Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

बच्चों की पूरी सुरक्षा के बाद ही स्कूल खोले जाने चाहिए

चीन से पैदा हुई महामारी ने पूरी दुनिया की नींद उड़ा कर मानवजीवन के सामने गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। भारत भी इससे बचा नहीं है। देश में कोरोना के मामले इतनी तेजी से बढ़ रहे हैं कि सुन कर डर लगने लगा है। 20 लाख से अधिक मामले देश में हो गए हैं। 40 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। देश में लगभग सभी राज्यों की स्थिति एक जैसी है। इनमें महानगरों की स्थिति कुछ ज्यादा ही खराब है।
कोविड-19 महामारी हमारे स्वास्थ्य पर सीधा हमला करती है। ‘सोशल डिस्टेसिंग और मास्क’ महामारी से बचने के एकमात्र रामबाण इलाज हैं। फिर भी लोगों की लापरवाही ने पूरे देश को चिंता में डाल दिया है। मानवजीवन के अनेक क्षेत्रें पर महामारी का सीधा असर दिखाई दे रहा है। अर्थव्यवस्था और रोजी-रोजगार सब चैपट हो गया है। गरीबों और मेहनत-मजदूरी करने वाले लोगों का जीना मुहाल हो गया है। मध्यमवर्ग भी अनेक समस्याओं से जूझ रहा है।
महामारी से सबसे अधिक प्रभावित शिक्षा का क्षेत्र हुआ है। साढ़े चार, पांच महीने से देश में पढ़ाई-लिखाई पूरी तरह बंद है। स्कूल-कालेज खोलना केंद्र और राज्य सरकार के लिए भी चिंता का विषय बना हुआ है। छात्र और उनके माता-पिता भी चिंतित हैं। ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था थोड़ा राहत जरूर दे रही है, पर जहां मोबाइल, इंटरनेट की व्यवस्था नहीं है, उस तरह के ग्रामीण इलाकों में गरीब मां-बाप के बच्चे पढ़ाई-लिखाई से पूरी तरह वंचित हैं। यह भी एक तरह की समस्या ही तो है।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि 16 साल से कम उम्र के बच्चे अगर दो घंटे से अधिक फोन का उपोग करते हैं तो उनकी स्मरण शक्ति पर गंभीर असर पड़ता है। ऑनलाइन पढ़ाई से कुछ बच्चों को सिरदर्द की शिकायत होने लगी है। ऐसे बच्चों को डाक्टर ऑनलाइन पढ़ाई और टीवी देखने से मना कर देते हैं। क्योंकि घर में रहने से बच्चे टीवी भी लगातार देख रहे हैं। अब ऐसे बच्चों की पढ़ाई का क्या होगा?
ऑनलाइन पढ़ाई परंपरागत पढ़ाई का स्थान नहीं ले सकती। स्कूल-कालेज की व्यवस्था छात्रें को केवल पढ़ने के लिए ही नहीें है, सर्वांगीण विकास और उत्तम जीवन को गढ़ने के अति आवश्यक है। पाठ्य पुस्तकों के अलावा जो ज्ञान स्कूल-कालेजों में मिलता है, वह घर में कदापि नहीं मिल सकता। अध्यापकों का स्नेहिल व्यवहार, प्रेम-लगाव, प्रोत्साहन छात्रें को पढ़ने के लिए प्ररित कर रुचि उत्पन्न करता है। बच्चे अध्यापकों की छत्रछाया में भयमुक्त हो कर हंसी-खुशी से पढ़ते हैं। छात्र और शिक्षक के बीच अध्ययन प्रक्रिया अधिक फलदायी और परिणाम देने वाली बनती है। कोरोना महामारी को आए साढ़े चार महीने से अधिक हो गए हैं। तब से स्कूल-कालेज लगातार बंद हैं। इससे साफ है कि सब से अधिक प्रभावित शिक्षा का ही क्षेत्र है। सबसे ज्यादा युवा वाले अपने देश में लंबे समय तक शिक्षा की अवहेला नहीं की जा सकती। कोरोना महामारी कब खत्म होगी, यह भी अभी अनिश्चित है। ऐसे माहौल में स्कूल-कालेज खोलने के बारे यक्ष प्रश्न राज्य सरकार और भारत सरकार के लिए चिंता का विषय है। चिंता और परेशानी का विषय बना हुआ है। चारों तरफ गहरी खाई है। इधर जाएं या उधर, समझ में नहीं आ रहा। कोरोना का विषचक्र लगातार चल रहा है।

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क्यों सबको प्रिय हैं राम !

