ऐसे कई त्यौहार है जिसे पूरा देश एक साथ मनाता है इन्हीं पर्वों में से एक पर्व का नाम मकर संक्रांति है। विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाना जाता है। खुशी, उल्लास और उमंग से भरा यह त्यौहार उत्तर प्रदेश में खिचड़ी, पंजाब में लोहड़ी, गुजरात उत्तरायण और तमिलनाडु में पोंगल के रूप में अपनी सभ्यता और संस्कृति के आधार पर मनाया जाता है। जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तब मकर संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है। धीरे-धीरे सूर्य का प्रभाव बढ़ने लगता है और ग्रीष्म ऋतु का आगमन होने लगता है संक्रांति के दिन स्नान और दान का बहुत महत्व है
पंजाब में मकर संक्रांति
पंजाब में मकर संक्रांति को लोहड़ी के नाम से जाना जाता है। इस दिन मकर संक्रांति की पूर्वसंध्या पर लोग खुले स्थान में आग जलाते हैं और परिवार व आस−पड़ोस के लोग अग्नि की परिक्रमा करते हुए रेवड़ी व मक्की के भुने दानों को उसमें भेंट करते हैं और साथ ही आग के चारों ओर भांगड़ा करते हैं।
लेख/विचार
व्हाट्सएप और प्राइवेसी का उल्लंघन
नई नीति के तहत, व्हाट्सएप पर चैट को प्रबंधित करने के साथ-साथ व्यवसायों को स्टोर करने के लिए फेसबुक द्वारा होस्ट की गई सेवाओं का उपयोग करने का तरीका बदल जाएगा। चिंताएं इस तथ्य से निकलती हैं कि अब तक फेसबुक, आदि जैसी संस्थाओं ने इस रुख को बनाए रखा कि वे किसी के साथ उपयोगकर्ता डेटा साझा नहीं करते हैं।
सबसे लोकप्रिय मैसेजिंग ऐप में से एक व्हाट्सएप ने अपनी गोपनीयता नीति को अपडेट कर दिया है और उपयोगकर्ताओं को नए नियम और शर्तों को स्वीकार करने के लिए 8 फरवरी तक का समय दिया है। नई नीति इस मुद्दे पर चर्चा में है कि उपयोगकर्ता डेटा को किसी अन्य सोशल मीडिया प्रमुख फेसबुक के साथ अपने एकीकरण को कैसे प्रभावित किया जाता है, जो कि व्हाट्सएप की मूल कंपनी भी है। इस मुद्दे पर स्पष्ट करते हुए, व्हाट्सएप ने कहा कि गोपनीयता नीति व्हाट्सएप के व्यक्तिगत चैट के व्यवहार को नहीं बदलती है।
एक बयान में, व्हाट्सएप ने कहा: “अपडेट फेसबुक के साथ व्हाट्सएप के डेटा साझाकरण प्रथाओं को नहीं बदलता है और यह प्रभावित नहीं करता है कि लोग निजी तौर पर दोस्तों या परिवार के साथ कैसे संवाद करते हैं व्हाट्सएप लोगों की गोपनीयता की रक्षा के लिए गहराई से प्रतिबद्ध है।” लेकिन, गोपनीयता के दृष्टिकोण पर बहुत सी आशंकाएं हैं और यह हमारे डेटा को कैसे प्रभावित करता है ये सबसे बड़ा प्रश्न है ?
सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर लगाम ही आएगी काम
सोशल मीडिया की वजह से गलत खबर, फेक न्यूज, अफ़वाह, अभद्र भाषा आदि समाज में फैल गए है जो हर सेकंड व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से वायरल होते रहते है. सोशल मीडिया एक व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली संस्था है और एक ही समय में एक वरदान और शाप है. सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक स्वस्थ, संपन्न लोकतंत्र का अभिन्न अंग है. मगर उपर्युक्त समस्याएं सोशल मीडिया को कायम रखने में सक्षम बनाने और उस पर विश्वास करने में बाधक हैं. सही तरीके से, सही दृष्टिकोण, सही उद्देश्य और सही तरीके से सोशल मीडिया का उपयोग सुनिश्चित करने के लिए हमें नए नियम बनाने होंगे
सोशल मीडिया संचार, सहयोग, शिक्षा जैसे विषयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और परिणामस्वरूप सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को सार्वजनिक और सरकारी अधिकारियों की भागीदारी की तरह इसे महत्वपूर्ण मानते हैं. आज हमें सोशल मीडिया को सुरक्षित और संरक्षित रखने की जिम्मेदारी को समझने की जरूरत है ताकि यह समाज के लिए एक प्रगतिशील उपकरण के रूप में काम करे. इन प्लेटफार्मों पर बढ़ते उपयोगकर्ताओं के साथ, बढ़ती प्रौद्योगिकी और बढ़ते दुरुपयोग और दुरुपयोग के लिए प्रवृत्ति बढ़ गई है. सोशल मीडिया का वातावरण कई खतरे पैदा कर रहा है जो एक तत्काल समाधान की मांग करते हैं.
