Thursday, May 2, 2024
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चुनावी बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, स्टेट बैंक को कल शाम तक देना होगा ब्योरा

नई दिल्ली: राजीव रंजन नाग। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को चुनावी बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट से सोमवार (11 मार्च, 2024) को तगड़ा झटका लगा। देश की सबसे बड़ी अदालत ने एसबीआई का वह आवेदन खारिज कर दिया, जिसमें राजनीतिक दलों की ओर से भुनाए गए चुनावी बॉन्ड के डिटेल की जानकारी देने की समय-सीमा 30 जून तक बढ़ाए जाने की मांग की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान एसबीआई को आदेश दिया कि वह कल यानि कि 12 मार्च, 2024 तक सर्वोच्च अदालत को पूरे आंकड़े उपलब्ध कराए। शीर्ष अदालत के इस फैसले बाद सत्ता की गलियारों में गतिविधियां तेज हो गईं हैं। शीर्ष ने चेतावनी दी कि हम एसबीआई को नोटिस देते हैं कि यदि एसबीआई इस आदेश में बताई गई समय सीमा के भीतर निर्देशों का पालन नहीं करता है तो यह न्यायालय जानबूझकर अवज्ञा के लिए उसके खिलाफ कार्यवाही करने के लिए इच्छुक हो सकता है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी.वाई.चंद्रचूड़ ने आदेश देते हुए कहा कि एसबीआई ने कहा कि कैश कराने वाले की जानकारी भी अलग से रखी है। दोनों को मिलाना कठिन काम है। 22 हजार से अधिक चुनावी बॉन्ड साल 2019 से 2024 के बीच खरीदे गए। कुल आंकड़ा 44 हजार से अधिक है, ऐसे में उसके मिलान में समय लगेगा। हम एसबीआई का आवेदन खारिज कर रहे हैं। कल यानी 12 मार्च तक आंकड़ा उपलब्ध करायें। चुनाव आयोग 15 मार्च तक उसे प्रकाशित करे। हम अभी एसबीआई पर अवमानना की कार्रवाई नहीं कर रहे हैं पर अब पालन नहीं किया तो अवमानना का मुकदमा चलाएंगे।
15 फरवरी को, शीर्ष अदालत ने चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया और कहा कि गुमनाम चुनावी बांड सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। फैसले के हिस्से के रूप में, जारीकर्ता बैंक, एसबीआई को 12 अप्रैल, 2019 से खरीदे गए चुनावी बांड का विवरण 6 मार्च तक भारत के चुनाव आयोग को जमा करने का निर्देश दिया गया था।
कोर्ट ने पूछा दिक्कत कहां है?
वहीं, सुनवाई के दौरान एसबीआई ने जब सुप्रीम कोर्ट से वक्त देने की मांग की तो कोर्ट ने कहा कि कहां दिक्कत आ रही है? आपके पास तो सील बंद लिफाफा है, उसे खोलो और सुप्रीम कोर्ट को आंकड़ा उपलब्ध कराओ। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हमने आपको डेटा मिलान के लिए नहीं कहा था। आप आदेश का पालन कीजिए। वहीं जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि आपको सिर्फ डेटा सील कवर से निकालना है और भेजना है। सीजेआई ने बैंक से ये भी पूछा कि आपने पिछले 26 दिनों में क्या काम किया, कितना डेटा मिलान किया ? हमने आपको ऐसा करने का निर्देश नहीं दिया।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, और जस्टिस संजीव खन्ना, बी.आर. गवई, जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के खिलाफ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), कॉमन कॉज और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) द्वारा दायर अवमानना याचिकाओं के साथ एसबीआई की विस्तार याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। एडीआर की स्टेट बैंक आफ इडिया के खिलाफ अवमानना का मामला चलाने की याचिका पर भी सुनवाई हुई। पांच जजों का संविधान पीठ सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच में सुनवाई हुई।
एसबीआई के वकील हरीश शाल्वे ने कहा, “हमने एक्स्ट्रा टाइम की रिक्वेस्ट की है। आदेश के मुताबिक, हमने चुनावी बॉन्ड देना बंद कर दिया है। आंकड़े देने में भी कोई समस्या नहीं है लेकिन उन्हें व्यवस्थित करने में कुछ समय लगेगा।” इसके पीछे कारण बताते हुए शाल्वे ने आगे कहा, “इसका कारण ये है कि हमें पहले बताया गया था कि ये गुप्त रहेगा, इसलिए बहुत कम लोगों के पास इसकी जानकारी थी। ये बैंक में सभी के पास उपलब्ध नहीं था।”
स्टेट बैंक की तरफ से पैरवी कर रहे हरीश शाल्वे ने कहा- हमारी एकमात्र समस्या यह है कि हम पूरी प्रक्रिया को उलटने की कोशिश कर रहे हैं। हमारी एसओपी ने सुनिश्चित किया कि हमारे कोर बैंकिंग सिस्टम और बॉन्ड नंबर में खरीदार का कोई नाम नहीं था। हमें बताया गया कि इसे गुप्त रखा जाना चाहिए। हम जानकारी एकत्र करने की कोशिश कर रहे हैं। सीजेआई ने कहा कि आप कहते हैं कि दाता का विवरण एक निर्दिष्ट शाखा में एक सीलबंद लिफाफे में रखा गया था। सभी सीलबंद लिफाफे मुंबई में मुख्य शाखा में जमा किए गए थे। दूसरी ओर राजनीतिक दल 29 अधिकृत बैंकों से पैसा भुना सकते हैं। हरीश साल्वे ने दलील दी कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने की तारीख और खरीदने वाले का नाम एक साथ उपलब्ध नहीं है, उसे कोड किया गया है। उसे डिकोड करने में समय लगेगा।