Sunday, June 2, 2024
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लेख/विचार

अबॉर्शन महिलाओं के निजी फैसला होना चाहिए

आज की महिलाओं को हर कोई आज़ाद और स्वच्छंद विचरण करने वाली बता रहा है, पर क्या किसी ने सोचा है की जो फैसला महिलाओं का निजी होना चाहिए वही लेने के लिए आज़ाद नहीं। जी हाँ अपनी ही कोख में ठहरे गर्भ के साथ क्या करना है वो फैसला कुछ महिलाएं खुद नहीं ले सकती पति और परिवार वालों के दबाव में आकर अवांछित बच्चें पैदा करने पड़ते है। अगर दो बेटी है तो बेटे और पोते की चाह में पति और ससुराल वालों की मर्ज़ी को मानते तीसरा बच्चा हर हाल में पैदा करना पड़ता है।

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भारत का विश्व को दिशा दिखाने का हौंसला

आओ हौंसला सूरज से सीखें, रोज़ ढलके भी हर दिन नई उम्मीद से निकलता है
भारतीयों का हौंसला सबसे बड़ी ताकत बनकर उभर रहा है – होता है, चलता है, के दिन लद गए!! अब करना है, करते ही रहेंगे, का संकल्प है – एड किशन भावनानी
वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ते प्रौद्योगिकी के विकास के साए में मानव प्रजाति में भागमभाग लगी हुई है!! हर देश अपने अपने स्तर पर नए अविष्कारों को प्रोत्साहन दे रहा है और विश्व पर राज करने की होड़ में शामिल होना चाहता है!नवोन्मेष, नवाचार, स्टार्टअप्स, नईनई प्रौद्योगिकियों को उत्साहित मन से और बुलंद हौसलों के साथ हर देश हर व्यक्ति निरंतरता बनाए हुए हैं हम आज इस बढ़ते प्रौद्योगिकी युग में, ऊपर विचारों में शामिल बुलंद हौसलों, शब्द को रेखांकित करेंगे औरइस आर्टिकल के माध्यम से हौसला शब्द को विशाल उपलब्धि की सकारात्मकता पर चर्चा करेंगे।

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लोखंड़ी महिला द्रौपदी मुर्मू का स्वागत है

ज़िंदगी की चुनौतियों पर बार-बार बिखरी एक नारी देखो हर ज़ख़्म के साथ कुंदन सी निखरी, थकी नहीं न हारी हर कसौटी पर फ़तेह पाकर ज़िंदगी जीने की उसने कला सीख ली
जहाँ एक तरफ़ आज भी महिलाओं के लिए कहा जाता है कि स्त्री की बुद्धि पैरों की पानी में होती है, वहाँ आज हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी बुद्धिमत्ता और आत्मविश्वास के साथ अपना लोहा मनवा रही है। देश के लिए सचमुच गर्व की बात है एक महिला जो पिछड़े समाज का हिस्सा रही वह अपने आत्मविश्वास और अपने दम पर आज खुद को राष्ट्रपति के पद के लिए प्रस्थापित करने जा रही है। अपनी ज़िंदगी में कई उतार-चढ़ाव से गुज़री द्रौपदी मुर्मू जी एक उम्र तक घर के बाहर शौच जाने के लिए अभिशप्त थी। अब वो भारत के सर्वाेच्च संवैधानिक पद की हकदार बन चुकी है। इसके अलावा झारखंड राज्य की पहली महिला राज्यपाल बनने का खिताब इन्हीं के नाम है। अगर भारतीय जनता पार्टी की तरफ से बनी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार जीत जाती है तो पहली बार ऐसा होगा कि कोई आदिवासी महिला भारत देश की पहली राष्ट्रपति बनेगी और भारत की दूसरी महिला राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू बनेंगी।

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आओ नशीली दवाओं के दुरुपयोग, अवैध तस्करी रोकनें में सक्रिय भागीदारी बढ़ाएं

नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय दिवस 26 जून 2022 पर विशेष
नशीली दवाओं के दुरुपयोग को रोकने सामुदायिक सहायता की ज़रूरत हैं
मादक पदार्थों के प्रयोग से दुष्प्रभाव- परिवार से विच्छेदन, अपराध प्रवृति में वृद्धि, शारीरिक व मानसिक कमजोरी के रूप में सामने आती है – एड किशन भावनानी
अंतरराष्ट्रीय स्तरपर मादक पदार्थों के सेवन और नशीली दवाओं के दुरुपयोग तथा उसकी अवैध तस्करी के मामलों से करीब-करीब हर देश पीड़ित है और यह समस्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। खासकर मानवीय युवा पीढ़ी जिन्हें भविष्य की बागडोर संभालनीं है, यानें हमारी अगली पीढ़ी बनने वाले युवा और बच्चों की रुचि मादक पदार्थों में बढ़ती ही जा रही है हम अपने आसपास भी देखते होंगे कि बच्चे भी सिगरेट, बीड़ी, बीयर पीने की ओर आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं जो वैश्विक समस्या बनती जा रही है इसीलिए ही नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस 26 जून के उपलक्ष में हम इस आर्टिकल के माध्यम से, आओ नशीली दवाओं के दुरुपयोग, अवैध तस्करी को रोकने सक्रिय भूमिका बढ़ाएं पर परिचर्चा करें।

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क्यों नारी को हीन बनाया बनाया गया!

जिस देश में नारी आदि काल से ही पूजी जा रही हैं उसी देश में नारी का सम्मान का हनन,मानसिक और शारीरिक रूप से सालों से होता रहा हैं।जिसमे सिर्फ मां सीता या द्रौपदी ही नहीं अनेक नारियां हैं जिनके बारे में हम ज्यादा कुछ जानते ही नहीं।अहिल्या शीला क्यों बनी?दत्तात्रेय की माता की कहानी, सतीत्व की परीक्षा क्यों ली गई?देखा हैं कभी किसी पुरुष के सत की परख हुई हो, ऐसी कोई भी कहानी इतिहास में लिखी दिखी हैं कभी? क्यों सावित्रियाँ ही पति को यम से वापस ले आती हैं,देखा हैं कोई नर जिसकी पत्नी के मृत्यु के बाद अपनी पत्नी को वापस पाने के लिए यम से भिड़ा हो?
सीता को माता कहलाने के लिए जो सहना पड़ा वह सती बनी,पर क्या क्या कीमत चुकाई ये हम विदित ही हैं।वैसे क्यों हरण हुआ सीता का,राम और लक्ष्मण के स्वरूपनाखा के साथ हुए मसखरे वर्तलाप की वजह से ही तो। इसमें सीता के स्त्रीदाक्षिण्य में कोई कमी तो न थी। द्रौपदी का को अपमान हुआ वह भी पांच पांच बाहुबली पतियों के सामने ये क्या बताता हैं निर्मल्य मानसिकता या अपना द्युत धर्म के पालन करने की जूठी जिद्द!वहीं द्रौपदी को माता का दर्जा नहीं मिला लेकिन एक नरसंहार को जन्म मिला।द्रौपदी की वेदना को वाचा उसके पतियों ने दी जो वाकई में दर्दनाक थी।महाभारत के युद्ध के बाद आसमान में गिद्धों के बदल छा गए थे ये उस संहार के चित्र को स्पष्ट कर रहा हैं की विनाश की मात्रा कितनी थी।ये समाज की लघु दृष्टि को साबित करती हुई घटनाएं हैं।
एक जमाने में ऋषि पत्नियां भी वाग संवाद में हिस्से लेती थी,यहां तक की किसी भी गोष्टी में निर्णयकर्ता भी नियत की जाती थी।वे विदुषियां थी तभी तो उनको इतना मान सम्मान भी मिलता था।आज कल के जमाने में देखा जाएं तो नारी उत्पीड़न की वजहें बहुत ही सामान्य होने के साथ साथ बहुत ही गहन भी हैं।नारी शारीरिक बल के अलावा हरेक मामलों में पुरष से आगे हैं।व्यवहारिक मामलों में नारी से कोई मुकाबला पुरुष का नहीं हैं,मानसिक बल स्त्री के पास ज्यादा हैं, भावनात्मक लगाव कभी भी पुरुष से कम नहीं रही हैं वह।क्या ये नारी के मान को हीन बनाना एक पुरुष उन्नति के लिए प्रायोजित कार्यक्रम हैं? जैसे हम विद्यार्थी काल में लाइन बनाके अपने सहपाठी से कहते थे,” उस लाइन को छेड़े बगैर छोटी कर के दिखाओ।”और क्या किया जाता था,उसी लाइन के साथ में एक बड़ी लाइन खींच के पहली लाइन को छोटी बना दिया करतें थे,तो कालक्रम में स्त्री को अबला और बाद में कमतर साबित कर दिया गया ताकि पुरुषों के अपेक्षित सम्मान या ईगो को पूरा किया जा सके।

