आवाज के जादू से शब्दो के लौह कण को कुन्दन में सृजित और परिवर्तित करने का अनोखा जादू रखती थी। आपके बोल तो अनायास ही अधरों पर नाचने लगते थे। नश्वर शरीर का अंत तो निश्चित है, पर आपके स्वर से सजा स्वर्णिम युग सदैव जीवंत रहेगा। आपका स्वर तो पूरी दुनिया के संगीत प्रेमियों को मंत्रमुग्ध करने की क्षमता से परिपूरित था। आपकी स्वर लहरें तो दशको तक प्रशंसकों के दिल में हिलौरे मारती रहेगी।
परंपरागत भारतीय संगीत की परंपराओं को संरक्षित और सुरक्षित करना ज़रूरी
संगीत में मानवीय काया को निरोगी रखने की अपार संभावनाएं – भारतीय परंपरागत संगीत को विलुप्त से बचाने की ज़रूरत – एड किशन भावनानी
वैश्विक स्तरपर सदियों पुरानी भारतीय परंपरागत संगीत की चाहत और प्रतिष्ठा आज भी अनेक देशों में कायम है और उसे देखने, उसका अध्ययन करने, अनेक सैलानी भारत यात्रा करते हैं। हमने कई बार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और टीवी चैनलों पर देखे होंगे कि विदेशी सैलानी अनेक प्रदेशों में वहां के पारंपरिक संगीत पर नाचते झूमते हैं और बहुत खुश, संतुष्ट नज़र आते हैं। यह देखकर हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है और हम गौरवविंत होते हैं कि हम भारत देश के नागरिक हैं!!!
मुसीबतों का मारा मिडल क्लास
“शानों शौकत वाली मिल जाए उसे ज़िंदगी कहते है, दौड़धूप की मारी उम्र कटे उसे नासाज़गी कहते है”
पर हर परिस्थिति का सामना करते जो ज़िंदादिली से जिए उसे मिडल क्लास परिवार कहते है। मिडल क्लास यानी मध्यम वर्गीय परिवार जो ताउम्र मुसीबतों का मारा ही रहता है, ज़िंदगी जिसे छोड़ देती है दो पाटन के बीच पिसने के लिए। न वो अमीर की श्रेणी में आता है न गरीब कहलाता है, न वो आरक्षण का हकदार होता है न बड़ी लाॅन लेने की हैसियत रखता है।
सोशल मीडिया का मंच बिलकुल भी सुरक्षित नहीं है
फेसबुक, इंस्टाग्राम पर कुछ भी पोस्ट करने से पहले सौ बार सोचिए की जो आप पोस्ट करने जा रहे हो ये मुद्दा किसी विवाद को जन्म देने वाला तो नहीं। क्यूँकि इंसान की मानसिकता इतनी हद तक निम्न स्तर की और विकृत होती जा रही है की छोटी-छोटी बात पर गुस्सा, दंगल और खून खराबा मानों सहज सी बात हो गई है। सोशल मीडिया उसका बहुत बड़ा ज़िम्मेदार है। लोगों को लगता है ड़ाल दो कुछ भी, कौन सा फोन से निकलकर कोई हमारा कुछ बिगाड़ने वाला है। खासकर धर्मांधता ने लोगों के दिमाग को सड़ा हुआ बना दिया है। एक दूसरे के धर्म पर किचड़ उछालते पोस्ट पर ही जंग छिड़ जाती है।