Sunday, May 5, 2024
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घूस के मामलों में सांसदों, विधायकों को नहीं मिलेगी छूट

राजीव रंजन नागः नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने रिश्वत लेने के मामलों में सांसदों और विधायकों को उनके विशेषाधिकार के तहत छूट देने वाले अपने ही आदेश को पलट दिया है। अदालत ने स्पष्ट कहा है कि रिश्वत लेने से सार्वजनिक जीवन में शुचिता नष्ट हो जाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने जन-प्रतिनिधियों के विशेषाधिकार के मामले में अपने ही पुराने फैसले को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला दिया। पीठ का नेतृत्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे थे। ताजा फैसले ने 1998 में पीवी नरसिम्हा राव बनाम स्टेट मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले को पलट दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने उन मामलों में कानून निर्माताओं के लिए छूट को बरकरार रखा था जहां सांसद या विधायक सदन में भाषण या वोट के लिए रिश्वत लेते हैं।
मामला जन-प्रतिनिधियों द्वारा सदन के अंदर भाषण देने और मत डालने के लिए रिश्वत लेने का था। 1998 में अदालत ने फैसला दिया था कि सांसद और विधायकों पर इस तरह के मामलों में रिश्वत लेने के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता क्योंकि उन्हें संसदीय विशेषाधिकार का संरक्षण प्राप्त है।
लेकिन ताजा फैसले में संविधान पीठ ने कहा है कि पुराना फैसला गलत था। पीठ के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) के तहत जन-प्रतिनिधियों को संसद और विधान सभाओं के अंदर कुछ करने और कहने के लिए दी गई छूट सदन की सामूहिक कार्य प्रणाली से संबंधित है।सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सांसदों और विधायकों के विशेषाधिकार को नई रोशनी में देखा जा रहा है।
अनुच्छेद 105 (2) के तहत सांसदों को और अनुच्छेद 194 (2) के तहत विधायकों को विशेषाधिकार मिलते हैं। अदालत ने कहा कि इन विशेषाधिकारों का जन-प्रतिनिधियों के मूलभूत कार्यों से संबंध होना आवश्यक है और रिश्वत लेना इस विशेषाधिकार के तहत नहीं आता है।
पीठ ने स्पष्ट कहा कि नरसिम्हा राव मामले में दिया गया फैसला बेहद खतरनाक है और इसलिए उसे खारिज किया जाता है। ताजा फैसला जिस मामले में आया उसे सीता सोरेन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के नाम से जाना जाता है। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बड़ी भाभी सीता सोरेन पर राज्यसभा की एक सीट के लिए 2012 में हुए चुनावों में एक विशेष उम्मीदवार के लिए मत डालने के लिए रिश्वत लेने के आरोप लगे थे।
सीता उस समय झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की विधायक थीं। इस मामले की शिकायत मिलने के बाद चुनाव आयोग ने चुनावों को रद्द कर दिया था। सीबीआई ने जांच की और चार्जशीट दायर की।
उसके बाद सीता को गिरफ्तार कर लिया गया था और उन्होंने छह महीने जेल में भी बिताए थे। अभी वह जमानत पर जेल से बाहर हैं। 2014 में उन्होंने विशेषाधिकार का हवाला देते हुए झारखंड हाई कोर्ट से मामले को रद्द करने की अपील की थी। जिसे स्वीकार नहीं किया गया था। उसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अक्तूबर 2023 में मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। फैसला सुनाते हुए सात जजों की संविधान पीठ ने यह भी कहा कि सिर्फ रिश्वत लेना ही अपने आप में अपराध है और यह जरूरी नहीं कि जिस काम के लिए रिश्वत ली गई हो उसे किया गया या नहीं।
पीठ ने यह भी कहा कि रिश्वत लेने से सार्वजनिक जीवन में शुचिता नष्ट होती है और भारत के संवैधानिक लोकतंत्र की नींव कमजोर होती है। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि ताजा फैसला राज्यसभा की कार्यवाही पर भी लागू होगा और इसमें उप-राष्ट्रपति का चुनाव भी शामिल है।