खुद पर कमान मजबूत शख़्सीयत की नींव होती है, शांत मन इंसान की दक्षता और कुनेह है, मन को शांत रखो और दिमाग को तेज़। जब किसी की गलत बात या गलत विषय वस्तु पर आप निरर्थक दिमाग नहीं चलाते तो अपनी ज़िंदगी की दिशा निर्देश की कमान भी किसी और के हाथों में मत दो। विरोध करना भी एक हुनर है सीख जाओ, ना कहना गलत नहीं। जिस बात को करने की अनुमति अपना मन और हृदय ना दें वो करने की जुर्रत मूर्खता है, कमज़ोरी है और डर का दूसरा नाम है।
भावनाओं को कुशाग्र बुद्धि पर हावी होने का अधिकार कभी मत दो, अपने वजूद की तलाश खुद के अंदर करो और प्रभुत्व पाकर बेहतरीन शख़्सीयत का प्रमाण दो। आत्मबल का स्त्रोत बहता है हमारे भीतर डर को जड़ से काटने पर फूट पड़ेगा सकारात्मकता का झरना, जो डर और जिजक की असंख्य परतों के पीछे बंदी पड़ा है।
लेख/विचार
आरक्षण क्यो, और कब तक
आरक्षण का मतलब किसी काबिल व्यक्ति का हक मारना, अपने बलबुते पर नहीं बल्कि जात-पात का सहारा लेकर जिस कुर्सी के हकदार नहीं उस पर बैठ जाना। आज आरक्षण की वजह से होनहार लड़के 95/96 % के साथ भी नौकरी के लिए भटक रहे है और 40/60 % वाले उनका हक छीन कर ले जाते है। जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए आरक्षण को, दम है तो आगे बढ़ो। दुनिया में काम की कमी नहीं।
आरक्षण सिर्फ़ शारिरीक तौर पर अपाहिज या अति पिछड़े वर्ग के लिए होना चाहिए, वो भी काबिलियत पर। आरक्षण के नाम पर बनें डाॅक्टर, इन्जीनियर या नेता देश और समाज का क्या भला करेंगे। आज स्थिति यह है कि यदि आप केवल इतना ही पूछ लें कि आरक्षण कब खत्म होगा, तो तुरंत आपको दलित-विरोधी की उपाधि से नवाज़ दिया जाएगा। कोई ये नहीं सोचता कि आरक्षण एक ऐसा दीमक है जो देश की होनहार शख़्सीयतों को खा रहा है। क्या केवल कुछ उपजातियां ही अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों पदों पर कब्जा जमा रही हैं? क्या जातियों को पिछडे वर्ग की सूची में इसलिए शामिल किया जा रहा है कि वे सचमुच पिछड़ी और वंचित हैं? या इसलिए कि उनकी शक्ति और प्रभावशीलता को देखते हुए राजनेताओं को ऐसा करना पड़ रहा है?