जिस राममंदिर का हिंदुओं को सदियों से इंतजार था, आखिर 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों उसका शिलान्यास हो ही गया यानी मेंदिर की नींव पड़ गई। 5 अगस्त, 2020 का दिन भारतीय इतिहास में अयोध्या में राममंदिर का शिलान्यास होने के दिन के रूप में जाना जाएगा। देश में करोड़ो लोगों के हृदय में इष्टदेव के रूप में राम विराजमान हैं। परंतु देश की सबसे बड़ी विडंबना यह थी कि राम जन्मभूमि पर राममंदिर तोड़ दिया गया था। सैकड़ो वर्षों से दिल में यह कसक ले कर देश के करोड़ो लोग रामजी का जन्मदिन रामनवमी मनाते थे। परंतु सभी के हृदय में यह बात खटकती थी कि हमारे भगवान की जन्मभूमि पर मंदिर क्यों नहीं बन रहा। 5सौ सालों से यह कसक देश के करोड़ो हिंदुओं में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही थी।
इतिहासकार कनिंगम ने लखनऊ गजट में लिखा है कि 1लाख 74हजार हिंदुओं का कत्लेआम करने के बाद बाबर का सेनापति मीरबाकी अयोध्या का राममंदिर तोपों से उड़ाने में सफल हुआ था। उसके बाद उस मंदिर पर बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ और तब से मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए बलिदानों का सिलसिला शुरू हुआ। इतिहास कहता है कि श्रीराम जन्मभूमि पर फिर से मंदिर बनाने के लिए बाबर के ही समय में करीब छह युद्ध हुए। हुमायूं के समय में लगभग 12 युद्ध हुए। अकबर के समय में 24 और औरंगजेब के शासनकाल में करीब 36 छोटी-बड़ी लड़ाईयां राम जन्मभूमि को वापस पाने के लिए लड़ी गईं। देश का आत्मसम्मान वापस दिलाने के लिए हुए युद्धों में लाखों लोग खप गए। अंग्रेजों के समय में भी यह सिलसिला चलता रहा। सत्ताधारी अंग्रेज डिवाइड एंड रूल की पॉलिसी में विश्वास करते थे। 1857 में हिंदू-मुस्लिमों ने एक हो कर अंग्रेजो को भगाने के लिए गदर किया था। तब मुस्लिम नेता अमीरअली ने मुसलमानों से अपील की थी कि अंग्रेजों से यु( में हिंदू भाइयों ने कंधे से कंधा मिला कर साथ दिया है, इसलिए अपना फर्ज बनता है कि हमें खुद हिंदुओं को रामचंद्रजी की जन्मभ्रूमि सौंप देनी चाहिए। अंग्रेज अमीरअली की इस बात से चैंके। अंग्रेज हिंदू-मुस्लिम एकता सहन नहीं कर सकते थे। परिणामस्वरूप अंग्रेजों ने राम जन्मभूमि का विवाद खत्म करने की आवाज उठाने वाले मुस्लिम नेता मौलाना अमीरअली और हनुमान गढ़ी के महंत रामचंद्रदास को 18 मार्च, 1858 को अयेध्या में हजारों हिंदुओं और मुसलमानों के सामने कुबेर टेकरा पर फांसी पर लटका दिया था। इस घटना के बारे में अेंग्रेज इतिहासकार मार्टिन ने लिखा है। इस तरह खुलेआम फांसी देने से फैजाबाद और आसपास के गदर में शामिल लोगोें की कमर टूट गई और अंग्रेजों का खौफ उस क्षेत्र में फैल गया।
अंग्रेजों के समय भी इस विवाद का हल नहीं हो सका। आजादी के बाद सभी को उम्मीद थी कि यह विवाद हल हो जाएगा। क्योंकि जब देश आजाद होता है और नए राष्ट्र का निर्माण होता है तो राष्ट्र से जुड़ी गुलामी और अन्याय की यादों को हटा दिया जाता है। भगवान सोमनाथ के मंदिर के बारे में आजादी के बाद यह संभव हो सका। सन 1024 में मुहम्मद गजनी ने सोमनाथ मंदिर को तोड़ा, उसके बाद फिर मंदिर बना, फिर टूटा, ऐसा 7 बार हुआ। आखिर आजादी के बाद 13 नवंबर, 1047 को भारत के उप प्रधानमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की प्रतिज्ञा ली और आखिर 11 मई, 1951 को सोमनाथ की प्राणप्रतिष्ठा भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा0 राजेन्द्र प्रसाद के हाथों हुई। आजादी के बाद गुलरात के सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण संभव हो सका। पर अयोध्या के रामजन्म भूमि मंदिर के साथ ऐसा नहीं हो सका।

