बहुत सालो से हर दो तीन साल में ऐसी बीमारियां फैलती है जो प्राणियों में से आती है।जैसे बर्ड फ्लू, सार्स,मंकी गुनिया,चिकन गुनिया और भी कई।अब ये कोरोना,इन के फैलने में की की भी बदनीयती भी हो सकती है। किंतु एक व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखे तो मानवी द्वारा किया गया प्रकृति का हनन भी है।औद्योगिक क्रांति साथ में क्या लाई है। प्रदूषण,हवा,पानी और धारा का।अपने देश में एकजमाने में पृथ्वी जलस्तर में ८ से १० फीट हुआ करता था। आज ३०० फीट पर मिले तो भी अच्छा है।
हवा कितनी प्रदूषित है,उसका भी हवामान समाचार जैसे प्रदूषण समाचार का खास बुलेटिन निकालना चाहिए,वैसे भी सर्दियों में बड़े शहरों के समाचार आते ही है,१०० सिगरेट से निकले धुएं जितना हानिकारक!
पृथ्वी को देखो प्लास्टिक से सनी पड़ी है।जब खुदाई होती है तो गांव हो या शहर १ फूट तक तो प्लास्टिक की पन्नियां निकलती है।उपर से अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए और आवास बनाने के लिए जंगल कट रहे है बेहिसाब। जब जंगल कटते है तो जंगली प्राणी खुराक की तलाश में शहर और गांवों के नजदीक आ जाते है।बस्तियों के पास रहने से जंगल की बीमारियां शहरो और गांवों में पाई जाने लगती है।वो बीमारियां अपने पालतू पशुओं में भी पाई जाती है।इन बीमारियों की दवाई तो उपलब्ध नहीं होने से खूब फैलके महामारी का रूप ले के लाखो जानें चली जाती है। जब तक ईलाज या रसी को इजाद किया जाता है।
हमारा प्राकृतिक समतोलन तब तक ही है जब तक जंगल है। रानी पशु जंगल में ही रहे शहर या बस्ती में न आए।इसके लिए पेड़ लगाना और जंगल को बढ़ाना ही पड़ेगा वरना ब्रह्मांड को सर करने निकला मानवी की पृथ्वी ही पराई लगने लगेगी।
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ
जंगल बढ़ाओ पृथ्वी बचाओ नारा होना चाहिए।