Saturday, May 11, 2024
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कोरोना से न हो भयभीत, सिर्फ जानकारी रखें सटीक

कानपुर देहात, जन सामना ब्यूरो। कोरोना वायरस को लेकर रोज नये किस्से कहानी सामने आ रहे हैं। तमाम फेक न्यूज आ रहीं हैं। इसी को लेकर हम आपको विशेष जानकारी एम्स के सुप्रसिद्ध चिकित्सक के माध्यम से दें रहे हैं। कोरोना वायरस है क्या और ये शरीर को कैसे नुकसान पहुंचाता है-
इस बारे में एम्स के चिकित्सक डॉ योगेश शुक्ला ने विस्तार से बताया है। डॉ योगेश बताते हैं कि कोरोना वायरस का इन्क्यूबेशन पीरियड औसतन 5 दिन का होता है। अर्थात वायरस अटैक होने के बाद मानव शरीर में इसके लक्षण 5 दिन बाद दिखने शुरू होते हैं।
ये हैं कोरोना के लक्षण-
कोरोना संक्रमित व्यक्ति में मिलने वाले लक्षण में बुखार, सूखी खांसी, बदन में दर्द, गले में खराश और सिर दर्द भी हो सकता है। कुछ मामलों में डायरिया की शिकायत भी पायी गई थी। कुछ केस में यह भी पाया गया है कि कोरोना पीड़ित को किसी भी चीज की गंध समझ नहीं आ रही थी।
निर्जीव होता है कोरोना वायरस-
डॉ योगेश ने बताया कि वायरस जीवन के ठीक पहले की उत्पत्ति है। यह जीव और निर्जीव के बीच की कड़ी है। अर्थात सृष्टि में जब पहला जीव बना होगा उससे ठीक पहले की अवस्था है वायरस। जीव और निर्जीव में जो अंतर है उसमें जीव खुद से अपनी प्रतिलिपि बना सकता है लेकिन निर्जीव नहीं। जैसे वैक्टीरिया जीव होते हैं और ये खुद की प्रतिलिप तैयार कर सकते है लेकिन वायरस ऐसा नहीं कर सकते हैं। वायरस अनुकूल स्थितियों में हजारों सालों तक पड़ा रह सकता है तो प्रतिकूल स्थिति में वह पल भर में नष्ट हो जाता। लेकिन किसी जीव के संपर्क में आकर अपने को बढ़ाने लगता है।

ऐसा है कोरोना वायरस-
वायरस दो प्रकार के जेनेटिक मटेरियल डीएनए या आरएनए से बनते हैं। डीएनए जीव है और आरएनए निर्जीव। कोरोना आरएनए वायरस है। शरीर में वायरस से लड़ने की प्रतिरक्षा प्रणाली होती है। जो श्वेत रक्त कणिका के रूप में जानी जाती है। ये वायरस को खुद को नष्ट करती है या फिर एन्टीबॉडी बनाकर नष्ट करती है। अगर कोई वायरस डीएनए वाला होता है तो वह शरीर के अंदर जाकर खुद को द्विगुणित करने लगता है। जिसकी पहचान शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कर लेती है और आसानी से खत्म कर देती है। लेकिन आरएनए वायरस खुद को नहीं बढ़ा सकता है। लिहाजा यह शरीर की कोशिका में प्रवेश करके उससे खुद को बढ़ाता है। लिहाजा प्रतिरक्षा प्रणाली उसे पहचाने में समय लेती है या पहचान नहीं पाती क्योंकि उसे यह लगता है कि यह शरीर का ही एक हिस्सा है।
यह है कोरोना की संरचना-
कोरोना वायरस मूल रूप से चार संरचनात्मक प्रोटीन से मिलकर बना होता है। वे हैं स्पाइक (एस), मेंबरेंस अर्थात झिल्ली (एम), इनवेलप (ई) और न्युक्लियोकैप्सिड (एन)। इस न्युक्लियोकैप्सिड प्रोटीन के साथ ही जटिल संरचना आरएनए की होती है जो इस वायरस से नये वायरस बनाने का काम करती है।
इस तरह शरीर में करता है प्रवेश-