नया वर्ष कैसा होगा?
पिछला वर्ष 2020 पूरे विश्व के लिए एक ऐसी महामारी लेकर आया जिसे हम कोविड.19 के नाम से जानते हैं। इस महामारी ने पूरे विश्व को हिला कर रख दिया। ऐसा लगा मानो इस महामारी की चपेट में आकर मानव जाति का सफाया ही हो जाएगा। किंतु ईश्वर की कृपा और हमारे समाज के जिम्मेदार व्यक्तियों के अथक प्रयासों से इस महामारी पर बहुत हद तक काबू पाया जा सका। सभी लोगों को इस महामारी से बचने के लिए मास्क लगाने, हाथों को बार.बार साबुन से धोनेए सैनिटाइजर का प्रयोग करने, आपस में दूरी बनाए रखने जैसी जरूरी हिदायतें देना और उन्हें इसके लिए जागरूक बनाना भी एक बड़ी चुनौती था, पर हमारी सरकार और मीडिया कर्मियों ने यह जिम्मेदारी बखूबी निभाई और इस महामारी को तेजी से फैलने से बचाया। फिर भी कुछ लोगों की लापरवाही, अज्ञानता और दुष्प्रयासों ने कइयों की जान ले ली।
खैर अब वर्ष 2020 विदाई ले कर जा रहा है और वर्ष 2021 का हमें स्वागत करना है। अभी कोरोना जैसी महामारी का अंत तो नहीं हुआ पर 2021 की शुरुआत में ही इसकी वैक्सीन हमें मिल गई है। यह हमारे लिए एक बहुत बड़ा तोहफा है सन 2021 का। किंतु अब ब्रिटेन से कोरोना के एक शक्तिशाली स्ट्रेन के आने की खबर ने फिर से सब को डरा दिया है और अब सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या जिस वैक्सीन का आविष्कार हुआ है वह कोरोना के इस नए स्ट्रेन पर कारगर सिद्ध होगी। कई लोगों का मानना है कि हां यह कारगर सिद्ध होगी पर पूरी तरह से निश्चित न होने के कारण आशंका तो बनी ही हुई है।
हताश डोनाल्ड ट्रम्प का आखिरी करतब
हार की हताशा और सत्ता की चाहत व्यक्ति को किस हद तक गिरा सकती है। इसका साक्षी 6 जनवरी 2021 दिन बुधवार बना। जब विश्व के सबसे पुराने लोकतन्त्र के मन्दिर अमेरिकी कांग्रेस में लोकतन्त्र की गरिमा तार.तार हुई, विश्व की एकमात्र महाशक्ति का मुखिया अपनी कुर्सी बचाने के लिए इस हद तक गिर जायेगा, ऐसा शायद ही किसी ने सोचा हो। एक व्यक्ति की उन्मादी महत्वाकांक्षा की कीमत अन्ततोगत्वा एक महिला सहित चार लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। यह आश्चर्यजनक और हतप्रत कर देने वाला है कि अपनी हार को जीत में बदलने की नाकाम कोशिश करते हुए अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति ने अपने ही देश की संसद पर हिंसक हमला करवा दिया। उनके इस कृत्य की निन्दा चहुँ ओर हो रही है। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जहाँ इसे राजद्रोह की संज्ञा दी वहीँ पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसे बेहद अपमान एव शर्मिन्दगी का पल बताया। ट्रम्प समर्थकों की हरकत से नाराज उप राष्ट्रपति माइक पेंस ने इस अप्रत्याशित घटना को अमेरिकी इतिहास के सबसे काले दिन की संज्ञा दी है। उपराष्ट्रपति के अलावा ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के अनेक सीनेटर भी इस घटना से बेहद खफा हैं। अमेरिकी मीडिया ने तो डोनाल्ड ट्रम्प को खतरा करार देते हुए कहा कि वह कार्यालय में रहने के योग्य नहीं हैं। इसलिए उन्हें तत्काल पद से हटाया जाये। मीडिया द्वारा राष्ट्रपति ट्रम्प को महाभियोग प्रक्रिया या आपराधिक मुक़दमे के तहत जिम्मेदार ठहराने की भी मांग की गयी है। जर्मन की अन्तर्राष्ट्रीय रेडियो सेवा डॉयच वेले की अमेरिकी ब्यूरो प्रमुख इनेस पोल ने इस घटना के बाद लिखा कि हम एक ऐसे राष्ट्रपति का आखिरी करतब देख रहे हैं, जिसने बार.