संगीत में मानवीय काया को निरोगी रखने की अपार संभावनाएं – भारतीय परंपरागत संगीत को विलुप्त से बचाने की ज़रूरत – एड किशन भावनानी
वैश्विक स्तरपर सदियों पुरानी भारतीय परंपरागत संगीत की चाहत और प्रतिष्ठा आज भी अनेक देशों में कायम है और उसे देखने, उसका अध्ययन करने, अनेक सैलानी भारत यात्रा करते हैं। हमने कई बार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और टीवी चैनलों पर देखे होंगे कि विदेशी सैलानी अनेक प्रदेशों में वहां के पारंपरिक संगीत पर नाचते झूमते हैं और बहुत खुश, संतुष्ट नज़र आते हैं। यह देखकर हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है और हम गौरवविंत होते हैं कि हम भारत देश के नागरिक हैं!!!
साथियों बात अगर हम सदियों पुराने भारत के मशहूर शास्त्रीय संगीत के फनकारों और उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम भारत की रंगबिरंगी अनेक संगीत कलाओं की करें तो आज भी किसी विशेष अवसर पर हम इन फनकारों का करिश्माई हुनर की काबिलियत देखने को मिलती है और आजकल के युवा यह देखकर हैरान रह जाते हैं!!!
हालांकि हम यह भी देख रहे हैं कि साल दर साल हमारे पारंपरिक विभिन्न प्रदेशों के संगीत की शैली और निरंतरता में कमी आ रही है क्योंकि यह क्षमता में गिरावट पीढ़ी दर पीढ़ी से होने के कारण पूर्व जैसा वज़न आज परंपरागत संगीत शैलियों में नहीं मिल रहा है और धीरे-धीरे यह विलुप्तता की और बढ़ रही है!!!
साथियों बात अगर हम पुराने संगीत शैलियों, परंपरागत भारतीय संगीत की परंपराओं को संरक्षित, सुरक्षित करने और विलुप्तता से बचाने की करें तो सबसे पहले हमें युवाओं को इस पारंपरिक संगीत की ओर प्रेरणा देकर उनमें रुचि जगाना होगा क्योंकि आज 65 फ़ीसदी भारतीय जनसंख्या युवा है और अधिकतम युवा पाश्चात्य संस्कृति की ओर रुची में मज़बूर होते जा रहे हैं उन्हें अंग्रेजी गाने हिंदी धूम-धड़ाके वाले गीत और वर्तमान परिपेक्ष जमाने के गीतों में अधिक उत्साह और चाहत दिखती है।
साथियों बात अगर हम युवाओं में इस पारंपरिक संगीत की ओर रुझान देने की करे तो इसमें हमारे बड़े बुजुर्गों,शिक्षकों, अभिभावकों का महत्वपूर्ण योगदान की ज़रूरत है क्योंकि युवा इनके संपर्क में ही बचपन से बड़े होते हैं और इसलिए इनपर बचपन से ही भारतीय पारंपरिक संगीत के प्रति रुझान पैदा करने की ज़रूरत है ताकि यह अपनी पीढ़ियों में इस संगीत को संरक्षित, सुरक्षित कर अगली पीढ़ियों को प्रोत्साहित करेंगे।
साथियों बात अगर हम संगीत में मानवीय काया को निरोगी रखने की अपार संभावनाओं की करें तो आज हम यह विशेषता पारंपरिक प्लस आधुनिक संगीत दोनों में देखते हैं क्योंकि आज योगा क्लास, व्यायाम, पीटी इत्यादि फिटनेस के तरीकों में हम देखते हैं कि इसकी प्रक्रिया में मानवीय संकेतों, निर्देशों, आवाजों का स्थान अब गीतों ने ले लिया है याने अब यह सब प्रक्रियाएं गीतों के माध्यम से होती है। इधर कोई भी नया पुराना गीत चलता है और योगा,व्यायाम, पीटी की प्रक्रिया होती है!!!याने संगीत में मानवीय काया निरोगी करने की भी अपार क्षमता है।
साथियों बात अगर हम माननीय पीएम द्वारा 28 जनवरी 2022 को एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार उन्होंने भी, भारतीय संगीत परंपरा के संतों द्वारा प्रदान किए गए वृहद ज्ञान के बारे में चर्चा की। उन्होंने कहा कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा को महसूस करने की शक्ति और ब्रह्मांड के प्रवाह में संगीत को देखने की क्षमताही भारतीय शास्त्रीय संगीत परंपरा को इतना असाधारण बनाती है। उन्होंने कहा, संगीत एक ऐसा माध्यम है जो हमें हमारे सांसारिक कर्तव्यों से अवगत कराता है और यह हमें सांसारिक आसक्तियों को पार करने में भी मदद करता है।
उन्होंने भारत की कला और संस्कृति की समृद्ध विरासत को संरक्षित करने के लक्ष्य के लिए एक फाउंडेशन की प्रशंसा की। उन्होंने फाउंडेशन से प्रौद्योगिकी के इस युग के दो प्रमुख पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने को कहा। सबसे पहले उन्होंने कहा कि भारतीय संगीत को वैश्वीकरण के इस युग में अपनी पहचान बनानी चाहिए। उन्होंने कहा कि योग दिवस के अनुभव ने संकेत दिया है कि भारतीय विरासत से दुनिया को फायदा हुआ है और भारतीय संगीत में भी मानव मन की गहराई में उतरने की क्षमता है। उन्होंने कहा, दुनिया में हर व्यक्ति भारतीय संगीत के बारे में जानने, सीखने और लाभ पाने का हकदार है। इसका ख्याल रखना हमारी जिम्मेदारी है।
दूसरी बात, उन्होंने कहा कि जब टेक्नोलॉजी का प्रभाव हर क्षेत्र में है, तो संगीत के क्षेत्र में भी टेक्नोलॉजी और आईटी का रिवॉल्यूशन होना चाहिए। भारत में ऐसे स्टार्ट अप तैयार हों जो पूरी तरह संगीत को डेडिकेटेड हों, भारतीय वाद्य यंत्रों पर आधारित हों, भारत के संगीत की परंपराओं पर आधारित हों।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारतीय पारंपरिक संगीत अनमोल है!!! परंपरागत भारतीय संगीत की परंपराओं को संरक्षित व सुरक्षित करना तात्कालिक ज़रूरी है तथा संगीत में मानवीय काया को निरोगी रखने की अपार संभावनाएं हैं!!! भारतीय परंपरागत संगीत को विलुप्तता से बचाने की तात्कालिक ज़रूरत है।
-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र