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कोरोना से जंग जीतनी ही होगी

ये बात कभी जेहन में नहीं आई थी कि इंसान… इंसान से डरने लगेगा। उसके मन में यह डर बैठ जाएगा कि अगर किसी दूसरे इंसान ने उसे छू लिया तो वह बीमारी का शिकार होकर वह मर जाएगा। यह बातें अकल्पनीय है लेकिन सच है। मास्क पहनने के बाद भी व्यक्ति खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रहा है। हर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से दूरी बनाए हुए है। आज पूरा देश कोविड 19 से जूझ रहा है। इस महामारी में और इस उपजी परिस्थितियों ने जनजीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया हुआ है। जीवन मे घटित कुछ ऐसे पहलू जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जब लॉक डाउन हुआ तो मजदूर वर्ग बिना सोचे समझे काम छोड़कर नंगे पैर, भूखे प्यासे अपने घर की ओर पलायन करने लगे। बहुत से मृत्यु का ग्रास बन गये, बहुतों ने बहुत तकलीफ उठाई और अब भी बहुत से श्रमिक वर्ग बदहाली का जीवनयापन कर रहे हैं। छोटे उद्यमियों की स्थिति ज्यादह खराब है। खोमचे वाले गोलगप्पे वाले जो रोज ₹200 तक कमा लेते थे आज उनकी आमदनी का जरिया बंद है। यदि वह काम नहीं करेंगे तो परिवार का भरण पोषण कैसे करेंगे? यह बात रोता हुआ एक सब्जी वाला कहता है।

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आदिवासी दिवस के बहाने अलगाववाद की राजनीति

वैश्विक परिदृश्य में कुछ घटनाक्रम ऐसे होते हैं जो अलग अलग स्थान और अलग अलग समय पर घटित होते हैं लेकिन कालांतर में अगर उन तथ्यों की कड़ियाँ जोड़कर उन्हें समझने की कोशिश की जाए तो गहरे षड्यंत्र सामने आते हैं। इन तथ्यों से इतना तो कहा ही जा सकता है कि सामान्य से लगने वाले ये घटनाक्रम असाधारण नतीजे देने वाले होते हैं। क्योंकि इस प्रक्रिया में संबंधित समूह स्थान या जाति के इतिहास से छेड़ छाड़ करके उस समूह स्थान या जाति का भविष्य बदलने की चेष्टा की जाती है। आइए पहले ऐसे ही कुछ घटनाक्रमों पर नज़र डालते हैं।
घटनाक्रम 1.
2018, स्थान राखीगढ़ी, लगभग 6500 साल पुराने एक कंकाल के डी.एन.ए के अध्य्यन से यह बात वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो गई कि आर्य बाहर से नहीं आए थे।बल्कि वे भारतीय उपमहाद्वीप के स्थानीय अथवा मूलनिवासी थे। यहीं उन्होंने धीरे धीरे प्रगति की, जीवन को उन्नत बनाया और फिर इधर उधर फैलते गए। इस शोध को देश विदेश के 30 वैज्ञानिकों की टीम ने अंजाम दिया था जिसका दावा है कि अफगानिस्तान से लेकर बंगाल और कश्मीर से लेकर अंडमान तक के लोगों के जीन एक ही वंश के थे।

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भारत त्‍यौहार और उत्सावों का जीता जागता स्वरूप है, हर दिन मानाे त्‍यौहार

