Friday, November 29, 2024
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भारत के अभ्युत्थान में पत्रकारिता की भूमिका

भारत का अभ्युत्थान अर्थात भारत के विकास का अभ्युदय। भारत आज विकास के जिस पायदान पर खड़ा है वहां तक पंहुचने का आधार यदि शिक्षा, संस्कृति, तकनीक, श्रम, समर्पण रहा है, तो इस आधार को सुदृढ़ता प्रदान करने का काम हमारी मीडिया ने किया है। विकास और मीडिया अन्योन्याश्रित है। जब तक ज्ञान का प्रचार प्रसार नहीं होगा वह लोगों तक नहीं पंहुच पायेगा। सूचनाएं ही यदि प्रचारित नहीं होंगी तो लोग उन पर काम कैसे कर पाएंगे। जब हम भारत के अभ्युदय की बात करते हैं तो यह किसी एक बिंदु की नहीं बल्कि इसके बहुआयामी कलेवर की बात होती है अर्थात भारत का सर्वांगीण विकास।इस बहुआयामी अभ्युदय में हमारी मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह भूमिका हमारा संचारतंत्र तीन तरह से निभाता है- इलेक्ट्राॅनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया और मुखाग्र मीडिया।
भारत के अभ्युदय को दो श्रेणी में विभाजित कर देखते हैं-शहरी विकास, ग्रामीण विकास: शहरों में सुविधाओं की सहज उपलब्धता के चलते इलेक्ट्राॅनिक व प्रिंट मीडिया की महती महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत अभ्युदय से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य, भौगोलिक जानकारी, आर्थिक स्थिति, देश व समाज की वर्तमान स्थिति,वैश्विक स्तर पर भारत अभ्युदय की स्थिति, राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में तथ्यों को उजागर करने, तत्संबंधित आंकड़े जुटाने, उन्हें जन जन तक पंहुचाने, जन मानस को जागरूक बनाने में मीडिया उत्तरदायित्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
जहाँ इलेक्ट्राॅनिक मीडिया स्रोतों में मोबाइल, कंप्यूटर, टी वी, इन्टरनेट, सैटेलाइट चैनल का बड़ा योगदान है, वहीं प्रिंट मीडिया, पत्रकारिता,संपादन दैनिक पत्र, पत्रिकाओं व लेखन के माध्यम से शिक्षित प्रबुद्ध वर्ग तक विविध क्षेत्रों की विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराती है। शहरों में जीवन की व्यस्तताओं के चलते प्रिंट मीडिया के मुकाबले इलेक्ट्राॅनिक मीडिया अधिक सक्रिय भूमिका में है। मोबाइल पर चलते फिरते सामाचर पत्र पढ़े जा सकते हैं, कोई भी पुस्तक सर्च कर कभी भी,कहीं भी पढ़ी जा सकती है। ज्ञानार्जन के साथ व्यक्ति अपने व समाज के अभ्युदय-विकास के साथ साथ देश की उन्नति में भी अपना अमूल्य योगदान करता है। यह मीडिया के कारण ही संभव है। मीडिया के बिना व्यक्ति तथ्यों व परिस्थितिजन्य जानकारी से अनभिज्ञ रहता है और अपने दायित्व निर्वहन मात्र अपने जीवन की आधारभूत आवश्यकता पूर्ति के अतिरिक्त क्षमतावान, सामर्थ्यवान होने के उपरांत भी देश व समाज के अभ्युदय उत्थान में अपना कोई योगदान देने की स्थिति में नहीँ होता।बात भारत के ग्रामीण अंचल के अभ्युदय विकास की आती है तो यहां भी मीडिया ही महत्वपूर्ण भूमिका में रहती है। यद्यपि यहाँ इलेक्ट्राॅनिक मीडिया के नाम पर रेडियो व प्रिंट मीडिया, पत्रकारिता के नाम पर स्थानीय समाचार पत्र लोकप्रिय है। इसके अतिरिक्त यहाँ मुखाग्र मीडिया सबसे अधिक कारगर होता है। जो कि कुछ पढ़े लिखे ग्रामीणों द्वारा रेडियो व समाचार पत्र आधारित सूचना प्रचार-प्रसार के माध्यम से जन जागरण, जागरूक ता का काम करते हैं और समाज देश के उत्थान में अपना योगदान देते हैं।
यदि मीडिया ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाती है तो इसे समाज का दर्पण कह सकते है। चूंकि समाज से देश बनता है अतः यह देश का भी आईना होगा। मीडिया की सकारात्मक भूमिका समाज व देश को सजग, शिक्षित, सुसंस्कृत उन्नति के शिखर पर ले जा सकती है और यदि यह नकारात्मक भूमिका में आ जाये तो समाज को दिशाभ्रमित कर विध्वंस व विघटन के कगार पर खड़ा कर सकती है।अर्थात मीडिया यदि अपनी ईमानदार सही भूमिका में है
तो यह अपनी वैदिक संस्कृति का सनातन प्रवाह करने में पूर्ण सक्षम है।
