Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

सामाजिक परिवर्तन के लिए जातिगत नामों की सख्त मनाही होनी चाहिए – डॉo सत्यवान सौरभ

हाल ही में अतिरिक्त महानिदेशक पुलिस, आर्म्ड बटालियन, जयपुर राजस्थान ने एक पत्र अपने सभी कमांडेंट को जारी किया है जिसमें सभी बटालियन के अधिकारियों को निर्देश दिए गए है कि उनके सभी अधिकारी और अधीनस्थ कर्मी अपनी वर्दी, अपने ऑफिस के कमरे के बाहर या अपनी टेबल की नाम पट्टिका पर लिखे गए नाम के साथ जातिगत या गोत्रगत नाम नहीं लगाएंगे और सरकारी आदेशों में इनका प्रयोग न करके केवल अपने प्रथम नाम से पुकारे या जाने जायँगे। नाम पट्टिका पर व आदेशों और निर्देशों में पूरा स्टाफ अपना नाम व बेल्ट नंबर ही इस्तेमाल करेगा। क्या जबरदस्त आदेश आया है? वास्तव में ऐसा ही हमारे देश के हर सरकारी महकमे में और सार्वजनिक स्थानों पर होना चाहिए।

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सोशल मीडिया पर लड़ रहे हैं आवारा युवा नेता

राजनीतिक हास्यास्पद सोशल मीडिया पर बहुत शोर मचा रहा हैं। आज प्रत्येक युवा जो राजनीति की नीति के बारे में बिल्कुल भी नहीं जानते है वो भी सोशल मीडिया पर युवा नेता बनकर घूम रहे हैं, हालांकि यहां तक तो ठीक बात है कि युवा नेता बनकर घूम रहे लेकिन किसी एक दल का पूँछ पकड़कर दूसरे दलों से संबंधित लोगों से बिना जानकारी के अभाव में ही झगड़ा कर रहे हैं। ये यथार्थ बात है कि युवा को राजनीति में अवश्य शामिल होना चाहिए और देश के भविष्य की नींव को मजबूत करना चाहिए लेकिन इससे पहले ये भी उन युवा नेताओं को सोचना चाहिए कि उनके राजनीतिक ज्ञान की नींव मजबूत है अथवा नहीं!
अक्सर देखने को मिलता है कि राजनीति की नासमझ बहस के कारण कभी कभी युवा एक दूसरे के जानी दुश्मन भी बन जाते हैं और संकीर्ण सोच अथवा बदले की भावना में बहुत बड़ा गलत कदम भी उठा सकते हैं इसलिए युवाओं को सर्वप्रथम राजनीति का परिदृश्य समझना होगा उसके बाद राजनीति पर बहस अथवा लोगों को जानकारी दी जाए।

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सरकारी स्कूलों में पढ़कर राज्यभर में टॉप करना कोई छोटी बात नहीं है

देश के प्रधानमंत्री मोदी जी को एक मन की बात देश भर के सरकारी स्कूलों की स्थिति और अध्यापकों की भर्ती और उनकी कार्यशैली को लेकर करनी चाहिए- डॉo सत्यवान सौरभ
हाल ही में हमारे प्रधामंत्री मोदी जी ने राष्ट्र के नाम सम्बोधन में हरियाणा की उन बेटियों का जिक्र किया जो सरकारी स्कूल में पढ़कर विभिन्न संकायों में राज्यभर में प्रथम स्थान पर रही। हरियाणा के ग्रामीण आँचल में सरकारी स्कूलों में पढ़कर राज्यभर में टॉप करना कोई छोटी बात नहीं है। इन बेटियों को सलाम और प्रणाम उन पूजनीय गुरु चरणों में जिन्होंने निजीकरण में इस दौर में सरकारी और कम सुविधा वाले स्कूलों में इन बच्चों को सच्ची शिक्षा प्रदान कर वास्तविक ज्ञान की राह दिखला दी।
आज ये साबित हो गया है कि मात्र सौ रुपये की फीस देकर भी लाखों की फीस भरकर कान्वेंट स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों का मुकाबला ही नहीं किया जा सकता, उनको राज्यस्तर एवं देश स्तर पर पछाड़ा भी जा सकता है। इस सफलता के पीछे बच्चों के मेहनत तो है ही, उन अध्यापको की लगन भी है जो अपनी तनख्वाह पक्की मानकर केवल बैठे नहीं, उन्होंने ख्वाब देखे और बच्चों को दिखाए। आखिर उनकी मेहनत रंग लाई। जहां तक मेरी सोचा है पिछले दस सालों में हरियाणा के सरकारी स्कूलों की तस्वीर बदली है। खासकर अध्यापक भर्ती में पात्रता लागू होने के बाद, इससे वही लोग इस पेशे में आये जो काबिल थे और परिणाम आप देख रहें है।