सभी धर्म के लाेग मिल जुल कर सभी त्‍यौहार को पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाते है हमारे यहाँ अनेकाे त्यौहार मनाए जाते हैं और सभी त्‍यौहार के प्रति सबके मन में श्रद्धा और प्यार भी हाेता है और सभी का अपना महत्व भी है। पर हम बात करे एक ऐसे अनाेखे त्‍यौहार की जाे सबसे अलग और प्यारा है। जाे सावन मास की पूर्णिमा काे मनाया जाता है। वह है, रक्षाबंधन जाे दाे शब्द से मिल कर बना है रक्षा+बंधन, जिसका मतलब हैं बंधन रक्षा का, ये एक ऐसा बंधन है जहाँ रिश्तों काे धागाे मे पिराेया जाता है।
ये धागा मामूली धागा सूत्र नहीं हाेता है। इस धागे की महत्व सबसे अलग हाेता है। ये एक ऐसा धागा है जहाँ हम सभी धागों के जरिये रिश्तों में बंध जाते हैं। ये एक ऐसा त्‍यौहार है जहाँ बहन अपने भाई के कलाई पर रक्षा सूत्र जिसे हम राखी कहते हैं पूरे वचनों के साथ बांधती है और साथ ही अपने भाई को ढेरों आशीर्वाद देती है और उसकी लंबी उम्र की कामना करती है, तथा भाई भी उसे पूरे मन से जीवन भर रक्षा कवच के भांति उसकी सुरक्षा, सम्मान, हर सुख – दुख में साथ देने का वचन देता है। पर रक्षा सूत्र हम सिर्फ भाई काे ही नहीं बांधते है हम रक्षा सूत्र किसी काे भी बांध सकते हैं।

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रफ़ाल का कमाल

रफ़ाल विमान में 1000 किलोग्राम वजन वाला एक कैमरा लगा होता है जो हजारों फीट की ऊंचाई से नीचे जमीन पर पड़ी क्रिकेट की किसी गेंद को भी देख सकता है और उसकी बिल्कुल साफ तस्वीर खींच सकता है। रफ़ाल 55000 फीट की ऊंचाई से दुश्मन पर हमला करने में सक्षम है। ये एक बार में 16 टन बम और मिसाइल ले जा सकता है।
यह दुनिया का इकलौता लड़ाकू विमान है जो अपने वजन से डेढ़ गुना ज्यादा पे लोड ले जा सकता है। इसमें लगा मल्टीडायरेक्शनल रडॉर 100 किलोमीटर की रेंज में 40 से ज्यादा टारगेट्स को एक साथ निशाने पर ले जा सकता है और इस विमान में 1 मिनट के अंदर ढाई हजार गोले दागने की क्षमता है।
रफ़ाल की रफ्तार लगभग 2130 किलोमीटर/घंटा है। यानी इस विमान की रफ्तार, आवाज य ध्वनि की रफ्तार से दुगनी है। इस विमान में परमाणु हमला करने की भी क्षमता है। रफ़ाल में तीन तरह की घातक मिसाइलों के साथ 6 लेज़र गाइडेड बम भी फिट होते हैं। इन लेजर गाइडेड बम्स में से प्रत्येक बम की कीमत लगभग 3 करोड़ रुपए के आसपास होती है। रफ़ाल में इंटीग्रेटेड सेल्फ प्रोटेक्शन सिस्टम लगा है जो स्पेक्ट्रा कहलाता है। ये रफ़ाल के रक्षा कवच के रूप में काम करता है। ये दुश्मन के रडार को जाम करने में सक्षम है और उसकी तरफ से आती हुई मिसाइलों के बारे में विमान को अलर्ट कर देता है। विमान उस मिसाइल को मिस गाइड करने की क्षमता रखता है।

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इंटरनेट की कछुआ स्पीड से दम तोड़ रहा है डिजिटल इंडिया

