Sunday, April 28, 2024
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प्रो. एम. एस. स्वामीनाथन कृषि के विश्व गुरु हैंः उपराष्ट्रपति

कृषि को अत्यंत महत्व दिया जाए और संसाधन आवंटन को प्राथमिकता दी जाए
सख्त मौसम का मुकाबला करने वाली फसलें विकसित की जाएं
कृषि पुनर्जागरण, परोक्ष भुखमरी और पोषाहार की कमी दूर करने की आवश्यकता
प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रोफेसर एम. एस. स्वामीनाथन को पहला विश्व कृषि पुरस्कार प्रदान किया
नई दिल्ली, जन सामना ब्यूरो। उपराष्ट्रपति एम. वैंकेया नायडू ने प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक प्रो. एम. एस. स्वामीनाथन को कृषि का विश्व गुरु, शिक्षक और विद्वान बताया है, जिन्होंने पूरे विश्व पर अपने प्रेरक और आदर्श विचारों की छाप छोड़ी है। उपराष्ट्रपति आज नई दिल्ली में प्रो. एम. एस. स्वामीनाथन को पहला विश्व कृषि पुरस्कार प्रदान करने के बाद उपस्थितजनों को संबोधित कर रहे थे। यह पुरस्कार भारतीय खाद्य एवं कृषि परिषद ने आरंभ किया है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि प्रो. एम. एस. स्वामीनाथन ने हरित क्रांति की शुरूआत की और भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए मजबूत आधारशिला रखी। उन्होंने कहा कि प्रो. एम. एस. स्वामीनाथन के दृष्टिकोण और विचारों की स्पष्टता ने कृषि वैज्ञानिकों की एक पूरी पीढ़ी को आकर्षित किया है।
उपराष्ट्रपति ने नीति निर्माताओं का आह्वान किया कि कृषि को उच्च प्राथमिकता दी जाए क्योंकि यह क्षेत्र 50 प्रतिशत आबादी को रोजगार प्रदान करता है। उन्होंने आग्रह किया कि संसाधनों के आवंटन के समय ग्रामीण क्षेत्रों और कृषि के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाया जाए। उन्होंने कहा कि किसानों को प्रेरित करने के लिए कृषि को अत्यंत महत्व देने की जरूरत है। इसके साथ बुनियादी ढांचा, सिंचाई, निवेश, बीमा और ऋण उपलब्ध कराने को भी महत्व दिया जाना चाहिए।
विकास के पैमानों पर दोबारा गौर करने की जरूरत तथा कृषि को आर्थिक रूप से उपयोगी और आकर्षक बनाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए श्री नायडू ने वैज्ञानिकों, नीति.निर्माताओं और किसानों के बीच नियमित और प्रभावशाली समन्वय का आह्वान किया।
कृषि गतिविधियों में लोगों की दिलचस्पी कम होने के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे कई मद्दे हैं जिन्हें मिलकर हल करना होगा। क्योंकि वे कृषि क्षेत्र के विकास और कृषि पर निर्भर लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं।
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का उल्लेख करते हुए श्री नायडू ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का कृषि सहित जीवन के हर पक्ष पर प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं से कहा कि वे जलवायु परिवर्तन, संसाधनों की कमी और खाद्यान्न की बढ़ती मांग से निपटने के लिए रणनीति बनाएं। उन्होंने कहा, ’कृषि क्षेत्र में नीतियों में बदलाव का समय आ गया है। हमें जलवायु का मुकाबला करने वाली फसलों के विकास पर ध्यान देना होगा। हमें ऐसी फसलें विकसित करनी होंगी जो सख्त मौसम का मुकाबला कर सकें।’
उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज दुनिया के सामने परोक्ष भुखमरी और पोषाहार की कमी बड़ी चुनौतियां हैं। उन्होंने कहा कि इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कृषि पुनर्जागरण और सर्वकालिक हरित क्रांति से कम में काम नहीं बनने वाला, जिसमें पोषण मुख्य घटक के रूप में मौजूद हो।
उल्लेखनीय है कि विश्व कृषि पुरस्कार की शुरूआत भारतीय खाद्य एवं कृषि परिषद ने की है, जो उन प्रतिष्ठित व्यक्तियों को दिया जाता है, जिन्होंने कृषि तथा उससे संबंधित सेवाओं के जरिए मानवजाति की सेवा की हो।
इस अवसर पर वाणिज्यिक एवं उद्योग मंत्री सुरेश प्रभुए केरल के राज्यपाल न्यायमूर्ति पी. सत्यसिवम, हरियाणा के कृषि मंत्री ओम प्रकाश धनकड़ और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद तथा भारतीय खाद्य एवं कृषि परिषद के प्रतिनिधि सहित 200 किसान भी उपस्थित थे।