जयश्री बिरमी
अहमदाबाद

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अब तो सोच बदलो

आज हम 21वीं सदी की दहलीज़ पर खड़े है औरतों ने अपनी अठारहवीं सदी वाली छवि बदलकर रख दी है, हर क्षेत्र में नारी एक सक्षम योद्धा सी अपना परचम लहरा रही है और परिवार का संबल बनकर खड़ी है, फिर भी कुछ लोगों की मानसिकता नहीं बदली। चाहे कितनी ही सदियाँ बदल जाए कामकाजी और नाईट ड्यूटी करने वाली स्त्रियों के प्रति कुछ अवधारणा कभी नहीं बदलेगी। घर से बाहर निकलकर काम करने वाली औरतों को एक अनमनी नज़रों से ही क्यूँ देखता है समाज का एक खास वर्ग? चंद हल्की मानसिकता वाली औरतों को नज़र में रखते रात को बाहर काम करने वाली हर महिला को आप गलत नहीं ठहरा सकते। मुखर महिला यानी बदचलन, किसी मर्द के साथ हंस कर बात करने पर महिला को शक कि नज़रों से ही देखा जाता है।

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क्या हनुमान चालीसा ने विचलित किया चालीस विधायकों को-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’

व्यक्ति के जीवन में धार्मिक भावनायें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। धार्मिक आधार पर ब्रैनवास कर लोगों को मानव बंम तक बना दिया जाता है। जिसके अन्तर्गत लोग स्वयं के प्राण भी न्योछावर कर देते हैं। महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार प्रतीत होता है सत्ता पाकर इतने दर्प में आ गई थी कि उसे लगता था वे जो भी करेंगे सभी विधायक आंख बंद करके उनका समर्थन करते रहेंगे। सरकार गठन के कुछ दिनों बाद से ही उद्धव सरकार अपने मूल उद्देश्य को तिलांजलि देकर अपनी सहयोगी पार्टियों को खुश करने और देश में अपनी दबंगई दिखाने के फार्मूले पर काम करती नजर आई। विगत ढाई वर्षों में कई ऐसे कार्य व वर्ताव किये जो विधायकों को क्या थोड़े से समझदार व्यक्ति तक को रास नहीं आये।सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा द्वारा मातोश्री के आगे हनुमान चालीसा की मात्र घोषणा करने भर से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दायर किया जाना तो शिवसेना के ही मूल कैडर के गले नहीं उतरा। हिन्दू धार्मिकों के लिए हनुमान चालीसा बहुत महत्व रखता है। जब उन पर कोई संकट आता है तो सर्व प्रथम हनुमान चालीसा का स्मरण या पाठ करते हैं। हिन्दुओं की गहन आस्था पर कुठाराघात शिवसेना के विधायकों को ही आहत कर गया और लगता है इसी हनुमान चालीसा पर आघात ने शिवसेना के चालीस विधायकों को विचलित किया और पार्टी में बगावत करने पर मजबूर कर दिया। जिसकी परिणति देश देख रहा है।

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“कथिर से कुंदन बन गई”