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‘लहू से सींच गये जो’

नाम यूं ही ना बिसराना
मूरत को दिल मे बसाना
उनका ऐ मेरे वतन
लहू से सींच गये जो
भारत का प्यारा चमन।
मन मे साहस भरना हो तो
जीवन पावन करना हो तो
तुम आदर और सम्मान से
करना उनको भी नमन
लहू से सींच गये जो
भारत का प्यारा चमन।

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आर ओ कितना उपयोगी ?

भारत इस समय पानी के मामले में दोहरी मुसीबत का सामना कर रहा है। एक तरफ भारत में पानी का संकट है और बड़ी संख्या में लोगों के पास पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है, दूसरी तरफ आर ओ का इस्तेमाल करके पानी को साफ करने में पर्यावरण का बहुत नुकसान हो रहा है और पानी की बहुत बर्बादी हो रही है।
एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक यदि पानी की बर्बादी नहीं रुकी तो भारत की अर्थव्यवस्था में बहुत नुकसान होगा और भारत की विकास दर शून्य से नीचे चली जाएगी। भारत में हर साल लगभग दो लाख लोग साफ पानी ना मिलने से अलग-अलग बीमारियों के कारण मर जाते हैं। आगे भविष्य में पानी की समस्या बहुत विकराल रूप ले सकती है। इसलिए हमें अपनी विशाल जनसंख्या की प्यास बुझाने और पानी की बर्बादी को रोकने का कारगर उपाय करना ही होगा।

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आयुर्वेद को दवा माफियाओं से बचाना होगा

आयुर्वेद के नाम पर झूठे दावों, दवाइयों के जालसाजी आदि के लिए भारी जुर्माना का प्रावधान करना अत्यंत जरूरी है -प्रियंका सौरभ
आयुर्वेद में प्राकृतिक उपचार की हजारों वर्षों की परंपरा का मिश्रण है। आयुर्वेदिक चिकित्सा यानी घरेलू उपचार दुनिया की सबसे पुराना चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। आयुर्वेदिक तरीका रोगी को चंगा करने के लिए सबसे अच्छा तरीका है, प्राकृतिक चिकित्सा में उपचार की तुलना में स्वास्थ्यवर्धन पर अधिक महत्व दिया जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा स्वस्थ जीवन जीने की एक कला विज्ञान है। कोविद-19 महामारी के दौरान प्राकृतिक उपचार का ज्ञान पूरे विश्व में लाइमलाइट में आया है।
इसलिए विशेष रूप से विश्व बाजार में प्राकृतिक उपचार की मांग को पूरा करने के लिए आयुर्वेद को अच्छे तरीके से दुनिया के सामने रखने और सही जानकारी से पूर्ण करने की आवश्यकता है, प्राकृतिक चिकित्सा में कृत्रिम औषधियों का प्रयोग वर्जित माना जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा में विषैली औषधियों को शरीर के लिये अनावश्यक ही नहीं घातक भी समझा जाता है। प्रकृति चिकित्सक है दवा नहीं।

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शिक्षा माफियाओं के दबाव में स्कूल और डिजिटल शिक्षा

जब तक सही समय न आये डिजिटल शिक्षा से काम चलाना बेहतर है -प्रियंका सौरभ
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मानव संसाधन विकास मंत्रालय फिलहाल स्कूलों को खोलने की जल्दी में कतई नहीं है। केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री ने 15 अगस्त के बाद की तारीख बताकर अनिश्चितता तो फिलहाल दूर कर दी लेकिन भारत में कुछ राज्य इन सबके बावजूद भी स्कूल खोलने की कवायद में जी- जान से जुड़े है। पता नहीं उनकी क्या मजबूरी है? मुझे लगता है वो स्कूल माफियाओं के दबाव में है। आपातकालीन स्थिति में इस तकनीकी युग में बच्चों को शिक्षित करने के हमारे पास आज हज़ारों तरीके है। ऑनलाइन या डिजिटल स्टडी से बच्चों को घर पर ही पढ़ाया जा सकता है तो स्कूलों को खोलने में इतनी जल्दी क्यों ? वैश्विक महामारी जिसमे सोशल डिस्टन्सिंग ही एकमात्र उपाय है के दौरान स्कूल खोलने में इतनी जल्बाजी क्यों ? सरकारों को चाहिए की जब तक कोरोना की वैक्सीन नहीं आती स्कूल न खोले जाए। शिक्षा माफियाओं के दबाव में न आये। ऐसे लोगों को न ही ज़िंदगी और न बच्चों के भविष्य की चिंता है। इनको चिंता है तो बस फीस वसूलने की।

