Sunday, June 2, 2024
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लेख/विचार

सहस्त्रों साल की विरासत पर गर्व करने का क्षण

दक्षिण पूर्व एशिया के देश वियतनाम में खुदाई के दौरान बलुआ पत्थर काएक शिवलिंग मिलना ना सिर्फ पुरातात्विक शोध की दृष्टि से एक अद्भुत घटना हैअपितु भारत के सनातन धर्म की सनातनता और उसकी व्यापकता का एक अहम प्रमाणभी है। यह शिवलिंग 9 वीं शताब्दी का बताया जा रहा है। जिस परिसर में यह शिवलिंग मिला है, इससे पहले भी यहाँ पर भगवान राम और सीता की अनेकमूर्तियाँ और शिवलिंग मिल चुके हैं। आधुनिक इतिहासकार भारत की सनातनसंस्कृति को लेकर जो भी दावे करें किंतु इसकी सनातनता और लगभग सम्पूर्णविश्व में इसके फैले होने के प्रमाण अनेक अवसरों पर ऐसे ही सामने आते रहतेहैं। और जब इस प्रकार के प्रमाण प्रत्यक्ष होते हैं तो स्वतः ही यह प्रश्नउठता है कि “प्रत्यक्षम किम प्रमाणम ?” अर्थात प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता? आज हम ऐसे ही प्रमाणों की बात करेंगे जो हमें जितने आश्चर्यचकित करते हैं उतने ही गौरवान्वित भी करते हैं।

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समस्याओं से दूर हो रियलिटी शो बनी पत्रकारिता -प्रियंका सौरभ

पूरी दुनिया ने पत्रकारिता को अपना एक अभिन्न और खास अंग माना है और साथ ही लोकतंत्र में इसको चौथा स्तंभ के रूप में माना गया है। वह 30 मई का ही दिन था, जब देश का पहला हिन्दी अखबार ‘उदंत मार्तण्ड’ प्रकाशित हुआ। इसी दिन को हिन्दी पत्रकारिता दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। हिन्दी के पहले अखबार के प्रकाशन को 193 वर्ष हो गए हैं।
30 मई 2019 यानि आज पूरे देश में पत्रकारों का सबसे खास दिन पत्रकारिता दिवस 2019 ( मनाया जा रहा है। सन 1826 में सबसे पहले हिंदी भाषा में समाचार पत्र उदंत मार्तंड जारी हुआ था। जिससे भारतीय पत्रकारिता की शुरुआत हुई थी। इस दिन को ही हर साल पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है,इस अवधि में कई समाचार-पत्र शुरू हुए, उनमें से कई बन्द भी हुए, लेकिन उस समय शुरू हुआ हिन्दी पत्रकारिता का यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। लेकिन, अब उद्देश्य पत्रकारिता से ज्यादा व्यावसायिक हो गया है।

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जीवन चलाने के लिए जीवन को ही दांव पर लगा दिया गया

विज्ञान के दम पर विकास की कीमत वैसे तो मानव वायु और जल जैसे जीवनदायिनी एवं अमृतमयी प्राकृतिक संसाधनों के दूषित होने के रूप में चुका ही रहा था किंतु यही विज्ञान उसे कोरोना नामक महामारी भी भेंट स्वरूप देगा इसकी तो उसने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की होगी। अब जब मानव प्रयोगशाला का यह जानलेवा उपहार उस पर थोपा जा ही चुका है तो निसंदेह उसे प्रकृति के सरंक्षण और उसके करीब रहने का महत्व समझ आ गया होगा। लेकिन वर्तमान में इससे अधिक महत्वपूर्ण विषय है कोरोना महामारी पर मानव जाति की विजय। आज की वस्तुस्थिति तो यह है कि लगभग सम्पूर्ण विश्व ही कोविड 19 के समक्ष घुटने टेके खड़ा है। ना इसका कोई सफल इलाज मिल पाया है और ना ही कोई वैक्सीन। दावे तो कई देशों की ओर से आए लेकिन ठोस नतीजों का अभी भी इंतजार है, उम्मीद अभी भी बरकरार है। अपेक्षा है कि विश्व के किसी न किसी देश के वैज्ञानिकों शीघ्र ही दुनिया को इस महामारी पर अपनी विजय की सूचना देंगे।