डॉ योगेश ने बताया कि कोरोना वायरस नाक, मुंह या आंख के माध्यम से प्रवेश करता है। यह वायरस प्रवेश के बाद गले तक पहुंचता है जहां से यह फेफड़े में पहुंच जाता है। फेफड़े में पहुंचने के बाद बाद यह वायरस श्वसन कोशिकाओं में मौजूद रिसेप्टर (एसीई 2) नामक प्रोटीन और एंजियोटेंसिन-कंवर्टिंग एंजाइम 2) से जुड़ता है। इस रिसेप्टर को सामान्य भाषा में कोशिका झिल्ली कहते हैं। इस प्रक्रिया में वायरस मानव कोशिका झिल्ली के साथ अपनी तैलीय बुलबुलेनुमा झिल्ली को जोड़ता है। इसके बाद तैलीय झिल्ली को फ्यूज कर मानव कोशिका को संक्रमित करता है। इस दौरान कोरोना वायरस आरएनए नामक आनुवांशिक पदार्थ मानव कोशिका में छोड़ देता है। ऐसी वायरस प्रभावित श्वसन कोशिका अपनी सतह पर आए आरएनए को पढ़ती हैं। इस आरएनए में सकारात्मक सिग्नल देने के गुण होते हैं। जिसकी वजह से कोशिका इसे अपना मददगार समझती है और अपनी सतह में आए वायरस को नष्ट करने के लिए इस आरएनए की मदद से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को बनाए रखने के लिये इसका कॉपी (प्रतिलिपि) बनाना शुरू कर देती है जो वायरस की कापी के रूप में बनता है। इस तरह कोशिका लगातार इसे बनाती जाती है और एक स्थित यह हो जाती है कि वह भर कर फट जाती है और ये वायरस अन्य कोशिका को संक्रमित करने लगता है साथ ही दूसरी ओर मानव कोशिकाएं तेजी से मृत होने लगती हैं। तेजी से मृत हो रही श्वसन कोशिकाएं कोशिकाओं के कारण शरीर को आक्सीजन मिलना कम होने लगता है। जिससे मनुष्य को सांस लेने के परेशानी होती है। इसके अलावा आरएनए के गुण के अनुरूप कोशिका प्रोटीन भी काफी मात्रा में बनाती है। जो म्यूकस के रूप में जमा होता रहता है।
कोरोना से यह है शरीर की बचाव प्रणाली-
मानव शरीर जीव कोशिकाओं से बना होता है। ये कोशिकाएं एक से दो और दो से चार हो सकती हैं। जीव की इसी क्षमता का फायदा कोरोना वायरस उठाता है। वह कोशिका के बांटने के गुण को अपने पक्ष में लेकर खुद की संख्या वृद्धि करवाता है। कोशिकाओं को भ्रमित करने अपना सिग्नल तंत्र (आरएनए) उनमें छोड़ता है। मानव की श्वसन कोसिका वायरस के सिग्नल के झांसे में आकर ऐसी जैविक सामग्री की कॉपी करने लगती है जो कोरोना वायरस की प्रतिकृति होती है। इस तरह से शरीर में एक वायरस से दो और दो से चार वायरस पैदा हो जाते हैं। अंत में वे उस कोशिका को भी नष्ट कर देते हैं और दूसरी स्वस्थ कोशिकाओं के अंदर प्रवेश कर जाते हैं। प्रतिलिपियाँ बनने की प्रक्रिया चलती रहती है। वायरसों की संख्या बढ़ती चली जाती है।
कोरोना ऐसे करता है कोशिका को हाईजैक-
कोरोना नाम इसलिये दिया गया है क्योकि इसकी सतह पर मुकुट (क्राउन) की तरह प्रोटीन की कीलनुमा उभरी संरचनाएं होती। यह वायरस प्रोटीन और तैलीय लिपिड की बुलबुलेनुमा झिल्ली से ढंका होता है। लिपिड एक अघुलनशील पदार्थ हैं जो कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन के साथ मिलकर प्राणियों के ऊतक का निर्माण करते। ये ऐसा अणु होता है जिसमें जिनमें वसा, मोम, स्टेरॉल, वसा-घुलनशील विटामिन होता है। इनका कार्य ऊतकों की कोशिका झिल्ली बनाना होता है। शरीर में वायरस के प्रवेश करते ही शरीर की रोग प्रतिरोधक इकाई सक्रिय हो जाती है और वह तमाम ऐसे द्रव्य (एन्टीबाडी) पैदा करने लगती है जो वायरस को खत्म कर सकते हैं।
दो तरीके से वायरस का मुकाबला-
शरीर वायरस के इस हमले का दो तरह से मुकाबला करता है। एक वायरस के हमले के साथ ही आपके शरीर का इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरोधक तंत्र सक्रिय हो जाता है और खोज-खोज कर वायरस को नष्ट करता है। इससे रोग जल्दी ठीक होता है। दूसरा तरीका यह कि वायरस ने जिन कोशिकाओं पर हमला कर उनपर नियंत्रण कर लिया हो, उन कोशिकाओं को ही नष्ट कर दिया जाए। इससे उसकी अपनी कोशिकाओं का नुकसान होता है लेकिन वायरस के विस्तार को रोकने के लिए कई बार यह अनिवार्य हो जाता है। यह काम प्रतिरोधक कोशिकाएं करती हैं।