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खतरनाक शीत युद्ध में प्रवेश कर चुकी दो महाशक्तियां

कोरोना काल की शुरुआत से ही अगर सबसे ज्यादा प्रभावित कोई देश रहा है तो वो है, अमेरिका! और अमेरिका कोरोना काल की शुरुआत से ही इस महामारी को बनाने व फैलाने में चीन को ही जिम्मेदार ठहराता रहा है। क्योंकि चीन ने जिस तरह पूरी दुनिया से इस खतरनाक बीमारी के बारे में छिपाया, उससे कहीं न कहीं पूरी दुनिया के शक की सुई चीन पर ही जाकर अटकती है। इसी ने चीन और अमरीका के बीच तनाव की स्थिति को जन्म दिया, जो आज एक शीत युद्ध की तरफ बड़ी तेजी से अपने कदम बढ़ाते नजर आ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि दो महाशक्तियों का इस तरह से शीत युद्ध में प्रवेश करना पूरी दुनिया के लिए एक खतरनाक स्थिति का संकेत है। जिस तरह अमेरिकी प्रशासन ने चीन के खिलाफ तेजी से वैश्विक विकास का कार्य शुरू किया है, उससे यह बात साफ है कि चीन और अमरीका के बीच तनातनी चरम पर है। क्योंकि आजकल दक्षिणी चीन सागर में अमेरिका, चीन के प्रतिद्वंद्वियों के साथ अनारक्षित साइडिंग कर रहा है, जिससे चीन अंदर ही अंदर तिलमिला रहा है। इस पर चीन ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए ट्रम्प को एक कमजोर व त्रुटि ग्रस्त नेता से संबोधित किया।

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उदारवादियों के सिलेक्टिव लिब्रलिस्म से पर्दा उठने लगा है

आज हम उस समाज में जी रहे हैं जिसे अपने दोहरे चरित्र का प्रदर्शन करने में महारत हासिल है। वो समाज जो एकतरफ अपने उदारवादी होने का ढोंग करता है, महिला अधिकारों, मानव अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बड़े बड़े आंदोलन और बड़ी बड़ी बातें करता है लेकिन जब इन्हीं अधिकारों का उपयोग करते हुए कोई महिला या पुरूष अपने ऐसे विचार समाज के सामने रखते हैं तो इस समाज के कुछ लोगों को यह उदारवाद रास नहीं आता और इनके द्वारा उस महिला या पुरुष का जीना ही दूभर कर दिया जाता है। वो लोग जो असहमत होने के अधिकार को संविधान द्वारा दिया गया सबसे बड़ा अधिकार मानते हैं वो दूसरों की असहमती को स्वीकार ही नहीं कर पाते।
हाल ही के कुछ घटनाक्रमों पर नज़र डालते हैं।

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दल-बदलुओं के बीच पिसती राजनीति

समयानुसार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा दलबदल कानून में संतुलन की सख्त जरूरत है – डॉo सत्यवान सौरभ
हाल ही में राजस्थान में बिगड़ते राजनीतिक संकट के बीच राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष द्वारा बागी विधायकों को ‘दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्यता नोटिस जारी किया गया है। इसको लेकर बागी काॅन्ग्रेसी नेता सचिन पायलट और 18 अन्य असंतुष्ट विधायकों ने अयोग्यता नोटिस को उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। मामले पर बागी विधायकों का तर्क है विधानसभा के बाहर कुछ नेताओं के निर्णयों और नीतियों से असहमत होने के आधार पर उन्हें संसदीय ‘दलबदल विरोधी कानून’ के तहत अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है,ऐसा करना गलत है।
मामला ये है कि राजस्थान के कांग्रेसी उपमुख्यमंत्री सहित कॉंग्रेस के कुछ बागी विधायक हाल ही में ‘काॅन्ग्रेस विधायक दल की बैठकों में बार-बार निमंत्रण देने के बावज़ूद शामिल नहीं हुए थे। इसके बाद राज्य में पार्टी के मुख्य सचेतक की अपील पर विधानसभा अध्यक्ष द्वारा इन विधायकों को अयोग्यता संबंधी नोटिस जारी किया गया है।

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