Saturday, April 27, 2024
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आ गया चरणवंदगी का दौर

उत्तर प्रदेश सहित अन्य चार राज्यों में चुनावी बिगुल बज चुका है और सभी दलों ने दांव पेंच आजमाना शुरू कर दिया है। जनता का विश्वास पाने के लिए भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस सहित सभी दलों के नेताओं ने अपने अपने खासमखासों को वोट बटोरने की जिम्मेदारी देनी शुरू कर दी है। सदन की कुर्सियों पर नेताओं की निगाहें टिक गई हैं और उनके सपनों में अब विजयश्री ही दिख रही है। वर्तमान में अगर गौर करें तो नेताओं को एक भिखारी में भी भगवान दिखने लगे हैं। जिनसे नेताजी चरणवन्दगी करवाते रहे हैं उनके सामने आते ही ऐसे चरणों में गिर रहे हैं मानों उन्हें वही भगवान के दर्शन हो रहे हैं जिनकी उन्हें तलाश थी। नजारों को देखकर ऐसा लगने लगा है कि पांचवें साल में चरणवंदगी का दौर फिर आ गया है।
वहीं क्षेत्रीय प्रत्याशियों द्वारा वोटरों को लुभाने के लिए प्रलोभनों का दौर भी गुपचुप तरीके से चालू करवा दिया गया है। हालांकि सभी दलों के घोषणा पत्रों के द्वारा भी चुनावी समय में प्रलोभन दिए जाने की प्रथा है लेकिन नतीजे आने के बाद वही घोषणा पत्रों को दफना दिया जाता है और जनता को उनके खुद के भरोसे छोड़ दिया जाता है, हालांकि इसके जिए जन प्रतिनिधि कहलाने वाले कम दोषी हैं क्योंकि चुनाव जीतने वाले नेताओं से उनके द्वारा किए गए वादों का हिसाब किताब जनता खुद नहीं रखती है और न ही जवाब लेने के लिए वह नेताओं को कुरेदना चाहती है। चाहे यूं कहें कि आम जन को अपनी रोजी रोटी की तलाश करने के अलावा अन्य कार्यों के लिए समय ही नहीं बचता।
कहने के लिए चुनाव हर पांच साल में आ जाते हैं और सभी दलों के यही वादे होते हैं कि अगर हमें मौका दिया तो शहर या गांव हर तरफ विकास की गंगा बहा देंगे और गौर करने वाली बात यह है कि जनता ने जिसे भी सूबे की या देश की जिम्मेदारी दी वह विकास की गंगा क्या विकास का नाला भी नहीं बहाता। हां, यह जरूर है कि जो भी एक बार विधायक या सांसद बन गया उसकी कई पीढ़ियां मालामाल हो जाती हैं।
वहीं लोकतंत्र की बात करें तो इसमें एक पहलू यह भी है जिसे एक कलंक के सिवाय कुछ नहीं कहा जा सकता है कि जो लोग चुनावी समर में क्षेत्र की 5-10 प्रतिशत जनता को अच्छे नहीं लगते, उन्हें चोर दरवाजे से उच्च सदन में सुशोभित कर दिया जाता है और वो अपना कार्यकाल बहुत ही रौब के साथ पूरा करते हैं। देश की जनता के पैसे का लुत्फ उठाते हैं और उन्हें विकास से शायद कुछ लेना देना नहीं होता है क्योंकि वो अपनी जेब भरने की जुगाड़ में लगे हैं।
वोट द्वारा सरकार बदलने अथवा बनाने का मौका पांच साल में एक बार आता है तो जनता को चाहिए कि किसी भी नेता अथवा दल के प्रलोभनों में ना आए और अपना मत बहुत सोंच समझकर प्रयोग करे, जिससे कि आने वाले समय को सुधारा जा सके।