Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

प्रवासी मजदूरों की बेबसी बयां करती त्रासदी – मजदूरों की मजबूरी – फिर गांव वापसी जरूरी

कोरोना की दूसरी लहर और लॉकडाउन से असमंजस में वापसी को मजबूर हैं प्रवासी मजदूर – एड किशन भावनानी
भारत में पिछले वर्ष हमने प्रवासी मजदूरों के विशाल तादाद ने अपने गांव की ओर लौटने का मंजर पैदल साइकल, दो पहिया वाहन वाहन, ट्रक, बस के रूप में देखा था।और उनकी बेबसी, त्रासदी अनेक मजबूरियां, मजदूरों की मृत्यु हमने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से पूर्ण लॉकडाउन में देखी थी। वह मंजर भूले नहीं हैं, लेकिन बड़े दुख की बात है कि एक बार फिर प्रवासी मजदूरों की बेबसी बयान करती त्रासदी, मजदूरों की बेबसी, पूर्ण लॉकडाउन का भय, ट्रेनों के बंद होने का भय, बड़ी तेजी के साथ प्रवासी मजदूरों में आज फैल रहा है।

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नागरिकों की लापरवाही, कोरोना की चढ़ाई, शासन की कड़ाई, लॉकडाउन ने सभी की टेंशन बढ़ाई

हर नागरिक को अति चौकन्ना रहकर शासकीय दिशानिर्देशों का पालन कर जीवन बचाना जरूरी – जान है तो जहान है – एड किशन भावनानी
वैश्विक रूप से जिस तरह कोरोना महामारी कहर बरपा रही है उससे यह प्रतीत होता है कि वर्तमान महामारी की संक्रमण क्षमता पिछले वर्ष 2020 से अधिक 2021 में महसूस हो रही है। हालांकि अमेरिका, रूस, चीन, भारत सहित कुछ देशों ने अपने वैक्सीन तैयार कर ली है और बहुत तेजी से युद्ध स्तर पर अपने नागरिकों का टीकाकरण करना जारी है और वैश्विक स्तर पर भी भारत सहित कुछ देशों ने गावी संगठन की पहल पर कोरोना वैक्सीन की आपूर्ति की है।… बात अगर हम भारत की करें तो हालांकि पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष इस कोरोना महामारी से लड़ाई के साधन अधिक हैं, दो वैक्सीन पूर्वतः हमारे पास है। तीसरी वैक्सीन स्पूतनिक वी को मंजूरी मिल गई है और शीघ्र ही उपलब्ध हो जाएगी। इस वर्ष स्वास्थ्य क्षेत्र में हमारी तैयारी अपेक्षाकृत अधिकहै, बेड, वेंटीलेटर, क्वॉरेंटाइन सेंटर ऑक्सीजन, सहित अनेक मेडिकल सुविधाएं भी अपेक्षाकृत अधिक है।

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कोरोना की भयावहता—

लगातार फैलते हुए करोना ने इस बार भयावह स्थिति के साथ फिर से वापसी की है। लोगों में फिर से डर, तनाव और चिंता के साथ लॉकडाउन का तनाव भी हावी हो गया है। पिछले एक साल से इस महामारी से जूझ रहे लोगों को अब लॉकडाउन झेलने की ताकत नहीं बची है। यह अभी भूला नहीं जा सका है कि पिछले साल जनता कर्फ्यू और फिर संपूर्ण लॉकडाउन के चलते साधारण और निम्न स्तर के लोगों की स्थिति काफी खराब हो गई थी। अपने घर की ओर पलायन करते मजदूर सड़क पर आ गए थे और रोजी रोटी के लिए मोहताज हो गए थे। इस बार भी परिस्थितियां पहले जैसी और कई जगह तो पहले से भी खराब हैं।

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रिजल्ट ही सबकुछ नहीं है जीवन मे—