अब वक्त आ गया है, बलात्कार का दमन हो
आए दिन पत्रिकाओं में चार महीने की बच्ची से लेकर किसी भी उम्र की लड़की और महिला के साथ हो रहे शारीरिक अत्याचार के चलते सीमा अपनी 11 साल की बच्ची को लेकर चिंतित हो उठती थी। और एक आंशिक भय उसके दिमाग को कचोटता रहता था। गली मोहल्ले और फूटपाथ तो छोड़ो खुद अपने घर में भी बेटीयाँ कहाँ सुरक्षित है।
अपने ही घर के कुछ सदस्य की गतिविधियों से परेशान सीमा ने ठान लिया पिंकी भले ही छोटी है पर अब वक्त आ गया है पिंकी को उन सारी चीज़ों से अवगत कराने का जो उसे एसी हरकतों से बचाने में सहायक बनें।
दास्तां होगा
ऐसी राह पर चलना है कि पीछे
पीछे मेरे भी कारवां होगा
मेरे बाद मेरे नेकियों का
दास्तां होगा
आ गया मुझे धूप चिलचिलाती
जिंदगी के सहना
मेरा तासीर पानी सा है अब
वक्त के मार से है कहना
अब मिले सब्जातारा या फिर सहरा
दिल ना परेशां होगा
मेरे बाद मेरे नेकियों का दास्तां होगा
वैक्सीनेशन के लिए स्कूलों के टीचिंग स्टाफ को फ्रंटलाइन वर्कर्स की कैटेगरी में शामिल करना समय की मांग
वैक्सीनेशन में जांबाज़ी से सेवा और अब स्कूल खुलने पर टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ की जिम्मेदारी बढ़ी – एड किशन भावनानी
भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर पर हर भारतवासी के सहयोग, फ्रंटलाइन वर्कर की ज़बाजी और शासन प्रशासन के रणनीतिक रोडमैप योजनाओं व उच्च नियंत्रण व निर्णय क्षमता के सहयोग से महामारी पर नियंत्रण करने में सफलता मिल रही है। फिर भी कुछ राज्यों में महामारी फैली हुई है, परंतु नियंत्रण में है फिर भी हमें यह नहीं समझना चाहिए किदूसरी लहर समाप्त हो गई है। वैक्सीनेशन अभियान में जोरदार जवाबदारी और जिम्मेदारी में सहयोग और कोविड-19 आचार संहिता का पालन, अनलॉक स्थिति में भी अनिवार्य से हम सब को करना है।…
बुलंद हौंसलों के साथ आयरन लेडी बनकर उभरी चानू
टोक्यो में 23 जुलाई से शुरू हुए ओलम्पिक खेलों में पहले ही दिन भारतीय महिला खिलाड़ी मीराबाई चानू द्वारा देश के लिए पहला पदक जीतना हर भारतीय के लिए बेहद गौरवान्वित करने वाला पल था और अब पीवी सिंधु ने इस खुशी को दोगुना कर दिया है। वैसे ओलम्पिक खेलों में भारत के लिए मीराबाई चानू की जीत से अच्छी शुरुआत नहीं हो सकती थी। हालांकि 2016 के रियो ओलम्पिक में हार के बाद चानू को गहरा सदमा लगा था और उस हार के बाद वह इस कदर टूट गई थी कि उन्हें लगने लगा था कि ओलम्पिक में उनका सफर वहीं खत्म हो गया है।
Read More »भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष बना – अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक और इतिहास
दुनिया की सबसे शक्तिशाली संस्था संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता से भारत का अंतरराष्ट्रीय रुतबा, ताकत, और ख्याति बढ़ी – एड किशन भावनानी
वैश्विक स्तर पर कुछ वर्षों से भारत की ख्याति, रुतबा, ताकत, अंतरराष्ट्रीय सकारात्मक संबंध, उपलब्धि, और साख में बेतहाशा वृद्धि हुई है। जिस तरह से हम पिछले कुछ वर्षों में भारत के संबंध पूर्ण विकसित देशों अमेरिका, जापान, फ्रांस, रूस, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड इत्यादि अनेक देशों से मजबूत हुए हैं, उसी तरह विकासशील देशों के लिए भारत एक उम्मीद की किरण बन गया है।…साथियों मेरा मानना है कि आज हम अपने आपको गर्वित महसूस कर रहे हैं।…
आरोप में कितना दम