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राजनीति बनाम सांप्रदायिकता

आज राजनीति की भाषा और परिभाषा नहीं रह गई है। समय, और परिस्थिति के हिसाब से जो बातें उसके हित में हों वही विचारधारा बन जाती है। अब राजनीति और राजनेताओं के लिए दलित, गाय, हिंदू, अल्पसंख्यक शब्द राजनीति करने के लिए काफी मायने रखते हैं और वो समय-समय पर यह इसे भुनाते भी रहते हैं। इन्हीं पर सियासत करते हुए वो अपने वोटों की हांडी भरते हैं। सियासी गलियारे में जाति, धर्म और भाषा की राजनीति दिन ब दिन बढ़ती जा रही है ताकि चुनावी मौसम में इस्तेमाल किया जा सके। अवसरवादी राजनीति में मुद्दा कोई भी हो, सत्ता में बने रहने के लिए और निजी हितों की पूर्ति तक ही राजनीति सिमट कर रह गयी हैं।
दलितों की चिंता, गौ सेवक, गरीबी हटाना (जो काफी सालों से चलता आ रहा है), स्त्री सुरक्षा, बेटी बचाओ – पढ़ाओ (यह भी काफी समय से चल रहा है) यह सिर्फ खोखली बातें ही लगती हैं। भीड़तंत्र, गाय सेक्युलर धर्म, हिंदुत्व यह बातें सिर्फ सांप्रदायिकता ही फैलाती हैं। लोगों के दिलों में खाई ज्यादा गहरी होती जा रही है।

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कहानी सबक

यही कोई पचास के आस पास उम्र होगी करुणेश की। सेना में सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त। वर्तमान में समाज सेवा से जुड़े हैं। और अपना अधिक से अधिक वक़्त समाजसेवा को ही देते हैं। ग्रेटर कैलाश इलाके में एक वृद्धाश्रम भी चलता है उनका। खूब समर्पित रहते हैं और पूरे मनोयोग से वृद्धों की सेवा करते हैं। कभी कीर्ति यश के लिए काम नहीं किया। जो हृदय को सुकून दे बस वही काम किया। अपनी पेंशन का ज्यादा हिस्सा वह इस आश्रम में ही व्यय किया करते हैं।
उस इलाके में कई और भी अनाथालय, वृद्धाश्रम और एनजीओ संचालित हैं। खूब बड़े बड़े बैनर लगे हुए। पर केवल आर्थिक सहायता (अनुदान) लेने के लिए। सरकार को ठगने के लिए। अपना उल्लू सीधा करने के लिए। सब कुछ रजिस्टर में ही होता है वहां, अनुदान बराबर मिलता रहे बस इसी प्रत्याशा में चल रही हैं ये संस्थाएं। सारी गलती उन्हीं संस्थाओं की हो है यह भी नहीं कह सकते, सरकारी मशीनरी ही कुछ ऐसी है कि बिना ” रिटर्न गिफ्ट” वाली संस्थाएं उन्हें फूटी आंखों भी नहीं सुहाती। बिना उसके वह किसी की कोई फाइल नहीं बढ़ने देते। थक हार कर व्यक्ति नाउम्मीद हो जाता है। ऐसा नहीं है कि इन छद्म संस्थाओं ने करुणेश की संस्था के लिए कठिनाई नहीं पैदा की, पर सांच को आंच कहां आती है। करुणेश जी के समर्पण, सेवाभाव और त्याग के आगे वह लोग अपने मंसूबों के कामयाब न हो सके।

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जीवन रूकने नहीं चलने का नाम है -कोरोना

विज्ञान के दम पर विकास की कीमत वैसे तो मानव वायु और जल जैसेजीवनदायिनी एवं अमृतमयी प्राकृतिक संसाधनों के दूषित होने के रूप में चुका ही रहा था किंतु यही विज्ञान उसे कोरोना नामक महामारी भी भेंट स्वरूप देगा इसकी तो उसने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की होगी। अब जब मानवप्रयोगशाला का यह जानलेवा उपहार उस पर थोपा जा ही चुका है तो निसंदेहउसे प्रकृति के सरंक्षण और उसके करीब रहने का महत्व समझ आ गया होगा। लेकिन वर्तमान में इससे अधिक महत्वपूर्ण विषय है कोरोना महामारी पर मानव जाति की विजय। आज की वस्तुस्थिति तो यह है कि लगभग सम्पूर्ण विश्व ही कोविड 19 के समक्ष घुटने टेके खड़ा है। ना इसका कोई सफल इलाज मिल पाया है और ना ही कोई वैक्सीन। दावे तो कई देशों की ओर से आए लेकिन ठोस नतीजों का अभी भी इंतजार है, उम्मीद अभी भी बरकरार है। अपेक्षा है कि विश्व के किसी न किसी देश के वैज्ञानिकों शीघ्र ही दुनिया को इस महामारी पर अपनी विजय की सूचना देंगे।

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क्या कोरोना जेलों का सुधार करवा पायेगा ?

