Thursday, May 9, 2024
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नागा साधुओं की रहस्यमयी जीवनशैली

नागाओं की एक अलग ही रहस्यमय दुनिया है। चाहे नागा बनने की प्रक्रिया हो या उनका रहन-सहन सब कुछ रहस्य मय है। नागा साधुओं को वस्त्र धारण करने की भी अनुमति नहीं होती। अगर वस्त्र धारण करने हो, तो सिर्फ गेरुआ रंग के वस्त्र ही नागा साधु पहन सकते हैं। वह भी सिर्फ एक वस्त्र, इससे अधिक गेरुआ वस्त्र नागा साधु धारण नहीं कर सकते।नागा साधुओं को शरीर पर सिर्फ भस्म लगाने की अनुमति होती है। नागाओं का यह श्रृंगार सिर्फ कुंभ के दौरान होने वाले स्नान के वक्त नजर आता है।मान्यता है कि सभी श्रृंगारों से युक्त नागा के दर्शन से कई जन्मों का पुण्य मिलता है।अखाड़ों से जुड़े नागा संतों का कहना है कि इस श्रृंगार की एक विधि है और यह सिर्फ खास अवसर पर किया जाता है। 17  श्रृंगार से सुसज्जित नागा अपने इष्ट यानी भगवान भोलेनाथ और भगवान विष्णु की पूजा करता है।
एक नागा श्रृंगार में लंगोट, भभूत, चंदन, पैरों में लोहे या चांदी का कड़ा, अंगूठी, पंचकेस, कमर में फूलों की माला, माथे पर रोली का लेप, कुंडल, हाथों में चिमटा, डमरू या कमंडल, गुथी हुई बताएं जटायें, तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, बदन में विभूति का लेप, बाहों पर रुद्राक्ष की माला शामिल होती है। आमतौर पर एक सुहागिन महिला सोलह सिंगार करती है लेकिन यह नागा साधु अपने 17वें सिंगार के लिए जाने जाते हैं। 17वाँ सिंगार है “भस्म” जो कि नागा साधुओं का एकमात्र परिधान होता है। हर नागा अपने शरीर पर सफेद भस्म और रुद्राक्ष की मालाओं के अलावा कुछ नहीं पहनता। मान्यता है कि भगवान शंकर ऐसे ही 11000 रुद्राक्ष मालायें धारण करते थे।नागा साधुओं की ट्रेनिंग कमांडो ट्रेनिंग से भी ज्यादा कठिन होती है। उन्हें दीक्षा लेने से पहले खुद को उसके लिए योग्य साबित करना पड़ता है। उन्हें खुद का पिंडदान और श्राद्ध तर्पण करना पड़ता है। पुराने समय में अखाड़ों में नागा साधुओं को मठों की रक्षा के लिए एक योद्धा की तरह तैयार किया जाता था। मठो़ं और मंदिरों की रक्षा करने वाले इन नागा साधुओं ने कई लड़ाइयाँ भी लड़ी हैं। नागा साधु बनने के लिए बेहद कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ता है। नागाओं को सेना की तरह तैयार किया जाता है। इनको आम दुनिया से अलग और विशेष बनना होता है। इस प्रक्रिया में सालों लग जाते हैं। सन्यास लेने या नागा साधु बनने की इच्छा जताने वाले व्यक्ति की जांच अखाड़ा अपने स्तर पर करता है और यह तहकीकात करता है कि वह साधु क्यों बनना चाहता है? उस व्यक्ति और उसके परिवार की संपूर्ण पृष्ठभूमि देखी जाती है। अगर अखाड़े को यह लगता है कि वह साधु बनने के लिए सही व्यक्ति है, तो उसे अखाड़े में प्रवेश की अनुमति मिलती है। अखाड़े में प्रवेश के बाद उसके ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। इसमें 6 महीने से लेकर 12 साल तक लग जाते हैं। अगर अखाड़ा या उस व्यक्ति का गुरु यह निश्चित कर ले कि वह दीक्षा लेने लायक हो चुका है फिर उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है।
अगर व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करने की परीक्षा से सफलतापूर्वक गुजर जाता है, तो उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष बनाया जाता है। उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं। पांच गुरु इस प्रकार से हैं-“पंचदेव या पंच परमेश्वर” शिव ,विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश।भस्म, भगवा,रुद्राक्ष आदि चीजें दी जाती है। यह नागाओं के प्रतीक और आभूषण होते हैं।
महापुरुष के बाद नागाओं को अवधूत बनाया जाता है। इसमें सबसे पहले उसे अपने बाल कटवाने होते हैं। इसके लिए अखाड़ा परिषद की रसीद भी कटती है। अवधूत रूप में दीक्षा लेने वाले को खुद का तर्पण और पिंडदान करना होता है। यह पिंडदान अखाड़ों के पुरोहित करवाते हैं। यह संसार और परिवार के लिए मृत हो जाते हैं। इनका एक ही उद्देश्य होता है- सनातन और वैदिक धर्म की रक्षा करना।
कोई भी आदमी जब नागा साधु बनने के लिए आता है, तो सबसे पहले उसके स्वयं पर नियंत्रण की स्थिति को परखा जाता है। उससे लंबे समय तक ब्रह्मचर्य का पालन करवाया जाता है।इस प्रक्रिया में सिर्फ दैहिक ब्रह्मचर्य ही नहीं मानसिक नियंत्रण को भी परखा जाता है। अचानक किसी को दीक्षा नहीं दी जाती। पहले यह तय किया जाता है कि वह दीक्षा लेने वाला पूरी तरह से वासना और इच्छाओं से मुक्त हो चुका है अथवा नहीं।
ब्रह्मचर्य व्रत के साथ ही दीक्षा लेने वाले के मन में सेवा भाव होना भी आवश्यक है। यह माना जाता है कि जो भी साधु बन रहा है वह धर्म, राष्ट्र और मानव समाज की सेवा और रक्षा के लिए बन रहा है। ऐसे में कई बार दीक्षा लेने वाले साधु को अपने गुरु और वरिष्ठ साधुओं की सेवा भी करनी पड़ती है। दीक्षा लेने के समय ब्रह्मचारियों की अवस्था प्राय: सत्रह अठारह वर्ष से कम की नहीं रहा करती और वे ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य वर्ण के हुआ करते हैं। नागा साधु सोने के लिए पलंग, खाट या अन्य किसी साधन का उपयोग नहीं कर सकता। यहां तक कि नागा साधुओं को गाड़ी पर सोने की भी मनाई होती है। नागा साधु केवल पृथ्वी पर ही सोते हैं। यह बहुत ही कठोर नियम है जिसका पालन हर नागा साधु को करना पड़ता है।दीक्षा के बाद गुरु से मिले गुरु मंत्र में ही उसे पूर्ण आस्था दिखानी पड़ती है। उसके भविष्य की सारी तपस्या इसी गुरु मंत्र पर आधारित होती है।
आशीष बाजपेयी