Thursday, September 12, 2024
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इला अरुण का नया नाटक ‘पीछा करती परछाइयाँ’, महिलाओं से पुरानी परंपराओं पर सवाल उठाने की करता अपील

मुंबई। कुछ साल पहले, जब इला अरुण को थिएटर विशेषज्ञ और लाइटिंग डिजाइनर निसार अल्लाना ने हेनरिक इब्सेन के नाटक को रूपांतरित करने के लिए आमंत्रित किया, तो इला ने इस नॉर्वेजियन नाटककार की कहानियों में खुद को डुबो दिया। इला को उनकी रचनाएं इतनी प्रासंगिक लगीं कि वे उन्हें भारतीय संदर्भ में पुनः कल्पित करने लगीं। 2016 में पहली बार उनके द्वारा इब्सेन के लिखे गए नाटक ‘घोस्ट्स’ का रूपांतरण ‘पीछा करती परछाइयाँ’ मंच पर प्रदर्शित किया गया और अब इसका टेलीप्ले संस्करण ज़ी थियेटर के माध्यम से छोटे पर्दे पर उपलब्ध होगा। इस नाटक का निर्देशन अभिनेता और निर्देशक के के रैना ने किया है और भारत भर में पचास से अधिक सफल प्रस्तुतियों के बाद, इसका प्रीमियर 25 अगस्त को टाटा प्ले पर होगा।
इला ने इब्सेन की कहानी को एक पारम्परिक राजस्थानी घराने में बसाया है, जहाँ पीढ़ीगत वेदना व्यापित है। इला इसमें रानी यशोधरा (बाई साहेब) की केंद्रीय भूमिका निभा रही हैं, जो परंपरा और परिवार की इज्जत के कारण अपने दिवंगत पति महाराजा कुंवर विराज भानु प्रताप सिंह के राज़ छिपाने के लिए मजबूर है। लेकिन जब ये विषैले राज़ वर्तमान में प्रकट होते हैं, तो उसके युवा पुत्र पर विनाशकारी प्रभाव डालते हैं। ये मार्मिक भूमिका टीवी कलाकार परम सिंह ने निभाई है। के के रैना इसमें एक पितृसत्तात्मक पुजारी का किरदार निभाते नजर आएंगे। इसमें प्रियाम्वदा कांत और विजय कश्यप भी महत्वपूर्ण किरदारों में नज़र आएंगे। टेलीप्ले का फिल्मांकन निर्देशक सौरभ श्रीवास्तव ने किया है।
अपने किरदार के बारे में बात करते हुए, इला कहती हैं, ‘मैं राजस्थान से हूँ और वहाँ के माहौल की समझ ने मुझे बाई साहेब के उलझे हुए चरित्र को जीवंत करने में मदद की। राजस्थानी महिलाएँ बहुत कोमल और पारम्परिक लगती हैं, लेकिन साथ ही वे एक योद्धा का शौर्य भी रखती हैं। बाई साहेब भी एक पारंपरिक महिला हैं और संकट के समय में वह अपने बेटे की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करती है।’
नाटक में निहित नारीवाद के बारे में बात करते हुए, इला कहती हैं, ‘कोई फर्क नहीं पड़ता कि एक महिला किस युग की है, क्योंकि उसे हमेशा एक महिला ही समझा जाता है और उस से हर युग में परंपरा के अनुसार चलने की उम्मीद की जाती है। यशोधरा जिस युग की है, उसे बोलने की स्वतंत्रता नहीं दी गई, लेकिन एक लेखक और आज की महिला के रूप में, मैंने उसके और उसकी जैसी अन्य महिलाओं के लिए अपनी आवाज उठाई है। मुझे आशा है कि इस टेलीप्ले को देखने वाली हर महिला प्रेरित महसूस करेगी कि वह अपनी बात कहे और पुरानी परंपराओं पर सवाल उठाने की ताकत अपने भीतर संजो पाए।’