मुंबई सेंट्रल जेल के अंदर संक्रमण के बाद, महाराष्ट्र ने जेलों में बंद आधे लोगों को अस्थायी रूप से रिहा करना शुरू कर दिया है। महाराष्ट्र सरकार ने एक परिपत्र जारी किया, जो अस्थायी रूप से जमानत और आपातकालीन पैरोल पर राज्य की जेलों में बंद आधे कैदियों को रिहा करने की सुविधा प्रदान करता है। उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और दिल्ली सहित राज्यों ने अपनी जेलों में कोविद -19 मामले दर्ज किए हैं। चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए जेल के अधिकारियों से पूछा है कि वे कोरोना को फैलने से कैसे रोकेंगे। उन्होंने जेल में रखे गए क्षमता से ज्यादा कैदियों को कोरोना के खतरे पर चिंता जताई।
उन्होंने जेल अधिकारियों को कोरोना पर लगाम लगाने की वैकल्पिक योजना देने को कहा। केरल की जेल में कोरोना से संक्रमित कैदियों को अलग रखने की व्यवस्था की गई है। अमेरिका और ईरान की जेलों में कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए कम जोखिम वाले कैदियों को रिहा किया जा रहा है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह का कोई सुझाव नहीं दिया। उसने सभी कैदियों की जांच कराने, कोरोना से संक्रमित कैदियों को अलग रखने और उनका तुरंत इलाज कराने पर जोर दिया। चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा, “सरकार ने वायरस को फैलने से रोकने के लिए सामाजिक तौर पर दूरी रखने की सलाह दी है। लेकिन जेलों में क्षमता से अधिक कैदी हैं, जिससे दूरी रखना मुश्किल है।”

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तनातनी के माहौल में भारत की भूमिका

महामारी को लेकर अमेरिका, चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के बीच चल रही जुबानी जंग में हर रोज कुछ न कुछ नया शामिल जो जाता है. इस लड़ाई को आगे बढ़ाते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रमुख को एक चेतावनी भरा पत्र लिखा, लेकिन इसका जवाब उन्हें चीन की तरफ से मिला। चीनी विदेश मंत्रालय ने ट्रंप के पत्र को ‘संकेतों, शायद, किंतु-परंतु’ से भरा हुआ बताया और यह भी कहा कि अमेरिका जनता को गुमराह करने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने डोनाल्ड ट्रंप के पत्र पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘अमेरिका अपनी जिम्मेदारी को सीमित करने और विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रति अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों पर सौदेबाजी के लिए चीन को मुद्दा बना रहा है, लेकिन अमेरिका ने गलत लक्ष्य चुना है’।

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हुजूर को सहयोग के लिए मुख्यमंत्रियों का एहसान मंद होना चाहिए- संजय रोकड़े

भारत में कोरोना को हराने के लिए हर नागरिक ने वही किया जो देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई दामोदर दास मोदी ने समय-समय पर सुझाया। हुजूर ने कहा ताली-थाली बजाओ, तो ताली-थाली बजाई गई। दीये जलाओ तो दीये जलाए गए। और तीसरे इवेंट में उनने आसमान से फुल बरसाने का प्लान दिया उसमें भी सबने पूरा सहयोग किया। हालाकि सब ये अच्छे से जानते थे कि यह पीएम की प्रतीकात्मक पहल है। मोदी का पीआर इवेंट है बावजूद इसके उनके इस इवेंट को सबके सब सफल बनाने में जुट गए। हुजूर की इन प्रतीकात्मक पहलों का किसी ने भी विरोध नही किया।
ऐसा नही है कि उनका विरोध नही किय जा सकता था, लेकिन सबने उनका साथ दिया। आज जनता से लेकर हर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने दलगत राजनीति से उपर उठकर उनके हर पीआर इवेंट को सफल बनाया जबकि वे सब जानते थे कि एक समय के बाद मोदी इसका राजनीतिक लाभ उठाने में पीछे नही हटेगें बावजूद इसके सबने एकजुटता दिखाई। इस एकजुटजा और हर कहे को मान्य करने के लिए आखिर क्यूं नरेन्द्र मोदी को अपने मुख्यमंत्रियों का एहसान मंद होना चाहिए।

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प्रधानमन्त्री का आत्मनिर्भर भारत अभियान

अदृश्य विषाणु कोरोना ने पूंजीवाद की अन्धी दौड़ में बेतहाशा भाग रहे विश्व की रफ़्तार पर जिस तरह से अचानक ब्रेक लगाया है, उससे बड़े-बड़े देशों का आर्थिक ढांचा पूरी तरह से चरमरा गया है| विश्व का प्रत्येक विकसित और विकासशील देश अपनी आर्थिक विकास की रणनीति पर नये सिरे से विचार करने लगा है| 12 मई को प्रधानमन्त्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने दूरदर्शन के माध्यम से देश को सम्बोधित करते हुए 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की| मोदी के अनुसार इस धन के माध्यम से भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम किया जायेगा| देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात तो आजादी के समय से ही रही है और इन तिहत्तर सालों में इसके लिए रणनीतियां भी अनगिनत बार बनायीं गयीं| परन्तु परिणाम लक्ष्य से सदैव दूर ही रहा| प्रधानमन्त्री की घोषणा के मुताबिक इस बार की रणनीति सबसे अलग होगी| पूरे भाषण में उनका जोर स्थानीय शब्द पर रहा| उन्होंने लोकल के लिए वोकल का मन्त्र देते हुए स्थानीय स्तर पर देश को आर्थिक दृष्टि से मजबूत करने पर विशेष बल दिया|

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