बेशक राज कुंद्रा ने गलत किया और गुनहगार है, हर जुर्म कि सज़ा उन्हें मिलनी चाहिए, पर इस मामले में ये कांड होते ही एक-एक करके जो लड़कियां आरोपों का पिटारा खोल रही है उस बात पर एक बार संदेह जरूर होता है। अब देखिए शर्लिन चोपड़ा ने उन पर सनसनीखेज आरोप लगाए हैं। शर्लिन चोपड़ा ने कथित तौर पर पुलिस को दिए अपने बयान में राज कुंद्रा पर सेक्सुअल असॉल्ट का आरोप लगाया है। शर्लिन चोपड़ा का दावा है कि राज कुंद्रा दो साल पहले 2019 में एक दिन अचानक उनके घर पहुंचे थे और उनके साथ सेक्सुअल मिसकंडक्ट यानी यौन दुराचार किया। शर्लिन का आरोप है कि राज कुंद्रा ने उन्हें जबरन किस किया था।
Read More »मिशन पांच राज्यों में इलेक्शन 2022 – हर पार्टी नें तात्कालिक रणनीतिक रोडमैप बनाना शुरू किया
चुनाव जीतने प्रबुद्ध सम्मेलन, प्रतिमा स्थापन, सोशल व जातीय इंजीनियरिंग, नेतृत्व परिवर्तन सहित अनेक रणनीतिक पैटर्न पर काम शुरू – एड किशन भावनानी
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और भारत की अनेक खूबसूरतीयों में से एक है भारतीय लोकतंत्र और चुनावी प्रक्रिया को पूरी दुनिया में बहुत श्रद्धा सम्मानित रूप से, एक आइडियल के रूप में देखा जाता है। जो भारत के लिए एक गर्व की बात है। चुनावी प्रक्रिया संपन्न कराने के लिए भारत में एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था भारतीय चुनाव आयोग है जो जिम्मेदारी से चुनावी प्रक्रिया संपन्न करवाता है…। साथियों बात अगर हम अगले साल 2022 में होने वाले पांच राज्यों के चुनावों की करें तो अगले साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, सूत्रों के अनुसार गोवा, मणिपुर, पंजाब और उत्तराखंड विधानसभाओं का कार्यकाल मार्च 2022 में समाप्त होगा।
कब तक कहर ढायेगा कारोना
कुछ लोग मानते हैं कि करोना की तीसरी लहर आ गई हैं।कुछ लोग कहते हैं आने वाली हैं।वैसे तो जितने लोगो का रासीकरण हो गया हैं और जितने संक्रमित हो के ठीक हो चुके हैं। उनको असर होने की संभावना कम है।तो बचे हुए लोगो को ही ज्यादा असर करेगा करोना।जो मुख्य रूप बच्चे ही हो सकते हैं। लेकिन एक और भी प्रमुख प्रश्न हैं।जो ठीक हो गए हैं उनके सामने भी कितने ही प्रश्न हैं। जो आर्थिक,सामाजिक और मानसिक मुख्य हैं। लॉकडाउन के समय से आज तक सभी व्यापारियों को कुछ न कुछ मुश्किल आई ही हैं। जैसे कारखानों में कारीगरों का घर वापसी,कच्चे माल की अलभ्यता, बिक्री नहीं हो पा रही है, क्योकि लोगो की खरीदशक्ति कम हो रही हैं, क्योंकि आमदनी कम हो गई हैं। कहां से व्यापारी देंगे इनको वेतन जब उनका ही काम नहीं चल पाया हैं।बहुत ही ऐसे ही प्रश्न हैं जो अभी अव्यक्त हैं। सामाजिक प्रश्न भी हैं, जिनके बड़े विवाह योग्य बच्चे हैं उनके रिश्तों के लिए योग्य जीवनसाथी ढूंढने के लिए करोना प्रोटोकॉल के साथ आना जाना मुश्किल हो गया था।तय की शादियों को अंजाम देना और बहु लाना या लड़की को विदा करना भी एक चुनौति बन गया था।इतनी चुनौतियों का सामना कर के अब थोड़ी परिस्थिति सामान्य हुई हैं। लेकिन अभी करोना का डर गया नहीं हैं। एक डर सा घर कर गया है करोना का जिससे मानसिक रूप से लोगो को कमजोर कर गया हैं।लोग आदमी की उपस्थिति से डर रहे हैं।कैसा समय आ गया हैं।कुछ लोग तो घर से बाहर निकलने से डर रहे हैं।मानसिक डर बैठ गया हैं कि ऐसा करने से खुद संक्रमित हो जायेगा, या कोई परिवार के सभ्यों को भी हो सकता हैं। संक्रमण,इसी डर में अपने आप को शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बना रहें हैं।
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