क्यों होते हैं बीमार-
जब कोई वायरस किसी शरीर पर हमला करता है तो शरीर के अंदर युद्ध जैसे हालात पैदा हो जाते हैं। वायरस के प्रवेश करते ही आपके शरीर का इम्युन सिस्टम वायरस से लड़ने की कोशिश करता है। आपका शरीर वायरस को एक विदेशी हमलावर की तरह देखता है और पूरे शरीर को संकेत देता है कि शरीर पर हमला हुआ है। इसके बाद वो वायरस को खत्म करने के लिए साइटोकाइन नाम का केमिकल छोड़ना शुरू करता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति पूरे जोर से हमले का जवाब देने में जुट जाती है और इस कारण आपको बदन दर्द और बुखार भी हो सकता है। बुखार इसलिये होता है क्योंकि शरीर तापमान बढ़ाकर वायरस की शक्ति को कम करने की कोशिश करता है। बलगम या ड्राप लेट्स एक तरीके से मृत कोशिकाएं होती है जो शरीर से खांसी के माध्यम से बाहर निकाली जाती हैं। ये स्थिति करीब एक सप्ताह तक रहती है। जिन लोगों का इम्युन सिस्टम वायरस से लड़ने में कामयाब होता है। उनका स्वास्थ्य एक सप्ताह के भीतर सुधरने लगता है। लेकिन कुछ मामलों में व्यक्ति का स्वास्थ्य और बिगड़ता है। कोरोना (कोविड 19) के गंभीर लक्षण दिखने लगते हैं।
बीमारी बढ़ने के कारण-
अगर बीमारी बढ़ जाए तो इसके कई कारण होते हैं। पहला यह कि हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता वायरस को खत्म करने के लिए जरूरत से अधिक काम करती है। इस दौरान जो केमिकल बनते हैं वो पूरे शरीर को संकेत देते हैं जिससे शरीर सूजने लगता है। कभी-कभी इस सूजन के कारण शरीर को गंभीर क्षति पहुंचती है। फेफड़ों की इसी सूजन को निमोनिया कहते हैं। अगर ये वायरस सांस की नली में पहुंच कर अपने प्रभाव से फेफड़ों में एयरसैक बना देता है। फेफड़े से शरीर को ऑक्सीजन मिलता है। लेकिन कोरोना से बने एयरसैक में पानी जमने लगता है जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है और मरीज को सांस लेने में दिक्कत होती है।
इसलिये हर वायरस की अलग दवा-
वायरस की सबसे बड़ी खासियत खुद को बदलने की होती है। शरीर की कोशिका से बनने के कारण उसके गुणसूत्र बदल जाते हैं। वायरस में जो जैविक सामग्री होती है, वह एक खास क्रम में ढली होती है। अगर उस क्रम का कोई एक हिस्सा गायब हो गया या उसकी जगह कोई और जुड़ गया तो वायरस का रूप बदल जाता है। कोरोना वायरस भी इसी तरह का एक नया वायरस है। चार कोरोना वायरस इससे पहले मौजूद थे जो उतने हानिकारक नहीं हैं। उनका इलाज भी संभव है। लेकिन 2019 में उनमें से किसी एक कोरोना वायरस की जैविक सामग्री में से कुछ घटा या कुछ जुड़ा और वह खतरनाक नया कोरोना वायरस बन गया।
डरने की जरूरत नहीं-
डॉ योगेश शुक्ला बताते हैं कि नया कोरोना वायरस उतना खतरनाक नहीं है जितना लगता है। नए कोरोना वायरस से संक्रमित 80% लोग बिना दवा के कुछ दिनों में आसानी से ठीक हो जाते हैं। यही कारण है कि दुनिया भर में कोरोना वायरस के जितने भी केस अब तक मिले हैं, उनमें मृतकों की संख्या 5% से ज्यादा नहीं है। दूसरे शब्दों में 95% रोगी इस वायरस का शिकार होने के बाद भी ठीक हो रहे है।