शिवली/ कानपुर देहात,जन सामना। शोभन गौरी में चल रही सप्तदिवसीय रामलीला के चौथे दिन बड़ी ही मनोहर लीला का मंचन किया गया।पिता दशरथ की आज्ञा पाकर राम जी ने अपने धर्म का पालन करते हुए वन गवन स्वीकार करते ही चल पड़े। साथ मे उनके पिता सामान मंत्री सुमंत्र भी चल दीये । आगे चलकर रामचंद्र ने सुमंत्र से कहा कि आप अब वापस अयोध्या लौट जाए। परन्तु आज सुमंत्र अयोध्या लौटने के लिए तैयार नही है, और राजा दशरथ का आदेश पुनः रामचंद्र जी से कहा कि आपके पिता ने जाते समय एक ही बात कही थी। कि ऐसे वनखण्ड में सीता कैसे रहेगी अतःसीता को वापस कर दे इस पर सीता ने सुमंत्र से कहा मेरे पति वन में विचरण करे, और हम राज सुख भोगे ये संभव नही है । इस प्रकार सुमंत्र को राम ने अपनी सपथ देकर अयोध्या वापस किया । जब सुमंत्र शाम के अंधेरे में चुपचाप महल में प्रवेश करते है और जैसे ही राजा दशरथ जी ने सुमंत्र जी को देखा तो पूछा मेरे बेटे और बहू कहा है। सुमंत्र मूक बनकर खड़े रहे। पुनः पूछने ने सुमंत्र जी ने रोते हुए कहा कि वो नही आये। बस ये सुनते ही राम राम कहते हुए राजा दशरथ स्वर्गलोक को सिधार गए,सारे राज्य में शोकाकुल व्याप्त हो गया। विश्वामित्र जी ने नाना प्रकार से ज्ञान का वर्णन करके शोक को दूर किया| सेवको को भारत के ननिहाल भेज कर उन्हें बुलाया और राजा दशरथ जी का अंतिम संस्कार करवा के भरत को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने का सब ने निर्णय लिया इस पर भरत जी ने सभी से राम को वापस लाने का निर्णय लिया और सभी लोग चित्रकूट को चल दिये। वहाँ पहुँच कर राम चन्द्र जी वापस अयोध्या लौटने का आग्रह किया परन्तु रामचंद्र ने पुत्र धर्म को बताकर भरत जी को अयोध्या वापस किया ।भरत जी अपने बड़े भाई राम की चरण पादुका को लेकर वापस आये अयोध्या साथ ही खुद भरत जी नंदी ग्राम से ही राज्य का संचालन शुरू किया। वही श्री राम समुद्र किनारे खड़े होकर केवट से उस ओर छोड़ने की बााा कहते है। तो केवट प्रभु से चरण धोकर नाव में बैठाने की विनती करता है । वही लगातार चल रही सप्तदिवसीय लीला कार्यक्रम जैसे ही दिन पर दिन बढ़ रहा है वैसे ही शोभन मन्दिर के श्रद्धालु बढ़ते जा रहे है। वही मन्दिर प्रशासन व सरकारी अमला बन्दोबस्त में जुटा हुआ है