बार उन लोगों में हिंसा भड़कायीए जो उसे अपना नेता मानते हैं। ऐसा लगता है कि ट्रम्प अपनी पार्टी और उसके साथ ही लोकतन्त्र की बुनियाद को भी जलाकर तबाह करना चाहते हैं। भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने भी ट्वीटर के माध्यम से इस घटना पर दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि वाशिंगटन डीसी में दंगा और हिंसा की खबरें देखकर मैं व्यथित हूँ।शान्तिपूर्ण तरीके से सत्ता का क्रमबद्ध हस्तान्तरण जारी रहना चाहिए। लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को गैरकानूनी विरोध के माध्यम से दबाव में आने नहीं दिया जा सकता।
आखिर जनवरी में ही क्यों नया साल?
आखिर हम एक जनवरी को ही नया साल क्यों मनाते हैं? अपने देश में चैत्र महीने में नया साल, गुड़ी पाड़वा पर नया साल, दिवाली पर नया साल मनाया जाता है। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग समय पर नया साल मनाये जाने का रिवाज है लेकिन फिर भी पूरा देश एक जनवरी को नया साल मनाता ही है। तब आखिर एक जनवरी को नया साल क्यों मनाया जाता है? इसके पीछे भी एक रोचक जानकारी है। ज्यादातर लोगों को पता है कि रोमन कैलेंडर के हिसाब से जनवरी साल का पहला महीना है लेकिन एक जनवरी को नया साल मनाने की शुरुआत कब और कैसे हुई इसकी जानकारी बहुत रोचक है।
कैरी बैग के लिए अतिरिक्त लागत चार्ज करना एक अनुचित व्यापार प्रथा- राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग
उपभोक्ताओं को जागरूक होने की जरूरत- प्रशासन उपभोक्ता न्यायालय के प्रति जनता में जागरूकता लाएं- एड किशन भावनानी
भारत में उपभोक्ताओं की तादाद अगर देखी जाए तो अन्य देशों की अपेक्षा यहां अधिक है, और उपभोक्ताओं के लिए संविधान से लेकर भारतीय अनेक कानूनों में विशेष धाराओं और अनुच्छेदों में अनेक सहायता प्राप्त है और उपभोक्ताओं के लिए तो खास करके उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम(संशोधन 2019 भी है जिस पर अभी देश में लंबी बहस भी चल रही है। कृषि कानूनों के मार्फत, इसमें एक यह उपभोक्ता कानून भी है जिसमें संशोधन किया गया है। उपभोक्ताओं की सहायता के लिए ट्रायल कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक तो है ही, पर इस के लिए पूरे देश में हर जिला स्तर पर जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग बना हुआ है, और अपील के लिए हर राज्य में राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग तथा राष्ट्रीय स्तर पर अपील के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग बना हुआ है और फिर अंतिम अपील सुप्रीम कोर्ट में भी की जा सकती है…..