डिजिटल तकनीक में शिक्षा का अभाव और ट्रेन कर्मियों के लिए सीमित सुविधाएं डिजिटल अपराध के बढ़ते खतरे को न्योता दे रहें है – डॉo सत्यवान सौरभ
भारत सरकार ने देश को डिजिटल अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत, मायगॉव, गवर्नमेंट ई-मार्केट, डिजीलॉकर, भारत नेट, स्टार्टअप इंडिया, स्किल इंडिया और स्मार्ट सिटीज को शामिल करके भारत को तकनीकी क्षमता और परिवर्तन की ओर अग्रसर किया गया है। डिजिटल अर्थव्यवस्था की दिशा में उठाये गए ये सभी कदम आर्थिक विकास की एक नई लहर को ट्रिगर करने, अधिक निवेश को आकर्षित करने और कई क्षेत्रों में नए रोजगार पैदा करने में मदद करने के लिए बड़े जोर-शोर से उठाये गए है। हालाँकि, इनके साथ हमारे सामने साइबर सुरक्षा की एक बड़ी चुनौती भी है।
हाल ही में भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 (A) का प्रयोग करते हुए हमारे पडोसी देश चीन द्वारा निर्मित और संचालित 59 एप्प्स, जिनमें टिकटॉक, शेयर इट, कैम स्कैनर इत्यादि शामिल हैं, को प्रतिबंधित कर दिया था। इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने डेटा सुरक्षा और गोपनीयता संबंधी चिंताओं को इस प्रतिबंध का सबसे बड़ा आधार बताया है। भारत के द्वारा चीनी उपकरणों पर लगाए गए प्रतिबंध से निश्चित ही वैश्विक बाज़ार में चीनी कंपनियों की साख गिरी और प्रभावित हुई है। वर्तमान दौर भारत के लिये यह एक अवसर के रूप में सामने आया है। इसलिए समय की नब्ज़ पकड़ते हुए भारत को दीर्घकालिक रणनीति पर कार्य करते हुए डिजिटलीकरण की दिशा में आगे बढ़ना होगा, तभी हम चीन को पछाड़ पाएंगे और उस पर हमारी निर्भरता हमेशा के लिए खत्म हो सकेगी।

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नशा दाैलत का था 

नशा दाैलत का था
मगर इंसान काम आया
गुरुर अपनाे पर था
मगर ईश्वर ने आईना दिखाया
साेचा जिंदगी शाेहरत से चलती है
मगर जिंदगी चलाने के लिए दाे वक्त की राेटी ने साथ निभाया
नशा दाैलत का था
मगर इंसान काम आया
साेचा दाैलत से सब कुछ खरीद लूंगा
मगर जनाजे में वाे चार कंधा काम आया

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नजरिया अपना बदलो

अगर उपलब्धि मिली तो
इतने न खुश हो जाओ,
आलोचना इसके साथ ही
मिलेगी यह समझ जाओ।
निश्चित है यह बिल्कुल
कोई दो राय नहीं है,
तारीफ, प्रशंसा मिली तो
संग निंदा, बुराई भी होगी।
सबके नजर में हम
एक जैसे ही नहीं होते,
कुछ को सिर्फ कमियां दिखती
कुछ कमियों पर नज़र न फेरते।

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आज भी व्याप्त है प्रेमचंद के कहानियों के पात्र

—प्रेमचंद जयंती विशेष—
(31 जुलाई 1880 – 8 अक्टूबर 1936)
“जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हममें गति और शक्ति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य प्रेम न जागृत हो, जो हममें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची दृढ़ता न उत्पन्न करें, वह हमारे लिए बेकार है वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं है।”
जी, हाँ यह प्रसिद्ध उक्ति कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी के हैं…।
आदरणीय
प्रेमचंद जी
सादर अभिवादन ,
मैं आपकी बचपन से ही बहुत बड़ी प्रशंसक रही हूँ। या यह कह लीजिए आपकी कहानियाँ और उपन्यासों को पढ़-पढ़ कर ही मैं बड़ी हुई हूँ आपकी हर कहानी अपने आप में अनोखी है। पढ़ कर ही ऐसा महसूस होता है जैसे हम भी उन किरदारों का दर्द समझ पा रहे है उन्हें जी पा रहे हैं। फिर चाहे वो “नमक का दारोगा” हो या “निर्मला” या फिर “गबन” या हो “गोदान” या फिर “कर्म भूमि” हो या “दो बैलों की कथा” हो आपकी हर कहानी अपने आप में कालजयी है जिसे एकबार पढने के बाद बार-बार पढ़ने का मन करता है…।
बचपन में मैं कहानियों का अंत पहले ही पढ लेती थी और सोचती थी कि अगर अंत दुखद है तो मै उस कहानी को नही पढूंगी पर फिर न जाने क्यों मै बिना उस किताब को पढे रह ही नहीँ पाती। आपने अपनी लेखनी में शोषित वर्ग का दुख दुनिया के सामने रखा है।

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