पत्रकारिता के लिए आवश्यक है कि वह तथ्यात्मक हो, अनर्गल न हो।अन्यथा इसकी विश्वसनीयता संदेह के घेरे में होगी।जो कि शुभ संकेत नहीं है। पत्रकारिता वैयक्तिक, सामाजिक व राष्ट्र के अभ्युदय की रीढ़ है,विकास का आधार है, इसका सुदृढ व पुष्ट होना नितान्त आवश्यक है। इस पर कोई उंगली न उठे इसका ध्यान रखना है। यह राजनीतिक दलों के हाथों की कठपुतली न बने,रसूखदारों के दरबारी कवि की भूमिका में न हो, हनक रखने वाले संगठनों के लिए चारण का काम न करे। यह समाज में व्याप्त कुरीतियों की स्पष्ट तस्वीर प्रस्तुत करे, पीड़ित, प्रताड़ित, वंचित, शोषित वर्ग की उचित स्थिति प्रस्तुत करे। इसकी आड़ में जो भी अवसरवादी, स्वार्थी तत्व फायदा उठा रहे हों,उनका भी पर्दाफाश हो। मीडिया निष्पक्ष रूप जासूस की भूमिका में होगी तभी सत्य तथ्य उजागर होंगे।
आज ईमानदार मीडिया का क्षेत्र बड़ा ही जोखिम भरा है। तमाम चुनौतियां हैं। आपसी प्रतिस्पर्धा भी जबर्दस्त है। जिसके चलते जल्दी से जल्दी खबर प्रसारित करने की होड़ में समाचार संक्षिप्त व तथ्यों से हटकर भी समाज के समक्ष प्रस्तुत हो जाते हैं जो कि कभी कभी समाज में भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर विंध्वस का कारण बन जाते हैं जिससे राष्ट्र की छवि धूमिल होती है और पत्रकारिता की विश्वसनीय भूमिका भी संदेहास्पद हो जाती है व उपहास की पात्र भी बनती है जो कि नितान्त अनुचित है।
यदि हम भारत अभ्युदय के परिप्रेक्ष्य में पत्रकारिता की भूमिका के इतिहास पर नजर डालते हैं तो यह अति प्राचीन काल से अस्तित्व में है और अपनी सक्रिय भूमिका में रही है। मोहनजोदड़ो हड़प्पा की अविकसित सभ्यता से लेकर आज तक के विकसित समाज व अति विकासशील देश की स्थिति से इसका अनुमान लगा सकते हैं। मुखाग्र मीडिया के नाम पर नारद मुनि से अच्छा कोई और उदाहरण नहीं। जिन्होंने अपने सूचना-संचार तंत्र के माध्यम से उस समय की तमाम बिगड़ती स्थितियों को संभाला व बनती स्थितियों को बिगाड़ा भी। यह है युगों पूर्व मीडिया की ताकत। जो कि आज भी है बस प्रारूप बदला है।
जब हम अंग्रेजी शासन के अधीन थे, अपनी आवाज नही उठा सकते थे तब हमारा स्वतन्त्रता संग्राम गुपचुप तरीके से पत्राचार पत्रकारिता के माध्यम से प्रारम्भ हुआ था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पत्रों के आदान प्रदान से सूचनाएं संप्रेषित पत्रकार की भूमिका निभाते थे।
व्यवसायिकता के अर्थ युग में मीडिया भी व्यवसायिक होती दिख रही है।यही कारण है पत्र पत्रिकाएं विज्ञापनों पर भी अपना ध्यान केंद्रित कर रही हैं। जिसके परिणामस्वरूप मुख्य समाचारों,महत्वपूर्ण सूचनाओं, तथ्यात्मक संपादकीय आदि की विस्तृत व्याख्या नहीं हो पाती। समाचार संक्षिप्त करने पड़ते हैं जो कि पत्रकारिता की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
चूंकि संविधान के भवन का चैथा खंभा कहा जाने वाली मीडिया का दायित्व देश के प्रति बहुत बड़ा है, इसमें ईमानदारी व पारदर्शिता का होना अनिवार्य है।यह देश की दिशा व दशा बदलने की क्षमता रखती है।पत्रकारिता पूर्वाग्रही न हो,उत्तेजक न हो जिससे समाज में धार्मिक कट्टरता को हवा देने वाली न हो,उन्मादी न हो,दंगे फसाद का कारण न बने।
यद्यपि पत्रकारिता जोखिम भरा काम है, पत्रकार समाज की सही तस्वीर प्रस्तुत करता है,ईमानदारी से अपना कर्तव्य निर्वहन करता है,तो अपराधिक प्रवृति के लोगो का कोप भाजन भी बनता है।कभी तो इसकी परिणति जानलेवा भी हहो जाती है।कानपुर नगर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,प्रताप पत्रिका के संपादक वरिष्ठ पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी 1931 में कानपुर की उन्मादी भीड़ व दंगाइयों के शिकार बने और शहीद हुए।
किन्तु इन सब विषमताओं के मध्य भारत अभ्युदय उत्थान में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है।देश की कोई भी घटना मीडिया की मध्यस्थता के बिना अधूरी है। कह सकते है जिस तरह जब जब धर्म की हानि होती रही है,भारत संकट में रहा है,सज्जनों को न्याय दिलाने वव दुष्टों का विनाश करने,धर्म की स्थापना करने,अधर्म को मिटाने हेतु ईश्वर मानव रूप में धरती पर आकर इन सभी विसंगतियों से जूझ कर उन्हें दूर करते हैं।उसी प्रकार मीडिया भी मुखरित निष्पक्ष निर्णायक की भूमिका में आकर भारत की विसंगतियों को दूर कर समाज में समरसता व सहृदयता का वातावरण देते हुए इसके अभ्युदय व विकास का कारक बन सकता है। -Kusum Singh Avichal Kanpur