Saturday, April 20, 2024
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 श्रीलंका में भारत विरोध के स्वर 

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पंकज के. सिंह

भारत-श्रीलंका के बीच आशंकाओं के दौर का लाभ उठाते हुए चीन ने श्रीलंका के साथ अपनी नजदीकियां बहुत ज्यादा बढ़ा ली हैं। श्रीलंका-चीन संबंध भविष्य में भारतीय कूटनीतिक एवं सामरिक हितों को प्रभावित कर सकते हैं। भारत को श्रीलंका में चीन के बढ़ते प्रभुत्व पर सतर्क दृष्टि बनाए रखने की आवश्यकता है। श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना अपने पहले चीन दौरे में कई महत्वपूर्ण सामरिक मुद्दों पर चर्चा की थी। यहां सिरिसेना व उनके चीनी समकक्ष शी जिनपिंग ने हिंद महासागर में सुरक्षा को लेकर भारत की चिंता दूर करने के लिए तीनों देशों के बीच त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने को लेकर बात की। इसके अलावा दोनों ने सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने को लेकर भी वार्ता की। चीन की समुद्री सिल्क रोड योजना से देश की सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर भारत ने चिंता जताई थी। इसी को लेकर चीन ने सिरिसेना के सामने भारत, चीन व श्रीलंका के बीच त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने का प्रस्ताव रखा। चीन के सहयोगी विदेश मंत्री लियु जिंयकाओ ने बताया कि इस प्रस्ताव को लेकर दोनों नेताओं ने हामी भरी है। जिंयकाओ ने कहा कि सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र में सहयोग तीनों देशों के लिए लाभदायक होगा। यह चीन और दक्षिण एशिया सहयोग का हिस्सा है। सिरिसेना ने इस बैठक में यह उम्मीद भी जताई कि कोलंबो बंदरगाह शहर परियोजना जारी रहेगी। श्रीलंका की पूर्व सरकार द्वारा भारत के विरुद्ध अनर्गल और अतार्किक दुष्प्रचार किया गया था। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे ने श्रीलंका की विदेश नीति को पूरी तरह चीन  के पक्ष में मोड़ दिया था। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे अति आत्मविश्वास के चलते चुनाव हार चुके हैं, परंतु राजपक्षे अभी तक अपनी इस हार को पचा पाने में असमर्थ रहे हैं। उन्होंने हाल ही में अपनी हार के लिए भारत तक जिम्मेदार ठहरा दिया है। बेहतर होता कि राजपक्षे अपनी कार्यप्रणाली और नीतियों पर विचार करते, जिनसे श्रीलंकाई जनता संतुष्ट नहीं थी, अन्यथा उन्हें ऐसी पराजय का सामना न करना पड़ता। राजपक्षे ने एक बयान में दावा करते हुए यह कहा है कि, ‘‘भारत, अमेरिका और यूरोपीय देश मुझे चुनाव हराने में बहुत अधिक सक्रिय थे। यह सभी जानते हैं कि यूरोप और विशेषतः नॉर्वे के लोग घोषित तौर पर हमारे विरुद्ध थे। भारतीय खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ ने हमें चुनाव हराने के लिए बहुत सक्रिय भूमिका निभाई।’’ राजपक्षे ने यह भी दावा किया कि भारत और अमेरिका जैसे देशों ने अपने दूतावासों का प्रयोग उन्हें सत्ता से बेदखल करने के लिए किया। राजपक्षे ने यह बयान ऐन उस समय दिया, जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीलंका की यात्रा पर थे। स्पष्ट है कि राजपक्षे ने भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा का समय ऐसे विवादित बयान देने के लिए जान-बूझकर चुना। श्रीलंका मीडिया का एक धड़ा भी राजपक्षे की इस मुहिम में उनके साथ रहा है।

एक श्रीलंकाई मीडिया रिपोर्ट में यह दावा किया गया कि श्रीलंकाई चुनावों में महिंद्रा राजपक्षे के विरुद्ध समस्त विरोधी राजनैतिक दलों को एकजुट करने में एक ‘रॉ’ अधिकारी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसी रिपोर्ट के मुताबिक एक भारतीय अधिकारी को ऐसे ही कारणों के आधार पर श्रीलंका छोड़ने के लिए भी निर्देशित किया गया था। यद्यपि भारत ने स्पष्ट रूप से इन समस्त आरोपों को दरकिनार करते हुए कहा कि कोलंबो से स्थानांतरित किए गए समस्त राजनयिक तीन वर्ष की नियमित स्थानांतरण अवधि के पूर्ण होने के आधार पर ही हटाए गए हैं और विदेश मंत्रालय के निर्धारित नियमों के अंतर्गत इस प्रकार के स्थानांतरण एक सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा रहे हैं। स्पष्ट है कि श्रीलंका की पूर्व सरकार द्वारा किए गए प्रयासों के कारण चीन का श्रीलंका में प्रभुत्व और दबदबा बहुत अधिक बढ़ गया है। चीन के बढ़ते दखल के कारण ही श्रीलंका में भारत विरोध के स्वर उठने लगे हैं। भारत को इस संदर्भ में कूटनीतिक एवं सामरिक दृष्टि से अत्यधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है और सुविचारित कदम उठाते हुए सूझ-बूझ के साथ श्रीलंका को पुनः भारतीय दृष्टि के हिसाब से ढालने की आवश्यकता है। हिंद महासागर क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में भारत बहुत पिछड़ गया था। हिंद महासागर क्षेत्र में पुनः सामरिक बढ़त तथा व्यापारिक प्रभुत्व बनाने के लिए भारत को बहुत गंभीर एवं सुविचारित सघन प्रयास करने की आवश्यकता होगी। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई ऐसे देशों की ओर संबंध प्रगाढ़ करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं, जो एक लंबे अरसे से भारतीय संस्कृति और सभ्यता के निकट रहे हैं। सेशेल्स, मॉरीशस और श्रीलंका की यात्रा से हिंद महासागरीय क्षेत्र में भारत की सक्रियता और प्रभाव को बढ़ाने की दृष्टि से भारतीय प्रधानमंत्री ने भारत के निकट रहे इन देशों के साथ पुनः द्विपक्षीय संबंधों को उष्मा प्रदान करने की सार्थक कोशिश की है। उल्लेखनीय है कि किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा 34 वर्षों की लंबी अवधि के बाद सेशेल्स की यात्रा की गई, जबकि 28 वर्षों के लंबे काल के उपरांत किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने श्रीलंका का रुख किया। किसी भारतीय प्रधानमंत्री की मॉरीशस यात्रा भी नौ वर्षों बाद हुई है।