Monday, April 29, 2024
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मिल गया न्याय

हैदराबाद रेप काण्ड के चारो आरोपियों को पुलिस द्वारा मुठभेड़ में मार गिराये जाने की चहुंओर प्रशंसा की जा रही है लेकिन, देश के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी मुठभेड़ पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगा रहे हैं। इन बुद्धिजीवियों को यह भी स्पष्ट करना चाहिये कि वह देश के साथ हैं या अपराधियों के साथ हैं। उनका यह तर्क किसी स्तर तक सही हो सकता है कि आरोपियों को कानूनी प्रक्रिया के अन्तर्गत सजा मिलनी चाहिये थी लेकिन, उन्हें यह भी समझना चाहिये कि निर्भया काण्ड सहित अब तक के कितने बलात्कारियों को न्यायिक प्रक्रिया के तहत सजा दी जा सकी है? निर्भया काण्ड को हुए 7 वर्ष हो चुके हैं और माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस काण्ड के दोषियों को फांसी की सजा भी सुनायी जा चुकी है। इसके बावजूद आखिर वह जीवित क्यों हैं? क्योंकि एक दोषी ने दिल्ली हाईकोर्ट से अपनी सजा पर स्टे ले रखा है तथा दूसरे की दया याचिका राष्ट्रपति के यहां लम्बित है। निर्भया काण्ड के बाद देश की संसद द्वारा बलात्कार के कानून को सख्त बनाते हुए दोषियों के लिये फांसी की सजा का प्रावधान बनाया गया था। तब ऐसा लगा था कि सम्भवतः इस तरह के क्रूरतम अपराधों पर लगाम लग जायेगी, लेकिन बीते 7 वर्षों में बलात्कार के दो लाख से अधिक मामले दर्ज होना यह सिद्ध करता है कि अपराधियों के मन में इस कानून का जरा भी भय नहीं है। ऐसा सिर्फ और सिर्फ लचर न्याय प्रणाली का नतीजा है! किसी ना किसी बहाने से सजा को लटकाये रखना न्यायपालिका का चलन सा बन गया है। देर से मिला न्याय सदैव अन्याय जैसा ही साबित हो रहा है।
इससे एक ओर जहाँ पीड़ित जनों की भावना आहत होती है और न्याय व्यवस्था के प्रति उनका विश्वास डगमगाता है तो वहीं दूसरी ओर अपराधियों के हौंसले भी बुलन्द होते हैं। संविधान का सम्मान करना हम सभी का धर्म है। परन्तु देश के जनमानस की भावनाओं की भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिये। संविधान की संरचना का मूल उद्देश्य पीड़ित जनों को न्याय दिलाना ही तो है। तब फिर उसी संविधान की आड़ में अन्याय को बढ़ावा देना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता है। देश से ऊपर संविधान है परन्तु संविधान से ऊपर जनमानस की भावना है। जब दोषियों का दोष सिद्ध हो चुका हो तब उन्हें सजा देना ही सबसे बड़ा न्याय है, जिसकी परिणिति किसी भी रूप में क्यों ना हुई हो।
हैदराबाद पुलिस ने जिस तरह से बलात्कारियों को मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया है और जनमानस ने पुलिस की कार्यशैली की जमकर सराहना की है, उस ओर ध्यान देना जरूरी है क्योंकि यही जनमानस ने पुलिस को कठघरे में खड़ा कर रखा था और तरह तरह के आरोप-प्रत्यारोप पुलिस की कार्यशैली पर लगा रहा था। लेकिन जैसे ही लोगों को पता चला कि पुलिस ने बालात्कार के चारो आरोपियों को मुठभेड़ में ढेर कर दिया है, वैसे ही पुलिस के सम्मान में फूल बरसाने के नजारे सामने आ गये और लोगों ने कहा, ‘‘मिल गया न्याय।’’
यहां गौर करने का तथ्य है कि इसके पूर्व भी पुलिस के साथ तमाम मुठभेड़ों की कहानियां सामने आ चुकी हैं जिनमें पुलिस विभाग की खूब किरकिरी होती रही है।
यह मुठभेड़ भले ही फर्जी हो लेकिन यह पुष्टि हो जाने पर कि चारो आरोपी वास्तव में इस क्रूरतम घटना को अंजाम देने के गुनहगार थे, उनको सजा जल्द से जल्द मिलना ही उचित था। पुिलस ने जिस तरह मारा है वह काबिले तारीफ है। ऐसे कदम उठाने से ना सिर्फ पीड़ित को जल्द न्याय मिला है बल्कि जन भावनाओं का सम्मान भी हुआ है। ध्यान रहे कि पुलिस को हमेशा ऐसा कदम उठाना चाहिये जिससे कि उसकी छवि को दागदार ना समझा जाये बल्कि उसे रक्षक की वास्तविक संज्ञा से विभूषित किया जाये।