कुंतल आज UPSC पास करके कलेक्टर की कुर्सी संभालने जा रही थी, उस सम्मान में एक समारोह रखा गया। पूरा हाॅल अधिकारियों और कुछ रिश्तेदारों से से खिचोखिच भरा था। कुंतल खोई-खोई दोहरे भाव से जूझ रही थी गरीबी ससुराल वालों की प्रताड़ना घर घर जाकर खाना बनाकर पाई पाई जोड़कर पढ़ना एक-एक घटना किसी फ़िल्म की तरह दिमाग में चल रही थी, की कुंतल के नाम की एनाउंसमेंट हुई। मैडम प्लीज़ स्टेज पर आईये, पर कुर्सी से स्टेज तक पहुँचते कुंतल मानों एक सफ़र से गुज़र गई। गरीब माँ-बाप की बेटी को अक्सर बोझ समझा जाता है, इसलिए बेटियों की पढ़ाई पर ज़्यादा खर्च नहीं करते, जितना जल्दी हो ब्याह दी जाती है। कुंतल दिखने में बहुत सुंदर थी, पढ़ने में होनहार थी पर सरकारी स्कूल में बारहवी कक्षा में पास होते ही एक संपन्न परिवार में कुंतल की शादी करवा दी गई। कुंतल की सुंदरता को देख ससुराल वालों ने घर में सजाने के लिए बहू बना ली पर वो हक वो दरज्जा नहीं दिया जिसकी हकदार थी। ससुराल में सब पढ़े लिखें और अंग्रेजी बोलने वाले थे, तो पति राजन कुंतल को अपने साथ किसी प्रसंग, पार्टी या समारोह में नहीं ले जाता। घर वालें भी सारी बातें अंग्रेजी में करते ताकि कुंतल समझ न सकें, कुंतल सबके सामने खुद को बौना महसूस करती। सब अनपढ़ का ताना मारते, किसीको उसके अच्छे गुणों की कद्र नहीं थी। एक अंग्रेजी नहीं बोलने की वजह से घर में एक कामवाली बनकर रह गई थी। कुंतल राजन से बेइन्तहाँ प्यार करती थी इसलिए सारी प्रताड़ना सह लेती थी।

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गाँव-गाँव तक पहुँचा चुनावी दंगल, चुनावी दाव पेंच में उलझते लोग

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का आगाज होते ही गाँव में एक चुनाव दाव की कसक शुरू हो जाती है l सभी के मन में एक ऐसा जन प्रतिनिधि की आस होती है जो उनके साथ-साथ सम्पूर्ण गाँव को विकास की धारा में बहा सके l एक आम वोटर इससे ज्यादा चाहेगा भी क्या ? बेचारा बस इस उम्मीद में अपना वोट दे देता है कि कभी न कभी तो इन जनप्रतिनिधियों हमारी सुध आएगी , कभी तो उनके कदम हमारी झोपडी की ओर होगा lसमाज में बदलाब के लिए आगे आने वाले लोग – समाज में तीन तरह के लोग होते है, पहले गरीब, मजदूर, दिहाड़ी करने वाले यूँ कहे तो समाज का सबसे निचले पायदान में जीवन यापन करने वाले लोग, इन लोगो को जन प्रतिनिधियों से बड़ी आस होती है कि ये इनका जीवन बदले में मदद करेंगे l देश में सबसे बड़ी संख्या भी इस तबके का ही है; इनके वोट के दम पर ही लगभग सभी जन प्रतिनिधियों की साख होती है l बड़े-बड़े लालच, प्रलोभन वादे एवं आश्वाशन में यही तबका सबसे ज्यादा ठगा भी जाता है l यदि बात करे तो यह समाज का ऐसा हिस्सा है जो अपने काम करवाने के लिए बड़े नेता एवं जिला स्तर के जन प्रतिनिधि तक पहुँच ही नहीं पाता है l

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कैंसर अब लाइलाज नहीं:डॉस्टर्लिमाब दवा के ट्रायल पीरियड में सभी रोगी हुए स्वस्थ

मानव जगत के लिए एक बड़ी खुशखबरी है. पहली बार कोई दवाई कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी पर काम कर गयी है. जी हाँ, डॉस्टर्लिमाब नामक इस दवा ने अपने ट्रायल पीरियड में सभी (जिन मरीजों के ऊपर इस दवा का प्रयोग किया जा रहा था) कैंसर पीड़ित मरीजों को ठीक कर दिया है.
वैश्विक स्तर पर कैंसर मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है. चिकित्सा जगत के लिए सबसे निराशाजनक बात ये है कि कैंसर क्यों होता है, इसके पीछे कोई ज्ञात कारण हीं नहीं है. चिकित्सा जगत सालों से इस बीमारी के लिए कोई ऐसी दवाई ढूंढ रहा था जो इस बीमारी को जड़ से ख़त्म कर सके. ऐसे में यह खबर आशा की एक नई किरण लेकर आई है.मेनहट्टन, न्यूयॉर्क के मेमोरियल स्लोअन कीट्टीरिंग कैंसर सेंटर में एक क्लिनिकल ट्रायल किया जा रहा था. जहाँ कैंसर के 18 मरीजों को 6 महीने से डॉस्टर्लिमाब नाम की दवाई दी जा रही थी. इस परीक्षण के परिणाम हैरतअंगे

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