खबरों के पीछे दौड़ती पत्रकारिता को थोड़ी रेड लाइट की जरूरत
किसी भी मीडिया संस्थान की पहली खबर से अगर लोगों के चेहरे पर मुस्कान न आये तो वह कैसी पत्रकारिता ? आज देश भर के चैनलों और अख़बारों में खबर जहां जल्दी पहुंचाने पर जोर है, वहीं समाचार में वस्तुनिष्ठता, निष्पक्षता और सटीकता बनाए रखना भी बेहद जरूरी है। फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्क लोगों के लिए खबर का स्रोत बन गए हैं, लेकिन इनका कोई पत्रकारिता मानदंड नहीं है।
आज के दौर में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बीच मीडिया के लिए विश्वसनियता की अहमियत पहले से ज्यादा बढ़ गई है। आज देश भर के चैनलों और अख़बारों में खबर जहां जल्दी पहुंचाने पर जोर है, वहीं समाचार में वस्तुनिष्ठता, निष्पक्षता और सटीकता बनाए रखना भी बेहद जरूरी है। इंटरनेट और सूचना के आधिकार (आर.टी.आई.) ने आज की पत्रकारिता को बहुआयामी और अनंत बना दिया है। आज कोई भी जानकारी पलक झपकते उपलब्ध की और कराई जा सकती है। मीडिया आज काफी सशक्त, स्वतंत्र और प्रभावकारी हो गया है। आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं, जैसे – अखबार, पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता और सोशल मीडिया आदि।
बुनकरों के कल्याण हेतु प्रतिबद्ध सरकार
उत्तर प्रदेश में खेती के बाद अर्थव्यवस्था में हथकरघा उद्योग का महत्वपूर्ण स्थान है। हथकरघा क्षेत्र रोजगार और उत्पादन की दृष्टि से उत्तर प्रदेश देश में तीसरे स्थान पर है। आधुनिक तकनीक और डिजाइन विकास ने इस उद्योग को एक नई पहचान दिलाने में सराहनीय और प्रमुख भूमिका निभाई है। देश में कुल बुनकरों की संख्या में से एक चौथाई बुनकर उत्तर प्रदेश में है, जो प्रदेश की जनता की वस्त्र आवश्यकता में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
अत्यधिक प्रतिस्पद्र्धा वाले बाजार की परिस्थितियों और हथकरघा एवं पावरलूम से अपनी आजीविका का संचालन करने वाले बुनकरों के व्यवसाय को बेहतर बनाने हेतु अनेक कल्याणकारी कदम सरकार ने उठाये है। अनुकूल वातावरण सृजित किया गया है। गरीब बुनकरों के हालातों को सुधारने के लिये अनेक प्रभावी निर्णय लिये गये हैं, जिससे बिचैलिए बुनकरों का शोषण न कर पायें और उन्हें उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिल सके। बुनकरों को आर्थिक सहायता, कच्चे माल की सहज उपलब्धता, प्रबंधकीय एवं प्रशिक्षण की मदद, कार्यशालाओं का निर्माण, डाई एवं प्रोसेसिंग विपणन एवं ई-मार्केटिंग आदि की सुविधा उपलब्ध कराने की सुचारू व्यवस्था की गई है।
राजनीति में प्रतिभाशाली युवाओं की कमी लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी
वर्तमान समय चिंताजनक स्थिति को दर्शाता है जहाँ युवाओं का राजनीति में भाग गिरता जा रहा है| आज हमारी संसद में 35 वर्ष से कम उम्र के मात्र 20% नेता ही है और उनमे से 70 से 90 प्रतिशत केवल पारिवारिक संबंधों द्वारा ही राजनीति में आये हैं| हार्दिक पटेल और कन्हैया कुमार जैसे युवा सक्रिय राजनीति में बहुत कम हिस्सा लेते हैं|
एक देश का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि वह कितना युवा है। 15-24 वर्ष के बीच के सभी युवा, आमतौर पर कॉलेज जाने वाले छात्र होते हैं। उनके करियर विकल्प में इंजीनियर, डॉक्टर, शिक्षक, खेल, रक्षा और कुछ उद्यमी शामिल हैं। विशेष रूप से भारत के संदर्भ में, राजनीति को कैरियर विकल्प के रूप में बहुत कम लिया जाता हैं। इस प्रकार दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को परिभाषित करने और नेतृत्व करने के लिए राजनीति में युवा प्रतिभाशाली दिमागों की भारी कमी है। यह स्थान उन लोगों द्वारा लिया गया है जिनके पास आपराधिक आरोप, निरक्षर धन और बाहुबल हैं, जो सुपर पावर नेशन की लीग का हिस्सा बनने के भारत के दृष्टिकोण को खतरे में डाल रहे हैं।