रसूलाबाद/ कानपुर देहात,जन सामना । दहेज एक सामाजिक बुराई है इसे जड़ से मिटाने के लिए समाज के जागरूक लोगों को आगे आना ही होगा और इसके लिए एक संगठन बनाकर गांव से लेकर शहरों तक के लोगों को शामिल कर दहेज दहेज लोभियों को समाज में लज्जित व जलील करने के लिए एकता लानी ही होगी अन्यथा यह दहेज रूपी राक्षस दिनों दिन पैर पसरता ही रहेगा। वास्तव में दहेज प्रथा वर्तमान समय में बहुत ही वीभत्स व विकराल रूप धारण करती जा रही है। जिसका दुष्परिणाम दिन पर दिन हो रही नव दम्पतियों की मौत के रूप में देखा जा सकता है ।सबसे ज्यादा चिंता की बात मध्यम वर्ग के लिए है जो इसी चिंता में दिन.रात घुलकर यहां तक कि बैंक आदि से कर्जा लेकर अपनी लड़कियों के हाथ पीले करते हैं दुर्भाग्य की बात यह है कि लड़का पक्ष आज भी यह सब जानते हुए भी दहेज के लालच में फंसा हुआ है।लड़की पक्ष को कंगाल बनाने के बाद भी नव वधुओ को प्रताड़ित कर उन्हें आत्महत्या के लिए विवश करने या स्वयं मारने वाले समाज विरोधी लोग जब जेल जाने की स्थिति में होते हैं तो उनके चेहरे देखने लायक होते हैं । पूर्व में राजा व संपन्न लोग अपनी कन्याओं के विवाह के अवसर पर उन्हें विदाई के मौके पर कीमती कपड़े सोने चांदी के आभूषण भेंट करते थे लेकिन धीरे.धीरे इस देखा देखी को हर वर्ग के लोगों ने इसे परंपरा का रूप देकर अपना लिया सबसे ज्यादा चिंता की बात मध्यम वर्ग के लिए है जो दहेज की व्यवस्था ना हो पाने पर लड़की के हाथ पीले करने की मजबूरी में बेमेल सम्बन्ध तय करने लगे तो कहीं कहीं लड़कियो ने विवाह मंडप में ही शादी करने से इंकार कर दिया ऐसे में उस मा बाप के हृदय पर कैसे गुजरती होगी जिसका चिंतन करने की कल्पना मात्र से दिल बैठने लगता है और कहीं कहीं दरवाजे आई बराते तक वापस हो जाती हैं । दहेज लोभी बाप का लड़का अगर सर्विष कर रहा होता है तो बोली लगाकर उनका सौदा करते हैं अगर बोली मन माफिक लग गई तो शादी पक्की हो गई । आश्चर्य की बात है जैसे.जैसे शिक्षा नारी जागरूकता व आर्थिक संपन्नता में बढ़ोतरी हुई है वही विडंबना है और जिस परिवार की बहन जब प्रताड़ना से जलकर या फांसी पर लटक कर अपनी जान दे देती है तो उस भाई मां.बाप के हृदय पर कैसे गुजरती होगी इन्हीं सब कल्पनाओं का आकलन कर आज जिस घर में लड़की के जन्म के समय घर में ऐसे मातम सा माहौल रहता है जैसे कोई मर गया हो आज लड़की को भावी विपत्ति की संज्ञा दी जा रही है जिस देश में नारी को देवी का रूप देकर सम्मानित किया जाता रहा हो उसी देश में उसे भावी विपत्ति दहेज लोभियों के कारण कहा जाने लगा हो तो इससे ज्यादा अपमान की बात क्या होगी । इस पर सामाजिक जागरूक लोगों को गंभीरता से चिंतन करना होगा अन्यथा भविष्य में लोग दहेज के डर से इसके स्वरूप को ही नष्ट करने में कोई संकोच नहीं करेंगे हालांकि अभी भी नष्ट करने में कोई कसर नहीं देखी जा रही है जिसका परिणाम है कि देश में लड़कियों की जन्मदर बहुत ही चिंतनीय स्थिति में पहुंच गई है और यह स्थिति भविष्य के लिए बहुत ही खतरनाक है कानून में शक्ति होने के बावजूद भी दहेज की मांग बढ़ने के कारण मध्यम वर्ग की बालिकाएं अक्सर मौत को गले लगा लेती हैं क्योंकि उनके मां.बाप के पास दहेज लोभियों को देने के लिए धन नहीं होता है ।
समाजसेवी डॉ अशोक सिंह भदौरिया ने इस दहेज रूपी कुप्रथा का पूरजोर विरोध करते हुए समाज के हर वर्ग से आवाहन किया कि इस कुप्रथा का हर स्तर से विरोध करे ।