परीक्षा मे ज्यादा नम्बर लेकर आना ही जीवन की राह तय नहीं करता ! इसके साथ . साथ ज्ञान भी जरूरी है। सिर्फ अच्छे नम्बर से कोई जीवन मे सफलता हासिल नहीं कर सकता है। ना ही डिवीज़न से, कभी-कभी थर्ड डिवीज़न वाला भी आई.ए.एस, डॉक्टर, इंजीनियर, सी.ए बन जाता है। आपके परीक्षा का नम्बर आपकी जिंदगी तय नहीं करता ना ही आपकी राह। ये नम्बर तो एक जीवन का खेल है। आपका असली ज्ञान, हौसला, आगें बढ़ने की इच्छा, शौक आपकी जीवन का राह तय करता है। आपकी सफलता की नींव बनाती है। कभी-कभी अच्छे नम्बर वाले भी फ़ेल हो जाते है। कुछ नही बन पाते है। सिर्फ मार्क्स जीवन का लक्ष्य निर्धारित नहीं करती है। आपका मजबुत संकल्प, आत्मविश्वास, मेहनत, आगे बढ़ने की चाह ही आपको सफलता के कदम चूमने को अग्रसर करती है। जब तक इंसान में सिर्फ नंबर, रिजल्ट की चाह रहेगी वो जीवन में सक्सेसफुल हो सकता है।

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राज्यों के महत्वपूर्ण चुनाव के नतीजे “ऊंट किस करवट बैठेगा”

पांच राज्यों के चुनाव में पश्चिम बंगाल में मतदान होना शेष है, वैसे तो चुनाव हमेशा महत्वपूर्ण होते है, पर इस बार चुनाव कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण दिखाई दे रहे हैं। पश्चिम बंगाल, तमिल नाडु, केरल और आसाम का चुनाव भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बने हुए है, यह तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगे कि किसकी इज्जत दांव पर लगती है। पश्चिमबंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में एक साथ आम चुनावों ने भारतीय राजनीति में काफी उथल-पुथल मचा रखी है। और इन चुनावों में जीत के साथ वहां की क्षेत्रीय पार्टियों का आंकलन तथा भविष्य भी तय करेगा। यह पांचो राज्य क्षेत्रीय पार्टियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण चुनाव हैं। वहीं राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी तथा वामपंथी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए जी काफी संवेदनशील है।

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वैक्सीन लगवाओ ज्यादा ब्याज पाओ, मकान टैक्स में राहत पाओ – स्पूतनिक वी वैक्सीन को आपातकालीन अनुमति

टीकाकरण प्रोत्साहन के लिए जनता को टैक्स और ब्याज संबंधी राहत सराहनीय, परंतु महामारी के मारे आर्थिक रूप से पिछड़ों के लिए योजनाएं फीकी – एड किशन भावनानी
वैश्विक रूप से महामारी द्वारा दूसरी बार जोरदार और नए सिम्टम्स, नए आयामों के रूप में जनता पर तीव्र गति से अटैक करने के कारण एक बार फिर पूरा विश्व हर क्षेत्र में दुर्दशा की ओर बढ़ रहा है जो काफी चिंताजनक स्थिति है।… बात अगर हम भारत की करें तो भारत में भी पिछले कुछ दिनों से महामारी का संक्रमण बहुत ही तेजी के साथ पूरे भारत में फैल रहा है। हालांकि कई राज्यों ने तीव्रता से सावधानी और राहत के कदम उठाते हुए कई शहरों में नाइट कर्फ्यू, कई शहरों में लॉकडाउन, कई शहरों में फुल लॉकडाउन और महाराष्ट्र जहां सबसे अधिक स्थिति खराब व सबसे अधिक केस हैं, वहां मुख्यमंत्री महोदय ने सर्वदलीय सभा, टास्क फोर्स की सभा इत्यादिसभी संबंधित अधिकारियों से बैठक कर मंथन किया और दिनांक 13 अप्रैल 2021 रात्रि 9 बजे ब्रेक द चैन आदेश की घोषणा की, जो एक तरह से संपूर्ण राज्य में लॉकडाउन और कर्फ़्यू का ही रूप है।

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न्यायिक व्यवस्था में मिसाल बनेंगे न्यायमूर्ति रमना ! – योगेश कुमार गोयल

महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की स्वीकृति के बाद न्यायमूर्ति नथालापति वेंकट रमना भारत के 48वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) होंगे। 64 वर्षीय जस्टिस रमना 24 अप्रैल को देश के मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ लेंगे। दरअसल मौजूदा मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबड़े का कार्यकाल 23 अप्रैल को पूरा हो रहा है और अपने उत्तराधिकारी के रूप में उन्होंने पिछले महीने न्यायमूर्ति एनवी रमना के नाम की सिफारिश की थी। नियमानुसार मौजूदा मुख्य न्यायाधीश अपनी सेवानिवृत्ति से एक महीने पहले केन्द्रीय कानून मंत्री को एक लिखित पत्र भेजकर नई नियुक्ति के लिए सिफारिश करते हैं। कानून मंत्री सही समय पर मौजूदा मुख्य न्यायाधीश से उनके उत्तराधिकारी का नाम मांगते हैं और मुख्य न्यायाधीश नियमानुसार प्रायः उच्चतम न्यायालय के सबसे वरिष्ठ जज के नाम की सिफारिश भेजते हैं। अनुशंसा पत्र मिलने के बाद कानून मंत्री इसे प्रधानमंत्री के समक्ष रखते हैं, जिनकी सलाह पर राष्ट्रपति नए मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं। चीफ जस्टिस ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को लिखे पत्र में जस्टिस एनवी रमना को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के लिए सबसे उपयुक्त बताया था।

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खेतों में तैयार खड़ी फसलों में, आग लगना चिंता का विषय – अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंथन जरूरी

जंगलों और फसलों में आग से पर्यावरण व किसानों को भारी क्षति – रणनीति बनाना जरूरी – एड किशन भावनानी
वैश्विक स्तर पर अनेक समस्याएं होती है, जो किसी एक देश, राज्य या व्यक्ति के लिए नहीं होती बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए होती है जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मिट, सम्मेलन होते हैं। जिसमें उस विषय पर वैश्विक स्तर के नेता, विशेषज्ञ व बड़े अधिकारी शामिल होते हैं और विचारविमर्श कर रणनीति और उसका रोडमैप तैयार किया जाता है। जैसे जलवायु परिवर्तन शिखरसम्मेलन महामारी, मानवाअधिकार, इसके अनेक विषय हैं।… बात अगर हम अनेक देशों में जंगलों में आग लगने की करें तो यह घटनाएं अभी हालके कुछ वर्षों या दशकों में काफी बढ़ी हुई अवस्था में हैं।

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बेहद चिन्ताजनक है कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर

तेजी से बढ़ते कोरोना संक्रमण के आंकड़े एक बार फिर देश की रफ्तार पर ब्रेक लगा सकते हैं। मुख्यमन्त्रियों के साथ विचार-विमर्श करने के बाद प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने देश में पुनः लॉकडाउन की सम्भावना को भले ही सिरे से खारिज कर दिया हो परन्तु कोरोना संक्रमितों की संख्या का आंकड़ा जिस गति से बढ़ रहा है वह बेहद चिन्ताजनक है। स्वास्थ्य मन्त्रालय द्वारा 9 अप्रैल की सुबह जारी आंकड़ों के अनुसार 24 घण्टे में 1,31,968 नये मामले सामने आये और 780 लोगों की मृत्यु हो गयी। इस तरह से देश में कोरोना संक्रमितों की कुल संख्या एक 1,30,60,542 हो गयी है। जो निरन्तर बढ़ रही है। वहीं कोविड-19 से अब तक मरने वालों का आंकड़ा 1,67,642 पर पहुँच गया है। यद्यपि इस बीमारी से लड़कर ठीक होने वालों की संख्या भी 1,19,13,292 हो गयी है। जो राहतकारी है परन्तु सन्तोषजनक नहीं है। शोध से पता चला है कि कोरोना वायरस का नया वैरिएंट ज्यादा शक्तिशाली और जानलेवा है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को आसानी से पार कर सकता है। इसलिए अब नौजवानों के लिए भी कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ गया है।

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वंचित तबके की अवहेलना का कड़वा सच

भारतीय इतिहास सैदव ही अनूठा रहा है और इसकी विशेषताओं में भी एक ऐसा मिश्रण रहा है जो विश्व के अन्य देशों से अलग पहचान दिलाता है। दुनिया के देशों में शासन-प्रशासन व्यवस्था के विभिन्न रूप देखे जा सकते हैं और इसी क्रम में भारत की शासन व्यवस्था की बात की जाए तो समय के साथ इसमे भी बदलाव आये हैं, जहां कभी राजतंत्र, निरकुंश तंत्र और अभी लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था रही है। हम स्वंतत्रता के पश्चात् के दौर की बात करते हैं तो संवैधानिक रूप से देश में संसदीय लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था का प्रचलन है परन्तु इसमें भी शासन के विभिन्न रूप देखे जा सकते हैं। भारतीय संविधान भेदभावरहित समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, न्याय की सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक व्यवस्था करता है परन्तु वास्तविकता के धरातल पर इसका व्यावहारिक स्वरूप उससे भिन्न है।

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