घर में बडी चहल-पहल थी, तीनो भाई और बहुएं मंत्रणा में व्यस्त थे, इसी बीच दोनों चाचा भी घर का एक चक्कर लगा, भतीजों से गुपचुप बात कर लौट चुके थे, बस केवल बच्चों और वयोवृद्ध पिताजी को मालूम नहीं था कि माजरा क्या है, दूसरे दिन सुबह तीनो पुत्र दोनों चाचा के साथ घर आकर पिताजी की आराम कुर्सी के पास इकट्ठे हुए, बड़े बेटे ने कहा पिताजी माताजी तो अब रही नही, ऐसे में घर का बटवारा हो जाना चाहिए, छोटा भाई ज्यादा कमाऊ नहीं, यह बड़ा घर उसके नाम कर देतें हैं, और दो अन्य मकान जो किराये पर आपने घर खर्च के लीये दिए हुए है, हम दोनों भाइयों को विभाजित कर दीजिए, आपके लिए एक अच्छे वृद्धा आश्रम में जगह देख ली गई है, वहां आप अपने बुजुर्ग साथियों के साथ आराम से अपना बाकी का समय बिता सकते हैं, दोनों चाचा ने इस बात का पुरजोर समर्थन भी किया, बुजुर्ग पिता को मामला समझते देर न लगी, उन्होनें कठोरता से कहा सारी संपत्ति मेरी है, और मेरी ही कमाई की यह पूंजी है, यह फैसला अब मैं करूंगा कि मुझे क्या करना है, मैं इस घर से कहीं नहीं जा रहा हूँ, छोटा बेटा मेरे साथ चाहे तो रह सकता है, उसके दोनों बड़े भाइयों को पढ़ा लिखा कर मैंने सक्षम बनाया है, औऱ छोटा तो कोई काम करना ही नही चाहता, तीनों को कुछ नही मिलेगा, मेरी मृत्यु के बाद यह सब तुम लोगों का ही है, फैसला तुम लोग नहीं, मैं करूंगा और यदि मेरे साथ किसी को नहीं रहना है तो न रहे, तो मैं बाकी का समय तुम्हारी मां की स्मृति में इसी घर में बिता लूंगा, अब समय बदल गया है, तुम लोगो की मनमानी में नही चलने दूंगा, जिसे भी मेरे साथ रहना है वह रह सकता है, कोई पाबंदी नहीं है, अब फैसला तुम लोगों का है? यह कहकर बुजुर्ग पिता चाय की चुश्कि के साथ पेपर पढ़ने में व्यस्त हो गए।