Saturday, April 27, 2024
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दिल्ली हाईकोर्ट ने अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाने की याचिका खारिज की

दिल्लीः राजीव रंजन नाग। उच्च न्यायालय ने गुरुवार को उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिसमें शराब घोटाला नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तारी के बाद आप नेता अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि न्यायिक हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। अगर सवैंधानिक संकट की स्थिति होगी तो उप राज्यपाल या राष्ट्रपति उसके मुताबिक फैसला लेंगे। इस मामले में कोर्ट के दखल की गुंजाइश कहां बनती है ?
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मुद्दे की योग्यता पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और कहा कि यह न्यायिक हस्तक्षेप के दायरे से बाहर है।
पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा भी शामिल थे, ने कहा, ’कानून के अनुसार जांच करना सरकार के अन्य अंगों का काम है।’ सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता सुरजीत सिंह यादव के वकील से अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री बने रहने पर कानूनी रोक लगाने को कहा। कोर्ट ने पूछा ’व्यावहारिक कठिनाइयाँ हो सकती हैं लेकिन वह कुछ और है। कानूनी बाधा कहाँ है?
आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक, जिन्हें 21 मार्च को गिरफ्तार किया गया था और बाद में दिल्ली की एक अदालत ने 28 मार्च तक प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की हिरासत में भेज दिया था, उन पर उत्पाद शुल्क के निर्माण से संबंधित साजिश में सीधे शामिल होने का आरोप है।
कोर्ट ने कहा, हम अपनी ओर से दिल्ली में राष्ट्रपति शासन नहीं लगा सकते। कोई हाई कोर्ट ऐसा नहीं कर सकता। इस मामले में कोर्ट के दख़ल का कोई औचित्य नहीं है। कोर्ट के प्लेटफार्म का इस्तेमाल राजनतिक बहस के लिए नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा हिरासत में से सरकार चलाने में व्यहारिक दिक्कत हो सकती है पर हमारे आदेश पास करने की ज़रूरत नहीं है। उप राज्यपाल या फिर राष्ट्रपति देखेंगे। हमें उन्हें निर्देश देने की ज़रूरत नहीं है।
कोर्ट ने कहा, ’क्या न्यायिक हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश है? हमने आज के अखबार में पढ़ा कि एलजी इस मुद्दे की जांच कर रहे हैं। इसके बाद यह राष्ट्रपति के समक्ष जाएगा। वह एक अलग विंग के लिए है। हम समझते हैं कि कुछ व्यावहारिक कठिनाइयाँ हो सकती हैं। कोई भी आदेश क्यों पारित किया जाना चाहिए ? हमें राष्ट्रपति या एलजी को कोई मार्गदर्शन नहीं देना है। कार्यकारी शाखा राष्ट्रपति शासन लागू करती है। उनका मार्गदर्शन करना हमारा काम नहीं है। हम इसमें कैसे हस्तक्षेप कर सकते हैं? मुझे यकीन है कि कार्यकारी शाखा इस सब की जांच कर रही है।
उधर, दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को केजरीवाल द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर प्रवर्तन निदेशालय को नोटिस जारी किया था। तत्काल कोई राहत नहीं देते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई ईडी रिमांड को भी चुनौती दी थी।
हाई कोर्ट ने कल यह भी कहा था कि यह गिरफ्तारी अलोकतांत्रिक और गैरकानूनी हो सकती है और इसीलिए हाई कोर्ट ने ईडी को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि केजरीवाल के मुख्यमंत्री बने रहने में कोई कानूनी रोक नहीं है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह राजनीति में नहीं आएगा और अंततः जनता इन मुद्दों पर फैसला करेगी। कोर्ट ने कहा, ’हमें इस राजनीति में नहीं पड़ना चाहिए। राजनीतिक दल इसमें पड़ेंगे। वे जनता के सामने जाएंगे… यह हमारे लिए नहीं है।’
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, इस अदालत का मानना है कि जनहित याचिका में मांगी गई राहत के संबंध में न्यायिक हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। जनहित याचिका खारिज की जाती है। हमने गुण-दोष पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
याचिका में दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष राम निवास गोयल और दिल्ली के शिक्षा मंत्री आतिशी के टीवी साक्षात्कारों का हवाला देते हुए कहा गया है कि केजरीवाल इस्तीफा नहीं देंगे और जरूरत पड़ने पर जेल से सरकार चलाएंगे। याचिका में कहा गया है कि केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने से न केवल कानून की उचित प्रक्रिया में बाधा आएगी और न्याय की प्रक्रिया बाधित होगी बल्कि इससे दिल्ली में संवैधानिक मशीनरी भी चरमरा जाएगी। इस पृष्ठभूमि में, यह तर्क दिया गया कि उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों को संविधान का पालन करना चाहिए और कानून का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
इसके अलावा, इसमें कहा गया है कि वित्तीय घोटाले में आरोपी सीएम को पद पर बने रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि उन्होंने एक सार्वजनिक पद पर कब्जा करने का अधिकार खो दिया है जो उच्च स्तर की संवैधानिक नैतिकता की मांग करता है।
याचिका में कहा गया है कि मुख्यमंत्री बनने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 163 और 164 के प्रावधानों का सख्ती से पालन करने की आवश्यकता है। यह दलील दी गई कि केजरीवाल अपनी कैद के कारण इन दोनों अनुच्छेदों के अधिकांश अंगों को संतुष्ट नहीं करते हैं। इसमें दलील दी गई कि केजरीवाल का वेतन न्यायोचित नहीं होगा क्योंकि वह अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर पाएंगे।
जनहित याचिका में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि अगर केजरीवाल जेल से अपनी ड्यूटी निभाते हैं तो जेल अधिकारियों को उनके पास जाने वाले किसी भी दस्तावेज की जांच करनी होगी, जो संविधान की तीसरी अनुसूची के तहत केजरीवाल की गोपनीयता की शपथ का उल्लंघन होगा। याचिका में कहा गया है कि मुख्यमंत्री होने के नाते केजरीवाल को उन मामलों में जांच फाइलों की मांग करने का अधिकार है, जिनमें वह आरोपी हैं।