Thursday, April 25, 2024
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और कब तक प्राण हरेगी गंगा…!

लखनऊ, प्रियंका वरमा माहेश्वरी। बनारस में पिछले हफ्ते गंगा के पानी में मालवाहक जहाज चलाकर प्रधानमंत्री ने देश को यह बताने की कोशिश की कि गंगा अब पूरी तरह साफ़ हो चुकी है और उसमें इतना अधिक और निर्मल जल है कि उसके जरिये नया व्यापारिक रास्ता खुल गया। प्रधानमंत्री ने इसे न्यू इण्डिया का जीता-जागता उदाहरण बताया और उनका गंगा सफाई का संकल्प पूरा होने को है जो उन्होंने चार साल पहले लिया था। उन्होंने अपनी पूर्ववर्ती सरकारों को नाकारा बताते हुए बताया कि ’हमने गंदे पानी को गंगा में गिरने से रोका। जगह-जगह ट्रीटमेंट प्लांट लगवाये। आज अकेले 400 करोड़ की परियोजना बनारस में चल रही है।’ वहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, मंत्रियों ने इसे काशी को क्योटो बनाने के प्रधानमंत्री के वायदे से जोड़ा। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश सरकार प्रदेश में यमुना नदी को गंगा से जोड़कर नोएडा से आगरा, प्रयागराज से वाराणसी के जलमार्ग हल्दिया से जोड़ने की कवायद करने में लगी है। मगर सवाल उठता है कि इससे पहले जो भी बयान संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों ने दिए हैं क्या वे गलत हैं या गंगा सफाई का काम समय से पूर्व कर लिया गया। या फिर यह सारा स्टंट चुनावी है और मालवाहक जहाज उधार के पानी पर तैर रहा है?
इस सबसे अलग गंगा सफाई का काम पिछले 30 वर्षों से चला आ रहा हैए लेकिन अभी तक कोई सुखद परिणाम या सफलता हासिल नहीं हुई है। पिछले दिनों स्वामी सानंद के बलिदान ने इस मुद्दे को फिर से हवा दे दी है। दिसम्बर, 2018 तक गंगा स्वच्छ हो जाएगी इस बात का दावा करने वाली सरकार को इस कार्य में आशातीत सफलता हासिल नहीं हुई है। केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि 2019 तक गंगा 70.80 प्रतिशत तक साफ हो जाएगी, मगर नतीजा सिफर रहा। इसी तरह उमा भारती का दावा था कि 2018 की समाप्ति तक गंगा को स्वच्छ देख सकेंगे। उमा भारती के दावे को जल संसाधन सचिव यूपी सिंह ने प्रमाणित किया था, उन्होंने 2016.17की अपेक्षा पानी की गुणवत्ता में सुधार बताया था। डी ओ (विघटित ऑक्सीजन) के स्तर में 33 जगहों पर सुधार बताया गया। 26 जगहों पर बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) स्तर और कोलिफोर्म बैक्टीरिया 30 जगहों पर कम बताए गए। लेकिन क्या इससे तय हो जाता है कि 2019 तक गंगा 70.80 प्रतिशत तक साफ हो जाएगी?
एक साल पहले दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) गंगा नदी के बहने वाले राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के 10 कस्बों और शहरों का सर्वे किया और पाया कि कस्बों को अपने फिकल (मलमूत्र) भार का प्रबंधन करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। नमामि गंगे अभियान में नदी में सीवेज के प्रभाव को रोकने पर ध्यान दिया गया लेकिन फिकल कीचड़ पर ध्यान नहीं दिया गया परिणामस्वरूप सुविधाओं के अभाव में यह गंगा में मिल जाती है और कई जगहों पर सीवर लाइन उपलब्ध है लेकिन वह घरों से नहीं जुड़ी हुई है, जिसकी वजह से गंगा में फैलने वाली गंदगी को रोका नहीं जा सकता है। गौरतलब है कि गंगा में मिलने वाले सभी बड़े नालों के डीपीआर बनाने में सरकार ने 3 से 4 साल का समय लिया। जब डीपीआर बनने में इतना समय लग गया तो उसके क्रियान्वयन में कितना समय लगेगा?
एनजीटी ने पिछले साल गंगा सफाई पर कहा था कि अब तक सात हजार करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं, लेकिन गंगा की सफाई में लेशमात्र भी सुधार नहीं हुआ है। एनजीटी ने कहा कि खर्च और ध्यान देने के बावजूद गंगा अब और ज्यादा प्रदूषित हो गई है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई गई फटकार के बावजूद सरकार पर कोई असर दिखाई नहीं देता है। एक स्वामी सानंद ही नहीं बल्कि गंगा की सुरक्षा को लेकर सरकार को जगाने और अनशन पर बैठे गोपालदास, जिन्हें 130 दिन बाद बद्रीनाथ अनशन स्थल से तबीयत बिगड़ने पर एम्स में भर्ती कराया गया, जैसे महापुरूष अपने जीवन की भी परवाह नहीं कर रहे हैं और जो लगातार गंगा की सुरक्षा के लिए सबको चेता रहे हैं।
भ्रष्टाचार, धार्मिक कर्मकांड, प्रशासनिक उदासीनताए रासायनिक कचरा के कारण गंगा स्वच्छ अभियान में रुकावट आ रही है। इन सब पर लगाम कसनी चाहिए। भ्रष्टाचार और सरकार का ढुलमुल रवैया कब खत्म होगा? आखिर कब तक स्वामी सानंद और गोपालदास जैसे गंगा सुरक्षा समर्पित सेवकों को अपना जीवन अर्पण करते रहना होगा? और आखिर कब अविरल गंगा स्वच्छ हो पाएगी?